RE: Indian Sex Kahani डार्क नाइट
कबीर को कूल का आइडिया अच्छा लगा। अगर हिकमा को कोई क्लू समझ नहीं आया, तो भी कोई बुराई नहीं थी। बिल्कुल निरापद तरीका था। हा़फटाइम में कबीर ने बड़ी मेहनत से सोच-समझकर, एक खूबसूरत सा नोट हिकमा के नाम लिखा, और चुपके से उसके बैग में डाल दिया। लौटते हुए उसे कूल दिखाई दिया। कूल ने मुट्ठी बाँधकर उसे अँगूठा दिखाते हुए पूछा, ‘डन?’
कबीर ने भी उसी तरह अँगूठा दिखाते हुए चहककर कहा, ‘डन।’
कबीर की वह रात बड़ी बेसब्री में गु़जरी।
अगली सुबह बैग तैयार करते हुए, हिकमा को उसमें यह हैंडरिटन नोट मिला –
हिकमा! तुम्हारे बारे में मैं क्या लिखूँ; पहली बात तो मुझे तुम्हारा नाम बहुत पसंद है... हिकमा, विच मीन्स विज़्डम। कितना सुंदर नाम है न! उतना ही सुंदर, जितनी कि तुम ख़ुद हो, जितनी कि तुम्हारी मीठी नीम सी मीठी मुस्कान है। शेक्सपियर ने भले कहा हो, व्हाट इ़ज देयर इन ए नेम, मगर तुम, तुम्हारे नाम की तरह ही हो, सिंपल और वाइ़ज। हिकमा, तुम्हें सादगी पसंद है, और तुम शो-ऑ़फ से दूर रहती हो; तुम्हारी सादगी की गवाही देता है तुम्हारा सादा रूप, और उसे थामा हुआ तुम्हारा हेडस्का़र्फ। द एपिटोम ऑ़फ योर मॉडेस्टी। इस सादगी और मॉडेस्टी को हमेशा बरकरार रखो... ऑल द बेस्ट।
हिकमा को उसकी ये खूबसूरत प्रशंसा बहुत पसंद आई, और उसे यह समझते भी देर न लगी, कि ये प्रशंसा किसने लिखी थी। उसे कबीर के साथ अपने किए हुए व्यवहार पर दुःख भी हुआ। उस दिन वह कबीर को सॉरी कहने के इरादे से स्कूल गई।
कबीर तो पिछली रात से ही कई उम्मीदें पाले हुए था। उन्हीं उम्मीदों में मचलता हुआ, वह उस सुबह स्कूल गया। स्कूल पहुँचते ही उसने देखा कि नोटिस बोर्ड के पास बहुत से छात्र जमा थे। उसे भी उत्सुकता हुई। जैसे ही वह उन छात्रों के करीब पहुँचा, उनमें से कुछ उसे देखकर हँसने लगे। कबीर को उनका हँसना का़फी भद्दा लगा, और उस हँसी का कारण जानने की उत्सुकता भी बढ़ी। नोटिस बोर्ड के पास जाकर देखा, तो वहाँ पास ही दीवार में कबीर के, हिकमा को लिखे नोट की फ़ोटोकॉपी चिपकी हुई थी, और उसके नीचे बड़े-बड़े और टेढ़े-मेढ़े अक्षरों में लिखा हुआ था, बटाटा वड़ा। कबीर को तुरंत समझ आ गया कि ये हरकत कूल की थी। हालाँकि वह सर्दी का वक्त था, मगर कबीर का पारा सातवें आसमान पर पहुँच चुका था। उसने गुस्से से उबलते हुए, कूल को ढूँढ़ना शुरू किया, मगर तभी पहले पीरियड की घंटी बज गई। कबीर गुस्से से तमतमाया क्लासरूम की ओर बढ़ा। क्लासरूम के दरवा़जे पर उसकी ऩजर कूल और हैरी पर पड़ी। कबीर ने कूल को गुस्से से घूरकर देखा; जवाब में कूल ने अपनी बत्तीसी दिखाते हुए उसकी ओर एक बेशर्म मुस्कान फेंकी, जिसने कबीर के गुस्से और भी भड़का दिया। कबीर, झपटकर कूल की बेशर्म बत्तीसी तोड़ डालना चाहता था, मगर तब तक मिसे़ज बिरदी, क्लासरूम में पहुँच चुकी थीं। मिसे़ज बिरदी को देखते ही सभी छात्र अपनी-अपनी जगह पर बैठ गए... कबीर, कूल और हैरी भी।
मिसे़ज बिरदी ने पूरी क्लास पर एक कठोर निगाह डाली, और फिर आँखें तरेरते हुए पूछा, ‘‘हू इ़ज दिस बटाटा वरा?’’
मिसे़ज बिरदी के बटाटा वरा कहते ही सभी छात्र हँसकर कबीर की ओर देखने लगे। कबीर ने एक बार फिर गुस्से से कूल को देखा, और मिसे़ज बिरदी ने उन दोनों को।
‘‘इ़ज दिस सम सॉर्ट ऑ़फ ए प्रैंक?’’ मिसे़ज बिरदी ने एक बार फिर कठोर आवा़ज में पूछा।
कबीर और कूल ने अपनी ऩजरें झुका लीं। कबीर का मन किया कि वह कूल की शिकायत करे; मगर इससे उसके ख़ुद के फँस जाने का डर था। उसने मिसे़ज बिरदी के प्रश्न का कोई जवाब नहीं दिया।
‘‘दिस इ़ज योर फर्स्ट टाइम, सो आई विल लेट यू ऑ़फ, बट आई वार्न द होल क्लास, दैट दिस काइंड ऑ़फ एक्टिविटी शुड नॉट हैपन अगेन।’’ मिसे़ज बिरदी ने उन्हें वार्निंग देकर छोड़ दिया।
मगर कबीर का गुस्सा शांत नहीं हुआ था। पूरे पीरियड वह कूल को गुस्से से घूरता रहा। पहले पीरियड के बाद के ब्रेक में उसने दौड़कर कूल को पकड़ा, और चिल्लाकर पूछा, ‘‘व्हाई डिड यू डू दिस?’’
‘‘व्हाट? आई हैव नॉट डन एनीथिंग।’’ कूल ने अपने कंधे झटके।
‘‘तूने उस नोट की कॉपी करके वॉल पर नहीं लगाया?’’ कबीर का गुस्सा और भी बढ़ चुका था।
‘‘नोट तो तूने हिकमा को लिखा था; वह मुझे कैसे मिलेगा?’’
‘‘तूने उसके बैग से निकाला होगा; उस नोट के बारे में सि़र्फ तुझे ही पता था।’’
‘‘और हिकमा? नोट तो उसके नाम था।’’
‘‘ऐ, हिकमा को बदनाम मत कर।’’ कबीर चीख उठा।
‘‘हूँ, बहुत प्यार है उससे, तो सीधे-सीधे जाकर बोलता क्यों नहीं? यू आर सच ए पुस्सी।’’ कूल ने ताना मारा।
कबीर को कूल का उसे डरपोक कहना चुभ गया। अहम पर लगी चोट सबसे गहरी होती है, और ख़ासतौर पर जब वह अहम के सबसे कम़जोर हिस्से पर लगी हो; कबीर के गुस्से का ठिकाना न रहा। कूल पर कूदते हुए कबीर ने उसकी टाई खींची, और घुमाकर कूल को ज़मीन पर पटकनी दी। ज़मीन पर गिरते ही कूल भी गुस्से से भर उठा। अभी तक तो वह सि़र्फ अपनी बेहूदी शरारतों से ही कबीर को पटकनी दे रहा था, मगर इस बार उसने उठते हुए कबीर की कमर दबोची, और उसे उठाकर ज़मीन पर पटका। कूल कबीर से तगड़ा था, कूल की पटकनी भी ज्यादा तगड़ी थी। कबीर को ज़ोरों की चोट लगी, और कूल उसके ऊपर चढ़ बैठा। कबीर असहाय सा कूल को अपने ऊपर से उठाने की कोशिश करता रहा, और कूल उसे अपने नीचे दबोचे उसकी बाँहें मरोड़ता रहा।
‘‘क्या छोटे बच्चों की तरह लड़ रहे हो; उठो यहाँ से!’’ एक गुस्से से भरी आवा़ज आई। कबीर ने ऩजरें उठाकर देखा, सामने हिकमा खड़ी थी। उसका चेहरा गुस्से से भरा था, जिसके असर में उसके गालों का लाल रंग और भी गहरा लग रहा था। हिकमा की आवा़ज सुनते ही कूल, कबीर को छोड़कर उठ खड़ा हुआ। कबीर उठकर हिकमा से कुछ कहना चाहता था, मगर हिकमा को यूँ गुस्से से उसे घूरता देख उसकी हिम्मत न हुई। कुछ देर यूँ ही कबीर को गुस्से से घूरने के बाद हिकमा पलटकर चली गई। कबीर, बेबस सा उसे जाते हुए देखता रहा।
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