Indian Sex Kahani डार्क नाइट
10-08-2020, 12:28 PM,
#31
RE: Indian Sex Kahani डार्क नाइट
‘‘लीव इट कबीर..!’’ नेहा चीख उठी, ‘‘तुम नहीं समझोगे... तुममें से कोई भी नहीं समझेगा; तुम सब एक जैसे हो; तुम नहीं समझ सकते कि एक औरत किसी मर्द से क्या चाहती है... थोड़ा सा प्यार, थोड़ा सा सम्मान, थोड़ी सी हमदर्दी, थोड़ा सा विश्वास। कबीर, मेरा विश्वास टूटा है; रेप मेरे शरीर का नहीं; मेरी आत्मा का हुआ है; मेरी आत्मा रौंदी गई है, मेरा आत्मविश्वास रौंदा गया है। किसे स़जा दिलाओगे कबीर? अपराध तो मैंने ख़ुद किया है। मैं यकीन नहीं कर पा रही, कि मैंने कभी साहिल जैसे लड़के को चाहा था, उस पर भरोसा किया था; उसके साथ ख़्वाब सजाए थे। सेक्स हमारे बीच पहले भी हुआ था; इसी कमरे में, इसी बिस्तर पर... मगर इस तरह नहीं। मुझे आज उन सारी रातों की यादों से ऩफरत हो रही है, जो मैंने साहिल के साथ बिताई थीं; इस बिस्तर से ऩफरत हो रही है, इस हवा से ऩफरत हो रही है; मुझे ख़ुद से ऩफरत हो रही है कबीर... मैं किस पर भरोसा करूँ; मेरा तो ख़ुद पर भरोसा नहीं रहा... अपनी पसंद पर भरोसा नहीं रहा, अपने चुनाव पर भरोसा नहीं रहा।’’
कबीर, नेहा से कहना चाहता था, कि वह उस पर भरोसा कर सकती है, मगर कह न पाया। कैसे कह सकता था; जब वह नेहा को समझ न सका। उसका दर्द समझ न सका, तो उसका यकीन कैसे हासिल कर सकता था।
‘‘कबीर..यू प्ली़ज गो... लीव मी अलोन।’’ नेहा ने उसी सिसकती आवा़ज से कहा।
‘‘नहीं नेहा...आई एम सॉरी, बट यू नीड मी।’’
‘‘आई डोंट नीड एनीवन, प्ली़ज... प्ली़ज लीव मी अलोन।’’ कहकर नेहा ने अपना आँसुओं में भीगा चेहरा फिर से घुटनों के बीच दबा लिया।
कबीर, नेहा के अपार्टमेंट से लौट आया; मन पर बोझ लिए। पिछली शाम अगर वह क्लब से लौट न आता, तो नेहा के साथ जो हुआ, वह न हुआ होता। अन्जाने में किए अपराध के उस बोझ को भी उठाना होता है, जो अपराध करते वक्त नहीं उठाया होता। नेहा के अपार्टमेंट से लौटते हुए, कबीर के मन पर भी उस अपराध का बोझ नहीं था, जो वह उस वक्त कर रहा था।
कबीर उस दिन कॉलेज नहीं गया; अपने अपार्टमेंट में लौटकर बिस्तर पर लेटा करवटें बदलता रहा। यूँ ही करवटें बदलते हुए उसकी आँख लग गई। नींद में सारी दोपहर बीत गई। शाम को उठकर देखा, सेल़फोन पर राज का मैसेज था, जिसमें सि़र्फ एक पिक्चर फाइल अटैच की हुई थी। कबीर ने अटैच्ड फाइल खोली। वह इवनिंग डेली के फ्रट पेज की कॉपी थी। खबर थी – ‘क्वीन्स कॉलेज स्टूडेंट कमिट्स सुसाइड।’’
चैप्टर 14
प्रिया, कबीर की आँखों में अपना अक्स देख रही थी। उस अक्स को अगर थोड़ा ज़ूम किया जाता तो कबीर की आँखों में उसे अपनी आँखें दिखतीं, और अगर थोड़ा और ज़ूम होता, तो उनमें डूबता कबीर। प्रिया, कबीर की आँखों में अपने लिए प्रेम देख सकती थी। कबीर पहला लड़का नहीं था जिसे प्रिया से प्रेम हुआ था, मगर कबीर पहला लड़का था, जिसने प्रिया को इस कदर इम्प्रेस किया था। आ़िखर ऐसा क्या था कबीर में? कबीर हैंडसम था, मगर प्रिया सि़र्फ लुक्स से इम्प्रेस होने वालों में नहीं थी; कबीर में उसने कुछ और ही देखा था... शायद उसकी सादगी, जिसमें कोई बनावट नहीं थी, या फिर उसका अल्हड़ और रूमानी मि़जाज, या उसकी बच्चों सी मुस्कान, या फिर उसकी आँखों का कौतुक, या उसका कॉन्फिडेंस, उसका सेंस ऑ़फ ह्यूमर, उसकी स्पिरिट, उसका पैशन... या फिर ये सब कुछ ही... या फिर कुछ और ही।
मगर उसने कबीर में कुछ ऐसा देखा था, जो औरों में कम ही देखने को मिलता है। एक स्पिरिट, जो उड़ना चाहती थी, जैसे किसी नए आसमान की तलाश में हो; दुनियादारी की सीमाओं के परे...या फिर बिना किसी तलाश के, जैसे कि उसका मकसद ही सि़र्फ उड़ना हो... एक आसमान से उड़कर दूसरे आसमान में, एक संसार से होकर दूसरे संसार में। क्या ऐसे किसी इंसान का हाथ थामा जा सकता है, जिसे किसी मंज़िल की परवाह न हो? क्या वह इंसान किसी के साथ बँधकर रह सकता है, जिसका मकसद ही उड़ना हो? क्या उसके साथ एक स्थाई सम्बन्ध बनाया जा सकता है? मगर प्रिया के लिए कबीर के आकर्षण को रोक पाना बहुत मुश्किल था। वे एक दिन पहले ही मिले थे, और प्रिया ने उसके साथ रात बिताने का फैसला भी कर लिया था। कैसा होगा कबीर बेड में? कबीर, जिसका हाथ थामते ही प्रिया के बदन में एक शॉकवेव सी उठती थी, उसके बदन से लिपटकर पूरी रात गु़जारने के ख़याल का थ्रिल ही कुछ अलग था।
‘‘योर फ्लैट इ़ज अमे़िजंग! द इंटीरियर, द डेकॉर, द कलर स्कीम, एवरीथिंग इ़ज सो एलिगेंट एंड सो वाइब्रेंट।’’ कबीर ने शम्पैन का फ्लूट सेंटर टेबल पर रखा और काउच पर पीछे की ओर धँसते हुए ड्राइंगरूम में चारों ओर ऩजरें घुमाईं, ‘‘कहना मुश्किल है कौन ज़्यादा खूबसूरत लग रहा है; तुम या तुम्हारा फ्लैट।’’
‘‘डेयर यू से द फ्लैट?’’ प्रिया ने बनावटी गुस्से से कबीर को देखा; हालाँकि उसने पूरा दिन फ्लैट को ठीक-ठाक करने और सजाने में बिताया था। कबीर को लाने का प्लान था, तो फ्लैट को थोड़ा रोमांटिक लुक देना भी ज़रूरी था, इसलिए कबीर का, फ्लैट की सजावट की तारी़फ करना उसे अच्छा ही लगा।
‘‘तुम गुस्से में और भी खूबसूरत लगती हो प्रिया; फाच्र्युनेट्ली, ये फ्लैट तुम्हारी तरह गुस्सा नहीं कर सकता।’’ कबीर ने प्रिया का चेहरा अपने हाथों में लिया, और अपने चेहरे को उसके कुछ और करीब लाते हुए उस पर एक शरारती ऩजर डाली। उसकी हथेलियों की हरारत से प्रिया का बनावटी गुस्सा भी पिघल गया। प्रिया की नजरें उसके होठों से टपकती शरारत पर टिक गईं; उसका ध्यान उसके ख़ुद के घर पर, उसकी ख़ुद की, की हुई सजावट पर नहीं था। जिस माहौल को पैदा करने के लिए दीवारों पर रोमांटिक और इरोटिक पेंटिंग्स, और शोकेस में इरॉटिक आर्ट पीसे़ज सजाए थे, वह माहौल कबीर की एक मुस्कान पैदा कर रही थी। उस वक्त प्रिया को कबीर का चेहरा ड्राइंगरूम में सजे हर आर्ट से कहीं ज़्यादा खूबसूरत लग रहा था। वाकई, इंसान के बनाए आर्ट की नेचर के आर्ट से तुलना नहीं की जा सकती। प्रिया को कबीर की मुस्कान, प्रकृति की ओर से उसे दिया जा रहा सबसे खूबसूरत तोह़फा लग रही थी।
‘‘ये आर्ट पीसे़ज बहुत महँगे होंगे; तुम्हें इनके चोरी होने का डर नहीं लगता?’’ कबीर ने फ्लैट में सजी महँगी कलाकृतियों की ओर इशारा किया।
‘‘मुझे तो अब तुम्हारे चोरी होने का डर लगता है।’’ प्रिया ने कबीर के गले में अपनी बाँहें डालीं।
‘‘प्रिया, यू आर सो रिच।’’ प्रिया के चेहरे से सरककर कबीर के हाथ उसके कन्धों पर टिक गए; जैसे उसके अमीर होने का अहसास उसे प्रिया से कुछ दूरी बनाने को कह रहा हो।
‘‘ऑ़फकोर्स! एस आई हैव यू नाउ।’’ प्रिया ने कबीर के हाथ अपने कन्धों से हटाकर उसकी बाँहें अपनी कमर पर लपेटीं।
‘‘मेरा वह मतलब नहीं है; आई मीन योर फ़ादर इ़ज ए बिल्यनेयर'
‘‘सो व्हाट?’’
‘‘एंड आई बिलांग टू मिडिल क्लास।’’
‘तो?’
‘‘समझदार लोग कहते हैं कि रिलेशनशिप बराबर वालों के बीच होनी चाहिए।’’
‘‘समझदार लोगों की समझदारी उन्हें ही मुबारक; मुझे तुम्हारी नासमझी अच्छी लगती है।’’
‘‘अच्छा, और क्या अच्छा लगता है मेरा?’’
‘‘तुम्हारी ये क्यूट सी नाक।’’ प्रिया ने शरारत से उसकी नाक खींची।
‘और?’ कबीर का चेहरा प्रिया की ओर कुछ और झुक आया। प्रिया की आँखों से छलक कर शरारत, उसकी आँखों में भी भर गई।
‘‘और.. तुम्हारी शरारती आँखें।’’
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