RE: Desi Sex Kahani वारिस (थ्रिलर)
रिंकी शर्मा कोई तेईस चौबीस साल की भूरी आंखों और सुनहरी बालों वाली खूबसूरत लड़की थी और ‘सत्कार’ की मैनेजर थी ।
वो एक खुशमिजाज लड़की थी जो पहले ही दिन से मुकेश से खास मुतासिर दिखाई देने लगी थी । देवसरे की निगाहबीनी की एकरसतापूर्ण और बोर डयूटी में उसे भी उसमें बहुत रस आने लगा था जो कि गलत था, नाजायज था क्योंकि रिंकी को जब पता चलता कि वो शादीशुदा था और बहुत जल्द एक बच्चे का बाप बनने वाला था तो माहौल तल्ख और बदमजा हुए बिना न रहता । लिहाजा अनायास किसी सम्मोहन में जकड़े जाने से पहले उसका वहां से कूच कर जाना ही श्रेयस्कर था ।
“आया !”
देवसरे की तीखी आवाज चाबुक की फटकार की तरह उसके जेहन से टकराई ।
तब तक उसकी निगाह का मरकज, मैनेजर के साथ चलता युवक, सात नम्बर कॉटेज में हो आया था और अब देवसरे के कॉटेज की ओर बढ़ रहा था ।
मुकेश माथुर घूमा, उसने होंठों को जबरन फैलाकर मुस्कराते होने का भ्रम पैदा किया और प्रश्नसूचक नेत्रों से देवसरे की तरफ देखा ।
“सिन्धी भाई की मर्जी है” - देवसरे अपना खाली गिलास उसे दिखाता हुआ बोला - “कि एक एक जिन और टॉनिक और हो जाये ?”
मुकेश ने करनानी की तरफ देखा ।
“इफ यू डोंट माइन्ड ।” - करनानी दान्त निकालता बोला ।
साला ! छाज तो बोले ही बोले, छलनी भी बोले ।
रिजॉर्ट में देवसरे के साथ उसकी आमद से अगले रोज ही मेहर करनानी वहां पहुंच गया था और लगभग फौरन ही उसकी देवसरे से गाढी छनने लगी थी । मुकेश उसके बारे में बस इतना ही जान पाया था कि वो पुलिस के खुफिया विभाग से मैडीकल ग्राउन्ड्स पर वक्त से पहले अवकाश प्राप्त शख्स था और अब - बकौल उसके - किसी माकूल कारोबार की तलाश में था ।
माकूल कारोबार की तलाश वहां उस रिजॉर्ट में ! मछली मारते ! टेनिस खेलते ! पत्ते पीटते ! ड्रिंक करते !
उम्र में वो कोई चालीस साल का था, उसकी निगाह पैनी थी और जिस्म कसरती था । ऐसा शख्स अपने आपको मैडीकल ग्राउन्ड्स पर पुलिस से रिटायर हुआ बताता था । क्या मैडीकल ग्राउन्ड्स मुमकिन थीं ! हट्टा कट्टा तो था । पट्टा रोज दो घण्टे टेनिस खेलता था, स्विमिंग करता था, छ: ड्रिंक्स से कम में उसकी दाढ नहीं गीली होती थी और तन्दूरी मुर्गा यूं चबाता था जैसे मूंगफली खा रहा हो ।
“नो” - वो बोला - “आई डोंट माइन्ड ।”
“थैंक्यू ।” - करनानी बोला ।
मुकेश ने दोनों के खाली गिलास सम्भाले और उन्हें जिन एण्ड टॉनिक के नये जामों से नवाजा ।
तभी दरवाजे पर दस्तक पड़ी ।
“कम इन ।” - देवसरे बोला ।
आगन्तुक ने भीतर कदम रखा तो उस पर निगाह पड़ते ही देवसरे के नेत्र फैले ।
“पाटिल !” - वो हैरानी से बोला ।
“हल्लो !” - पाटिल वहां मौजूद तीनों सूरतों पर निगाह फिराता बोला - “गुड ईवनिंग ।”
“यहां कैसे पहुंच गये ?” - देवसरे पूर्ववत हैरानी से बोला ।
“बस, पहुंच गया किसी तरह ।”
“वजह ?”
“आपसे मिलने के अलावा और क्या हो सकती है ?”
“कैसे जाना कि मैं यहां हूं ?”
“बस, जाना किसी तरह से ।”
“कैसे ?”
“मुम्बई में आपके सालीसिटर्स के ऑफिस से खबर निकाली ।”
“इस जहमत की वजह ?”
“वो तो न होगी जो ऐसे मामलों में अमूमन समझी जाती है ।”
“मतलब ?”
“आपकी मुहब्बत नहीं खींच लायी ।”
“वो तो जाहिर है । असल वजह बयान करो आमद की ।”
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