RE: Hindi Antarvasna - Romance आशा (सामाजिक उपन्यास)
उसी क्षण लोगों के झुड में से अर्चना प्रकट हुई और बोलने वाले ने अपने कथन में थोड़ा सा संशोधन कर दिया - “बस एक अपनी अर्चना ही है जो इसके मुकाबले की चीज मालूम होती है, बाकी तो सब घास कूड़ा है ।”
“आओ, आओ, बेगम ।” - जेपी अर्चना माथुर को देखकर ऊंचे स्वर से बोला - “तुम्हारी पार्टी में आये है। थोड़ी देर हमारे पास भी तो बैठो ।”
“तुम्हारे ही पास बैठने के लिये आई हूं, सेठ ।” - अर्चना माथुर मादक स्वर से बोली ।
वह जेपी के समीप पहुंची । उसने जेपी के सिर को दोनों हाथों में थाम लिया और उसकी गंजी खोपड़ी को घूरती हुई बोली - “मैं तुम्हारी खोपड़ी की रंगत देखकर बता सकती हूं कि तुम छ: पैग पी चुके हो ।”
“सात ।” - जेपी बोला ।
“एक पैग की गलती कोई गलती नहीं है ।” - अर्चना माथुर बोली । फिर वह नीचे झुकी और उसने जेपी की गंजी खोपड़ी पर एक चुम्बन अंकित कर दिया । जेपी की खोपड़ी पर अर्चना माथुर के होंठों के आकार के लिपस्टिक के दो अर्धवृत्त उभर आये । जेपी ने उसकी कमर में हाथ डाला और उसे अपनी गोद में खींच लिया ।
अर्चना माथुर लजाने का अभिनय करती हुई जेपी से अलग हो गई और उसकी बगल में सोफे पर बैठ गई ।
“मैडम ।” - देवकुमार आशा से कह रहा था - “मैं नहीं कहता था कि आप सिन्हा के कबूतर के दड़बे जैसे आफिस में अधिक देर नहीं टिक पायेंगी । आप ने तो दुनिया से निकलते ही हंगामा बरपा दिया है । बम्बई की कम से कम एक हजार खूब सूरत लड़कियों से दुश्मनी मोल ले ली है आपने । लड़कियां अशोक को शादी के लिये फंसाने के लिये झक ही मारती रह गई और आपने इतनी जल्दी और इतनी आसानी से सबके अरमानों पर झाड़ू फेर दिया । मैं आशा करता हूं कि जेपी की अगली फिल्म की हीरोइन भी आप ही होंगी...”
देवकुमार धारा प्रवाह बोले जा रहा था और आशा सोच रही थी कि वह कैसी पागलों की दुनिया में घुस आई है, जहां हर कोई अपनी ही हांकता है, कोई उसे बोलने का मौका ही नहीं देता, वह बोलती है तो कोई उसकी सुनता ही नहीं ।
“यह क्या हंगामा है ?” - अर्चना माथुर जेपी से पूछ रही थी ।
“तुम्हें नहीं मालूम ?” - जेपी हैरानी से बोला ।
“नहीं ।”
“कमाल है । कैसी मेजबान हो तुम ?” - जेपी हो हो कर के हंसता हुआ बोला - “भई अशोक अपनी होने वाली बीवी को तुम्हारी पार्टी में लाया है ।”
“होने वाली बीवी !” - अर्चना माथुर के माथे पर बल पड़ गये - “कौन है वह ?”
“इस पार्टी में मौजूद सबसे खूबसूरत लड़की कौन है ?”
“भई पहेलियां मत बुझाओ ।”
“वह !” - जेपी आशा की ओर संकेत करता हुआ बोला - “आशा ।”
“आशा !” - अर्चना माथुर हैरानी से बोली ।
अर्चना माथुर कुछ क्षण वहीं बैठी रही और फिर अपने स्थान से उठी । वह आशा के समीप पहुंची ।
“मुबारक हो बहन ।” - वह आशा को गले लगती हुई बोली - “तुमने मुझे पहले कभी बताया ही नहीं ।”
जैसे पहले तो मैं आप से रोज मिलती थी - आशा ने मन ही मन सोचा ।
“और तुम्हें भी मुबारक हो, अशोक ।” - अर्चना माथुर आशा के गले से अपनी बांह निकाले बिना अशोक से बोली - “तुमने भी तो पहले कभी जिक्र नहीं किया ।”
अशोक केवल मुस्कराया ।
उसी क्षण देवकुमार के कैमरे की फ्लेश लाइट फिर चमक उठी । अर्चना ने आशा की गरदन से अपनी बांह निकाल ली जैसे वह फोटो ही खींचे जाने का इंतजार कर रही थी ।
“यह तसवीर भी मैं कल के पेपर में छापूंगा” - देवकुमार प्रसन्न स्वर से बोला - “और इसका शीर्षक दूंगा - टू प्राइज फाइटर्स ।”
अर्चना माथुर ने आशा के नेत्रों में झांका और फिर मुस्कराती हुई बोली - “तुम्हारी शादी के बाद पहली पार्टी मेरे यहां होगी बहन । भूल मत जाना ।”
मुस्कराहट बेहद विषैली थी, बात कहने का ढंग ऐसा था जैसे भगवान से प्रार्थना कर रही हो कि वह दिन कभी न आये और उसके नेत्र ईर्ष्या और घृणा से जल रहे थे ।
“ऐसी कोई पार्टी नहीं होगी ।” - आशा धीरे से बोली ।
“क्यों ?” - अर्चना के माथे पर बाल पड़ गये ।
“क्योंकि मैं अशोक से शादी नहीं कर रही हूं ।”
अर्चना के चेहरे पर हैरानी के भाव छा गये ।
“आशा का मतलब है” - अशोक जल्दी से बोला - “कि फिलहाल हम शादी नहीं कर रहे हैं ।”
“मेरा मतलब वही है जो मैंने कहा है ।” - आशा बोली । लेकिन उसी क्षण जेपी ने न जाने कौन सा चुटकला छोड़ दिया था कि उसके आस पास बैठे लोग बेतहाशा हंसने लगे थे और आशा की आवाज उस हल्ले में दब कर रह गई थी ।
“अशोक ।” - आशा रूआंसे स्वर से बोली - “भगवान के लिये यहां से फौरन चलो, वर्ना मैं पागल हो जाऊंगी ।”
“बस चलते हैं, थोडी़ देर और...”
“तो तुम यहां ठहरो । मैं जाती हूं ।” - और आशा ने दृढतापूर्ण ढंग से आगे कदम बढा दिया ।
“अच्छा ।” - अशोक ने उसकी बांह थाम ली - “मैं भी चलता हूं ।”
फिर अशोक ने उच्च स्वर से जेपी को सम्बोधित किया - “जेपी हम जा रहे हैं ।”
“क्यों ।” - जेपी माथे पर बल डालता हुआ बोला - “जल्दी क्या है ?”
“आशा फौरन जाना चाहती है ।”
“तुम्हें क्या जल्दी है ?” - जेपी ने आशा से पूछा ।
आशा ने उत्तर देने का उपक्रम नहीं किया ।
“और पार्टी से इतनी जल्दी जाओेगे तो अर्चना नाराज हो जायेगी ।”
“मैं अर्चना से माफी मांग लूंगा ।” - अशोक बोला ।
“लेकिन मैं माफ नहीं करूंगी ।” - अर्चना मुस्कराती हुई बोली ।
“अर्चना प्लीज...”
“ओके, ओके ! तुम्हें मैं आशा की वजह से जाने दे रही हूं । क्योंकि इस बेचारी ने तो सवेरे दफ्तर जाना होगा न ! कामकाजी लड़की है बेचारी अधिक देर तक किसी पार्टी में कैसे टिक सकती है । सुबह अगर देर तक सोई रही तो दफ्तर की बस निकल जायेगी !”
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