RE: RajSharma Sex Stories कुमकुम
'आहत हो गये थे तो क्या हुआ? तुम्हें प्राण देकर भी अपने क्षत्रियत्व की लज्जा रखनी परमावश्यक थी...।'
'मैंने ऐसा ही किया है पिताजी ! मैं तब तक युद्ध करता रहा, जब तक कि अशक्त होकर भूमि पर न गिर पड़ा—मैंने निश्चय कर लिया है कि शीघ्र ही हम दोनों किसी स्थान पर मिलकर अपने बलाबल का निर्णय करेंगे। देखें हमारी यह आकांक्षा कब सफल होगी...।' युवराज शिथिल वाणी में बोले।
महामाया के सुविशाल राजमंदिर के प्रांगण में कई प्रकोष्ठ निर्मित थे। जिनमें एक में महापुजारी पौत्तालिक, दूसरे में युवक गायक चक्रवाल एवं तीसरे में अप्सरा-सी सुंदरी किन्नरी निहारिका, ये तीन ही व्यक्ति निवास करते थे।
निहारिका, महामाया मंदिर की कित्ररी थी। यौवनराशि द्वारा प्रोद्भासित उसकी मधुयुक्त मुखराशि अतीव मनोहर दृष्टिगोचर होती थी।
उसकी सघन घटा जैसी श्यामल केश-राशि का एकाध केश हवा का सहारा पाकर, जब उसके आरक्त कपोलों पर नृत्य करने लगता तो ऐसा लगता था मानो समग्र संसार का सौंदर्य उस कलामय किन्नरी के कपोलों पर उतर आया है।
उसके मृगशावक सदृश नयनों में उपस्थित थी तीन मादकता एवं मधुरिमा। काली-काली पुतलियां ऐसी प्रतीत होती थीं, मानो जगत की सारी सुषमा का प्रवेश हो उनमें। जब उसके रक्त-रंजित अधर हर्षातिरेक उत्फुल्ल होकर चतुर्दिक अपनी हृदयवेधी मुस्कान बिखेर देते तो ऐसा ज्ञात होता,जैसे कलाधर अपनी सम्पूर्ण कलाओं सहित प्रकाशमान हो उठा है।
उसके सुपुष्ट वक्षस्थल पर कसी हुई रत्नजड़ित लसित कंचुकी, कटिप्रदेश में झलझलाता हुआ लहंगा एवं पैरों में लसित नुपुरराशि वास्तव में ऐसे लगते थे मानो देवराज की कोई अप्सरा पथभ्रांत होकर इस शस्यश्यामला भूमि पर चली आई हो।
गायक चक्रवाल का प्रकोष्ठ किन्नरी निहारिका के प्रकोष्ठ के पार्श्व में ही था। दोनों अपनी अपनी कला में उत्कृष्ट थे। चक्रवाल चारण था, उसकी गायन-कला अपूर्व थी—निहारिका किन्नरी थी, उसकी नर्तन-कला मुग्धकारी थी।
परन्तु दोनों कला के भिन्न-भिन्न अंगों में पारंगत होते हुए भी एक न हो सके थे। उनके व्यवहार, उनकी शालीनता में कोई अंतर न था। अवकाश मिलने पर दोनों एकांत में बैठकर वार्तालाप करते थे।
पूजनोत्सव से लौटकर कभी-कभी निहारिका जब अपने प्रकोष्ठ में आकर कपाटों को भीतर से बंद कर, वस्त्र परिवर्तन करने लगती-तभी चक्रवाल आ पहुंचता। द्वार पर खट्ट-खट्ट की ध्वनि सुनकर निहारिका अनुमान कर लेती कि वह चक्रवाल है।
फिर भी वह पूछती—'कौन है?'
"मैं हूं...!' बाहर खड़ा हुआ चक्रवाल कहता।
'जाओ इस समय!' किन्नरी अनचाहे कह देती।
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