RE: Desi Porn Stories बीबी की चाहत
हर साल हम होली के दिन एक दोस्त के वहां मिलते थे। उसका घर काफी बड़ा था और उसमें कई रूम और बरामदा बगैरह था जहां बैठकर हम मौज मस्ती करते थे। सारे दोस्त वहीं पहुँच कर एकदूसरे को और एक दूसरे की बीबियों को रंगते थे।
माहौल एकदम मस्ती का हुआ करता था। थोड़ी बहुत शराब भी चलती थी। दीपा और मैं करीब सुबह ग्यारह बजे उस दोस्त के घर पहुंचे तो देखा की तरुण भी वहां था। हमारे वहाँ पहुँचते ही कुछ महिलाएं होली खेलने के लिए दीपा को पकड़ कर घर में ले गयीं। तरुण और बाकी हम सबने एक दूसरे को अच्छी तरह से रंगा और फिर तरुण और मैं लॉन में बैठ कर गाने बजाने और कुछ पिने पाने के कार्यक्रम में जुड़ गए।
तब मैंने देखा की तरुण बिच में से ही उठकर घर में चला गया। मैंने इस बात पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया। ऐसे ही गाने बजाने में आधा घंटा बीत गया था। तब तरुण वापस आ गया। वह खुश नजर आरहा था। वह निकलने की जल्दी में था। उसने मुझे बाई बाई की और चल पड़ा। थोड़ी ही देर में दीपा और दूसरी औरतें आ गयीं। पहले तो मैं दीपा को पहचान ही नहीं सका। दूसरी औरतों के मुकाबले वह पूरी रंग से भरी हुई थी। खास तौर से छाती और मुंह पर इतना रंग मला हुआ था की वह एक भूतनी जैसी लग रही थी। उसके कपडे भी बेहाल थे।
औरतों के आने के बाद हम सब एक दूसरे की बीबियों के साथ फिरसे होली खेलने में जुट गए। पर दीपा कुछ अतड़ी अतड़ी सी नजर आ रही थी। मेरे मन में विचार भी आया की क्या हुआ की तरुण अचानक ही गायब हो गया। वैसे तो हर साल वह दीपा को रंगने के लिए बड़ा बेताब रहता था।
मैं जब दीपा को रंग लगाने के लिए गया तो उसे देख कर हंस पड़ा। मैंने पूछा, "लगता है मेरी खूबसूरत बीबी को सब लोगों ने इकठ्ठा होकर खूब रंगा है।"
तब दीपा ने झुंझलाहट भरी आवाज में पूछा, "टीना को नहीं देखा मैने। वह आयी नहीं थी क्या?"
मैंने कहा, "मैंने कहा नहीं था, वह मायके चली गयी है?"
तब दीपा एकदम धीरे से बड़बड़ाई, "हाँ सही बात है। तुम ने बताया था। तभी में सोचूं, की जनाब इतने फड़फड़ा क्यों रहे थे। "
मैंने पूछा, "किसके बारेमे कह रही हो?" मेरी पत्नी ने कोई उत्तर नहीं दिया। कुछ और देर में हम सब घर जाने के लिए तैयार हुए। मैं और दीपा मेरी बाइक पर सवार हो कर चल दिए।
घर पहुँच कर मैंने देखा तो दीपा कुछ हड़बड़ाई सी लग रही थी। मैंने जब पूछा तो मुझे लगा की दीपा अपने शब्दों को कुछ ज्यादा ही सावधानी से नापतोल कर बोली, "मुझे एक बात समझ नहीं आती। यह तुम्हारा दोस्त कैसा इंसान है? देखिये, ऐसी कोई ख़ास बात नहीं है। आप उस को कुछ कहियेगा नहीं। पर आपके दोस्त तरुण ने मरे साथ क्या किया मालुम है? तुम्हारे दोस्त के घर में तरुण मुझे कुछ बहाना बना कर पीछे के कमरे में ले गया। पहले तो उसने झुक कर मेरे पॉंव पकडे और खुले दिलसे माफ़ी मांगी। जब तक मैंने उसका हाथ पकड़ कर उठाया नहीं, तब तक वह मेरे पाँव में लेटा रहा। मैंने उसे कहा, "उठो यार। भूल जाओ वह सब पुरानी बातें। मैंने माफ़ कर दिया। अब क्या है? चलो होली खेलते हैं।
बस मेरा इतना कहना था की उसने मुझे अपनी बाँहों में जकड कर ऊपर उठा लिया। पहले तो उसने मुझ पर ऐसा रंग रगड़ा ऐसा रंग रगडा की मेरी साड़ी ब्लाउज यहां तक की ब्रा के अंदर भी रंग ही रंग कर दिया। होली के बहाने उसने मुझसे बड़ी बदतमीज़ी की। मैं आप को क्या बताऊँ उसने मेरे साथ क्या क्या किया। उसने मेरी ब्रैस्ट दबाई और उन पर रंग रगड़ता रहा।
मैंने उसे रोकना चाहा पर मेरी एक ना चली। दीपक, मैं चिल्लाती तो सब लोग इकठ्ठा हो जाते और तरुण की बदनामी होती। मैं धीरे से ही पर चिल्लाती रही पर वह कहाँ सुनने वाला था? मैंने उसे कहा तरुण ये क्या कर रहे हो? पर उसने मेरी एक न सुनी। फिर जब उसने मेरे ब्लाउज के निचे, मेरे पेट पर रंग लगाना शुरू किया और फिर वह झुक मेरे पैर पर रंग रगड़ता हुआ मेरे घाघरे को ऊपर कर मेरी जाँघों पर रंग रगड़ने लगा। जब मैंने उसे झटका दिया तो सॉरी सॉरी कहता हुआ खड़ा हुआ और वह मेरी नाभि और मेरे पिछवाड़े को रगड़ कर रंग लगा ने लगा। जब मैंने उसे रोकना चाहा तो रुकने के बजाय उसने मेरे घाघरे के नाड़े के अंदर हाथ डालना चाहा। तब मेरा दिमाग छटक गया और मैंने उसे ऐसा करारा झटका दिया की वह लड़खड़ा कर गिर पड़ा। फिर वह वहाँ से चला गया। पता नहीं यह बन्दा कभी सुधरेगा की नहीं? आप उसे बताइये की यह उसने अच्छा नहीं किया। वह ऐसी हरकत करता रहेगा तो मुझे कुछ ना कुछ करना पडेगा।"
मैंने जैसे ही यह सूना तो मेरा तो लण्ड अपनी पतलून में फ़ुफ़कार ने लगा। मैंने मन ही मन में सोचा, "अरे वाह, मेरे शेर! तुम ने तो एक के बाद एक गोल गोल दागना शुरू कर दिया।"
दीपा को ढाढस देते हुए मैंने कहा, "देखो डार्लिंग यह होली का त्योहार है। एक दूसरे की बीबियों को छेड़ना उनपर रंग डालना, उनसे खेल खेला करना, मजाक करना और कभी कभी सेक्सी बातें करना होता है। तुमको मेरे और दोस्तों ने भी तो रंग लगाया था। मैंने भी तुम्हारी कई सहेलियों को रंग लगाया है। और ख़ास कर तुम्हारी वह सखी मोहिनी को तो मैंने अच्छी खासी तरह से रंगा था। हाँ, मैंने उसके ब्रा के अंदर हाथ नहीं ड़ाला पर बाकी काफी कुछ रंग दिया था। तुम भी तो वहीँ ही थी। इस पर बुरा नहीं मानना चाहिए। इसी लिए तो कहते हैं की "बुरा ना मानो होली है।
पर तुम तो काफी नाराज लग रही हो। आज तरुण ने कुछ ज्यादा ही कर दिया। यह बिलकुल ठीक नहीं है। मैं आज शाम को उसे महा मुर्ख सम्मलेन में हमारे साथ जाने के लिए आमंत्रित करने का सोच रहा था। अब तो मैं उसको डाँटूंगा तो वह वैसे भी नहीं आएगा। मैं उसको अभी फ़ोन कर डाँटता हूँ। पर एक बात मेरी समझ में नहीं आयी। जब मैं उसे मिला तब पता नहीं तरुण कुछ उखड़ा उखड़ा दुखी सा लग रहा था। मूड में नहीं लग रहा था। क्यूंकि शायद वह कुछ दिनों से घर में अकेला ही है। अनीता उसे छोड़ मायके चली गयी है।"
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