RE: kamukta Kaamdev ki Leela
यूं तो सारे के सारे सदस्य अपने अपने कमरे में नींद की आगोश में लेट चुके थे, एक कमरे में क्रोध और आग का माहौल छाया हुआ था। यह कमरा था रमोला और और गौरव का!
रमोला : (बाथरूम से निकलती हुई) उफ्फ यह लड़का मुझे पागल कर देगा एक दिन! सच कहती हूं! इसे मारने का जी कर रहा था!
गौरव : (अपना किताब साइड में रखता हुआ) मुझे खुद शरम महसूस हो रहा है! यह आज क़ल के लोंदे तो! बाप र बाप!!
ताभी अचानक रमोला अपने पति को जांघो की और देखकर कुछ लज्जित हो जाती हैं! गौरव उस को देखने लगा और उसके कंधो को मसाज करता हुआ उसके गर्दन को चूमने लगा।
पच! पच!
रमोला : उफ्फ देखिए मेरा मूड नहीं है! (लेकिन गर्दन आगे करती हुई) ओह! प्लीज!
गौरव : (कान की लौ के चूमता हुआ) सच कहूं! यह लड़का तुमपे गया है! (पच पच) वहीं चाल! वहीं सूरत उफ्फ! ओह प्लीज आज में बहुत मूड में हू! आओ ना!
अब गौरव अपने पत्नी को बताए भी तो कैसे बताए कि अजय के यह औरतों वाली परफॉर्मेंस देखकर उसके लिंग में आग लगा हुआ था।
रमोला : (अब की बार नाईटी को जिस्म से आज़ाद करती हुई) हाहई राम!!!!!! में तो अभी के अभी मर जाऊं!!!! कहीं जाकर डूब मारू! मेरा पति तो पागल हो गया है! अरे यह (गौरव के लिंग को जकड़ती हुई) मूसल इतना मोटा कुओं हो गया!! दया!!!
गौरव : (खुद नंगा होकर एक चादर खींच देता है दोनों के ऊपर) हाए धरमपत्नी जी!! यह मूसल आज नहीं रुकने वाला, आज तो बस!!! (लाइट को बंद करता हुआ, तुरंत अपने बीवी के अंदर। धस गया) आह!! वहीं अनोखा अनुभव आज भी! आह!!
दोनों मिया बीवी शारीरिक सुख में व्यस्त हो गए, हाला की रमोला ने कुछ काहा तो नहीं, लेकिन गौरव के मन में एक ही दृश्य घूम रहा था : अजय का अपने पल्लू पकड़के एक जननी कि तरह शर्माना, मानो कोय गोने की दुल्हन अपना प्यार इजहार कर रहा हो! रमोला भी यह सोचकर पानी पानी हो गई के रात का रंग उसके अपने बेटे के वजह से रंग गई थी।
"हाय दाईया!!" रमोला की आंखे बंद हो गई और अपने पति के बाहों को अपनी हाथों से जकड़ लिया ज़ोर से! कुछ पल के बाद गौरव उसी के पेट पर अपना माल उधेल देता है! आज वीर्य खिड़ थोड़ी रोमांचित अंदाज़ से निकला था मानो!
वहा दूसरे और और कमरे में एक अजीब सा माहौल चाय हुआ था। यह कमरा था उन तीन बहनों का! नमिता, रेवती और रिमी की! रिमी की आदत थी नमिता और रेवती की बीच में सोने की! परिवार की लाडली जो ठहरी!
रेवती सो चुकी थी लेकिन बाकी दोनों के आंखे अभी भी खुली हुई थी।
रिमी : दीदी! (नमिता की और नाक सिकुड़ के) लगता है डांस के बाद आप फ्रेश होना ही भूल गई!
नमिता : तुझे क्या अच्छी नहीं लगी?
रिमी : क्या??? शी! (दीदी के सुखी पसीने के गंध से) ऑफकोर्स नोट!!!
नमिता : (बहन को झाप्पी देती हुई) मेरी स्वीट बेहना! कभी तू भी अपनी पसीने को अपने जिस्म पर मलके देख! (एक गाल को चूमती हुई) अच्छा लगे गा!
यह चुम्बन तो मासूम थी, लेकिन रिमी को लगा के दीदी के शब्दो में कुछ मायाजाल जैसी जुड़ी हुई हो। वोह भी शरारती अंदाज़ में अपने दीदी के गले के एक चिपचिपी हिस्से को चाट लेती है और "ज़ायका इतना भी बुरा नहीं है!"
दोनों बहन खिलखिला उठे! कुछ पलो के बाद रोमी तो से गई लेकिन नमिता की आंखो में राहुल अभी भी छाया हुआ था! नजाने उस लम्हे में ऐसा क्या था के उसकी लगा के उसने अपने भाई को जैसे पहली बार देखा हो!
अपनी हरकतों से शर्माकर वह सोने की कोशिश में जुट जाती है। वहा राहुल के कमरे में भी माहौल कुछ इस कदर था के आंखों में मदहोशी चाई हुई थी और बार बार हाथ अपने जिस्म पे लगे दीदी के पसीने के सूखे बूंदों का स्पर्श कर रहे थे। उफ्फ कैसे वह मुलायम पपीते जैसे स्तन उसके सीने पे दबे हुए थे और कैसे उस युवती की आंखो में एक नशे कि सुरूर चाई हुई थी। यह सोचकर ही उसे उत्तेजना और कामवासना का एहसास होने लगा के वह नग्न युवती उसकी अपनी ही दीदी थी।
अब वक्त बदलने चला था, कुछ नज़रें धरम हाय को त्याग कर चुके थे तो कुछ पर्दे हट चुके थे। रात गहरी होती गई और घर के बगीचे के झूलन पर बैठी गजोधरी ऊपर चंद्रमा की और देखने लगी, मानो अपने प्रभु कामदेव से वर्तलाब कर रही हो चुपके से। आज फंक्शन का माहौल वाकई में उत्तेजना से भरपूर था और अब उसने यह ठान ली के हर सदस्य को कामोतेजना से लपलप कर देगी।
"क्योंकि कामदेव का तडका! अंग अंग फड़का!" सोचकर वह वहीं झूलन पर लेट गई और सुबह होने से पहले ही वहा से गायब हो गई।
......
अगले सुबह :
रामधीर अपने व्यम में व्यस्त हो गया, लेकिन उसके आंखो पे अभी अभी अपने पोते अजय का मनोरंजन घूम रहा था। कैसे भला हो सकता है के एक नर मादा कि तरह सजके सावरकर ऐसा कायक्रम पेश कर सकता है! भला क्या यह मुमकिन था। और सबसे बड़ी और अजीव बात यह थी के अजय की सूरत यशोधा से बहुत मिलती जुलती थी।
उफ्फ! इतना ही खयाल करना था कि उसके लिंग पर खुजली होने लगा और ऐसा लगने लगा के यह धोती को हटाकर क्यों ना सिर्फ लंगोट में कसरत किया जाए। लेकिन मर्यादा नाम की भी तो एक चिड़िया थी! और घर के बुजुर्ग होने के नाते इतनी आसानी से अपने कमकुता ज़ाहिर करते भी तो कैसे। खैर यह सब वोह सोच ही रही थी के सामने आती है आशा, हाथ में दूध और बादाम लिए। बरी अदा के साथ ठुमक के अपने ससुर के सामने आके खड़ी हो गई।
आंखों से आंखें ऐसे मिले जैसे कुछ के कहना चाहता हो और कुछ सुनना भी चाहता हो।
रामधीर : (अपने चेहरा सामने कल्स के पानी से धो ता हुआ) बहू! तुम ल? तुम्हारी सासू....
आशा : माजी अभी तक पूजा पाठ में ही व्यस्त है बाबूजी! आप यह लीजिए (दूध देती हुई)
रामधीर मुस्कुराता हुआ दूध पिलेता हे और ग्लास को वापस रखते ही उसके खुद्रे हाथ को बहू के हाथ का स्पर्श प्राप्त हो गया और दोनों के जिस्म मानो एक साथ सोहिर हो उठे। आशा अपने पल्लू को कस के जकड़ती हुई, नज़रें नीचे कर लेती है। रामधीर को कुछ अजीव लगा आशा के हरकतें!
आशा : बाबूजी! लाइए आपके कपड़े धोने देता हूं! (शर्मा के) बड़े गंदे लग रहे है!
रामधीर : हाहाहा! इसकी कोई जरूरत नहीं है बहू! वैसे (शरारत से) तुम चाहो तो....
आशा : बाबूजी बुरा मत मानिए! आपके कपड़े आपके पसीने से इतने लतपत जो गए है के (नाक सिकुड़े) इनके महक यह तक आ रही है!
रामधीर : (कपड़े उतराकर) महक????
आशा शर्मा गई और ससुर के वस्त्र लिए वहा से चल पड़ती है। वहा खड़े खड़े रामधीर को पता नहीं ऐसा क्यों लगा के जैसे बहू उनके बनियान को जैसे सूंघ रही थी। लेकिन दृश्य बड़ा ही मनमहोंक था और शक वाकई में सच था क्योंकि बाथरूम में जैसे आशा घुसी, बाल्टी में रखने से पहले उस बानियान के इर्द गिर्द अपनी नाक से परखने लगी, मानो कोइ जासूसी से लाश के कपड़े फोरेंसिक पे जांच रहा हो।
तभी कुछ अजीब सा घटना घटने लगी। बाथरूम की खिड़की से एक तेज़ रोशनी के जरिए आगयी गजोधरी! जो चुपके से वहीं खड़ी रही आशा के पीछे और धीरे से उसकी कान में कुछ मंत्र जैसे अजीव शब्द फुसफुसाई।
शब्दो का हल्के हल्के एहसास से आशा को कुछ होने लगी और तूरंत बाथरूम के दरवाजे को बंद किए, वोह खुद निर्वस्त्र ही गई! एक एक करके अपनी सारी, ब्लाउस, पेटिकोट और पैंटी ब्रा को त्याग दी और बाल्टी के पानी में अपने ससुर के पसीने से गदगद बनियान को मसलने लगी, फिर बाल्टी के पानी के अंदर भीगोन लगी मानो पसीने के बची हुई कतरो को पानी के कतरो से मिलाने लगी।
फिर उसी पानी को एक मग कि जरिए अपने बदन पर छलकने लगी। उफ्फ आजीव सा एहसास हो रही थी ऐसे करने में! बहुत सस्ती हरकत थी लेकिन दिल है कि मानता नहीं! क्यों दोस्तो? मनमानी तो करनी ही थी! मज़े की बात यह थी के ऐसे करने पर उसे साबुन कि कोई आवश्यकता महसूस नहीं हुईं । दृश्य बड़ी ही मनमोहक थीं एक ४० वर्ष मस्त सुडौल महिला नमकदार (या पसिनेदर) पानी से मस्त नहा रही थीं, मानो अमृत मिल गया हो।
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