RE: Desi Sex Kahani वारिस (थ्रिलर)
विनोद पाटिल ने कुछ क्षण अपलक कोकोनट ग्रोव हॉलीडे रिजॉर्ट का मुआयना किया जहां कि तब पहली बार उसके पांव पड़ रहे थे और पिर उस कॉटेज की ओर बढा जिसमें रिजॉर्ट का ऑफिस था और रिजॉर्ट के मैनेजर माधव घिमिरे का आवास था ।
घिमिरे उस वक्त कम्प्यूटर पर रिर्जार्ट के एकाउन्ट्स चैक कर रहा था जबकि पाटिल ने शीशे का दरवाजा ठेल कर भीतर कदम रखा । घिमिरे ने कम्प्यूटर स्क्रीन पर से निगाह हटाई, अपने रीडिंग ग्लासिज उतार कर की-बोर्ड के करीब रखे और फिर प्रश्नसूचक नेत्रों से आगन्तुक की तरफ देखा ।
“विनोद पाटिल ।” - वो बोला - “मुम्बई से रिजर्वेशन के लिये ई-मेल भेजी थी । कूरियर से दो हजार रुपया एडवांस भी भेजा था ।”
“जी हां, जी हां ।” - तत्काल घिमिरे व्यवसायसुलभ तत्पर स्वर में बोला - “सात नम्बर कॉटेज आपके लिये रिजर्व है । पहले देखना चाहेंगे ।”
“क्या जरूरत है ?” - पाटिल लापरवाही से बोला - “ठीक ही होगा ।”
“ठीक ही है । ये एक्सक्लूसिव रिजॉर्ट है इसलिये....”
“आई अन्डरस्टैण्ड । बालाजी देवसरे मालिक हैं न इसके ?”
“जी हां ।”
“सुना है वो भी यहीं रहते हैं ।”
“ठीक सुना है ।”
“इस वक्त हैं यहां ?”
“मेरे खयाल से हैं । दिन में फिशिंग के लिये गये थे लेकिन शायद लौट आये हुए हैं ।”
“हूं ।”
घिमिरे ने उसके सामने रजिस्ट्रेशन कार्ड रखा ।
पाटिल ने कार्ड पर अपना नाम और मुम्बई का एक पता दर्ज कर दिया ।
घिमिरे ने की-बोर्ड पर से एक चाबी उतारी और बोला - “आइये ।”
पाटिल उसके साथ हो लिया ।
कॉटेज एक ब्लाक में चार चार की सूरत में बने हुए थे । हर कॉटेज की उसके पहलू में या पिछवाड़े में अपनी कार पार्किंग भी और सामने लॉन से पार एक बाजू में जनरल पार्किंग भी थी । दूसरे बाजू में सत्कार नामक एक रेस्टोरेंट था ।
पाटिल ने अर्धवृत्त में बने तमाम कॉटेजों पर निगाह डाली और फिर बोला - “प्रोप्राइटर साहब का कॉटेज कौन सा है ?”
घिमिरे ने एक कॉटेज की ओर संकेत किया ।
पाटिल ने नोट किया कि उसमें प्रवेश द्वार दो थे ।
“दो दरवाजे किस लिये ?” - उसने सवाल किया ।
“दरअसल वो आपस में जुड़े दो कॉटेज हैं ।” - घिमिरे बोला - “भीतर दोनों के बीच में भी एक दरवाजा है जिसे खोल दिया जाये तो दोनों को एक कॉटेज की तरह भी इस्तेमाल किया जा सकता है । कोई बड़ा परिवार या बड़ा ग्रुप आ जाये तो यूं उन्हें सहूलियत होती है ।”
“आई सी । तो आजकल दो कॉटेज एक की तरह इस्तेमाल हो रहे हैं ! बड़ी फैमिली तो है नहीं उनकी -फैमिली ही नहीं है - जरूर कोई खास मेहमान आ गये होंगे !”
“ऐसी कोई बात नहीं ।”
“तो ?”
“एक कॉटेज में मिस्टर मिकेश माथुर हैं ।”
“वो कौन हए ?”
“मिस्टर देवसरे के एडवोकेट हैं ।
“पक्के यहीं रहते हैं ?”
“पक्के तो नहीं रहते लेकिन आजकल ऐसा ही है ।”
“वजह ?”
घिमिरे ने वजह बयान करने की कोशिश न की ।
“दोनों दरवाजों में से मिस्टर देवसरे का दरवाजा कौन सा है ?”
“दायां ।” - घिमिरे बोला - “लेकिन बायें से भी दाखिल हुआ जा सकता है ।”
“क्योंकि दोनों के बीच में कम्यूनीकेशन डोर है ?”
“हां ।”
“जो कि खुला रहता है ?”
“अमूमन ।”
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