RE: SexBaba Kahan विश्वासघात
शनिवार : आधी रात से पहले
नीचे गली में से आती आवाजों का शोर सुनकर रंगीला बरसाती में से निकला था और मुंडेर पर आ गया था। उसने नीचे झांककर देखा था तो उसे तीन पुलिसियों से घिरा राजन दिखाई दिया था।
उसका दिल धड़कने लगा था।
क्या राजन पकड़ा गया था?
घर के दरवाजे को बाहर से ताला लगा हुआ था। राजन का बाप नौ बजे के करीब घर आया था लेकिन उलटे पांव ही वापिस चला गया था। उसे खबर थी कि रंगीला उसके घर की बरसाती में छुपा हुआ था। राजन ने उसे सब समझा दिया था और उसे इस बात के लिए मना लिया था कि वह रंगीला का जिक्र किसी से न करे। हर वक्त नर्वस और परेशान लगने वाला बूढ़ा वक्ती तौर पर अपनी जुबान बन्द रखने के लिए मान तो गया था, लेकिन रंगीला का उस पर विश्वास नहीं बन पाया था। वो रात उसने किसी तरह वहां काटनी थी, उसके बाद उसने हर हाल में अपना कोई दूसरा इन्तजाम करना था।
लेकिन अब उसे वो रात भी चैन से कटती दिखाई नहीं दे रही थी।
नीचे पुलिसिये मौजूद थे, राजन उनकी गिरफ्त में मालूम होता था और वे किसी भी क्षण उसे मकान का ताला खोलने के लिए मजबूर कर सकते थे।
फिर मकान की तलाशी।
फिर रंगीला की गिरफ्तारी।
उसने अपने कपड़े उतारकर बरसाती की एक खूंटी पर टांग दिए थे। उस वक्त वह राजन का एक कुर्ता पायजामा पहने था। वह झपटकर वापिस बरसाती में पहुंचा। उसने कुर्ता पायजामा उतारकर अपने कपड़े पहन लिए।
जब वह मुंडेर पर वापिस लौटा तो उसने देखा कि नीचे गली के कुछ लोग भी जमा हो गए थे और उस भीड़ में एक जींसधारी नौजवान लड़की भी दिखाई दे रही थी। उतनी ऊंचाई से उसे लड़की ठीक से दिखाई नहीं दे रही थी, उसकी मुंडेर की तरफ पीठ थी, लेकिन फिर भी रंगीला को लगा कि वह राजन की वही सहेली थी जिसे उसने परसों ‘गोलचा’ में राजन के साथ देखा था।
क्या माजरा था?
राजन घर से जाती बार केवल इतना कहकर गया था कि वह रात को लेट वापिस लौटने वाला था, उसने यह नहीं कहा था कि वह कहां जा रहा था और किसके साथ जा रहा था।
क्या वह उस लड़की के साथ ही कहीं तफरीह के लिए गया था और वापसी में पुलिस द्वारा धर लिया गया था?
लेकिन क्यों?
अब क्या कर दिया था उसने?
सस्पेंस से रंगीला के दिल की धड़कन तेज होने लगी थी।
नीचे से लोगों के बोलने की आवाजें तो उस तक पहुंच रही थी लेकिन आवाजें इतनी धीमी थीं कि उसकी समझ में कुछ नहीं आ रहा था।
“मैंने कुछ नहीं किया।”—एकाएक लड़की की चीखती सी आवाज उसके कानों में पड़ी—“मैंने तो किसी पर गोली नहीं चलाई। मैंने तो...”
गोली!
रंगीला की सांस सूखने लगी।
उसे मालूम था, बहुत बाद में मालूम हुआ था लेकिन मालूम था कि सोमवार रात को राजन कामिनी देवी के फ्लैट से उसकी रिवॉल्वर उठा लाया था।
क्या उस रिवॉल्वर से राजन ने किसी पर गोली चला दी थी?
फिर नीचे लड़की ने पहले की तरह आर्तनाद करती आवाज में किसी थैली का जिक्र किया जो कि राजन ने उसे दी थी।
फिर रंगीला ने राजन को गालियां बकते लड़की पर झपटने की कोशिश करते देखा।
फिर शनील की थैली एक पुलिसिये के हाथ में।
फिर उसकी हथेली पर जगमग जगमग करते हुए जवाहरात। जवाहरात की जगमग रंगीला को दो मंजिल ऊपर से भी दिखाई दी।
सत्यानाश!—रंगीला के मुंह से अपने आप ही निकल गया।
एकदम सुरक्षित और चाक चौबन्द लगने वाले काम का मुकम्मल बेड़ा गर्क हो जाने में अब क्या कसर रह गई थी!
पहलवान गायब था।
राजन उसे अपनी आंखों के सामने माल समेत पुलिस की गिरफ्त में दिखाई दे रहा था।
वह खुद पुलिस के हाथों में पड़ने से बाल बाल बचा था और उनके खौफ से दुम दबाकर भागा था।
तभी रंगीला ने लड़की समेत नीचे मौजूद सब लोगों को वहां से विदा होते देखा।
केवल एक पुलिसिया पीछे रह गया।
गली खाली हो गई।
पीछे रह गया पुलिसिया मकान के बन्द दरवाजे के सामने चबूतरे पर जमकर बैठ गया।
रंगीला को उस प्रत्यक्षत: खाली और बन्द मकान के सामने उसकी मौजूदगी का मतलब समझते देर न लगी।
शर्तिया मकान की तलाशी होने वाली थी।
और वह मकान के भीतर फंसा हुआ था।
मकान की बैठक की दो खिड़कियां गली में खुलती थीं और उनमें सींखचे या ग्रिल नहीं थी लेकिन पुलिसिये की मौजूदगी में वह उन खिड़कियों के रास्ते कैसे गली में कदम रख सकता था!
और वहां से निकासी का कोई रास्ता नहीं था।
क्या वह पुलिसिये पर हमला कर दे?
हथियारबन्द तो वह था नहीं, ऊपर से वह उम्रदराज आदमी दिखाई दे रहा था, उसे वह काबू में तो बड़ी सहूलियत से कर सकता था लेकिन उसको काबू करने के लिए उसके सिर पर पहुंचना जरूरी था। खिड़की के भीतर से खुलने की आहट पाकर या उसे खुलती देखकर वह सावधान हो सकता था और चीख चिल्लाकर सारी गली इकट्ठी कर सकता था।
नहीं! उधर से बाहर निकलने का खयाल भी करना मूर्खता थी।
तो?
क्या करे वह?
मकान की तलाशी की नीयत से किसी भी क्षण भारी तादाद में पुलिसिये वहां पहुंच सकते थे। फिर वह चूहे की तरह वहां फंस जाता।
नहीं! उसने वहां से भाग निकलने की हर हालत में कोशिश करनी थी, फौरन कोशिश करनी थी।
उसने छत का चक्कर लगाया।
उस मकान के दायें बायें उतने ही ऊंचे दोमंजिला मकान थे लेकिन पिछवाड़े का मकान एकमंजिला था। पिछवाड़े के मकान की पीठ राजन के मकान की पीठ से जुड़ी हुई थी और उसके सामने इधर की ही तरह गली थी।
रंगीला ने उधर की गली तक पहुंचने का फैसला किया।
मुंडेर फांदकर दाएं बाए के मकानों तक वह सहूलियत से पहुंच सकता था लेकिन वहां से अगर वह नीचे पहुंचता भी तो गली में ही पहुंचता और गली में मौजूद हवलदार उसे ललकार सकता था।
उसने पिछवाड़े की एकमंजिला छत पर निगाह डाली।
छत सुनसान पड़ी थी। उसके एक भाग तक गली की मद्धिम सी रोशनी पहुंच रही थी, बाकी छत अन्धेरे में डूबी हुई थी।
वह बरसाती में पहुंचा।
दो चादरें फाड़कर उसने उनकी रस्सी सी बनाई। उसने रस्सी का एक सिरा मुंडेर के साथ बांध दिया और दूसरे को पिछवाड़े की नीची छत की तरफ लटका दिया।
उस रस्सी के सहारे वह निर्विघ्न पिछले मकान की एकमंजिला छत पर पहुंच गया।
दबे पांव वह उसकी गली की तरफ की मुंडेर तक पहुंचा। उसने गली में नीचे झांका।
गली सुनसान थी।
और उससे मुश्किल से बारह तेरह फुट दूर थी।
उसने देखा कि दीवार के साथ लगा एक परनाला ऐन गली के पर्श तक पहुंच रहा था।
उसने एक सावधान निगाह गली के दोनों तरफ डाली और फिर मुंडेर फांदकर उसकी परली तरफ लटक गया। उसने परनाले को हिला-डुलाकर देखा।
परनाला मजबूत था।
बन्दर की सी फुर्ती से परनाला पकड़कर वह नीचे गली में उतर गया।
तभी गली के बाहरले सिरे पर उसे एक आदमी दिखाई दिया।
वह सकपकाया।
क्या उस आदमी ने उसे परनाले से नीचे उतरता देखा हो सकता था?
नहीं।—उसकी अक्ल ने जवाब दिया—नहीं देखा हो सकता था। अगर देखा होता तो वह अभी तक शोर न मचाने लगा होता!
फिर भी किसी भी क्षण वहां से बगूले की तरह भाग निकलने को तत्पर वह सावधानी से आगे बढ़ा।
वह आदमी उसकी बगल से गुजरा तो उसने पाया कि उसके कदम लड़खड़ा रहे थे और उसके मुंह से ठर्रे के भभूके छूट रहे थे। रंगीला की तरफ तो उसने तब भी न झांका, जबकि वह उसकी बगल से गुजरा।
रंगीला ने चैन की सांस ली।
वह गली से बाहर निकला।
बाजार में पहला कदम पड़ते ही वह ठिठक गया।
अब कहां जाऊं?—उसने अपने आपसे सवाल किया।
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