RE: Hindi Antarvasna - Romance आशा (सामाजिक उपन्यास)
“अब जल्दी ही तुम वहां पहुंच जाओगी जहां के मैंने केवल ख्वाब देखे हैं । और कुछ दिनों बाद तो मैं कभी अगर संयोगवश तुम्हारी एक झलक ही देख पाया करूंगी जब तुम खूबसूरत विलायती गाड़ी में बैठी सर्र से मेरी बगल में से गुजर जाया करोगी । लेकिन आशा, बाद में चाहे हो मुझे भूल जाना लेकिन कम से कम एक बार तो मेरी भी हालत सुधारने के लिये थोड़ा सा ब्रेक लगा ही देना ।”
“क्या बक रही है पागल ।” - आशा बोली - “मैं कहीं नहीं जा रही हूं । कहा न मैं अशोक से शादी नहीं कर रही हूं ।”
“जेपी सेठ से मेरी सिफारिश तो करोगी न ।” - सरला अपनी ही हांकती रही - “वह अपनी अगली फिल्म में मुझे हीरोइन नहीं बना सकता तो कम से कम कोई लम्बा सा महत्वपूर्ण रोल तो दे ही दे ।”
“जेपी से मेरा इस प्रकार का सम्बन्ध कभी भी नहीं बनने वाला है कि मैं उसके सामने किसी की सिफारिश कर पाऊं ?”
“क्या ?”
“क्योंकि मेरी नजर में वह एक बेहद नीच प्रवृत्ति का आदमी है । अगर भगवान मुझे दुबारा उसकी सूरत न दिखाये तो इसे मैं अपना सौभाग्य मानूंगी ।”
“अपने होने वाले ससुर के बारे में बड़े भयानक विचार रखती है ।”
“अरे, बाबा, कहा न वह मेरा ससुर-वसुर नहीं बनने वाला ।” - आशा चिड़े हुए स्वर से बोली - “मैंने अशोक से शादी नहीं करनी है ।”
“अच्छा तो फिर कोई ऐसा तरीका बता जिससे हम दोनों अपनी तकदीर एक दूसरे से बदल लें । हे भगवान यह कहां का इन्साफ है, मैं पैसे वाले मर्दों को अपने पर आशिक करवाने के लिये जमाने भर के हथकंडे इस्तेमाल करती हूं और ये खसमा खानी खूंटा तुड़ाई हुई गाय की तरह बिदक बिदक कर भागती है और एक तुम हो कि पैसे वाले मर्द दिल और दौलत हथेली पर रखकर तुम्हारे पीछे पीछे घूमते हैं और तुम्हारे कान पर जूं नहीं रेंगतीं । कोई तुम्हें पसन्द ही नहीं आता, किसी से तुम्हें मुहब्बत नहीं किसी की तुम्हें सूरत पसन्द नहीं, कोई तुम्हें भाई जैसा लगता है, कोई बाप जैसा लगता है । शायद तुम्हारे लिये तो भगवान अपने कारखाने का कोई सबसे नया माडल भेजेगा जिसके साये पर पहले से ही एक लेबल चिपका होगा जिस पर लिखा होगा - आशा का पति ।”
“क्यों बेकार की बकवास कर रही है ?”
“अच्छा, एक बात बता, तुझे उससे नफरत नहीं है न ?”
“नहीं । अशोक बड़ा भोला लड़का है ।”
“तो फिर तू जरूर जरूर शादी कर ले उससे । आशा, जिस से शादी होती है, उससे मुहब्बत अपने आप हो जाती है । तुम अशोक से शादी कर लो, तुम्हारा काया पलट हो जायेगा, तुम्हारी जिन्दगी का ढर्रा ही बदल जायेगा । एक बार पैसे वालों के बीच में पहुंच जाओगी तो तुम्हें यह सोचने की जरूरत नहीं रहेगी कि आज की जिन्दगी में इनसान को चार पैसे कमाकर आपना पेट भर लेने की खातिर कितनी जद्दोजहद करनी पड़ती है । फिर तुम्हें किसी सिन्हा साहब के दफ्तर में दिन भर टाइपराइटर के बखिये उधेड़ने की जरूरत नहीं रह जायेगी, फिर तुम्हें साहब लोगों की घटिया से घटिया बात पर यस सर, यस सर नहीं कहना पड़ेगा, उनकी गन्दी और कमीनी हरकतों पर सब्र का घूंट पी कर नहीं रह जाना पड़ेगा, रोज सुबह शाम बस की लाइन में नहीं खड़ा होना पड़ेगा, लोकल ट्रेनों के धक्के नहीं खाने पड़ा करेंगे, दिन भर काम करके शाम को थके हारे लौटने पर खाना नहीं पकाना पड़ेगा, कपड़े नहीं धोने पड़ेंगे, बरतन नहीं मांजने पड़ेंगे, फिर इस बात कि चिन्ता नहीं रहेगी कि साहब के लालसा से झुलसते हुये दिल पर अपनी जवानी का फाहा नहीं रखा तो वह कहीं नौकरी से न निकाल दे । आशा, ऐसा मौका जिन्दगी में बार बार नहीं आता । अगर तुमने यह मौका छोड़ दिया तो तुम्हारे जैसी अहमक लड़की सारी दुनिया में चिराग लेकर ढूढने से नहीं मिलेगी ।”
“शायद तुम ठीक कह रही हो ।” - आशा ने धीरे से स्वीकार किया ।
“तो फिर कर रही हो न अशोक से शादी ?” - सरला ने आशापूर्ण स्वर से पूछा ।
“मैं सोचूंगी । फिलहाल मैंने कोई फैसला नहीं किया है ।” - आशा उंगली में पहनी हुई अंगूठी को दूसरे हाथ की उंगली से छूती हुई बोली ।
“चूल्हे में जाओ ।” - सरला नाराज स्वर से बोली - “अगर मेरी इतनी बकवास सुन चुकने के बाद भी तुम अभी सोचोगी ही ।”
“लेकिन जल्दी क्या है ? अशोक कहीं भागा थोड़े ही जा रहा है ।”
“ऐसे काम जितनी जल्दी हो जायें उतना ही अच्छा ।”
“क्यों ? क्या अच्छाई है इसमें ?”
“सम्भव है देर करने से अशोक का इरादा ही बदल जाये ।”
“जिस आदमी का इरादा इतनी जल्दी और इतनी आसानी से बदल सकता हो उससे तो मैं वैसे ही शादी नहीं करूंगी ।”
“अगर अशोक अपने इरादे का पक्का निकला तब तो शादी करोगी उससे ?”
“कहा न मैं सोचूंगी ।”
“अच्छा बहस छोड़ ।” - सरला एकाएक बदले स्वर से बोली - “एक बात सच सच बता दे ।”
“क्या ?”
“सच सच बतायेगी न ?”
“हां ।”
“अगर मेरे से झूठ बोले तो तुझे सांप डसे ।”
“कहा न सच सच बताऊंगी ।”
“तू किसी और से मुहब्बत करती है ?”
आशा एकदम चुप हो गई ।
“बोल न ?”
आशा के मन के किसी अन्धेरे कोने में एक धुंधली सी तसवीर उभरी ।
“देख आशा, अगर मुझसे कुछ छुपायेगी तो मैं कभी नहीं बोलूंगी तुझ से ।”
“हां, शायद ।” - आशा अनिश्चित स्वर से बोली ।
“कौन है वो ?”
“तुम उसे जानती नहीं । वह सिन्हा साहब के दफ्तर में काम करता था ।”
“अब नहीं करता ?”
“नहीं । सिन्हा साहब ने उसे नौकरी से निकाल दिया है ।”
“क्यों ?”
“वे कहते हैं कि वे उसके काम से सन्तुष्ट नहीं थे ।”
“और वास्तविकता क्या है ?”
“क्या मालूम ? शायद वही सच हो जो सिन्हा साहब ने कहा है ।”
“अब कहां है वह ?”
“पता नहीं ।”
“तुमने तलाश करने की कोशिश की थी ?”
“की थी लेकिन मिला नहीं ।”
“वह तुमसे मुहब्बत करता था ?”
“हां ! बहुत । लेकिन सिन्हा साहब के डर की वजह से कभी खुल कर कुछ कह नहीं पाता था ।”
“कभी इस प्रकार की बातचीत नहीं हुई ?”
“नहीं ।”
“उसे मालूम है कि तुम भी उससे मुहब्बत करती हो ?”
“मुझे नहीं मालूम ।”
“क्या नाम था उसका ?”
“अमर ।”
“सिन्हा साहब के दफ्तर में क्या था वह ?”
“क्लर्क था ।”
“मुश्किल से तीन सौ रुपये मिलते होंगे उसे ।”
“ढाई सौ रुपये ।”
“अगर आज अमर फिर तुम्हारे सामने आ जाये तो अशोक को छोड़कर तुम उससे शादी कर लोगी ।”
आशा ने उत्तर नहीं दिया ।
“तुमने मेरे सवाल का जवाब नहीं दिया ।”
“मैं तुम्हारे बहुत सवालों का जवाब दे चुकी हूं ।” - आशा घबरा कर बोली ।
“आशा तुम...”
आशा ने सरला की बात नहीं सुनी । वह एकाएक अपने स्थान से उठी और बाथरूम में घुस गई ।
सरला अपने दायें हाथ की पहली उंगली से अपना माथा ठोकती हुई चुपचाप बैठी बाथरूम के बन्द दरवाजे को घूरती रही ।
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