RE: Indian Sex Kahani डार्क नाइट
‘और?’ कबीर ने प्रिया की कमर पर अपनी बाँहें कसते हुए उन्हें हल्के से ट्विस्ट किया। कबीर की बाँहों में उसकी कमर टैंगो डांस के किसी मूव पर थिरक उठी।
‘‘और...तुम्हारे होंठ।’’ अपनी गर्दन को झटकते हुए प्रिया ने अपने होंठ कबीर के होंठों के करीब लाए, ‘‘इडियट, किस मी।’’ उसके होंठों से एक आवा़ज निकलते-निकलते रह गई।
‘और...।’
प्रिया के बेलीबटन के पीछे एक तितली सी नाच उठी। एक बटरफ्लाई, जो कबीर के होठों पर मँडराना चाहती थी, उसके होंठों का रस पीना चाहती थी। प्रिया को एक मीठा दर्द सा महसूस हुआ; एक चुभती हुई हसरत सी उठी, कबीर के होठों का स्पर्श पाने की। वह कबीर के होंठ अपनी नाभि पर महसूस करना चाहती थी, उसे सहलाते हुए, उसे चूमते हुए, उसे सक करते हुए। मगर कबीर के होंठ, जैसे उसके सब्र का इम्तिहान ले रहे थे, और कबीर की यही बात प्रिया को पसंद थी। उसमें एनर्जी थी, पैशन था; मगर बेसब्री नहीं थी।
मगर प्रिया से सब्र न हो सका। उसने अपने होंठ कबीर के होंठों पर रख दिए। कबीर के होंठ गीले थे, मगर प्रिया को ऐसा लगा मानो उसकी क्रिमसन लिपस्टिक जल उठी हो। उसकी गर्मी से कबीर के होंठ भी हरकत में आ गए। उसके होंठों ने हल्के से प्रिया के ऊपरी होंठ को चूमा। उसकी गर्म साँसों में भरी शैम्पेन की महक प्रिया की साँसों में घुल गई। कबीर का किस बहुत सॉफ्ट और जेंटल था, जैसे गुलाब की पंखुड़ी पर ओस की बूँद फिसल रही हो। उसी जेंटलनेस से प्रिया ने कबीर के निचले होंठ को अपने होंठों में दबाया और उसे बहुत हल्के से सक किया। एक ओर प्रिया कबीर से उसकी जेंटलनेस सीख रही थी, दूसरी ओर उसका मन कबीर का भरपूर पैशन देखना चाह रहा था। शी वांटेड हिम टू गो वाइल्ड, टू बाइट हर, टू टीयर हर इनटू पीसे़ज, एंड ईट हर। उसके हाथ कबीर की गर्दन से नीचे सरकते हुए उसकी कमर पर गए, और उसकी कमी़ज को ऊपर खींचकर उसकी पीठ सहलाने लगे। कबीर ने एक बार फिर प्रिया की कमर को ट्विस्ट किया, और अपने हाथ उसकी जाँघों पर जमाते हुए उसे काउच से उठाकर अपनी गोद में बिठा लिया। प्रिया के हाथ कबीर की पीठ पर जकड़ गए। कबीर की पीठ के मसल्स हार्ड और स्ट्रांग थे, मगर प्रिया को उनका टच सिल्की लग रहा था... उसके नाखून उनमें धँस जाना चाहते थे, उन्हें चीर डालना चाहते थे। कबीर के हाथ प्रिया की जाँघों पर सरकते हुए उसकी पैंटी के भीतर पहुँचे। उसकी हथेलियाँ प्रिया के कूल्हों पर कसीं, और उसके नाखून प्रिया की सॉफ्ट स्किन में गड़ गए। प्रिया को हल्का सा दर्द महसूस हुआ, मगर वह दर्द भी मीठा ही था।
कबीर के नाखूनों ने प्रिया के कूल्हों में गड़कर उसके नाखूनों की ख्वाहिश को कुछ और भड़का दिया। प्रिया के नाखून कबीर की पीठ में गड़े, और उसके दाँतों ने कबीर के निचले होंठ को दबाकर उन्हें ज़ोरों से सक किया। कबीर ने प्रिया के ऊपरी होंठ पर अपनी जीभ फेरी, और अपने निचले होंठ को उसके दाँतों की पकड़ से छुड़ाते हुए उसके होंठ को अपने होंठों में दबा लिया। कबीर की जेंटलनेस अब वाइल्डनेस में बदल रही थी। प्रिया को ये अच्छा लग रहा था; यही तो वह चाहती थी। उसने कबीर के निचले होंठ को एक बार फिर अपने दाँतों में दबाकर खींचा, और अपनी जीभ को कबीर के होंठों के बीच से सरकाते हुए उसके मुँह के भीतर फिराया। कबीर के होंठों के बीच उसकी जीभ किसी चॉकलेट सी घुलने लगी।
कबीर के हाथों की हरकत कुछ और बढ़ी, और प्रिया की पैंटी को खींचकर जाँघों पर उतार लाई। कबीर के हाथ एक बार फिर प्रिया के कूल्हों पर जकड़ गए। उन हाथों की गर्मी से एक लपट सी उठी, जो प्रिया के सीने में पहुँचकर उसकी साँसों को सुलगाने लगी। इसी लपट का पीछा करते हुए कबीर के हाथ प्रिया की पीठ पर पहुँचे, और उसकी ड्रेस को अऩिजप करने लगे। प्रिया का जिस्म कबीर की बाँहों में कस रहा था, और उसकी ड्रेस ढीली होकर नीचे सरक रही थी। कबीर के होंठ प्रिया के होंठों से सरक कर गरदन पर से होते हुए क्लीवेज तक आ पहुँचे। पीठ पर कबीर के हाथों की हरकत एक बार फिर महसूस हुई। एक झटके में ब्रा का हुक खुला, और प्रिया ने कबीर के चेहरे को अपनी बाँहों में कसते हुए क्लीवेज पर नीचे सरका लिया। प्रिया की साँसों को सुलगाती लपट कुछ और भड़क गई।
कुछ देर के लिए प्रिया के होश पूरी तरह गुम रहे। जब होश आया तो ख़ुद को काउच पर लेटा हुआ पाया। कबीर के हाथ प्रिया की नाभि पर शैम्पेन उड़ेल रहे थे, और उसके होंठ उस पर किसी भँवरे से मचल रहे थे। प्रिया की नाभि के पीछे एक तितली फिर से थिरक उठी। शैम्पेन की एक धार, नाभि से बहते हुए टाँगों के बीच पहुँची और उसके गीले क्रॉच को कुछ और भी भिगो गयी। शैम्पेन की धार का पीछा करते हुए कबीर के होंठ भी नीचे सरके। प्रिया ने कबीर की गरदन पर अपनी टाँगें लपेटीं, और उसके चेहरे को कसकर थाम लिया। कबीर का जो वाइल्ड पैशन प्रिया देखना चाहती थी, वह उसकी टाँगों के बीच मचल रहा था। कबीर के हाथ अब भी उसकी नाभि पर शैम्पेन उड़ेल रहे थे। ऐसी शैम्पेन कबीर ने पहले कभी नहीं पी थी... ऐसी शैम्पेन प्रिया ने पहले किसी और को नहीं पिलाई थी।
‘‘हेलो! किसके ख्यालों में खोए हो?’’ कबीर का ध्यान प्रिया की मीठी आवा़ज से टूटा। वह एक भूरे रंग की चमकती हुई ट्रे में बोनचाइना का टी सेट ले आई थी।
‘‘रात तुम्हारे साथ बीती है, तो ख्याल किसी और के कैसे हो सकते हैं?’’
‘‘लड़कों की तो फ़ितरत ही ऐसी होती है; बाँहों में कोई और, निगाहों में कोई और।’’ प्रिया ने साइड स्टूल पर ट्रे रखते हुए कबीर पर एक शरारती ऩजर डाली।
‘‘ऐसी फ़ितरत वाले लड़कों के साथ तुम जैसी लड़कियाँ नहीं होतीं।’’
‘‘बहुत कुछ जानते हो लड़कियों के बारे में।’’ चाय के कप तैयार करते हुए प्रिया ने एक बार फिर कबीर को शरारत से देखा।
‘‘तुम भी तो बहुत कुछ जानती हो लड़कों के बारे में।’’ चाय का कप उठाकर होठों से लगाते हुए कबीर ने कहा।
‘‘लड़कों को समझना आसान होता है।’’ प्रिया ने चाय का कप उठाकर बड़ी ऩजाकत से अपने होठों पर लगाया, जैसे चाय का कप न होकर शैम्पेन का फ्लूट हो।
‘‘हम्म..वह कैसे?’’
‘‘वह ऐसे, कि उन्हें बस एक ही ची़ज चाहिए होती है।’’ , प्रिया की आँखों से एक नई शरारत टपककर उसके होठों पर फैल गई, ‘‘बाकी सब तो बस मायाजाल होता है; जाल में लड़की फँसी नहीं, कि जाल उधड़ने लगता है।’’
‘‘और लड़कियों को क्या चाहिए होता है?’’
‘‘लड़कियों को पूरा मायाजाल चाहिए होता है; उधड़ने वाला नहीं, बल्कि उलझाए रखने वाला।’’
‘‘हम्म..इंट्रेस्टिंग... तो लड़कों की फ़ितरत जानते हुए भी लड़कियाँ जाल में उलझे रहना पसंद करती हैं?’’
‘‘फ़ितरत और नीयत में फ़र्क होता है मिस्टर! लड़कियाँ नीयत देखती हैं; और नीयत की गहराई पढ़ने वाला उनका मीटर बड़ा स्ट्रांग होता है।’’ प्रिया ने कबीर की आँखों में आँखें डालीं... जैसे उसकी आँखें कबीर की आँखों में तैरती नीयत की गहराई नाप रही हों।
‘‘हूँ... तो मेरी नीयत के बारे में तुम्हारा मीटर क्या कहता है?’’
‘‘फ़िलहाल तो तुम्हारी नीयत ने तुम्हारी फ़ितरत को सँभाल रखा है।’’ प्रिया ने चाय का कप स्टूल पर रखा, और कबीर की गोद में बैठते हुए उसके गले में अपनी बाँहें डालीं। प्रिया के सिल्क गाउन का निचला हिस्सा उसकी जाँघों से फिसलकर दायीं ओर लटक गया, और उसकी जाँघें कबीर की जाँघों पर फिसलकर कुछ आगे सरक गयीं। कबीर की आँखों की गहराई में तैरती नीयत, प्रिया की आँखों के एनीमेशन पर थिरक उठी। कबीर ने प्रिया की मुलायम जाँघों पर अपनी हथेलियाँ कसते हुए उसे अपने कुछ और करीब खींचा। उसने कहीं पढ़ रखा था कि औरत की मुलायम जाँघों का मखमली स्पर्श सबसे खूबसूरत होता है, मगर उस वक्त उसे लग रहा था कि लिखने वाले ने ग़लत लिखा था... सबसे खूबसूरत तो औरत की आँखों का संसार होता है। जाँघ का मखमल तो वक्त की मार से ढीला पड़ जाता है, मगर आँखों का संसार वक्त के परे बसा होता है। कबीर उस वक्त प्रिया की आँखों के उसी इंद्रजाल में डूबा हुआ था। आँखें, जो नारनिया के मायावी संसार सी लुभाती थीं, जिसमें से होकर न जाने कितने रोचक संसारों की खिड़कियाँ खुलती हैं; आँखें, जो तिलिस्म-ए-होशरुबा सी दिलकश थीं, जिसमें भटककर, उसकी हुकूमत से जंग किए बिना निकलना मुमकिन नहीं होता। क्या हर आशिक यही नहीं चाहता? किसी दिलरुबा के इश्क़ में होश गवाँकर उसके तिलिस्म में भटकना। प्रिया ने ग़लत कहा था, कि लड़कों को तो बस एक ही ची़ज चाहिए होती है; लड़कों को भी पूरा मायाजाल ही चाहिए होता है, मगर जिस तरह क़ुदरत की माया में इंसानी जुस्तजू पर कोई बंदिशें नहीं होतीं, उनकी फ़ितरत भी कोई बंधन स्वीकार करना नहीं चाहती। एक तिलिस्म की हुकूमत से जंग कर, दूसरे तिलिस्म की खिड़कियाँ ढूँढ़ना उनकी आदत बन जाती है।
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