RE: SexBaba Kahan विश्वासघात
उसने अखबार आगे पढ़ना शुरू किया।
अखबार में छपी अपनी तसवीर से भी ज्यादा छक्के उसके इस खबर ने छुड़ाए कि कौशल मर चुका था।
उसकी नृशंस मौत का हौलनाक विवरण पढ़कर उसकी आखें नम हुए बिना न रह सकीं। पहलवान ने मरते दम तक अपनी जुबान नहीं खोली थी, तभी तो उसकी इतनी दुर्गति हुई थी। वह अपनी जुबान खोल देता तो भी उसके जिन्दा बचने की कोई गारण्टी तो नहीं थी लेकिन अपनी जुबान बन्द रखकर उसने अपना फर्ज निभाया था, अपने दोस्तों के साथ किया अपना वादा पूरा किया था और, रंगीला को नहीं मालूम था कि, एक बार जो विश्वास की हत्या वह कर चुका था, उसका प्रायश्चित किया था।
राजन न पकड़ा जाता तो कौशल की कुर्बानी का उन दोनों को बहुत लाभ पहुंचता। वे पुलिस और दारा के आदमियों के प्रकोप से बचे रहते। लेकिन राजन की गिरफ्तारी ने तो भाण्डा ही फोड़कर रख दिया था। रंगीला को न सिर्फ पुलिस से बचना था बल्कि दारा के आदमियों से भी बचना था।
उसने जल्दी जल्दी बाकी की खबर भी पढ़ी।
अखबार में श्रीकान्त के बारे में भी छपा था। उसका जिक्र पुलिस के एक प्रवक्ता के बयान में था जिसने प्रेस को बताया था कि पुलिस को रंगीला की तथा उसके पास आसिफ अली रोड की चोरी के जवाहरात की मौजूदगी की खबर श्रीकान्त के ही माध्यम से लगी थी जो कि रंगीला की बीवी का प्रेमी था और जो ईनाम के लालच में अपनी प्रेमिका से दगाबाजी करके बीमा कम्पनी वालों के पास पहुंच गया था जहां पर कि पुलिस पहले से ही उसकी घात में मौजूद थी।
उसने बाकी का अखबार भी इस उम्मीद में टटोला कि शायद किसी और हैडलाइन के अन्तर्गत उसी केस से ताल्लुक रखती कोई और बात छपी हो।
ऐसा नहीं था।
रंगीला को बड़ी हैरानी हुई।
सलमान अली का कहीं जिक्र नहीं था।
राजन, जो रंगीला और कौशल के बारे में सब कुछ बक चुका था, सलमान अली के बारे में कैसे खामोश रह पाया?
या शायद वह खामोश नहीं रह पाया था।
शायद पुलिस ने ही वह खबर दबवा दी थी।
शायद उन्हें रंगीला के सलमान अली के पास पहुंचने की उम्मीद थी।
लेकिन अखबार तो सलमान अली ने भी जरूर पढ़ा होगा। जो कुछ अखबार में छपा था, वह बाखूबी उसके छक्के छुड़ा सकता था। जिन लोगों के साथ उसने जवाहरात बांटे थे, उनमें से एक मर चुका था, एक गिरफ्तार हो चुका था और एक फरार था, लेकिन किसी भी क्षण गिरफ्तार हो सकता था। ऐसे हालात तो मौलाना को जुलाब लगा सकते थे और जो इरादा रंगीला अब किए हुए था, वह फेल हो सकता था।
लेकिन यह उसका खयाल ही तो था—फिर उसने अपने-आपको तसल्ली दी—कि पुलिस सलमान अली से सम्बन्धित जानकारी दबाए हुए थी। हो सकता था कि पुलिस को सूझा ही न हो कि उनका कोई चौथा साथी भी हो सकता था और राजन ने खुद सलमान अली का नाम न लिया हो।
उसका दिल कहने लगा कि उसे मालूम होना ही चाहिए था कि सलमान अली पुलिस की निगाह में था या नहीं था। अगर नहीं था तो अखबार में छपी खबर पढ़कर वह आगे क्या करने का इरादा रखता था।
उसने अखबार को लपेटकर वहीं बैंच के नीचे फेंक दिया और उठ खड़ा हुआ।
पैदल चलता वह कश्मीरी गेट पहुंचा।
वहां से उसने पीतल के नम्बरों वाली दो नम्बर प्लेटें खरीदीं। नम्बर उसने ऐसा बनवाया कि कार पंजाब स्टेट में रजिस्टर्ड लगे।
नम्बर प्लेटों के साथ वह टूरिस्ट कैम्प वापिस लौटा।
वहां एक पेचकस की सहायता से उसने चोरी की कार की दोनों नम्बर प्लेटें उतारीं और उनकी जगह नई प्लेटें लगा दीं।
कार की चोरी की खबर उसे अखबार में नहीं दिखाई दी थी। शायद वह खबर वक्त रहते अखबार के दफ्तर तक नहीं पहुंच पाई थी।
कार से उतारी प्लेटों को वह समीप ही बहते एक गंदे नाले में फेंक आया।
उस सारे अभियान के दौरान इस बात का उसने खास खयाल रखा था कि किसी का ध्यान उसकी तरफ न जाता।
फिर वह कार पर सवार हुआ और बिना टीना के तम्बू के भीतर निगाह डाले वहां से विदा हो गया।
कैम्प के दरवाजे पर तैनात दरबान ने उसे ठोककर सलाम किया।
वह इस बात का सबूत था कि वह पहचाना नहीं गया था। सलाम का हकदार इज्जतदार टूरिस्ट होता था, न कि इश्तिहारी मुजरिम।
रविवार को दरीबा और किनारी बाजार दोनों बन्द होते थे, इसलिए वहां कोई खास भीड़ नहीं थी।
किनारी बाजार वह एक रिक्शा पर सवार होकर पहुंचा था।
अपनी चोरी की कार वह लाल किला के प्रवेश द्वार के सामने खड़ी करके आया था। जिस इलाके से उसने कार चोरी की थी, उसमें कार समेत फटकना उसे मुनासिब नहीं लगा था।
वह सलमान अली की गली में दाखिल हुआ।
सलमान अली के मकान पर ताला झूल रहा था।
कहां गया होगा?
रविवार को तो वह कभी कहीं नहीं जाता था।
और वह भी इतने सवेरे!
एक पब्लिक टेलीफोन तलाश करके उसने वहां से उस नम्बर पर टेलीफोन किया जो कि मौलाना ने उसे इमरजेंसी के लिए दिया था।
कोई उत्तर न मिला।
उसने किनारी बाजार के नयी सड़क वाले सिरे तक दो चक्कर लगाकर वक्तगुजारी की और फिर वापिस सलमान अली के दरवाजे पर लौटा।
दरवाजा बदस्तूर बन्द था।
कहां मर गया कम्बख्त?—उसने झुंझलाकर सोचा।
तभी एकाएक उसके मन में एक खयाल आया।
सलमान अली कहीं घर के भीतर ही तो नहीं था!
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