RE: RajSharma Sex Stories कुमकुम
'श्रीयुवराज की बात असत्य नहीं, परन्तु श्रीयुवराज मेरी धृष्टता क्षमा करेंगे किन्नरी के हृदय में भी आपके प्रति अपूर्व श्रद्धा बहुत समय पूर्व ही विराजमान है। यह उसका परम दुर्भाग्य है कि श्रीयुवराज ने आज तक उससे तनिक भी संभाषण करने का कष्ट न उठाया। वह इसके लिए अत्यंत लालायित रहती हैं, यदि आप इतनी कृपा करें श्रीयुवराज तो...। 'यह मैं भी चाहता हूँ। आज मुझे अवकाश है। चलो, उसके प्रकोष्ठ में चलकर कुछ देर तक उससे वार्तालाप कर लेने से चित्त को बहुत शांति मिलेगी।'
चक्रवाल प्रसन्नता से खिल उठा।
आज जम्बूद्वीप के भावी अधीश्वर एक किन्नरी से वार्तालाप करेंगे—यह कितने आश्चर्य की बात थी, परन्तु किन्नरी एवं चक्रवाल के लिए कितनी प्रसन्नता की। युवराज और चक्रवाल किन्नरी के प्रकोष्ठ के पासस आये।
प्रकोष्ठ के द्वार बंद थे। कदाचित् भीतर किन्नरी वस्त्र परिवर्तन कर रही थी।
चक्रवाल ने द्वार खटखटाया, साथ ही अंतदिश से किन्नरी का स्वर सुनाई पड़ा—'कौन है?' नित्य की भांति यद्यपि निहारिका ने अनुमान लगा लिया था कि चक्रवाल होगा, मगर क्या उसे स्वप्न में भी अनुमान हो सकता था कि युवराज नारिकेल उसके प्रकोष्ठ में पदार्पण करेंगे।
'मैं हूं...।' चक्रवाल ने नित्य की भांति कह दिया।
'कौन हो तुम...? जाओ इस समय!'
'बहुत आवश्यक कार्य है। शीघ्र द्वार खोलो।' चक्रवाल ने कहा।
किन्नरी वस्त्र परिवर्तन कर चुकी थी। उसने आगे बढ़कर धीरे से द्वार खोल दिया। एकाएक उसका सारा शरीर तीव्र वेग से प्रकम्पित हो उठा। युवराज के समक्ष उसने कैसी धृष्टातापूर्ण बात कह दी।
किन्नरी ने तुरंत ही अपनी अव्यवस्थित भंगिमा ठीक कर ली। उसने झुककर युवराज का सम्मान किया।
चक्रवाल बोला—'युवराज तुम्हारे प्रकोष्ठ में पधारे हैं...।'
'अहो भाग्य?' निहारिका ने मधुर मुस्कान के साथ वीणा-विनिन्दित मधुर स्वर जैसी मिठास में कहा।
युवराज एवं चक्रवाल प्रकोष्ठ के भीतर आये। चक्रवाल ने युवराज के लिए एक स्वर्णासन रख दिया। युवराज बैठ गये।
चक्रवाल एवं किन्नरी उनके समक्ष भूमि पर बैठे। कुछ देर तक शांति रही। 'तुम्हारी कला अपूर्व है किन्नरी।' युवराज ने शांति भंग की। '............।'
किन्नरी ने कुछ कहना चाहा, परन्तु भावावेश में उसके मुख से शब्द ही न निकले, केवल उसके नेत्र एक क्षण के लिए युवराज के मुख पर जा ठहरे।
'जब तुम नृत्य करती हो तो मुझे ऐसा प्रतीत होता है—मानो जगत की समस्त रूपराशि तुम्हारे
अवयव द्वारा संचालित हो रही है, मानो संसार की सारी सुषमा तुमहारे नर्तन में प्रवेश कर अपनी प्रतिभा प्रदर्शित कर रही है, मानो तुम्हारे अपूर्व अंग-संचालन के साथ-साथ कितने ही तृषित हृदय संचालित हो रहे हो...।'
युवराज के मुख से अपनी स्पष्ट प्रशंसा सुन, किन्नरी निहारिका का रोम-रोम पुलकित हो उठा।
'यह श्रीयुवराज की असीम अनुकम्पा है, जो मुझे इतनी महानता दे रहे हैं...।' किन्नरी निहारिका केवल इतना कहकर मौन रह गई।
'यदि श्रीयुवराज मुझे कुछ देर के लिए बहार जाने की आज्ञा दे सकें तो आभारी हूंगा...।' चक्रवाल ने कहा।
'क्यों....?' पूछा युवराज ने। 'एक आवश्यक कार्य करना मैं भूल गया हूं। मैं अभी आ जाऊंगा।' 'जाओ, परन्तु शीघ्र आना...!'
चक्रवाल युवराज को सम्मान प्रदर्शन कर बाहर चला गया। प्रकोष्ठ में केवल युवराज और किन्नरी रह गये। कुछ देर तक घोर नीरवता उस सुसज्जित प्रकोष्ठ में विराजमान रही।
'किन्नरी!' अकस्मात युवराज ने पुकारा। '............
' उसने अपलक नेत्रों से युवराज के मुख की ओर देखा।
'मेरे आने से तुम्हें कोई कष्ट तो नहीं हुआ?' ।
'कष्ट...।' मधुर हास्य कर उठी सौंदर्य की वह अपूर्व प्रतिमा-भला देव के आने से देवदासी को कभी कष्ट हो सकता है ? मेरे तो भाग्य जाग उठे, जो आप यहां पधारे...क्या श्रीयुवराज से मैं कुछ पूछने की धृष्टता कर सकती हूं?'
'पूछो,क्या पूछना चाहती हो?'
'श्रीयुवराज को मेरे नर्तन में कौन-सी ऐसी उत्कृष्टता दृष्टिगोचर हुई...?'
'उत्कृष्टता नहीं, आकर्षण कहो। जगत का कौन-सा ऐसा आकर्षण है, जो तुम्हारी कला में विद्यमान न हो...।'
'एक बात पूछू ?' युवराज ने कहा।
कुछ काल तक पुन: नि:स्तब्धता रही। 'पूछिए न।' सहज मुस्कराहट के साथ वह बोली।
'उस दिन मेरे मस्तक पर कुंकुम लगाते समय, मेरी नासिका पर...।'
'मैं उसके लिए क्षमा चाहती हूं, श्रीयुवराज !' निहारिका लज्जा से गड़-सी गई।
'कल राजोद्यान में, रात्रि के प्रथम पहर में मुझसे भेंट कर सकती हो?'
'भला देव की आज्ञा देवदासी कभी अस्वीकार कर सकती है?'
'अब मैं जाऊंगा...।' कहकर युवराज ने भावावेश में किन्नरी के प्रकम्पित कर पकड़ लिये।
'मुझे अधिक विलम्ब हो गया, श्रीयुवराज! क्षमा करें...चक्रवाल आ पहुंचा—'वह देखिये, जाम्बुक चला आ रहा है। कदाचित् कोई आवश्यक कार्य है।'
युवराज ने सामने से देखा तो वास्तव में जाम्बुक चला आ रहा था। युवराज बाहर आये। किन्नरी ने उन्हें सम्मानपूर्वक अभिवादन किया।
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