RE: Indian Sex Kahani डार्क नाइट
‘‘नहीं, फिर कभी।’’ उस समय घड़ी में दोपहर के दो बजे थे, मगर कबीर के चेहरे पर बारह बजे हुए थे। वह सोच कुछ और रहा था, और कह कुछ और रहा था। उसकी हालत देखकर हिकमा की हँसी छूट गई। कबीर को और भी शर्म महसूस हुई।
‘‘अच्छा बाय।’’ कबीर ने घबराकर कहा, और वहाँ से लौट आया।
हिकमा के चेहरे पर हँसी बनी रही।
पंद्रह साल की उम्र, वह उम्र होती है, जिसमें कोई लड़का, कभी किसी हसीन दोशीजा की जुस्तजू में समर्पण कर देना चाहता है, और कभी किसी इंकलाब की आऱजू में बगावत का परचम उठा लेना चाहता है; मगर इन दोनों चाहों के मूल में एक ही चाह होती है... ख़ूबसूरती की चाह। कभी आईने में झलकते अपने ही अक्स से मुहब्बत हो जाना, तो कभी अपनी कमियों और सीमाओं से विद्रोह पर उतर आना... सब कुछ अनंत के सौन्दर्य को ख़ुद से लपेट लेने और ख़ुद में समेट लेने की क़वायद सा होता है। यह कभी नीम-नीम और कभी शहद-शहद सी क़वायद, इंसान को कहाँ ले जाती है, वह का़फी कुछ इस बात पर भी निर्भर करता है, कि जिस मिट्टी पर ये क़वायद हो रही है, वह कितनी सख्त है या कितनी नर्म। कबीर के लिए उस वक्त लंदन और उसकी अन्जानी तह़जीब की मिट्टी का़फी सख्त थी, जिस पर पाँव जमाने में उसे कुछ वक्त लगना था।
‘‘सरकार अंकल, साबूदाना है?’’ कबीर ने भारत सरकार की दुकान पर उनसे पूछा। कबीर की माँ का उपवास था, और उन्होंने कबीर को साबूदाना लाने भेजा था।
‘‘एक मिनट वेट कोरो, बीशमील शे माँगाता है।’’ सरकार ने कहा।
‘‘बीस मील से आने में तो बहुत समय लग जाएगा; एक मिनट में कैसे आएगा?’’ कबीर ने भोलेपन से कहा।
‘‘हामारा नौकर है बीशमील; बीशमील! पीछे शे शॉबूदाना लेकर आना।’’ सरकार ने आवा़ज लगाई।
कबीर को समझ आ गया कि सरकार, बिस्मिल को बीशमील कह रहा था।
कबीर, साबूदाने के आने का इंत़जार कर रहा था, कि उसे दुकान के भीतर हिकमा आती दिखाई दी। कबीर, हिकमा को देखकर ख़ुशी से चहक उठा, ‘‘हाय हिकमा!’’
‘‘हाय कबीर! हाउ आर यू?’’
‘‘मैं अच्छा हूँ; तुम क्या लेने आई हो?’’
‘‘बेसन। इन्टरनेट पर बटाटा वड़ा की रेसिपी पढ़ी है; आज बनाऊँगी।’’
‘‘तुम बनाओगी बटाटा वड़ा?’’ कबीर ने आश्चर्य में डूबी ख़ुशी से पूछा। कबीर को ख़ुशी इस बात की थी, कि हिकमा ने उसकी बात को गंभीरता से लिया था; वरना उसे तो यही लग रहा था कि उसने हिकमा के सामने अपना ख़ुद का म़जाक उड़ाया था।
‘‘हाँ, तुम्हें यकीन नहीं है कि मैं कुक कर सकती हूँ?’’
‘‘बनाकर खिलाओगी तो यकीन हो जाएगा।’’
‘‘ठीक है; कल स्कूल लंच में तुम मेरे हाथ का बना बटाटा वड़ा खाना।’’
कबीर ने हिकमा को बटाटा वड़ा खिलाने के लिए तो कह दिया, पर उसे फिर से स्कूल में अपना म़जाक उड़ाए जाने का डर लगने लगा। इसी म़जाक के डर से वह लंचबॉक्स में भारतीय खाना ले जाने की जगह सैंडविच ले जाने लगा था। लेकिन वह हिकमा के साथ बैठकर उसके हाथ का बना बटाटा वड़ा खाने का लोभ संवरण नहीं कर पाया। उसने मुस्कुराकर कहा, ‘‘थैंक यू सो मच; और हाँ, चाहे तो इसे टिप समझो या फिर रिक्वेस्ट, मगर उसमें मीठी नीम ज़रूर डालना।’’
‘‘मीठी नीम?’’ हिकमा ने शायद मीठी नीम का नाम नहीं सुना था।
‘‘करी लीव्स।’’ कबीर ने स्पष्ट किया।
अगले दिन कबीर, लंच में हिकमा के साथ बैठा था। वह अपने लंचबॉक्स में माँ के हाथ का बना आलू टिक्की सैंडविच लाया था, मगर उसकी सारी दिलचस्पी हिकमा के हाथ के बने बटाटा वड़ा में थी। हिकमा ने लंचबॉक्स खोला। लहसुन, अदरक और मीठी नीम की मिलीजुली खुशबू उसके डब्बे से उड़ी। कबीर को वह खुशबू भी ऐसी मादक लगी, मानो हिकमा के शरीर से उड़ी किसी परफ्यूम की खुशबू हो। हिकमा, ख़ुद डिनर थी; बटाटा वड़ा तो वह बस कबीर के लिए ही लाई थी।
‘‘वाह, अमे़िजंग! दिस इ़ज रियली वेरी टेस्टी।’’ कबीर ने बटाटा वड़ा का एक टुकड़ा खाते हुए कहा।
‘‘तुमने जो कुकिंग टिप दिया था न, मीठी नीम डालने का; उससे और भी टेस्टी हो गया।’’ हिकमा ने एक मीठी मुस्कान के साथ कहा।
‘‘हे बटाटा वड़ा!’’ अचानक, दो टेबल दूर बैठे कूल की आवा़ज आई। कबीर ने उसे देखकर गन्दा सा मुँह बनाया, और फिर किसी तरह अपनी भावभंगिमा ठीक करने की कोशिश करते हुए हिकमा की ओर देखा।
‘‘तुम कबीर को बटाटा वड़ा क्यों कहते हो?’’ हिकमा ने कूल से पूछा। उसकी आवा़ज में हल्का सा गुस्सा था।
‘‘क्योंकि इसे बटाटा वड़ा पसंद है।’’ कूल ने हँसते हुए कहा।
‘‘तब तो तुम्हारा नाम तंदूरी चिकन होना चाहिए।’’ हिकमा ने एक ठहाका लगाया। हिकमा के साथ कबीर और कूल भी हँस पड़े।
‘‘और तुम्हें क्या कहना चाहिए?’’ कूल ने आँखें मटकाते हुए पूछा।
‘‘मीठी नीम।’’ हिकमा ने फिर वही मीठी मुस्कान बिखेरी। कबीर बहुत देर तक उस मीठी मुस्कान को देखता रहा।
‘‘इतनी अच्छी कुकिंग कहाँ से सीखी?’’ कबीर ने हिकमा की मुस्कान पर ऩजरें जमाए हुए ही पूछा।
‘‘मेरे डैड कश्मीरी हैं और मॉम इंग्लिश हैं; डैड को इंडियन खाना बहुत पसंद है, और मॉम को इंडियन कुकिंग नहीं आती थी; इसलिए मॉम कुकिंग बुक्स और मैग़जीन्स में रेसिपी पढ़कर खाना बनाती थीं। घर पर हर वक्त ढेरों कुकिंग बुक्स और मैग़जीन्स होती थीं, उन्हें पढ़-पढ़कर मुझे भी कुकिंग का शौक हो गया।’’
‘‘ओह नाइस।’’ कबीर को अब जाकर हिकमा के गोरे गुलाबी गालों का रा़ज समझ आया।
‘‘तुम भी कुकिंग करते हो?’’ हिकमा ने पूछा।
‘‘मैं बस अंडे उबाल लेता हूँ।’’ कबीर ने हँसते हुए कहा।
‘‘टिपिकल इंडियन बॉय।’’ हिकमा भी हँस पड़ी।
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