RE: RajSharma Sex Stories कुमकुम
- - 'अब रहने दीजिये युवराज। संध्या का आगमन हो रहा है, अब युद्ध स्थगित कर देना चाहिये।' पर्णिक ने कहा।
"अब तो युद्ध रुकना असम्भव है पर्णिक संध्या का आगमन एवं रात्रि का प्रगाढ़ अंधकार इस युद्ध में बाधा नहीं पहुंचा सकते...।' युवराज ने कहा।
उन पर न जाने कैसा उन्माद-सा छा गया था। पर्णिक धीरे-धीरे क्रुद्ध होता जा रहा था, युवराज का युद्ध के लिए हठ देखकर।
'अब बचाना युवराज।' वह चिल्लाया और उसका कृपाण प्रलयंकर गति से युवराज की ओर बढ़ा।
युवरजा इस समय कुछ भूले-से हो रहे थे। उनके नेत्र पश्चिमाकाश की अरुणिमा पर केन्द्रित हो रहे थे। पर्णिक की तड़प सुनकर वे सचेत हुए। उन्होंने प्रतिघात के अपना कृपाण सम्भाला। उसी समय दौड़कर आते द्रविड़राज का स्वर गूंज उठा युद्धस्थली में— 'युवराज रोक लो कृपाण...!'
झटके के साथ युवराज का कृपाण रुक गया, अपने पिता का स्वर सुनकर। परन्तु पर्णिक का कृपाण न रुका। तीव्र वेग से आते हुए विकराल कृपाण ने युवराज के वक्ष का चुम्बन कर ही लिया। उनके मुख से एक करुण चीत्कार निकलकर दिशाओं को प्रताड़ित कर उठी। वे चेतनाहीन होकर भूमि पर गिर पड़े—कटे हुए वृक्ष की तरह। घाव भयानक था।
'क्या हुआ...? क्या हुआ...?'द्रविड़राज दौड़े आये युवराज के पास। पर्णिक की माता भी आई। देखा—युवराज का जीवन प्रदीप बुझने के समीप था।
'युवराज! मेरे लाल...।' द्रविड़राज रो पड़े। __
'पिताजी...?' युवराज ने नेत्र खोले—'मैंने अपने विपक्षी पर विजय पाई है। द्रविडराज की उज्जवल कीर्ति पर कलंक-कालिमा नहीं लगाने दी है...मैंने उसे निर्बल जानकर क्षमा कर दिया है।
'कौन है तुम्हारा वह विपक्षी युवराज?
"वह है पिताजी...। यह ... यही एक दिन जंगल में मुझसे मिला था...।' युवराज ने अपने अशक्त करों से पर्णिक की और संकेत किया, जो इस समय प्रस्तरवत् खड़ा आश्चर्यचकित नेत्रों से आश्चर्यमय घटना देख रहा था।
'यही है तुम्हारा विपक्षी...?' द्रविड़राज हाय कर उठे—'वत्स! यह तुम्हारा लघु भ्राता है।'
'लघु भ्राता...।' युवराज कांप उठे।
उन्होंने उठने का प्रयत्न किया, परन्तु चेतनाहीन होकर गिर पड़े। पर्णिक ने झपटकर उन्हें संभाला। धीरे-धीरे युवराज ने पुन: अपने नेत्र खोले।
पर्णिक ने देखा, उन नेत्रों में मृत्यु की स्पष्ट छाया विराजमान है। अब जीवन की आशा दुराशामात्र है।
"पर्णिक!' युवराज ने कांपते स्वर में पुकारा। 'भ्रातृवर...' रो पड़ा अभागा पर्णिक—'मुझे क्षमा करो भ्रातृवर।'
और युवराज ने पर्णिक के मस्तक पर अपना शिथिल हाथ रख दिया। पर्णिक की माता चेतनाहीन होकर एक और लुढ़की पड़ी थी। महापुजारी उन्हें चेतना में लाने का प्रयत्न कर रहे थे।
'आपने हमें विनष्ट कर दिया आर्य-सम्राट!' द्रविड़राज बोले। आर्य-सम्राट सिक्त नेत्रों से यह सारा दृश्य देखते हुए खड़े थे।
'हम क्षमा चाहते हैं द्रविड़राज। हम हारे, आप जीते। कल हमारी सेना जम्बूद्वीप से प्रस्थान कर देगी | आर्य सम्राट तिग्मांशु बोले।
'नहीं आर्य सम्राट! आपने जिस लालसा से जम्बूद्वीप में पदार्पण किया है वह अवश्य पूर्ण होगी...यह देखिये, आज युगों की असहनीय ज्वाला में विदग्ध होने के पश्चात यह देवी मुझे प्राप्त हुई है। एक दिन मैंने अपने इसी मुख द्वारा इन्हें आजन्म निर्वासन की दण्डाज्ञा सुनाई थी और आज इसी अपने अधूरे न्याय पर पश्चाताप कर रहा हूँ। इन्होंने न्याय धर्म का पालन किया था, परन्तु पति धर्म का पालन में न कर सका था। आज इस देवी के साथ में भी निर्वासन दण्ड स्वीकार कर पति धर्म पालन करूंगा...आज से यह सारा विशाल साम्राज्य आपका है और वह मेरा पर्णिक आपका सहकारी...आप भिक्षुक हैं...मैंने आपको अपना विशाल साम्राज्य एवं वीर पुत्र प्रदान कर दिया। द्वार पर आये हुए भिक्षुक को द्रविड़राज निराश नहीं लौटाते, आर्य-सम्राट! अब हम दोनों पति-पत्नी जंगलों में विचरण करते हुए निर्वासन दण्ड की पूर्ति करेंगे।'
और द्रविड़राज फूट-फूटकर रो पड़े। आर्य सम्राट के नेत्रों से भी अश्नु-बिन्दु गिरकर भूमि का सिंचन करने लगे। --
नोट : यह इतिहास प्रसिद्ध बात है कि द्रविड़ और आर्यों के युद्ध के पश्चात् यह सारा देश आर्यों के हाथ में आ गया था। इसे हमने इस प्रकार दिखाया है कि द्रविड़राज ने आर्य सम्राट को साम्राज्य प्रदान कर दिया। पाठकों। यह उपन्यास ऐतिहासिक प्रतीत होगा, परन्तु वास्तव में ऐतिहासिक नहीं है—हिस्टोरीकल टच मात्र दिया गया है इस उपन्यास में जिस काल का वर्णन है, यदि उस काल के इतिहास से पाठक मिलान करने लगेंगे, तो इसमें बहुत-सी अत्युक्तियां पायेंगे।
—लेखक
द्रविड़राज के नेत्रों की ज्योति क्षीण होती जा रही थी। उनकी म्लान मुखाकृति पर मृत्यु के क्रूर लक्षण दृष्टिगत होने लगे थे। उनके मरणासन्न हृदय में भयानक अंधकार प्रसार पाता जा रहा था। उसी प्रगाढ़ अंधकार में युवराज ने देखा कलामयी किन्नरी की मनोहारी प्रतिमा। युवराज का शरीर उस प्रतिमा को देखकर प्रकम्पित हो उठा। एक क्षण के लिए उनके नेत्रों की ज्योति लौट आई।
उन्होंने देखा, किन्नरी निहारिका विह्वल भंगिमा लिए उसी ओर एक रथ पर से उतरकर दौड़ी जा रही है और गायक चक्रवाल भी उसके पीछे भागा आ रहा है। उसके नेत्रों से अश्रुकण लुढ़ककर उसके गालों को भिगो रहे हैं।
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