RE: Desi Porn Stories बीबी की चाहत
मैं क्या बोलता? मैंने अपनी मुंडी हिला कर दीपा का समर्थन किया। मैं मेरी पत्नी का एक नया रूप देख रहा था। अबतक जो पत्नी मुझ से आगे सोचती नहीं थी वह आज थ्रीसम का समर्थन कर रही थी। तब मुझे ऐसा लगा जैसे मेरी मंशा सफल हो सकती है।
तरुण ने दोनों हाथों से तालियां बजायी और बोला, "माय गॉड दीपा भाभी, आप ने कितना सटीक और सही जवाब दिया। मैं आप के इस जवाब के लिए सलूट मारता हूँ।" तरुण की प्रशंषा सुनकर दीपा मुस्करायी और गर्व से मेरी और देखा, जैसे वह मुझे दिखाना चाहती थी की उसने कितनी समझदारी और अक्लमंदी से जवाब दिया।
तब हम कार्यक्रम वाले स्थान के करीब पहुँच चुके थे। तरुण ने एक ऐसी जगह कार रोकी जहां प्रकाश था। उसने पीछे मुड़कर कार की सीट पर चढ़कर पीछे की सीट पर रखा एक बक्शा खोला। मैंने देखा की उसमें उसने तीन बोतलें और कुछ गिलास रखे हुए थे। उसने तीन गिलास निकाले और उसमें एक बोतल में से व्हिस्की और सोडा डालना शुरू किया। दीपा ने एकदम विरोध करते हुए कहा की वह नहीं पीयेगी।
मैं भी जानता था की दीपा शराब नहीं पीती थी। सबके साथ वह कभी कभी जीन का एकाध घूंट जरूर ले लेती थी। शायद तरुण को भी यह पता था। उसने दीपा से कहा, "दीपा भाभी, आप निश्चिन्त रहो। मैं आपको व्हिस्की नहीं दूंगा। प्लीज आज हमें साथ देने के लिए थोडीसी जीन तो जरूर पीजिए। मैं बहुत थोड़ी ही डालूंगा। देखिये होली है। दीपा ने घबड़ाते हुए मेरी और देखा।
मैंने उसे हिम्मत देते हुए कहा, "अरे इसमें इतना घबड़ाने की क्या बात है? भई जीन तो वैसे ही हल्की है और तुम जीन तो कभी कभी पी लेती हो। अब शर्म मत करो, थोड़ी सी पी लो यार। तरुण इतने प्यार से जो कह रहा है।" मैंने फिर तरुण की और देखते हुए कहा, "देखो तरुण, बस एकदम थोड़ी ही डालना।"
तरुण ने मुस्काते हुए सीट पर पीछे मुड़कर सीट पर चढ़कर लंबा होकर दीपा के लिए जीन से गिलास को खासा भरा और फिर दिखावे के लिए उसमें थोड़ा सोडा डाल कर एक कटा हुआ निम्बू लाया था वह गिलास में निचोड़ कर गिलास दीपा के हाथ में पकड़ा दिया। जीन वैसे ही पानी की तरह पारदर्शक होती है। देखने से यह पता नहीं लग पाता की गिलास में जीन ज्यादा है या सोडा। तरुण ने दिखाया की उसमें सिर्फ सोडा ही था। जीन तो नाम मात्र ही थी। पर था उलटा।
मेरी भोली बीबी दीपा उसे पीने लग गयी। जीन का टेस्ट मीठा होता है। दीपा को अच्छा लगा। वह उसे देखते ही देखते पी गयी। जब हम सबने अपने ड्रिंक्स ख़तम किये तब तरुण कार को कार्यक्रम के स्थान पर ले आया। मैं जानता था की जीन भी तगड़ी किक मारती है।
जीन पीने के पश्चात दीपा काफी तनाव मुक्त लग रही थी। जो तनाव शुरू में तरुण की हरकतों की वजह से वह महसूस कर रही थी वह नहीं दिख रहा था। तरुण ने शुरू में जब यह कहा था की वह कुछ सेक्सुअल विषय के बारे में बताने जा रहा था, तो दीपा शायद डर रही थी की कहीं वह खुल्लमखुल्ला स्पष्ट शब्द जैसे लण्ड, चूत, चोदना इत्यादि शब्दों का प्रयोग तो नहीं करेगा।
परन्तु तरुण का बड़े मर्यादित रूप में सारी सेक्सुअल बातों को बताना तथा खुल्लमखुल्ला स्पष्ट शब्दों का इस्तेमाल नहीं करना दीपा को अच्छा लगा। दीपा को लगा की हालाँकि तरुण उसे बार बार छेड़ता था पर साथ साथ वह उसकी बड़ी इज्जत भी करता था और ख्याल रखता था की दीपा की संवेदनशीलता किसी भी तरह से आहत ना हो। धीरे धीरे दीपा ने यह स्वीकार कर लिया था की तरुण का दीपा को बार बार छेड़ने का कारण तरुण का दीपा के प्रति एक तरह का अपनापन और साथ में बहुत जबरदस्त शारीरिक आकर्षण था जिस पर तरुण खुद भी कण्ट्रोल नहीं कर पाता, जब दीपा उसके पास होती थी। तरुण एक हट्टाकट्टा वीर्यवान मर्द था और दीपा की छेड़खानी करना शायद उसकी मर्दानगी की मज़बूरी थी। उसके उपरांत दीपा ने तरुण को वचन दिया था की उस होली की रात को वह तरुण के सौ गुनाहों को भी माफ़ कर देगी। शायद इसी कारणवश जब तरुण ने दीपा का हाथ थामा और अपनी जांघ पर रखा तो वह कुछ न बोली।
कार्यक्रम शुरू हो चुका था। मैदान लोगों से खचाखच भरा था। एक के बाद एक शायर, कभी लोगों पर, कभी राज नेताओं पर, कभी अमीरों पर यातो कभी मंच पर बैठे दूसरे कविओं पर जम कर तंज कसते हुए हास्य कविताएं एवं शायरी सुना रहे थे। लोग हंस हंस के पागल हो रहे थे। तरुण ने कार को मंच से काफी दूर एक कोने में एक पेड़ के पीछे दीवार के पास खड़ी की। हम उसी तरह कार में ही बैठे रहे। बड़े लाउड स्पीकरो के कारण हमें दूर भी साफ़ सुनाई दे रहा था। बल्कि इतनी तेज आवाज थी की हम बात भी नहीं कर पा रहे थे। जहां हम रुके थे वहां काफी अँधेरा था। आते जाते कोई भी हमें बाहर से देख नहीं पाता था। कार के अंदर भी अँधेरा था। तरुण अब एक तरह से ̣दीपा का हाथ हमेशा के लिए अपनी जांघों पर रखे हुए था और अपना हाथ उसने दीपा के हाथ के ऊपर रखा हुआ था।
तब एक शायर ने महिलाओं की अक्ल, त्याग, हिम्मत, ताकत और काबिलियत के बखान करते हुए एक कविता सुनाई। यह सुन कर दीपा मेरी और मुड़ी और बोली, "देखा, मिस्टर दीपक, मैं आपको क्या कहती थी? आज की महिलाऐं पुरुषों से कोई भी तरह कम नहीं हैं। वह कमा भी सकती हैं और घर भी चला सकती हैं। कुछ मामलों में तो वह पुरुषों से भी आगे है। मैं तो यह कहती हूँ के महिलाओं को पुरुष के बराबर तनख्वाह मिलनी चाहिए।" मुझे उसकी आवाज में थोड़ी सी थरथर्राहट सी सुनाई दे रही थी। लगता था जैसे थोड़ा नशा उसपर हावी हो रहा था।
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