RE: Indian Sex Kahani डार्क नाइट
इसी बीच कबीर को भी ज़ोरों से पेशाब लगी। दो चार बार टॉयलेट का दरवा़जा खटखटाने के बाद भी जब भीतर से दरवा़जा न खुला तो वह भी बैकगार्डन की ओर भागा। गार्डन में अँधेरे में डूबी शांति थी। भीतर के शोर शराबे के विपरीत, बाहर की शांति, कबीर को का़फी अच्छी लगी। हल्की मस्ती से चलते हुए, बाएँ किनारे पर एक घनी झाड़ी के पास पहुँचकर उसने जींस की ज़िप खोली और अपने ब्लैडर का प्रेशर हल्का करने लगा।
‘‘हे, हू इ़ज दिस इडियट? व्हाट आर यू डूइंग?’’ झाड़ी के पीछे से किसी लड़की की चीखती हुई आवा़ज आई।
कबीर ने झाड़ी के बगल से झाँककर देखा, पीछे टीना बैठी हुई थी। उसकी स्कर्ट कमर पर उठी हुई थी, और पैंटी घुटनों पर सरकी हुई थी। कबीर की ऩजरें जाकर उसके क्रॉच पर जम गर्इं, और उसकी जींस की ज़िप से बाहर लटकता उसका ‘प्राइवेट’ तन कर कड़ा हो गया।
‘‘लुक, व्हाट हैव यू डन इडियट।’’ टीना ने अपने सीने की ओर इशारा किया। कबीर ने देखा कि टीना के टॉप के ऊपर के दो बटन खुले हुए थे, और उसके स्तन भीगे हुए थे।
‘‘यू हैव वेट मी विद योर पिस, कम हियर।’’ टीना ने गुस्से से कहा।
कबीर घबराता हुआ टीना की ओर बढ़ा। अचानक उसका पैर झाड़ी में अटका और वह लड़खड़ाकर टीना के ऊपर जा गिरा। इससे पहले कि कबीर सँभल पाता, टीना ने उसके गले में बाँहें डालते हुए उसके चेहरे को खींचकर अपने दोनों स्तन के बीच दबा लिया।
‘‘नाउ सक योर पिस ऑफ़्फ माइ ब्रेस्ट्स।’’ टीना के होठों से हँसी फूट पड़ी।
कबीर के होश तो पूरी तरह उड़ गए। यह एक ऐसा अनुभव था, जिसकी तुलना किसी और अनुभव से करना मुमकिन नहीं था। एक पल को कबीर को ऐसा लगा मानो उसके चेहरे पर कोई मुलायम कबूतर फड़फड़ा रहा हो, जिसके रेशमी पंख उसके गालों को सहलाते हुए उसे अपने साथ उड़ा ले जाना चाहते हों; या फिर उसने अपना चेहरा किसी सॉफ्ट-क्रीमी पाइनएप्पल केक में धँसा दिया हो, जिसकी क्रीम से निकलकर पाइनएप्पल का मीठा जूस उसके होंठों को भिगा रहा हो। मगर कबीर उन तमाम तुलनाओं के ख़यालों को एक ओर सरकाकर, उस वक्त के हर पल की अनुभूति में डूब जाना चाहता था। वैसा सुखद, वैसा खूबसूरत, उससे पहले कुछ और नहीं हुआ था। अचानक टीना ने उसके प्राइवेट को जींस की खुली हुई ज़िप से बाहर खींचते हुए अपने हाथों में कसकर पकड़ लिया। कबीर घबरा उठा। उसे ठीक से समझ नहीं आया कि क्या हो रहा था। टीना के हाथ उसके प्राइवेट को जकड़े हुए थे। उसके होंठ टीना के सीने पर जमे हुए थे। सब कुछ बेहद सुखद था, मगर कबीर के पसीने छूट रहे थे। उस पल में आनंद तो था, मगर उससे भी कहीं अधिक, अज्ञात का भय था। अज्ञात का भय, आनंद के मार्ग की बहुत बड़ी रुकावट होता है; मगर उससे भी बड़ी रुकावट होता है मनुष्य का ख़ुद को उस आनंद के लायक न समझना। कबीर को यह विश्वास नहीं हो रहा था, कि जो हो रहा था वह कोई सपना न होकर एक हक़ीक़त था, और वह उस हक़ीक़त का आनंद लेने के लायक था। उसे चुनना था कि वह उस आनंद के अज्ञात मार्ग पर आगे बढ़े, या फिर उससे घबराकर या संकोच कर भाग खड़ा हो। कबीर के भय और संकोच ने भागना चुना। टीना की पकड़ से ख़ुद को छुड़ाता हुआ वह भाग खड़ा हुआ।
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