RE: kamukta Kaamdev ki Leela
धीरे धीरे आशा की कदम अपने ससुर की कमरे कि और जाने लगी। रात के अंधेरे में घुंगट अोदे बरी मदमस्त अदा से वोह चल रही थी, दुनिया और रस्मो रिवाज से बेखबर। ठीक उसी समय रिमी नीचे रसोई की तरफ जाने लगी, पानी की खाली जग लिए, के उसकी नज़र एक शादी के जोड़े वाली औरत पे आके रुक गई। हैरान और उत्सुख होती हुई वोह वहीं से देखने लगी के जोड़े में और कोई नहीं बल्कि उसकी अपनी मा थी। "मा और ऐसे??? इस समय?"। उसकी आंखे बड़ी हो गई जब आशा के कदम सीधे उसकी दादी और दादा के कमरे की और चलदी और जैसे ही वोह अंदर प्रवेश कर ली, चुपके से रिमी कमरे के चौखट के बाहर खड़ी हो गई।
आशा अंदर आते ही एक दम से दंग रह गई, सामने का नज़ारा देखकर!
उसकी सास यशोधा देवी, अपनी बलो को डाई कर चुकी थी, मानो उम्र कम होने का एहसास दे रही हो, एक रंग बिरंगी सारी पहनी हुई, अपनी हथेली पर एक आरती की थाली लिए खड़ी थी "आओ बहू!"। चेहरे पर एक कामुक मुस्कान थी और जैसे ही आशा के नज़रे यहां वहा गई, वोह इतनी ज़्यादा हैरान हुई, जितनी शायद वोह अपनी पूरी जिंदगी में अब तक ना ही पाई!
दीवारों पे से सारे के सारे देवी देवताओं के तस्वीरे निकले गए थे और केवल कामदेव और रति की तस्वीरें सजाए गए थे चारो और। इतना ही नहीं, बल्कि बिस्तर पूरी के पूरी सफेद चादर और उसपे गुलाब की पंखुड़ियां फैले हुए थे। एक अजीब महक थी पूरी कमरे में और आशा को यह सब देखकर मशेश के साथ सुहागरात याद आ गई "माजी! यह सब......."। तुरंत यशोधा अपनी उंगलियां आशा की होंठो को थाम ली "चुप हो जाओ बहू! आज कुछ मत बोलो, कुछ मत सोचो! सब भूल जाओ! आओ!"। अपने बहू के पीठ पर हाथ रखे यशोधा उसे बिस्तर की और ले गई और अजीब तरीके से देखने लगी "हाए मेरी प्यारी बहु!"
आशा और उसकी सास बैठ गई और आशा हैरानी से अपनी सास की और देखने लगी "माजी! मुझे डर लग रहा है! यह सब......." "ज़रूरी है बहू! तू अपनी ज़िन्दगी नए से शुरू कर!" फिर कमरे के कोने में एक पर नज़रे फिरती हुई "सुनिए जी! आजाइए!"। बस फिर क्या, रस्सी टूटी और सांड मैदान में! रामधीर एक दूल्हे के लिबाज़ में हाज़िर और आंखो में भयानक प्यास और भूख लिए अपने बहू के तरफ देखने लगी और किसी अनजाने मर्द की तरह बरताव करने लगी, जो अभी अभी अपने नए नवेली बिवी की खुदाई करने वाला था।
आशा चौंक के उठने ही बली थी कि उसकी हाथो को कस के रोक दी यशोधा, आंखो में जिद और क्रोध का मिश्रण का मिलन थी, जिसे देख आशा को बिन कहे बहुत कुछ सुनाई दी और वोह चुप रहना ही मुनासिब समझी। रामधीर के बिस्तर के करीब आने पे यशोधा उठ गई और प्यार से अपने पति की और मुस्कुराई और सामने एक कुर्सी पे बैठ गई। समय एक अजीब लहर से गुजर रहा था और आशा की दिल की धकड़न काफी तेज हो गई। रामधीर के धोती में तो उनका मोटा लिंग उभर के उपर की तरफ उठने लगा अपने बहू की और देखकर।
यशोधा देवी पूर्ण बेशर्मी के साथ सामने के कुर्सी पर ऐसी विराजमन थी, मानो अपनी मनपसंद सीरियल देखने बैठी हो! पूरी उत्सुकता लिए वोह बैठी रही, सामने बिस्तर पर आंखे गड़े हुए। लेकिन उन्हें देखें आशा, जो अपने ससुर की हाथ थामे थी, अचानक वहीं के वही रुक गई "बाबूजी! यह माजी यहां पर??" उसकी आंखो में सवाल बहुत थे, लेकिन रामधीर हंस के बात को टाल दिया और आशा को अपने बाहों में लेली, कस के उसके उभर पर अपने छाती रगड़ने लगे। आशा बस इस स्पर्श के लिए हमेशा तरसती रहती थी, और आज जब यह मौका हाथ लगी थी, तो खुद को रोक नहीं पाई और खुद भी कसकर जकड़ लिया अपने ससुर को, और कान में फिर भी मासूमियत से पूछने लगी "क्या माजी! यही रहेंगे??"
रामधीर आपने बहू के कान को चूम लेता है "तुम्हे अपत्ती है?"। आशा अपने गीले कान से सिसक उठी "धत!! मुझे शर्म आ रही है!"। बहू की मधुर वाणी सुनकर यशोधा क्रोधित होने का नाटक करने लगी "बहू!! मुझे सब सुनाई दे रही है! चुप हो जा! वरना मुर्गी बना दूंगी!!!" क्योंकि यशोधा एक अध्यापक थी अपने समय में, उसकी ध्वनि में एक स्कत भाव और यह सुनकर आशा शर्म से पानी पानी हो गई। सास की मौजूदगी मै अपनी ससुर के साथ ऐसी स्तिथि ने खुद को पाकर बहुत ही उत्तेजित हो रही थी। ऊपर से सास से ऐसी डांट खाकर एक अजीब सी खुमार छा गई उसकी जिस्म मै।
जब उंगलियों कस गई अपने ससुर के अस्थिन पर, तो रामधीर ने मौका देखें और ज़्यादा बाहों में कस लिया। छाती और स्तन ऐसे रगड़े के आशा की सिसकी निकल गई "आह बाबूजी!"।
रामधीर भी इस सिसकी से प्रभावित होकर आगे बढ़ने लगा और अब की बार अपने बहू के गले के चारो और चूमने लगा। एक मीठी तरंग गुजर गई आशा की बदन में और उसकी नजर सीधे जम गई अपनी सास पे, जो वहीं कुछ दूरी पर बैठी बैठी यह हसीन सीन देख रही थी। अब पहले के मुकाबले फर्क यह थी के यशोधा ने अपने पल्लू को नीचे कर चुकी थी और अपने खुद के हाथो से अपने ही रसभरे सुडौल पपीतों को मसल रही थी।
उनकी होंठ से सिसकी निकलकर सीधे आशा की कान में ऐसे शहद घोल रही थी, जिससे उसकी खुद की भी सिसकी निकल रही थी। सास को ऐसे देख और ससुर को अपनी जिस्म से चिपके मिलने पे वोह पागल होने लगी और अब की बार आंखें शर्म से बंद कर दी। रामधीर अपने उंगलियां अपने बहू के होंठो पर अब फिराने लगा "कामल के होंठ है तेरे बहू! पता नहीं इतने साल मैंने कैसी इन्हे पान नहीं की!" रामधीर की आवाज़ में एक बेचैनी साफ प्रकट हो रहा था, जो आशा को साफ़ नज़र आ रही थी।
पति के कामुकता से यशोधा काफी प्रसन्न हो उठी और खुद राहुल के यादों में जुड़ गई, खास करके वोह घरी जब राहुल ने उनसे मज़ाक में कह डाला था के "अरें दादी! मुझे तो लड़की नहीं, औरतें ज़्यादा पसंद है!"। हाए! मज़ाक में कहीं गई बात उत्तेजित तो भरपूर कर रही थी यशोधा को! लेकिन इन अब ख़यालो को उसने दूर ही रखा, और सिर्फ अपने पति और बहू पे ध्यान देना मुनासिब समझी। देख रही थी के कैसे उसकी पति एक दम मस्त्मग्न होके अपने बहू को भोगने चला।
"हाय राम! यह तो है है पैदाइशी बदमाश!" एक नटखट अंदाज़ में मुस्कुरा उठी यशोधा जब गौर किया के आशा की बदन से पल्लू हट चुकी थी और दुनिया के सामने पेश हुई उसकी लाल ब्लाउस में लिपटी मोटे मोटे स्तन!
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