RE: Hindi Antarvasna - Romance आशा (सामाजिक उपन्यास)
“इतनी जल्दी फसला मत करो, आशा, इतनी जल्दी फैसला मत करो । शादी इन्सान की जिन्दगी का एक बहुत बड़ा निर्णय होता है । यह निर्णय तुम कोरी भावुकता में पड़ कर मत करो । तुम इस बात पर कुछ दिन गम्भीरता से विचार करो, अपने मन और मस्तिष्क को नई परिस्थितियों से दो चार होने दो और उसके बाद अपना उत्तर दो । मुझे पूरा विश्वास है कि तब तुम्हें मुझ से शादी करने में कोई ऐतराज वाली बात दिखाई नहीं देगी । लेकिन यह मत भूलना कि अपनी जिन्दगी में मुहब्बत के मामले में अगर मैंने किसी के बारे में पूरी ईमानदारी से सोचा है तो वह तुम हो ।”
अशोक एक क्षण रुका और फिर बोला - “और मैं वादा करता हूं कि तुम्हारी उंगली में इस अंगूठी की मौजदूगी की वजह से मैं किसी बहम में नहीं पडूंगा । मैं तुम से यह कभी नहीं कहूंगा कि इस अंगूठी को तुम मेरे प्रति कोई सामाजिक या नैतिक बन्धन समझो ।”
“लेकिन इतनी कीमती अंगूठी मैं उंगली में कैसे पहने रह सकती हूं ।” - आशा चिंतित स्वर में बोली - “इस अंगूठी के लालच में तो मुझे डर है कि कोई मेरी उंगली ही काट कर न ले जाये, मेरी हत्या ही न कर दे ।”
“ऐसा कुछ नहीं होगा ।” - अशोक उसका हाथ थपथपाता हुआ आश्वासनपूर्ण स्वर से बोला - “तुम खामखां चिन्ता कर रही हो ।”
आशा अनिश्चित सी चुपचाप खड़ी रही ।
“ओके ?” - अशोक बोला ।
“ओके ।” - आशा ने अनिश्चित स्वर से उत्तर दिया ।
“गुड नाइट ! मैं कल तुम्हें फोन करूंगा ।”
“गुड नाइट ।” - फोन वाली बात जैसे आशा ने सुनी ही नहीं ।
शोफर कार का पिछला दरवाजा खोले खड़ा था । अशोक के भीतर बैठ जाने के बाद उसने द्वार बन्द कर दिया । फिर वह आशा की ओर मुड़ा और शिष्ट स्वर से बोला - “नमस्ते, बीबी जी ।”
“नमस्ते ।” - आशा बोली ।
शोफर ड्राइविंग सीट पर जा बैठा ।
गाड़ी आगे बढ गई ।
एक बार आशा को गाड़ी की पिछली खिड़की से बाहर निकल कर हिलता हुआ अशोक का हाथ दिखाई दिया और फिर गाड़ी दृष्टि से ओझल हो गई ।
आशा ने सिर उठाकर इमारत की ऊंचाई की ओर झांका उसके फ्लैट की बत्ती जल रही थी ।
आशा भारी कदमों से इमारत के भीतर प्रवेश कर गई ।
सरला उसे बाहर गलियारे में ही खड़ी मिल गई ।
“हाय, आशा, कौन था यह ?” - सरला ने उत्तेजित स्वर से पूछा ।
“किसकी बात कर रही है ?”
“अरे, उसी की जो अभी तुझे ये... लम्बी गाड़ी पर गली में छोड़कर गया है । मैं खिड़की में से सब देख रही थी ।”
आशा फ्लेट में प्रवेश कर गई थी ।
“मरी बता न कौन था ।” - सरला उसके पीछे पीछे चलती हुई बोली - “ऊपर से तो मुझे यूं लग रहा था जैसे शशि कपूर हो । कौन था वह... हाय मैं मर जावां ।”
तब तक उसकी दृष्टि आशा की उंगली में मौजूद अंगूठी पर पड़ चुकी थी । उसने आशा को जबरदस्ती पलंग पर धकेल कर बिठा दिया । वह स्वयं उसकी बगल में बैठ गई और उसका अंगूठी वाला हाथ अपने हाथ में थाम लिया ।
“यह अंगूठी कहां से लाई है ? हाय कितनी सुन्दर है !” - सरला प्रशंसात्मक स्वर से बोली ।
आशा चुप रही ।
“सोने की है ?” - सरला ने पूछा ।
“हां ।” - आशा ने संक्षिप्त सा उत्तर दिया ।
“और यह इसमें जड़ा शीशा कितना जगमगा रहा है । मैंने एक बार अर्चना माथुर की उंगली में ऐसी हीरे की अंगूठी देखी थी । यह भी एकदम हीरा ही मालूम होता है ।”
“यह हीरा ही है ।”
सरला के नेत्र फैल गए ।
“अच्छा ।” - वह बोली - “फिर तो इसकी कीमत कम से कम एक लाख होगी ।”
“नहीं । पचास हजार । नये पैसे नहीं रुपये ।”
“इसकी कीमत पचास पजार रुपये है !” - सरला के नेत्र उबल पड़े ।
“हां ।”
“मजाक कर रही हो ।” - सरला अविश्वासपूर्ण स्वर से बोली ।
“मैं सच कह रही हूं ।”
“पचास हजार रुपये की अंगूठी..। तुम्हारे पास कहां से आई यह ?”
“उसी लड़के ने दी है । जो अभी मुझे यहां छोड़कर गया है ।”
“लेकिन यह है कौन ? आशा, किस्सा क्या है ? तू एक ही बार में सारी बात क्यों नहीं बताती है । उत्कंठा के मारे मेरा दम निकला जा रहा है ।”
आशा ने से आधोपान्त सारी घटना कह सुनाई ।
सरला मुंह बाये आशा की बात सुनती रही ।
“हे भगवान ।” - अन्त में वह बोली - “यह जेपी सेठ का लड़का है और तुमसे मुहब्बत करता है, तुमसे शादी करना चाहता है ।”
“हां ।” - आशा बोली ।
“तुमने पहले कभी बताया ही नहीं मुझे ।”
“अब तो बता रही हूं ।”
“आशा तेरी तो तकदीर खुल गई । जिस आदमी को तूने सहज ही अपनी उंगली पर लपेट लिया है, उसे हासिल करने के लिये तो बम्बई की हर एक ग्रुप की औरतों मे कम्पीटीशन चल रहा है । बम्बई में कम से कम एक हजार ऐसी चुड़ेलें हैं जो उसे अपने पर आशिक करवाने के लिये अपना कुछ भी दांव पर लगाने के लिये तैयार फिरती हैं । और उनमें से कई तो ऐसी ऊंची नाक वाली हैं कि वे किसी छोटे मोटे रईस के पुत्तर से तो दुआ सलाम तक नहीं रखती ।”
आशा चुप रही ।
“तू तो बड़ी छुपी रुस्तम निकली आशा ! मैं तो आसमान पर छलांग लगाने की बातें ही करती रह गई, किसी रईस के पुत्तर को या खुद रईस को फांस कर ऐश की जिन्दगी गुजारने के ख्वाब ही देखती रह गई और तूने चूपचाप ही बम्बई के सबसे तगड़े दुम्बे को हलाल करके रख दिया । आशा, अब तो तू मेरी भी जून संवार दे ।”
“कैसे ?”
“जेपी सेठ बम्बई का सबेस बड़ा शौ मैन है और तू उसकी बहू बनने वाली है । तू अगर मेरा जिक्र भी कर देगी तो मैं हीरोइन बन जाऊंगी ।”
“लेकिन मैं जेपी सेठ की बहू नहीं बनने वाली हूं ।”
“क्या ?” - सरला चिल्ला पड़ी ।
“मैं अशोक से शादी नहीं कर रही हूं ।”
“क्या बक रही है ?”
“मैं ठीक बक रही हूं ।”
“लेकिन क्यों ?”
“वजह तुम्हारी समझ में नहीं आयेगी मैं तुम्हें वजह बताऊंगी तो मुझे और गलियां दोगी ।”
“लेकिन फिर भी पता तो लगे ।”
“तुम सिर्फ इतना जान लो कि मुझे अशोक से मुहब्बत नहीं है ।”
“नहीं है तो हो जायेगी । जिसकी पचास हजार रुपये की अंगूठी स्वीकार कर सकती है उससे मुहब्बत होते देर नहीं लगेगी तुम्हें ।”
“अंगूठी, उसने मुझे जबरदस्ती दी है ।”
“चलो, फेरे भी वह तुमसे जबरदस्ती ही ले लेगा । बहरहाल कहानी आगे तो बढेगी ।”
आशा चुप रही ।
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