Hindi Antarvasna - आशा (सामाजिक उपन्यास)
10-12-2020, 01:24 PM,
#19
RE: Hindi Antarvasna - Romance आशा (सामाजिक उपन्यास)
सरला की आदत थी कि वह चीजों की कीमत हमेशा नये पैसों में बताती थी । उसका कथन था कि मोटी मोटी रकमों का नाम लेने में भी बड़ा मजा आता है और उनके मनोवैज्ञानिक प्रभाव की वजह से मन में बड़ी ऊंचे दर्जे की इच्छायें पैदा होती हैं । एक सौ बीस रुपये कहने के स्थान पर वह बारह हजार कहना अधिक पसन्द करती थी ।
सरला पर्स ले आई ।
पर्स वाकई खूबसूरत था ।
“बहुत बढिया है ।” - आशा बोली ।
“और आज इससे मैच करती हुई साड़ी और ब्लाउज... आशा, तू बड़ी चालाक है ।”
“अब क्या हुआ ?”
“पता नहीं कहां कहां की बातें करने लगती है तू । बात तो सिन्हा साहब की हो रही थी । बातचीत में से उनका तो जिक्र ही गायब कर दिया तूने ।”
“और क्या कहना बाकी रह गया है ।”
“अच्छा एक बात बता ।”
“क्या ?”
“सिनेमा के बाक्स में तुमने सिन्हा साहब का विरोध क्यों किया ? थोड़ी बहुत चूमा चाटी से क्या तेरी पालिश उतर जाती ?”
“लेकिन जरूरत क्या है ?”
“वह मर्द है । तुमसे मुहब्बत करता है । वह तुम्हें बाक्स में सिनेमा दिखाने लाया था, बाद में तुम्हें नटराज में डिनर के लिये ले जाने वाला था, बदले में उसने अगर कोई छोटी मोटी हरकत कर भी दी तो कौन सी आफत आ गई ?”
“आफत आने में क्या देर लगती है ? और फिर मैंने तो उसे नहीं कहा कि वह मुझे सिनेमा ले जाये या नटराज में डिनर के लिये ले जाये । वही जबरदस्ती मेरे पीछे पड़ा हुआ था कि मैं उसका निमन्त्रण स्वीकार कर लूं । उसे तो चाहिये था कि पहली ही बार मेरे इनकार को लाल सिग्नल समझकर मेरा ख्याल छोड़ देता और किसी दूसरी पटरी पर ट्राई मारता ।”
“लेकिन वह तुमसे मुहब्बत करता है ।”
“केवल जुबान से कहता है । मुझसे मुहब्बत-वुहब्बत कुछ नहीं करता वह । सिन्हा जैसे आदमी तो एक सांस में बीस भिन्न औरतों से मुहब्बत का वायदा कर सकते हैं और फिर मैं कोई ताजी-ताजी जवान हुई छोकरी तो नहीं हूं कि मुहब्बत का नाम भर सुन लेने से मेरा दिल धड़कने लगे । मैंने भी बहुत दुनिया देखी है । मेरे ख्याल से मुझमें मर्द की जुबान से निकले शब्दों की हकीकत परखने की काबलियत है ।”
सरला चुप रही ।
“मुझसे बोला मैं तुम्हें फिल्म में हीरोइन बनवा दूंगा ।” - आशा बोली - “मैंने कहा था मुझे हीरोइन नहीं बनना है क्योंकि फिल्म उद्योग में हीरोइन बनने की इच्छुक लड़कियों की इज्जत की सुरक्षा की कोई गारन्टी नहीं है । बोला तुम्हारी सुरक्षा की मैं गारन्टी करता हूं । तुम खुद सोचो ऐसा आदमी मेरी क्या सुरक्षा करेगा ? जो खुद पहला मौका हाथ में आते ही मुझ पर झपट पड़ा हो ।”
“उसने तुमसे कहा था कि वह तुम्हें हीरोइन बनवा देगा ।” - सरला नेत्र फैलाकर बोली ।
“हां ।” - आशा ने लापरवाही से उत्तर दिया - “आइडिया उसके देवकुमार नाम के एक दोस्त ने दिया था और मुझे स्टार बना देने का वादा सिन्हा ने किया था ।”
“और तूने इनकार कर दिया ?”
“हां ।”
“एक दम मूर्ख है, गधी है तू ।” - सरला भड़ककर बोली - “मरी खसमां खानी, सिन्हा सचमुच तुझे हीरोइन बना सकता है । वह बहुत बड़ा डिस्ट्रीब्यूटर है । कोई फिल्म निर्माता सिन्हा की बात टाल नहीं सकता ।”
“होगा । मैं हीरोइन बनने के साथ साथ सिन्हा की रखैल नहीं बनना चाहती ।”
“हर्ज क्या है, उल्लू । शुरू शुरू में सिन्हा के सहयोग का फायदा उठा लो । बाद में जब फिल्म इन्डस्ट्री में जम जाओ तो उसे चूल्हे में झोंकना । हर कोई ऐसा ही करता है ।”
“हर कोई करता होगा । मुझे यह सब पसन्द नहीं ।”
“आशा, जिस चीज की हिफाजत के लिये तू इतना अच्छा कैरियर ठुकरा रही है, उसके लिये तुझे कोई सरकारी इनाम नहीं मिलने वाले है । समझी ।”
“बकवास मत कर ।” - आशा नाराजगी भरे स्वर से बोली और चाय का खाली कप मेज पर पटककर उठ खड़ी हुई ।
“हे भगवान” - सरला ऊपर की ओर हाथ उठाकर बोली - “इस मूर्ख लड़की को अक्ल दे ।”
आशा ने अपना पर्स उठाया और कमरे से बाहर निकल गई ।

Chapter 2
बस से उतरकर वह फेमस सिने बिल्डिंग की ओर बढी ।
“नमस्ते जी ।” - अमर का परिचित स्वर उसके कानों में पड़ा ।
आशा ने अमर की ओर देखा, मुस्कराई और धीमे स्वर से बोली - “नमस्ते !”
“अगर मैं” - अमर बड़े ही शिष्ट स्वर से बोला - “यहां से लेकर के सी सिन्हा एन्ड सन्स के दफ्तर का फासला आपके साथ तय करूं तो आपको कोई ऐतराज तो नहीं होगा ।”
“मुझे भला क्यों ऐतराज होने लगा । आखिर पहुंचना तो तुमने भी वहीं है ।”
“थैंक्यू ।”
आशा उसकी ओर देखकर फिर मुस्कराई और चुपचाप फुटपाथ पर चलती रही ।
“आज आप जल्दी आ गईं ।” - अमर बोला ।
“हां । आज बस जल्दी मिल गई थी ।”
“फिल्म कैसी थी ?”
“मालूम नहीं ।”
“क्या मतलब है फिल्म देखने गई नहीं आप ?”
“फिल्म देखने तो मैं गई थी लेकिन फिल्म की घटनाओं से ज्यादा जबरदस्त घटनायें हमारे बाक्स में ही घटने लगी थीं इसलिये मैं फिल्म देख नहीं पाई ।”
अमर कुछ क्षण चुप रहा और फिर उलझनपूर्ण स्वर से बोला - “आपकी बात ठीक से मेरी समझ में नहीं आई ।”
“बड़ी अच्छी बात है ।”
“क्या अच्छी बात है ?”
“कि मेरी बात ठीक से तुम्हारी समझ में नहीं आई ।”
“अब तो आपने मुझे और भी उलझन में डाल दिया ।”
“कल तुमने अपनी टिकट क्यों फाड़ दी थी ?” - आशा ने पूछा ।
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