RE: RajSharma Sex Stories कुमकुम
पच्चीस वर्ष पूर्व? जबकि न्याय के रक्षार्थ द्रविड़राज ने अपनी महारानी को आजन्म निर्वासन का दण्ड दिया था— जबकि युवराज नारिकेल को रोता हुआ छोड़कर पुष्पपुर की राजलक्ष्मी त्रिधारा चली गई थी - अपने पेट में सात महीने का गर्भ धारण किये हुए।
'श्रीसम्राट...!' महापुजारी की मुखाकृति कठोर हो गई—'आपको भूल ही जाना होगा इन सारी अनिष्टकारी बातों को, अन्यथा...!' महापुजारी के ललाट पर दुश्चिन्ता की रेखायें खिंच आयीं। एक दीर्घ श्वास लेकर वे पुन: बोले- मैंने आपको इतना दुर्बल हृदय नहीं समझा था कि अपने ही न्याय के प्रति, आप स्वयं पश्चाताप करेंगे...। अनर्थ हो जाएगा-प्रलय आ जायेगी श्रीसम्राट...।'
महापुजारी रुके कुछ देर के लिए। उन्होंने आगे बढ़कर द्रविड़राज का कम्पित कर पकड़ लिया और उनके मुख पर अपने प्रज्जवलित नेत्र स्थिर कर दिए। सम्राट को लगा जैसे महापुजारी की वे क्रूर आंखें उनके अंत:स्थल में प्रवेश करती जा रही हैं।
'श्रीसम्राट...!' महापुजारी ने पुकारा दृढ़ स्वर में।
'महापुजारी जी...।' सम्राट का स्वर लड़खड़ा गया था।
'आपको इन अनिष्टकारी कल्पनाओं से दूर रहना पड़ेगा। बिगत घटनाओं को पुन: स्मृतिपट पर लाकर प्रलय का आह्वान कीजिये। द्रविड़राज का 'न्याय' हिमराज-सा अटल है, आप व्यथित है, व्यथा के शमनार्थ चक्रवाल की आवश्यकता है आपको। मैं उसे अभी भेजता हूं। वह अपने सुमधुर गायन द्वारा आपके कर्ण-कुहरों में अमृतवर्षा कर देगा। भूल जायेंगे आप इन सारी दुश्चिन्ताओं को।'
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महामाया के मंदिर में उपासना के समय नृत्य करने वाली किन्नरी निहारिका के साथी का नाम था चक्रवाल!
जब किन्नरी निहारिका, महामाया की प्रतिमा के समक्ष अपनी समस्त कलाओं का एकत्रीकरण कर नृत्य करती तो चक्रवाल अपनी वीणा पर खेलता हुआ अपने सुमधुर गायन द्वारा उस नृत्य में मोहिनी-शक्ति उत्पन्न कर देता। जिस प्रकार किन्नरी की नृत्य-कला अपूर्व थी, जीवनदायिनी थी—उसी प्रकार थी चक्रवाल की गायन कला।
वह चारण था। संगीत के ललित प्रवाह से द्रविड़राज को प्रसन्न रखना ही उसका कार्य था। द्रविड़राज, महापुजारी एवं युवराज-सभी विमुग्ध थे उस युवक चारण की गायन-कला पर। ऐसा था चक्रवाल! बीस वर्ष का युवक...मुख पर दीनतापूर्ण गंभीरता। आंखों में जैसे आंसुओं का आगाध सागर भरा पड़ा हो। कभी हंसता न था। रो लिया करता था—कभी-कभी।
सम्राट चुपचाप निश्चल बैठे थे।
'बोलिए श्रीसम्राट! आप चुप क्यों हैं...?' महापुजारी बोले।
'क्या कहूं महापुजारी जी...'' द्रविड़राज के मुख से बहिर्गत इस छोटे से वाक्य में वेदना की अगमराशि निहित थी।
"अजब अंधेरी रात साथी, अजब अंधेरी रात!
" पग-पग पर छाया अंधियारा, बही जा रही जीवनधारा...
'आली! तेरे नयनों में है आज घिरी बरसात! साथी...!
'इस कर्णप्रिय मधुर संगीत से सारा प्रकोष्ठ गूंज उठा।
ऐसा लगा, मानो स्वर्ग का कोई किन्नर भू पर उतर आया हो। पवन निश्चल हो गया, पल्लवों ने हिलना बंद कर दिया, पक्षियों का गुंजरित कलरव मधुर नीरवता में परिणत हो गया।
गाते हुए चक्रवाल की वह मधुर गीत-लहरी वातावरण में सरसता घोलती रही 'बिछड़ गये वो मन के वासी छाई तेरे मुख पै उदासी सूख गये हैं बिरह में उनके मृदुल मनोहर गात–साथी अजब अंधेरी रात।'
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