RE: Mastaram Stories ओह माय फ़किंग गॉड
मेरी हंसी निकल गयी. एक कुसुम है जो मुझे धोकर चूत परोस रही है और एक सोमलता है जो पेशाब करने के बाद सीधे मेरे मुँह पर बैठ जाती है. मैं खड़ा हो गया और कुसुम को बाँहों में जकड़ने के बाद उसके होंठो को चूमने लगा. साथ ही साथ उसकी चूत को मसलने भी लगा. कुसुम अब मेरी बाँहों में छटपटाने लगी. मैंने उसको बिस्तर पर लेटाया और उसकी टांगो के बीच बैठ गया. उसकी चूत की फांको को अलग कर जीभ डाल दी.
ज़ोरदार सिसकारी के साथ कुसुम का बदन ऐंठ गया. वह दोनों हाथो से मेरे सर को पकड़ लिया. सोमलता के साथ मैंने काफी ट्रेनिंग की है. मैं कभी उसकी चूत के अन्दर जीभ घुमाता तो कभी भगनासा को चूसता. साथ-साथ मैं उसकी गांड को दोनों हाथों से दबा भी रहा था. कुसुम जी खोलकर चिल्ला रही थी. मुझे डर लग रहा था, कहीं कोई सुन ना ले. लेकिन बाहर जोरो की बारिश के कारण ऐसा सोना शायद नामुमकिन था. जहाँ मैं उसकी चूतड़ को दोनों हाथों से मसल रहा था, कुसुम उत्तेजना के मारे खुद अपनी मम्मों को मसल रही थी. मैंने उसकी चूत को जीभ से चोदना जारी रखा. वह बिन पानी मछली की तरह बिस्तर पर तड़प रही थी. उसका बदन कमान की तरह मुड़ जाता फिर धम्म से बिस्तर पर सीधी हो जाती.
दस मिनट के बाद दोनों टांगो को घुटने से मोड़ने के बाद कुसुम कांपने लगी. मैं समझ गया की समय आ गया है. मैंने एक ऊँगली उसकी गीली चूत में डाल दी. इस बार उसकी सिसकारी लम्बी थी, “इस्स्स्सस..... हाययय.... दैय्या रेरेरे....”
मैं जीभ और ऊँगली दोनों से चोदने लगा. दोहरी चुदाई के आगे कुसुम की चूत जवाब दे गयी और रस का दरिया निकल पड़ा. कुसुम का बदन अब शांत था लेकिन सांसे तेज़ चल रही थी. कुछ देर उसकी चूत मसलने के बाद मैं उठा तो नज़र दरवाजे की तरफ गई. दरवाजे पर लाली को देख मेरी सांसे रुक गयी, मेरा लंड जो सरिये जैसा सख्त था एक ही झटके में पिचक गया. लाली दरवाजे पर खड़े घूर रही थी लेकिन उसके चेहरे के भाव बता रहे थे कि वह काफी गुस्से में है.
मैं बुत बनकर लाली के तमतमाते चेहरे को देखने लगा. कुसुम अभी भी मदहोश होकर अधनंगी लेटी हुई थी. कमरे के अन्दर आकर गुस्से में बोली, “वाह साहब, वाह! ये छिनाल यहाँ चूत खोल लेटी है और आप भूखे कुत्ते के जैसे चाट रहे हो”
मैं तो इतना डर गया था कि यह होश नहीं था कि मैं नंगा खड़ा हूँ. मैं चुपचाप जमीन को देख रहा था.
लाली की आवाज़ सुन कुसुम भी बिस्तर के नीचे आ गयी. वह डर और हैरानी से लाली को देख रही थी.
लाली की नज़र उसकी टपकती चूत पर थी. अचानक लाली दरवाजे की ओर मुड़ी और कहते हुए जाने लगी, “बताती हूँ मैं मालकिन को. इस छिनाल को हवेली से नहीं फेंकवाया तो मेरा भी नाम लाली नहीं”
कुसुम डर से मेरी तरफ देखने लगी. लाली दरवाजा पार कर छत पर जा चुकी थी. पता नहीं मुझमे इतनी हिम्मत कहाँ से आई, मैं नंगे ही दौड़ के गया और लाली को पीछे से पकड़ लिया. “एकबार मेरी बात सुन लो लाली, इसमें कुसुम की कोई गलती नहीं है. पुरी बात तो सुनो”
लाली अपने आपको छुड़ाने के लिए कसमसाने लगी, “मुझे कुछ नहीं सुनना है साहब, मुझे जाने दो”
बाहर ज़ोरदार बारिश हो रही थी. मैं लाली को जबरदस्ती खिंच के कमरे में ले आया, “ठीक है चली जाना, पांच मिनट हमारी बात तो सुन लो” बड़ी मुश्किल से लाली अन्दर आई. मैं पुरी तरह भींग गया था, लाली की भी साड़ी गीली हो चुकी थी. तबतक कुसुम अपनी साड़ी को कमर से लपेट ली और कोने में किसी मुजरिम की तरह खड़ी थी.
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