SexBaba Kahan विश्‍वासघात
09-29-2020, 12:23 PM,
#68
RE: SexBaba Kahan विश्‍वासघात
तभी उसे खयाल आया कि रिवॉल्वर अभी उसके हाथ में थी।
उसके छक्के छूट गये।
वह उसकी मूर्खता की इन्तहा थी।
अगर किसी राहगीर की ही निगाह उसके हाथ में थमी रिवॉल्वर पर पड़ जाती तो क्या होता!
उसे आगे सड़क पर सीवर का एक मेनहोल खुला हुआ दिखाई दिया।
उसके समीप से गुजरते समय उसने रिवॉल्वर सीवर में फेंक दी।
टन्न की आवाज सुनकर डेजी ने सकपकाकर उसकी तरफ देखा लेकिन मुंह से कुछ न बोली।
अब वह अपने कोट की भीतरी जेब में मौजूद शनील की थैली के बारे में सोच रहा था जिसमें कि उसके हिस्से के जवाहरात मौजूद थे।
रिवॉल्वर फेंकना आसान था लेकिन लाखों रुपये के माल से भरी वह थैली वह भला कैसे अपने से अलग कर सकता था? वैसे वह इस हकीकत से नावाकिफ नहीं था कि उसके पास जवाहरात की थैली की बरामदी भी उसे उतना ही फंसा सकती थी, जितना कि रिवॉल्वर की बरामदी।
अब वह भगवान से यही प्रार्थना कर रहा था कि वह पुलिस के हत्थे चढ़ने से बचा रहे और किसी तरह सुरक्षित अपने घर पहुंच जाए।
हांफते, कांखते, कराहते वे भर्ती दफ्तर के चौक में पहुंचे। वहां तीन-चार रिक्शा मौजूद थे, लेकिन राजन की खुली रिक्शा में बैठने की हिम्मत न हुई। मेन रोड पर अपनी मौजूदगी से वह बुरी तरह खौफ खाये था।
प्रेजेन्टेशन कान्वेंट स्कूल की ऊंची दीवार के साये में चलते हुए वे आगे बढ़े। जहां दीवार खत्म हुई वहां से सीधा आगे जाने के स्थान पर वे उस अन्धेरी गली में घुस गए जो कि लाजपतराय मार्केट के पीछे से होती मोती सिनेमा के पहलू से गुजरती चांदनी चौक में जाकर निकलती थी। वहां से वह सड़क पार करता तो एस्प्लेनेड रोड पर पहुंच जाता और फिर वहां से चारहाट का फासला मुश्‍किल से दो फलांग था।
“यह तुम मुझे कहां ले जा रहे हो?”—उनके अन्धेरी गली में कदम रखते ही डेजी त्रस्त भाव से बोली।
“चुपचाप चलती रहो।”—राजन बोला—“इसी में हमारी खैरियत है।”
“तुम्हारी खैरियत होगी। मैंने क्या किया है?”
“डेजी, मुझे तुमसे ऐसी उम्मीद नहीं थी। मैंने जो कुछ किया है, क्या तुम्हारी खातिर नहीं किया?”
“मैं कुछ नहीं जानती। मुझे घर पहुंचाओ। मुझे बहुत डर लग रहा है।”
“घर ही तो पहुंच रहे हैं!”
“यह कौन-सा रास्ता है?”
“शार्टकट है।”
“हम जीपीओ से रिक्शा पर बैठ सकते थे।”
“और पुलिस द्वारा पकड़े जा सकते थे।”
“पुलिस! पुलिस को क्या मालूम कि जो कुछ हुआ था वह हमने... तुमने किया था?”
“लगता है किसी ने गोली की आवाज सुनकर पुलिस को फोन कर दिया था। भगवान न करे पुलिस के वहां पहुंचने तक दामोदर अभी जिन्दा हो और वह पुलिस को मेरा नाम-पता बता चुका हो। भगवान न करे, दामोदर का कोई साथी पुलिस के हत्थे चढ़ गया हो।”
“जीसस!”—वह रोने लगी।
“हौसला रखो, डेजी, सब ठीक हो जायेगा।”
“यह तुमने मुझे किस मुसीबत में फंसा दिया?”
“मैंने फंसाया है?”
“और नहीं तो क्या? वे लड़के तुम्हारे ही पीछे तो लगे हुए थे!”
“मुझे क्या ख्वाब आना था कि वे भी सिनेमा देखने पहुंचे हुए होंगे?”
“मैं पहले ही कह रही थी , मैं ईवनिंग शो में नहीं जाऊंगी।”
“तो फिर गई क्यों थी?”
“तुम्हारी जिद पर गई थी।”
“जब मेरा तुम्हें इतना खयाल है तो अब क्यों मुझसे बाहर जा रही हो?”
“मैं क्या करूं? मेरे घर वाले सुनेंगे तो क्या कहेंगे?”
“अरे, क्या सुनेंगे?”—वह झल्लाया।
“यही कि जब तुमने एक लड़के का खून किया था तो मैं तुम्हारे साथ थी।”
“कैसे सुनेंगे? किससे सुनेंगे?”
“मुझे कुछ नहीं पता लेकिन अगर...”
“तुम्हें यह तो पता है कि अगर तुम उन लड़कों के काबू में आ जातीं तो वे तुम्हारी क्या गत बनाते?”
“तुम्हारी वजह से ही तो वे मेरे पीछे पड़ते! अगर तुम मुझे साथ न लाते तो...”
“बेवकूफ, अगर मैं तुझे न लाया होता तो मैं खुद क्यों आया होता? अगर तू साथ न होती तो मैं गोली चलाता ही क्यों? वे लोग बड़ी हद मुझे पीट लेते, और मेरा क्या बिगाड़ लेते?”
“तो फिर तुमने गोली क्यों चलाई?”
“तेरी खातिर चलाई!”—राजन कलप कर बोला—“हजार बार कह चुका हूं, तेरी इज्जत बचाने की खातिर चलाई।”
“मुझे कुछ नहीं पता...”
“नहीं पता तो चुप कर। इतना तो कर सकती है या यह भी बहुत मुश्‍किल काम है तेरे लिए?”
“मुझे नहीं पता था कि तुम इतने खराब आदमी हो।”
“अब तो पता लग गया?”
“हां, लग गया।”
राजन खामोश रहा।
थोड़ी देर दोनों चुपचाप चलते रहे। रास्ते में राजन ने एक बार उसका हाथ थामने की कोशिश की तो उसने उसका हाथ परे झटक दिया।
वे एस्प्लेनेड रोड पर दाखिल हुए।
“देखो”—राजन नम्र स्वर में बोला—“जो हुआ, उसे भूल जाओ। और दो मिनट में तुम घर पहुंच जाओगी। तुम समझ लो कि कुछ हुआ ही नहीं है। मैं तुमसे वादा करता हूं कि तुम्हारे ऊपर किसी तरह की कोई आंच नहीं आएगी। मैं अपनी जान दे दूंगा लेकिन तुम्हारी तरफ कोई गलत उंगली नहीं उठने दूंगा।”
वह खामोश रही।
“डेजी, क्या तुम्हें मुझ पर जरा भी विश्‍वास नहीं रहा?”
“मुझे तुम पर पूरा विश्‍वास है।”—वह धीरे से बोली।
“तो फिर कहना क्यों नहीं मानती हो?”
“मानती तो हूं!”
“मानती हो तो सबसे पहले रोना बन्द करो।”
“अच्छा।”
“आंसू पोंछो। हुलिया सुधारो।”
उसने आंसू पोंछे और अपने बालों को व्यवस्थित किया।
“मुझ पर भरोसा रखो। तुम्हारा बाल भी बांका नहीं होगा।”
“अच्छा।”
राजन उसके उत्तर से आश्‍वस्त न हुआ।
खामोशी से वे दरीबे के आगे से गुजरे।
“अब मेरे साथ-साथ चलना तो बन्द करो।”—डेजी तनिक तीखे स्वर में बोली—“कोई देख लेगा।”
“अच्छा।”—राजन बोला।
“तुम आगे बढ़ जाओ।”
“ठीक है।”
राजन ने अपनी रफ्तार बढ़ा दी और उससे आगे निकल गया।
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RE: SexBaba Kahan विश्‍वासघात - by desiaks - 09-29-2020, 12:23 PM

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