RE: Hindi Antarvasna - Romance आशा (सामाजिक उपन्यास)
आशा को उसकी हड़बड़ाहट बहुत भली लगी । वह मन ही मन मुस्कराई और फिर एक राईटर के बखिये उधेड़ने लगी ।
लगभग पौने पांच बजे युवक सिन्हा साहब के केबिन से निकला ।
“काम बना ?” - आशा ने मुस्कराकर उससे पूछा ।
“काम !” - युवक एक बार फिर हड़बड़ाया ।
“तुम इतने बौखलाये क्यों रहते हो ? नये नये इन्शयोरेंस एजेन्ट बने हो क्या ?”
“जी हां, जी हां ।”
“क्या जी हां ?”
“मैं नया नया ही इन्श्योरेस एजेन्ट बना हूं ।”
“मैंने पूछा था काम बना ? सिन्हा साहब ने बीमा कर बाया ?”
“नहीं ।”
“छुट्टी ?”
“हां ।”
“ओह !” - आशा सहानुभूति पूर्ण स्वर से बोली ।
“नैवर माइन्ड, मैडम ।” - युवक उत्साहपूर्ण स्वर से बोला - “यहां से मैंने एक जगह और जाना है । वहां काम बनने की ज्यादा सम्भावना है । अगर वहां भी काम नहीं बना तो मैं समझूंगा, मेरी तकदीर ही खराब है और अगर वहां काम बन गया तो इस श्रेय मैं आपको दूंगा ।”
“मुझे !” - आशा हैरानी से बोली ।
“जी हां, मैं बड़ा बहमी आदमी हूं । उस दफ्तर में प्रेवश करते ही एक काना आदमी मेरे माथे लगा था । मुझे तभी मालूम हो गया था कि यहां काम बनने वाला नहीं है । लेकिन दूसरी जगह तो मैं आप की मोहिनी सूरत देखकर जा रहा हूं, काम जरूर बनेगा ।”
“और अगर बाहर निकलते ही फिर काना दिखाई दे गया !”
“जब तक मैं दूसरीं पार्टी के पास पहुंच नहीं जाऊंगा, मेरे नेत्रों के सामने आपके सिवाय कोई दूसरी सूरत आयेगी ही नहीं ।”
“इसी चक्कर में कहीं बस के नीचे मत आ जाना ।”
“ऐसा कुछ नहीं होगा । ऐवरीथिंग विल भी बी इन माई फेवर नाउ ।”
“बड़े आशावादी हो ?”
“बड़ा बहमी हूं ।”
“ओके । यहां से निकलती बार हमारे एकाउन्टेन्ट के माथे मत लग जाना ।”
“क्यों ?”
“वह काना है ।” - आशा रहस्यपूर्ण स्वर से बोली ।
“वैसे तो अब मेरी तकदीर पर किसी काने का असर होने वाला नहीं है लेकिन फिर भी मैं ख्याल रखूंगा ।”
“ओके ।”- आशा मुस्कराती हुई बोली - “आई विश यू गुड लक ।”
“थैंक्यू ।” - युवक सिर नवा कर बोला - “थैंक्यू वैरी मच अगर मेरा काम बन गया तो मैं आप को फोन करूंगा ।”
“लेकिन अब तो दफ्तर बन्द होने वाला है ।”
“मैं कल फोन करूंगा ।”
“अच्छा ।”
“ओके ।” - युवक द्वार की ओर खिसका और फिर घूम कर बोला - “टैलीफोन करूंगा मैं ? आप का नाम पूछना तो भूल ही गया मैं ।”
“आशा ।” - आशा ने बताया ।
“आशा” - युवक ने दोहराया - “अब तो मुझे और भी आशा हो गई है कि मेरा काम जरूर बनेगा । मेरा नाम अशोक है, आशा जी । एन्ड आई एम वैरी वैरी प्लीज्ड टु मीट विद यू । वट ए नेम । आशा ।”
और वह लम्बे डग भरता हुआ केबिन से बाहर निकल गया ।
आशा को अशोक बहुत भला लगा ।
पांच बजे आफिस खाली हो गया ।
आशा ने भी टाइपराइटर पर कवर चढाया स्टेशनरी सम्भाली और प्रतीक्षा करने लगी ।
उसी क्षण टैलीफोन का बजर बजा ।
“यस सर ।” - आशा ने रिसीवर उठाकर कान से लगाते हुए कहा ।
“आशा मुझे अभी पन्द्रह मिनट और लगेंगे, प्लीज ।” - सिन्हा का स्वर सुनाई दिया ।
“ओ के ।”
“प्लीज डोंट माइंड ।”
“कोई बात नहीं सर । अभी बहुत समय है ।”
“अब तो सर सर कहना बन्द करो बाबा । अब तो दफतर की छुट्टी हो गई ।”
“ओके सिन्हा साहब ।”
सम्बन्ध विच्छेद हो गया ।
आशा ने भी रिसीवर को क्रेडिल पर रख दिया ।
उसने घड़ी पर दृष्टि पात किया । सवा पांच बजे थे ।
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