SexBaba Kahan विश्‍वासघात
09-29-2020, 12:23 PM,
#67
RE: SexBaba Kahan विश्‍वासघात
दामोदर बहुत दुविधा में था। राजन के हाथ में रिवॉल्वर देख कर उसका दिल उसके जूतों में उतरा जा रहा था। उसका दिल यही कह रहा था कि रिवॉल्वर नकली थी। आखिर असली रिवॉल्वर उस लुहार के लौंडे के पास कहां से आती? लेकिन अगर वह रिवॉल्वर असली हुई तो? उसके साथी तो सिनेमा के बाद सीधे घर जाना चाहते थे। उसी के उकसाने पर वे राजन के पीछे पड़े थे। अब अगर रिवॉल्वर से डरकर वही पीछे हट गया तो उसकी क्या इज्जत रह जाएगी? वह अभी परसों ही राजन के हाथों बेइज्जती कराकर हटा था। अब अपने इतने साथियों की मौजूदगी में भी उसका बढ़ा हुआ कदम पीछे हट गया तो उसकी हमेशा-हमेशा के लिए नाक कट जानी थी। किस सांसत में फंसा ली थी उसने अपनी जान? अब वह उस घड़ी को कोस रहा था जब उसने राजन के पीछे पड़ने का इरादा किया था और बजरंगबली से मन-ही-मन प्रार्थना कर रहा था कि कोई ऐसी सूरत निकल आए कि वह पीछे भी हट जाए और उसकी नाक भी कटने से बच जाए। और नहीं तो उस वक्त उधर कोई भूला भटका पुलिसिया ही निकल पड़े ताकि उन्हें वहां से भाग खड़े होने का एक न्यायोचित बहाना मिल जाए और उसकी इज्जत का जनाजा निकलने से रह जाए। पुलिसिया नहीं तो कोई राहगीर ही उधर आ निकले।
उसने अपने चारों तरफ निगाह दौड़ाई।
रास्ते सुनसान पड़े थे। कहीं कोई नहीं था।
जिस इमारत की चारदीवरी के साथ पीठ लगाए राजन और डेजी खड़े थे, उसकी पहली मंजिल की एक खिड़की अभी एक क्षण पहले खुली थी और उस पर एक आदमी प्रकट हुआ था जो खिड़की से बाहर झांकता हुआ शायद समझने की कोशिश कर रहा था कि बाहर शोर-शार कैसा था! काश वही आदमी कोई शोर शार मचा दे।
लेकिन कुछ न हुआ।
वातावरण की स्तब्धता में कोई व्यवधान न आया।
“खलीफा!”—उसके कानों में एकाएक मदन की आवाज पड़ी—“ऐसा तमंचा कुतुब रोड पर साढ़े पांच रुपये में बिकता है।”
“मार के गेर दो स्साले को।”—लम्बा लड़का दांत पीसता हुआ बोला।
दामोदर को लगा जैसे उसके साथी उसे ललकार रहे हों।
बड़ी हिम्मत करके उसने एक कदम आगे बढ़ाया।
“खबरदार!”—राजन आतंकित भाव से बोला—“वहीं रुक जाओ वर्ना शूट कर दूंगा।”
दामोदर न रुका। अब उसे लगभग विश्‍वास आ गया था कि तमंचा वाकई नकली था। उसने बड़ी हिम्मत के साथ एक कदम और आगे बढ़ाया।
डेजी के मुंह से एक घुटी हुई चीख निकली।
राजन ने इतनी जोर से दांत भींचे कि उसके जबड़े दुखने लगे। रिवॉल्वर का ट्रीगर जैसे उसकी उंगली ने नहीं, डेजी की आतंकभरी चीख ने खींचा।
दो बार धांय-धांय की आवाज हुई।
दामोदर का उसकी तरफ बढ़ता अगला कदम हवा में ही जमकर रह गया। फिर वह एक भयंकर धड़ाम की आवाज के साथ मुंह के बल सड़क पर गिरा।
उसके गिरने की देर थी कि उसके साथियों के पैरों में जैसे पर लग गए। उनके जिधर सींग समाए, वे भाग निकले। अब किसी को खलीफा के अंजाम की फिक्र नहीं थी। अब हर किसी को अपनी जान की फिक्र थी।
अगले ही क्षण गली खाली हो गई और उसमें मरघट का-सा सन्नाटा छा गया।
डेजी उससे अलग हट गई। उसने एक निगाह नीचे गिरे पड़े दामोदर पर डाली और फिर यूं फटी-फटी आंखों से राजन की तरफ देखा जैसे एकाएक उसके सिर पर सींग निकल आए हों।
“तुमने इसे मार डाला!”—वह आतंकित भाव से बोली—“तुमने खून कर दिया!”
“मैंने जो किया है”—राजन बोला—“तुम्हारी इज्जत बचाने के लिए किया है।”
“तुम हत्यारे हो। तुम...”
“बकवास बन्द!”
वह फौरन चुप हो गई।
राजन को अपने पीछे इमारत की कोई खिड़की जोर से बन्द होने की आवाज आई।
“चलो!”—वह डेजी की बांह पकड़कर उसे जबरन घसीटता हुआ बोला।
डेजी उसके साथ खिंचती चली गई।
गोली की आवाज किसी ने गली में सुनी हो सकती थी और कोई अब पुलिस को उस घटना की सूचना दे भी चुका हो सकता था। उनका फौरन वहां से निकल चलना निहायत जरूरी था।
अब क्योंकि उसे दामोदर के साथियों से खतरा नहीं था इसलिए पीछे रिंग रोड पर जाने का खयाल छोड़कर वह चर्च के पहलू से लगकर गुजरती गली में आगे बढ़ा।
उधर मेन रोड करीब थी।
डेजी के व्यवहार ने उसके दिल को बहुत चोट पहुंचाई थी। उस घड़ी उसके प्यार पर से उसका विश्‍वास उठ गया था। उसने उसकी इज्जत बचाने के लिए इतना बड़ा कदम उठाया था और वह उसको नफरत और तिरस्कारभरी निगाहों से देख रही थी, उसे हत्यारा करार दे रही थी।
गली के दहाने पर पहुंचकर वह सड़क पर कदम रखने ही वाला था कि एकाएक उसे दूर से एक पुलिस की जीप आती दिखाई दी। वह घबराकर पीछे हट गया। डेजी को भी उसने वापिस गली के नीमअन्धेरे में खींच लिया।
जीप आगे गुजर गई।
उन्होंने फिर रोशनी से जगमगाती सड़क पर कदम रखा। पीछे कश्‍मीरी गेट के मेन बस स्टैण्ड पर न कोई बस थी और न आसपास कोई और सवारी थी।
वह डेजी का हाथ थामे लम्बे डग भरता सड़क पर लाल किला की दिशा में चलने लगा। उसका जी तो चाह रहा था कि वह वहां से सरपट भाग निकले लेकिन वह बड़ी कठिनाई से अपने-आप पर जब्त कर रहा था। भागने से हर किसी का ध्यान उसकी तरफ आकर्षित हो सकता था।
वे अभी कोई एक फलांग ही आगे बढ़े थे कि पुलिस की जीप उन्हें लौटती दिखाई दी। सामने ही एक पेड़ था। दोनों उसके पीछे दुबक गए। जीप उनके सामने से गुजरी और फिर उस गली में दाखिल हो गई जिसमें से वे अभी निकले थे। जीप के उनके पास से गुजरते समय उसने देखा कि उसमें कई पुलिसिये मौजूद थे।
वे पेड़ की ओट से निकले और फिर आगे बढ़े। डेजी को राजन लगभग घसीट रहा था। कभी डेजी पर वह बलिहार जाता था, उसके बारे में सोच लेने भर से उसका दिल बाग-बाग हो जाता था लेकिन एक बार अपनी आंखों के सामने अपने विश्‍वास की हत्या होती देख चुकने के बाद अब डेजी उसे एक फालतू बोझ लग रही थी, गले पड़ा ढोल मालूम हो रही थी।
किसी ने ठीक ही कहा था कि इन्सान की जात संकट की घड़ी में, दुश्‍वारी के आलम में ही सामने आती थी।
डेजी को वह पीछे छोड़कर भी नहीं जा सकता था। अगर पुलिस उसे भी पकड़ लेती तो भी वह उससे राजन के बारे में सब कुछ कुबुलवा सकती थी। और फिर पुलिस उससे पहले उसके घर पहुंची हुई हो सकती थी।
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RE: SexBaba Kahan विश्‍वासघात - by desiaks - 09-29-2020, 12:23 PM

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