RE: RajSharma Sex Stories कुमकुम
'अब क्या होगा गुप्तचर।' उस गुप्त कन्दरा में, असहाय अवस्था में पड़े हुए आर्य सम्राट अपने गुप्तचर से कह रहे थे— 'कई प्रहर हो गये, हम लोग ऐसे बुरे फंसे कि बाहर निकलने का कोई मार्ग ही नहीं रह गया। शत्रुओं ने दोनों ओर से मार्ग बंद कर दिया। है। अब हम इसी कंदरा में शोकजनक मृत्यु को प्राप्त होंगे। युद्ध का न जाने क्या समाचार होगा? कैसे एकाएक विलुप्त हो जाने से पर्णिक न जाने क्या सोचेगा? सेना तो एकदम शिथिल पड़ जाएगी।'
'नहीं जानता था कि गुप्त कंदरा में इतना रहस्य प्रच्छन्न है, नहीं तो श्रीमान् को मैं कभी यहां आने की सम्मति न देता।' गुप्तचर ने कहा।
'हमारी सारी आशाओं का तुषारापात हो गया, हमारी सारी अभिलाषाएं धूल-धूसरित हो गई !' आर्य सम्राट हताश वाणी में बोले।
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-- 'मुझे दृढ़ विश्वास है, महापुजारी।' द्रविड़राज ने कहा। द्रविड़राज एवं महापुजारी पौत्तालिक तीव्रगति से गुप्त मार्ग द्वारा युद्ध की ओर अग्रसर हो रहे थे।
उस गुप्त मार्ग में प्रकाश आने की पूर्ण व्यवस्था थी। इस समय दिन होने के कारण कन्दरा में मद्धिम प्रकाश फैल रहा था।
'महामाया करें, आपका अनुमान सत्य हो, श्रीसम्राट।' महापुजारी बोले।
'मेरे हृदय में ममत्व का दारुण रोर मचा हुआ है। अवश्य मेरा अनुमान सत्य प्रमाणित होगा।' द्रविड़राज ने कहा।
दोनों व्यक्तियों ने अपनी चाल तेज कर दी। इस समय द्रविड़राज की विचित्र दशा थी। उनके हृदय में हर्ष एवं रुदन का ज्वालामुखी फूट पड़ा था।
कभी वह चाहते थे करुण चीत्कार करना और कभी चाहते थे हर्षतिरेक से हंस पड़ना।
आज वर्षों की शोकाग्नि के पश्चात् हर्षाग्नि प्रज्जवलित हुई थीं, परन्तु उन्हें ऐसा प्रतीत हो रहा था, जैसे देवीचक्र अब भी उनके सर्वथा प्रतिकूल कार्य कर रहा है।
'यह क्या...?' द्रविड़राज एकाएक आश्चर्यचकित हो उठे अपने सामने से सुविशाल प्रवेश द्वार को बंद देखकर कहा-यह द्वार किसने बंद किया...?' क्या यहाँ बाहरी मनुष्य भी उपस्थित हैं।'
'हो सकता है कि श्रीयुवराज ही ने इसे बंद किया हो।' महापुजारी बोले। द्रविड़राज ने हाथ बढ़ाकर उस विशाल प्रवेश द्वार के पार्श्व में न जाने क्या किया। दूसरे ही क्षण बह प्रवेश द्वार धड़-धड़ शब्द करता हुआ खुल गया। द्रविड़राज एवं महापुजारी दोनों व्यक्ति चौक कपड़े, सुरंग में दूरी पर दो मनुष्यों की स्पष्ट आकृति का अवलोकन कर।
'कौन है ? कौन है? जो द्रविड़राज की क्रोधाग्नि में भस्म होना चाहता है।' द्रविड़राज का कठोर गर्जन गूंज उठा, उस गुप्त सुरंग में।
'मैं हूं। आर्य सम्राट तिग्मांशु।' दूसरी ओर से उत्तर आया।
'आर्य सम्राट तिग्मांशु ! यहां ...।' द्रविड़राज आश्चर्य से अधीर हो उठे।
उन्होंने महापुजारी की ओर देखा और महापुजारी ने उनकी ओर। दोनों व्यक्ति उस ओर बढ़े जिधर आर्य सम्राट एवं गुप्तचर खड़े हुए स्वयं द्रविड़राज के पदार्पण पर आश्चर्य कर रहे थे।
दोनों महान् सम्राट एक-दूसरे के समक्ष आ खड़े हुए। दोनों ने अपनी प्रथानुसार एक-दूसरे को अभिवादन किया। तत्पश्चात् द्रविड़राज बोले-'आर्य सम्राट से साक्षात् कर मैं अतीव प्रसन्न हुआ।'
'मेरा अहोभाग्य कि श्रीमान् के दर्शन हुए। कहा आर्य सम्राट ने।
'मगर आर्य सम्राट के यहां पधारने का कारण...?' महापुजारी ने पूछा।
'हम बंदी हैं।'
'बंदी...? बन्दी हैं आप...?' द्रविड़राज बोले-'किसने बंदी बनाया आपको...?'
'स्वयं युवराज नारिकेल ने।' आर्य सम्राट ने उत्तर दिया।
"युवराज नारिकेल...!' द्रविड़राज के मुख पर दुख के भाव प्रकट हो उठे—तनिक भी सभ्यता नहीं उसमें। नहीं जानता कि एक सम्राट के साथ, दूसरे सम्राट को किस प्रकार व्यवहार करना चाहिये।'
'परन्तु अपराध मेरा ही था, श्रीमान्। मैं आपके इस गुप्तमार्ग का पता लगाने आया था।'
'आपने अपराध किया था, परन्तु दुर्व्यवहार तो उसका दंड नहीं हो सकता। अपने घर में आये शत्रु से मित्र का सा आचरण करना ही द्रविड़कुल की परम्परा रह आई है, आर्य सम्राट।
'यहां आपके इस समय कष्ट उठाने का कारण।'
'यही बात मैं आपसे पूछना चाहता हूं, जम्बूद्वीप पर आपके असमय में आक्रमण करने का कारण...?'
द्रविड़राज के स्वर में कुछ तीव्रता आ गई।
'मित्रता का हाथ खींच लेने और याचना ठुकरा देने पर ही आक्रमण हुआ है, श्रीमान्।
' 'याचना?' आश्चर्यचकित होकर पूछा द्रविड़राज ने।
'जी हां। सहअस्तित्व की भावना निहित थी हमारी याचना में, परन्तु द्वार पर आये हुए याचक की बातों पर आपने कोई ध्यान नहीं दिया?'
'आप याचक हैं, आर्य सम्राट! आपने मुझसे भिक्षा की याचना की थी? यदि ऐसा हुआ होता तो द्रविड़राज इतने निकृष्ट नहीं थे। क्या आपकी सभ्यता में इसी को याचना कहते हैं? क्या आपके धर्म का यही उपदेश है कि जो भिक्षा न दे, उस पर बल प्रयोग कर भिक्षा प्राप्त करें।
'....' आर्य सम्राट मौन रहे।
'कहते हैं, आपने भिक्षा मांगी थी...।' क्या भिक्षा दत भेजकर मांगी जाती है और दत को यह कहने का भी अधिकार दिया जाता है कि भिक्षा न देने पर बलपूर्वक सर्वस्व अपहरण कर लिया जायेगा? यदि भिक्षा मांगनी थी तो उचित था कि आप स्वत: हमारे समक्ष उपस्थित होते और महापुजारी जी के चरणों पर मस्तक रखकर दया की भिक्षा मांगते। यदि महापुजारी जी का दयार्द्र हृदय आपकी पुकार पर द्रवित होता तो मैं उनकी आज्ञानुसार अपना सारा साम्राज्य आपके चरणों में अर्पित कर देता।'
'अब तक मैं अपनी नीति के अनुसार कार्य करता हूं...।' आर्य सम्राट बोले।
"ओह !' हंस पड़े द्रविड़राज'आपने सोचा था कि जिस प्रकार अन्य माण्डलिक राजाओं ने आपका आधिपत्य स्वीकार कर लिया है, उसी प्रकार द्रविड़राज भी कर लेंगे। यह भी नहीं समझा था आपने कि द्रविड़राज में आत्मसम्मान है, देश पर बलिदान हो जाने की भावना है। आपने बलप्रयोग की धमकी दी थी। आज संयोगवश हम दोनों का साक्षात्कार हो गया है। हम लोग आज निश्चय कर लेंगे कि कौन किस प्रकार बलप्रयोग कर सकता है।'
"आर्य सम्राट का कृपाण विपक्षी पर आघात करने के लिए सदैव प्रस्तुत रहता है, श्रीमान्।' आर्य सम्राट ने कहा।
'धन्यवाद...।' द्रविड़राज बोले—'यहां पर्याप्त स्थान नहीं है, मेरे साथ आइये।' द्रविड़राज आगे बढ़ चले। एक स्थान पर सुरंग बहुत प्रशस्त थी। वहीं आकर वे रुक गए। द्रविड़राज एवं आर्य सम्राट ने अपने-अपने कृपाण संभाल लिए। दोनों प्रतिद्वन्द्वी एक-दसरे के समक्ष खड़े होकर घात-प्रतिघात करने में तल्लीन हो गए। कृपाणों की भयानक झंकार से गुप्तमार्ग गुंजरित होने लगा।
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