RE: Hindi Antarvasna - Romance आशा (सामाजिक उपन्यास)
“आशा” - सिन्हा व्यग्र स्वर से बोला - “किसी दूसरे की जिन्दगी से अपनी जिन्दगी की रूपरेखा तैयार कर लेना कोई भारी समझदारी की बात नहीं है । हर आदमी अपनी जिन्दगी जीता है । हर आदमी का जिन्दगी जीने का अपना ढंग होता है । सम्भव है तुम्हारी सहेली की जो हालत हुई है उसमें उसकी अपनी ही गलतियों का हाथ हो । और फिर यह तों कतई जरूरी नहीं है कि जो जैसी हालत उसकी हुई है, वैसी तुम्हारी भी होगी ।”
“क्या गारन्टी है ?”
“मैं गारन्टी हूं ।” - सिन्हा आवेशपूर्ण स्वर से बोला - “तुम्हारी सहेली बम्बई महानगरी के कुछ गलत प्रकार के लोगों के चंगुल में फंस गई होगी । इसलिये धोखा खा गई लेकिन मैं खुद तुम्हारी किसी भी प्रकार की सुरक्षा की गारन्टी करता हूं ।”
और स्वयं आप से मेरी सुरक्षा की गारन्टी कौन करेगा - आशा ने मन ही मन सोचा ।
“बहस छोड़िये, सिन्हा साहब ।” - प्रत्यक्ष में वह बोली - “आपने मेरे भविष्य में इतनी दिलचस्पी ली, इसके लिये धन्यवाद लेकिन मैं अपनी वर्तमान स्थिति से शत प्रतिशत सन्तुष्ट हूं । मुझे हीरोइन नहीं बनना है ।”
सिन्हा फिर नहीं बोला । वह चुपचाप गाड़ी चलाता रहा ।
जिस समय वे लोग सिनेमा हाल के भीतर अपने दो सीटों वाले बाक्स में पहुंचे उस समय स्क्रीन पर ‘अरेबस्क’ के क्रैडिट्स दिखाये जा रहे थे ।
दोनों सीटों पर जा बैठे ।
फिल्म आरम्भ हुई ।
फिल्म आरम्भ होने के पांच मिनट बाद ही सिन्हा ने वे हरकतें करनी आरम्भ कर दी जिनकी आशा को आशंका थी ।
हाल के अन्धेरे और बाक्स को तनहाई में सिन्हा का दायां हाथ सांप की तरह फनफनाता हुआ आगे बढा और सीट के पीछे से होता हुआ आशा के नंगे कन्धे पर आ पड़ा ।
आशा के शरीर में झुरझुरी दौड़ गई ।
कुछ क्षण सिन्हा की उंगलियां आशा के कन्धे से लेकर कोहनी तक के भाग पर फिरती रहीं फिर आशा के कन्धे पर उनकी पकड़ मजबूत हो गई । सिन्हा ने आशा को अपनी ओर खींचा ।
आशा अपने स्थान से टस से मस नहीं हुई ।
सिन्हा ने दुबारा प्रयत्न किया ।
आशा ने बलपूर्वक सिन्हा का हाथ अपने कन्धे पर से हटा दिया लेकिन उसने सिन्हा का हाथ छोड़ा नहीं । अपने बायें हाथ से वह सिन्हा के बायें हाथ को दोनों सीटों के बीच की पार्टीशन पर थामे रही ।
कुछ देर सिन्हा शान्त बैठा रहा फिर उसने धीरे से अपना हाथ आशा के हाथ में से खींच लिया ।
आशा कुछ क्षण बड़ी सतर्कता से सिन्हा की अगली हरकत की प्रतीक्षा करती रही लेकिन जब कुछ नहीं हुआ तो वह फिल्म देखने में लीन हो गई ।
न जाने कब सिन्हा का दायां हाथ फिर उसकी गर्दन से लिपटता हुआ उसके दायें कन्धे पर आ पड़ा ।
आशा के शरीर में कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई ।
एकाएक सिन्हा का हाथ कन्धे से नीचे सरक आया और आशा के उन्नत वक्ष पर आ पड़ा ।
आशा के शरीर में सिहरन सी दौड़ गई । उसने एक झटके से सिन्हा का हाथ अपने वक्ष से हटाना चाहा लेकिन इस बार सिन्हा की पकड़ बहुत मजबूत थी । आशा ने बड़ी बेचैनी से अपनी सीट में पहलू बदला और अपने दोनों हाथों से बलपूर्वक सिन्हा का हाथ अपने वक्ष से हटा दिया ।
लेकिन तभी सिन्हा का दूसरा हाथ भी बढा और आशा के पेट से लिपट गया । सिन्हा का दायां हाथ आशा की पकड़ से निकल कर कन्धे से नीचे फिसला और गर्दन से लिपट गया । सिन्हा ने बलपूर्वक आशा को अपनी ओर खींचा और उसके तमतमाये हुये होठ आशा के गालों से छू गये ।
“सिन्हा साहब, प्लीज ।” - आशा सिन्हा की पकड़ से छूटने के लिये तड़पड़ाती हुई, याचनापूर्ण स्वर से बोली ।
“ओह, कम आन ।” - सिन्हा थरथराते स्वर से बोला । उसका दायां हाथ आशा के पेट से होता हुआ फिर वक्ष पर आ पड़ा था ।
आशा ने एक बार अपने शरीर का पूरा जोर लगाया और सिन्हा के बन्धन से मुक्त हो गई । वह एकदम अपनी सीट से उठ खड़ी हुई और बाक्स के द्वार की ओर बढी ।
“ओके, ओके ।” - सिन्हा हांफता हुआ बोला और उसने अपना शरीर सीट पर ढीला छोड़ दिया ।
आशा अनिश्चित सी खड़ी रही । फिर उसने अपनी साड़ी ठीक की और वापिस सीट पर आ बैठी ।
उसने एक सतर्क दृष्टि सिन्हा पर डाली ।
सिन्हा निढाल सा बाक्स के फर्श पर बहुत दूर तक टांगें फैलाये अधलेटी स्थिति में अपनी सीट पर पड़ा था । उसका चेहरा उतेजना से तमतमा रहा था और आंखें बाहर को उबली पड़ रही थीं । उसके माथे और अधगंजे सिर पर पसीने की बून्दें चमक रही थीं । उसकी मुंह खुला हुआ था और उसके तेजी से सांस लेने की आवाज सारे बाक्स में गूंज रही थी ।
स्क्रीन पर चलती हुई फिल्म से वह एकदम बेखबर था ।
आशा ने अपनी दृष्टि घुमा ली और स्क्रीन पर देखने लगी । स्क्रीन पर उसे क्रियाशील चेहरे ही दिखाई दिये । फिल्म उसे खाक भी समझ नहीं आई ।
न जाने कितना समय यूं ही गुजर गया ।
सिन्हा अब कुर्सी पर सीधा होकर बैठा हुआ था । उसके चेहरे पर हताशा के भाव थे और नेत्रों से बेचैनी टपक रही थी । केवल एक क्षण के लिये आशा के नेत्र सिन्हा के नेत्रों से मिले और फिर उसने फौरन अपने नेत्र स्क्रीन की ओर घुमा दिये ।
अगली बार सिन्हा का हाथ आशा की जांघ पर प्रकट हुआ ।
आशा एक दम चिहुंक पड़ी और उसका हाथ अपनी जांघ पर पड़े सिन्हा के हाथ की ओर बढा ।
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