Maa Sex Kahani माँ का आशिक
10-08-2020, 01:48 PM,
#29
RE: Maa Sex Kahani माँ का आशिक
शहनाज़ को अपने बेटे की बात बिल्कुल सही लगी लेकिन समाज का डर उसके ऊपर पूरी तरह से हावी था, उसके बचपन से लेकर अब तक के संस्कार उसे इसकी इजाज़त नहीं दे रहे थे। इसलिए वो डरते हुए बोली:"

" ना बेटा मुझसे ना हो पाएगा, समझने की कोशिश कर तू।

शादाब ने थोड़ा उदास होते हुए कहा :" क्या अम्मी आप अपने दोस्त के लिए इतना भी नहीं कर सकती है ?

शहनाज़ ने एक बार अपने बेटे की तरफ देखा और बोली:"

" प्लीज़ बेटा जिद मत कर, मुझसे नहीं हो पाएगा, बहुत शर्म आएगी बुर्का निकालते हुए घर से बाहर!

शादाब अपनी अम्मी की मजबूरी समझ गया और बोला:"

" मानता हूं आप खुद नहीं निकाल पायेगी, लेकिन अगर आपका ये दोस्त आपकी मदद करे तो क्या ख्याल हैं आपका ?

शहनाज़ अपने बेटे की बात सुनकर एक बार प्यार से उसकी तरफ देख कर मुस्कुराई और फिर लजा गई, चेहरा शर्म से लाल हो गया और उसने अपनी आंखे बंद करते हुए अपना सिर उसके कंधे पर रख दिया। शादाब समझ गया कि उसकी अम्मी ने उसे एक मूक सहमति दे दी है।

शादाब ने रोड पर एक खाली जगह देखकर साइड में गाड़ी रोक दी और शीशे चढ़ा दिए तो शहनाज़ की हालत खराब होने लगी। शादाब ने अपनी अम्मी के एक हाथ को अपने हाथ में लिया और हल्का हल्का सहलाना शुरू कर दिया तो शहनाज़ ने भी उसके हाथ हल्का सा दबा दिया। शादाब थोड़ा आगे हुआ तो उसकी अम्मी उससे पूरी तरह से चिपक गई। शादाब ने एक हाथ नीचे की तरफ बढ़ाया और उसके बुर्के के नीचे वाले हिस्से को पकड़ लिया तो शहनाज़ की सांसे किसी सुपर फास्ट ट्रेन की तरह दौड़ने लगी और उसने अपने हाथ अपने बेटे की गर्दन में लपेट दिए। शादाब ने बुर्के के सिरे को थोड़ा सा ऊपर की तरफ उठाया तो शहनाज़ का जिस्म सूखे पत्ते की तरफ कांपने लगा, उसे ऐसे लग रहा था कि शादाब सिर्फ उसका बुर्का ही नहीं उतार रहा है बल्कि उसे पूरी नंगी कर रहा है। शहनाज़ का एक पैर अपने आप उसके दूसरे पैर को रगड़ने लगा। शादाब ने बुर्के को सिरे को घुटनो तक उठा दिया और उसकी जांघो पर बहुत धीरे धीरे हाथ फेरते हुए ऊपर की तरफ बढ़ता जा रहा था। एक तो बुर्का उतारने कि शर्म और ऊपर से शादाब के हाथ की उंगलियां जो कि शहनाज़ के जिस्म पर एक सितार की तरह बज रही थी उससे शहनाज पूरी तरह से उत्तेजित हो गई और अपने चेहरे को और आगे करते हुए उसकी गर्दन के बिल्कुल पास ले गई।

शादाब को अपनी गर्दन पर जैसे ही अपनी अम्मी की गरम गरम सांसे महसूस हुई तो उसने जोश में आकर बुर्के को थोड़ा और ऊपर उठाया जिससे अब बुर्का उसके पेट से उपर आते हुए उसके सीने की गोलाईयों तक अा गया। शहनाज़ को जैसे ही अपने बेटे के हाथ अपनी चूचियों पर महसूस हुए तो उसकी सांसे और तेज हो गई । शहनाज़ ने अपने हाथों की उंगलियों का दबाव अपने बेटे की कमर पर थोड़ा सा और बढ़ा दिया। बुर्का शहनाज़ की शानदार, शानदार चूचियों पर आकर हल्का सा फस सा गया तो शादाब ने अपनी हथेलियों का दबाव बढ़ाते हुए बुर्के को जोर से पकड़ा जिससे एक पल के लिए ही सही लेकिन शहनाज की चूचियों उसके बेटे की हथेलियों में समा गई जिसे महसूस करके शहनाज का रोम रोम कांप उठा । शादाब ने जैसे ही उपर की तरफ बुर्के को उठाते थोड़ा दबाव दिया तो शहनाज़ की चुचिया दब गई और उसके मुंह से एक हल्की मस्ती भरी सिसकी निकल पड़ी और उसके हाथ की उंगलिया शादाब की कमर में गड़ गई।
शादाब से अब बर्दाश्त नहीं हुआ और उसने एक झटके के साथ बुर्के को उतार दिया तो शर्म और डर के मारे शहनाज़ के मुंह से एक आह निकल पड़ी

"हाय अल्लाह, उफ्फ ये क्या गुनाह हो गया मुझसे !!

और शहनाज़ के अमर बेल की तरह शादाब से लिपटती चली गई। शादाब ने भी अपनी अम्मी को अपनी बांहों में कस लिया और उसकी कमर थपथपाने लगा मानो उसे तसल्ली दे रहा हो। आज एक पर्दे की बहुत बड़ी दीवार दोनो मा बेटे के बीच गिर चुकी थी। शहनाज़ की आंखे अभी तक बंद थी और उसकी हिम्मत नहीं हो रही थी कि अपनी आंखे खोल पाए। उसे ऐसा लग रहा मानो किसी ने भरे बाजार उसके कपड़े उतार दिए हो और शर्म से सिमटी हुई अपने बेटे की बांहों में थी। शादाब समझ रहा था कि ये उसकी अम्मी के लिए कितनी बड़ी बात है इसलिए उसने कोई जल्दबाजी नहीं करी और अपनी अम्मी को गले लगाए रखा। धीरे धीरे शहनाज़ की सांसे नॉर्मल होने लगी और जब उसकी सांसे एकदम सामान्य हो गई तो शादाब ने उसका माथा चूम लिया और बोला:"

" मल्लिका ए हुस्न जरा एक अपनी नाजुक प्यारी सी आंखो को खोल दीजिए !

शहनाज़ ने अपने दिल पर पत्थर रखते हुए बड़ी मुश्किल से अपनी आंखे खोली और अपने बेटे से मिला दी और अगले ही पल शर्म के मारे फिर से उसकी पलके झुक गई और दोनो आंखे बंद हो गई। शादाब ने उसका हौसला बढ़ाने के लिए फिर से उसके हाथ को सहलाना शुरू कर दिया जिसका नतीजा ये हुआ कि शहनाज़ ने अपनी आंखे खोल दी। शहनाज़ इस बार गजब का आत्म विश्वास दिखा रही थी और लगातार अपनी आंखे खोले रही तो शादाब ने आगे बढ़कर उसका माथा चूम लिया और बोला:

" अगर इजाज़त हो तो शहर की तरफ चले ?

शहनाज ने अपने बेटे को हल्की सी स्माइल देते हुए आगे बढ़ने का इशारा किया और शादाब ने गाड़ी आगे बढ़ा दी। थोड़ी देर बाद ही वो शहर पहुंच चुके थे इसलिए शादाब ने गाड़ी सबसे पहले एक शॉपिंग मॉल के सामने रोक दी और बाहर निकल आया। शहनाज़ की हिम्मत नहीं पड़ रही थी कि वो बिना बुर्के के बाहर निकले इसलिए शादाब ने अपनी अम्मी का हाथ पकड़ कर उसे बाहर खींच लिया। शहनाज़ बाहर निकलते ही बुरी तरह से शर्मा गई और उसकी दोनो आंखे फिर से एक बार बंद हो गई। शहनाज़ का हुस्न एक बार फिर से पूरी तरह से खिल उठा और अपनी हालत के बारे में सोचते हुए मंद मंद मुस्कुराने लगी।

शादाब एक बार फिर से अपनी अम्मी की हालत देख कर मुस्कुरा उठा। आज शहनाज़ का अंग अंग निखर कर चमक रहा हैं और उसका हुस्नों शबाब पूरे उफान पर था। शादाब ने एक योजना बनाते अपनी अम्मी का हाथ पकड़ लिया और आगे की तरफ बढ़ गया तो शहनाज़ की आंखे डर के मारे अपने आप खुल गई। सब लोग आंखे खोल फाड़ फाड़ कर उसकी तरफ देख रहे थे, ये सब देख कर जहां एक और उसे शर्म महसूस हुई वहीं शहनाज़ थोड़ा खुश हुई कि आज भी उसके हुस्न और बलखाते जिस्म में वो जादू हैं कि लोगो की निगाहें उस पर ठहर रही हैं। उसने थोड़ा सा मजा लेने के लिए अपने बेटे को छेड़ा और बोली:"

" राजा ये सब लोग मुझे ऐसे घूर घूर कर क्यों देख रहे हैं ?

शादाब अपनी अम्मी का हाथ जो कि उसके हाथ में था उसे हल्का दबाते हुए बोला:"

" अम्मी क्योंकि आपसे खूबसूरत इन्हे यहां कोई लग नहीं रही है इसलिए आपको देख कर अपनी आंखे ठंडी कर रहे है।

शहनाज़ के होंठ हल्की सी मुस्कान के साथ खुले और वो अपने बेटे से बोली:"

" लेकिन बेटा यहां तो एक से बढ़कर एक जवान लड़कियां हैं, मैं तो इनके सामने कुछ भी नहीं हु

शादाब अपनी अम्मी का हाथ सहलाते हुए उसकी आंखो में देखते हुए बोला:"

" अम्मी सिर्फ उम्र कम होने से कोई जवान नहीं होता, आपकी दिलफरेब खूबसूरती और कसे हुए शरीर के आगे ये आज कल की तितलियां पनाह मांगती है,और सबसे बड़ी बात अम्मी कच्चे फल की जगह लोग पके हुए मीठे फल खाने से ज्यादा खुश होते हैं !

इतना कहकर उसने एक बार बड़ी हसरत भरी निगाहों से अपनी अम्मी की गोल गोल चूचियो की तरफ देखा तो उसकी नजरो का आभास होते ही शहनाज़ शर्म के मारे फिर से लाल ही गई और अपने बेटे के हाथ में हल्का सा नाखून चुभाते हुए बोली:

" बेशर्म कहीं का, कुछ भी बोल देता है। तुझे घर जाकर ठीक करती हूं।

शादाब उसे छेड़ते हुए:"घर जाकर क्या आप मेरे साथ मसाला कुटोगी ?

शहनाज़ ने उसे एक बार घूर कर देखा और आगे बढ़ गई। वो दोनो एक साथ मॉल के अंदर घुस गए तो एस्केलेटर सीढ़ियां देख कर शहनाज़ के चेहरे पर हैरानी फैल गई और बोली:" बेटे ये सब क्या हैं ये कैसी सीढ़ियां है?

शादाब जानता था कि उसकी अम्मी ने ये सब पहली बार देखा हैं तो उसने समझाया:

" अम्मी ये अब ऑटोमैटिक सीढ़ियां होती हैं जो अपने आप उपर नीचे जाती रहती हैं।

इतना कहकर शादाब शहनाज़ का हाथ पकडकर जैसे ही एस्केलेटर पर पैर रखने लगा तो शहनाज़ डर गई और उसने अपना पैर वापिस खींच लिया। शादाब ये सब देखकर मुस्कुरा उठा और बोला:

" अम्मी आप डरों मत, जैसे ही मैं अपना पैर रखू, आप भी एकदम से अपना पैर रख देना।

शहनाज़ ने अपने बेटे की बात मानते हुए शादाब के पैर के साथ ही पैर रख दिया और उसके साथ ही एस्केलेटर पर सवार हो गई। लेकिन पैर रखते ही उसे एक झटका लगा और वो डर के मारे अपने बेटे से लिपट गई और देखने लगी कि एस्केलेटर में सीढ़ियां बन गई और दोनो उपर जाने लगे तो शादाब ने अपनी अम्मी को समझाया कि उसके साथ ही पैर हटाए तो दोनो ने एक एक साथ पैर हटा दिया तो एक हल्का सा झटका शहनाज़ को लगा लेकिन उसके बेटे ने उसका हाथ पकड़ रखा था इसलिए कोई दिक्कत नहीं अाई। शादाब और शहनाज़ उपर पहुंच गए थे लेकिन शादाब अपनी अम्मी के दिल से पूरी तरह से एस्केलेटर का डर निकालना चाहता था इसलिए उसे समझाते हुए वो एक बार फिर नीचे की तरफ जा रहे एस्केलेटर पर सवार हो हुए। इस बार पहले के मुकाबले शहनाज़ का आत्म विश्वास गजब का था और जल्दी ही वो दोनो नीचे पहुंच गए।

शादाब ने इस बार अपनी अम्मी को खुद अकेले ही जाने के लिए कहा तो उसने मना कर दिया तो शादाब उसके साथ चल पड़ा लेकिन उसने इस बार शहनाज़ का हाथ नहीं पकड़ा और वो अपने आप ही आराम से एस्केलेटर पर चढ़ गई। शहनाज मुस्कराई और अपने बेटे की तरफ देखा तो शादाब ने भी मुस्करा कर अपनी अम्मी का साथ दिया क्योंकि वो जानता था कि अब शहनाज़ का डर निकल चुका हैं। दूसरी तरफ शहनाज़ ऐसा महसूस कर रही थी मानो उसने बहुत बड़ी जंग जीत ली है। जल्दी ही वो एक कॉटन की दुकान में घुस गए और दादा दादी के लिए कपडे पसंद करने लगें। शहनाज़ ने अपने सास ससुर के लिए बहुत ही अच्छे डिजाइन के कॉटन के दो दो जोड़ी कपड़े लिए और कुछ चादर भी ले ली क्योंकि आगे गर्मियां आने वाली थी।

उसके बस शादाब अपनी अम्मी को एक लेडीज शॉप के सामने ले गया जहां बाहर ही एक से बढ़कर एक बेहतरीन ड्रेस लगी हुई जिन्हे देख कर शहनाज़ खुश हुई और बोली:"

" बेटा ड्रेस तो अच्छी हैं, लेकिन मेरे पास तो पहले से ही काफी कपडे हैं इसलिए रहने देते हैं।

शादाब :" अम्मी आपको ड्रेस मुझ पर उधार हैं क्योंकि उस दिन मसाला कूटते हुए आपका सूट फट गया था।
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RE: Maa Sex Kahani माँ का आशिक - by desiaks - 10-08-2020, 01:48 PM

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