RE: Desi Sex Kahani वारिस (थ्रिलर)
“महाडिक की बाबत कोई और बात ?”
“और बात ये कि वो क्लब की सेल के हक में नहीं था ।”
“कैसे जाना ?”
“उन्हीं आधी पौनी बातों से जाना जो मैंने गाहेबगाहे कॉटेज की अपनी साइड में बैठे सुनी थीं ।
“हूं । महाडिक इस घड़ी कहां होगा ?”
मुकेश ने घड़ी पर निगाह डाली ।
“क्लब में तो शायद नहीं होगा ।” - वो बोला ।
“रहता कहां है ?”
“बैंगलो रोड पर रहता है लेकिन मुझे उसके बंगले का नम्बर नहीं मालूम ।”
नम्बर घिमिरे ने बताया ।
“इस पते पर फोन है ?” - इन्स्पेक्टर बोला ।
“है ।” - घिमिरे बोला ।
“लगाइये और उसे यहां आने को कहिये । आने में हीलहुज्जत करे तो मेरे से बात कराइये ।”
“ठीक है ।”
तभी हवलदार रामखुश दो व्यक्तियों के साथ वापिस लौटा जिनकी बाबत पता चला कि वो उस डबल कॉटेज के दायें बायें के कॉटेजों के आकूपेंट थे । उनमें से एक का नाम अभिलाष देसाई था जो कि जामनगर गुजरात से था और दूसरा शोलापुर से आया इब्राहीम शेख था ।
“आप साहबान को” - इन्स्पेक्टर बोला - “यहां हुए हौलनाक वाकये की खबर लगी ?”
दोनों के सिर सहमति में हिले ।
“मकतूल को शूट किया गया था । यहां गोली चलने की आवाज आजू-बाजू के कॉटेजों में पहुंच सकती है । आप में से किसी ने ऐसी कोई आवाज सुनी थी ?”
“मैंने सुनी थी ।” - अभिलाष देसाई बोला ।
“कब ? कब सुनी थी ?”
“ये कहना मुहाल है ।”
“क्यों मुहाल है ?”
“क्योंकि में घूंट लगा के सोने का आदी हूं । एक धांय की आवाज से मेरी नींद खुली थी लेकिन मैंने करवट बदली थी और फिर सो गया था । तब मुझे घड़ी देखना नहीं सूझा था इसलिये मुझे नहीं मालूम कि वो आवाज मैंने कब सुनी थी ?”
“आपको ये कैसे मालूम है कि जो आवाज आपने सुनी थी वो गोली चलने की थी ?”
“नहीं मालूम । मुझे वो गोली की आवाज जैसी लगी थी लेकिन वो किसी कार या ट्रक के बैकफायर करने की आवाज भी हो सकती थी ।”
“फिर क्या फायदा हुआ ?”
“आपका आदमी मुझे सोते से जगा कर लाया था, अब अगर इजाजत हो तो मैं....”
“हां, हां, । जाइये ।”
दूसरे शख्स, इब्राहीम शेख, के बयान से मालूम हुआ कि वो अपने बीवी बच्चों के साथ वहां ठरा हुआ था जिन्हें कि वो शाम को पिक्चर दिखाने लेकर गया था । ईवनिंग शो समाप्त हो जाने के बाद उन्होंने शहर में ही खाना खाया था और वो सवा ग्यारह बजे वापिस अपने कॉटेज लौटे थे और उसके या उसके परिवार के किसी सदस्य ने गोली की या गोली जैसी लगने वाली कोई आवाज नहीं सुनी थी ।
भुनभुनाते हुए इन्स्पेक्टर ने उसे भी रुखसत किया ।
फिर हवलदार आदिनाथ के साथ विनोद पाटिल वहां पहुंचा । बकौल उसके वो सोते से उठा कर लाया गया था और ऐसे व्यवहार की कोई वजह उसे नहीं बताई गयी थी, उसे नहीं मालुम था कि पुलिस वहां क्यों मौजूद थी जिसका मतलब था कि वहां वाकया हुए कत्ल की उस कोई खबर नहीं थी ।
वो खबर उसे इन्स्पेक्टर ने सुनायी ।
जवाब में पाटिल ने चौंकने का, भौचक्का होने का करिश्मासाज अभिनय करके दिखाया ।
तदोपरान्त शाम को उसकी वहां आमद के बाद मकतूल से हुई उसकी भीषण तकरार का मुद्दा उठा ।
“वो तकरार बेमानी थी” - पाटिल बोला - “और बुजुर्गवार की ढिठाई और मेरे से सख्त नापसन्दगी का नतीजा थी । अपनी दिवंगत बीवी का इकलौता वारिस होने की वजह से मैं यहां रिजॉर्ट में उसका एक चौथाई हिस्सा क्लेम करने आया था और ऐसा करने का मुझे पूरा-पूरा अख्तियार था । यहां आकर मुझे मकतूल की जुबानी ही खबर लगी थी कि उसकी जिन्दगी में मेरी बीवी का - और उसी की तरह मिस्टर घिमिरे का - हिस्सा रिजॉर्ट के बिजनेस से होने वाले मुनाफे में था । यानी कि मिस्टर देवसरे की जिन्दगी में रिजॉर्ट की मिल्कियत में किसी की कोई हिस्सेदारी मुमकिन नहीं थी । और मुनाफे की हिस्सेदारी से भी मुझे महरूम रखने की बुजुर्गवार ने ऐसी तरकीब की थी कि मैं पिटा सा मुंह ले के रह गया था ।”
“क्या किया था ?”
पाटिल ने एक निगाह मुकेश, करनानी और घिमिरे की सूरतों पर डाली और फिर बोला - “आपको मालूम ही होगा ।”
“मैं आपकी जुबानी सुनना चाहता हूं ।”
“मकतूल ने अपने बैंक के पास रिजॉर्ट को गिरवी रख के इतना बड़ा कर्जा उठाने का फैसला कर लिया था कि उसका ब्याज चुकता करने के बाद मुनाफे की रकम में से कुछ भी बाकी न बचता ।”
“यानी कि मिस्टर देवसरे नहीं चाहते थे कि उनकी वजह से आप कैसा भी कोई अर्थलाभ प्राप्त कर पाते !”
“बिलकुल ।”
“वो सच में रिजॉर्ट गिरवी रखने का इरादा रखते थे या ऐसा उन्होंने महज आपको हड़काने के लिये कहा था ?”
“मुझे नहीं पता ।”
इन्स्पेक्टर ने उसे घूर कर देखा ।
“आनेस्ट, मुझे नहीं पता । मेरे पास ये जानने का कोई जरिया नहीं था कि असल में बुजुर्गवार के मन में क्या था !”
“आप बताइये ?” - इन्स्पेक्टर घिमिरे से बोला - “आखिर मुनाफे की दूसरी चौथाई के हकदार आप थे ।”
“मिस्टर देवसरे का रिजॉर्ट को बैंक के पास गिरवी रखने का इरादा बराबर था ।” - घिमेरे बोला ।
“कैसे मालूम ?”
“क्लब के लिये रवाना होने से पहले उन्होंने खुद मुझे ऐसा कहा था ।”
“वजह यही बताई थी कि वो चाहते थे कि इन साहब के हाथ कुछ न लगे ?”
“हां ।”
“लेकिन यूं तो आपके हाथ भी कुछ न लगता ! यूं पाटिल से तो वो अपनी दुश्मनी निकालते, आपसे क्या शिकायत थी ?”
“कोई शिकायत नहीं थी इसीलिये उन्होंने मुझे आश्वासन दिया था कि वो किसी और तसल्लीबख्श तरीके से यूं होने वाले मेरे नुकसान की भरपाई कर देंगे ।”
“वैरी नोबल आफ हिम ।”
“ही वाज ए नोबल पर्सन, मे हिज सोल रैस्ट इन पीस ।”
“यूं कोई रनिंग एस्टैब्लिशमेंट गिरवी रखी जाती है तो मैंने सुना है कि उसके हिसाब किताब का भी आडिट होता है ।”
“ठीक सुना है आपने । इसीलिये मैं शाम से ही सारे एकाउन्ट्स चौकस करने में लगा हुआ था ।”
“अब तो आपकी मेहनत बेकार गयी ।”
“जी !”
“प्रोप्राइटर की मौत की रू में अब तो एकाउन्ट्स का कोई रोल ही नहीं रह गया ।”
“वो कैसे ?”
“समझिये । एकाउन्ट्स से तो नफा नुकसान पता लगता और वो नफा नुकसान हिस्सेदारों में तकसीम होता । मिस्टर देवसरे की मौत की रू में अब तो आप वैसे ही इस प्रापर्टी के एक चौथाई हिस्से के मालिक बन गये हैं । अब आप स्वतन्त्र रूप से अपना हिस्सा बेच सकते हैं, गिरवी रख सकते हैं, कुछ भी कर सकते हैं ।”
“हे भगवान ! मुझे तो खयाल ही नहीं आया था ।”
“जनाब, इस बाबत मेरे पास अच्छी खबर है और बुरी खबर है ।”
“क्या ?”
“अच्छी खबर ये है कि जोर से हंसने को जी चाह रहा है और बुरी खबर ये है कि हंस नहीं सकता क्योंकि ये मकतूल की शान में गुस्ताखी होगी । इसलिये जब्त कर रहा हूं ।”
“अजीब आदमी हैं आप ?”
“अच्छी खबर बुरी खबर” - मुकेश बोला - “इनका तकिया कलाम जान पड़ता है ।”
“हूं ।” - इन्स्पेक्टर बोला - “मिस्टर पाटिल, ये खुश होने वाली बात नहीं है क्योंकि ऐन यही बात आपको मर्डर सस्पैक्ट बनाती है ।”
“अकेले मुझे ?” - पाटिल बोला ।
“मिस्टर घिमिरे को भी ।”
“मिस्टर घिमिरे ऐसा नहीं कर सकते ।” - रिंकी शर्मा आवेशपूर्ण स्वर में बोली ।
इन्स्पेक्टर उसकी तरफ घूमा ।
“कैसा नहीं कर सकते ?” - वो बोला ।
“अपने आर्थिक लाभ के लिये ये मिस्टर देवसरे जैसे मेहरबान शख्स का कत्ल नहीं कर सकते ।”
“मैने किसी पर इलजाम नहीं लगाया । अभी मैंने सिर्फ कत्ल का एक उद्देश्य स्थापित किया है । एक थ्योरी पेश की है जिसके तहत नौबत कत्ल तक पहुंची होना मुमकिन है ।”
“इस थ्योरी की लपेट में मिस्टर घिमिरे को लेना जुल्म है ।”
“मुझे भी ।” - पाटिल बोला ।
“आपको किस लिये ? आप तो आये ही मकतूल से नावां पीटने की मंशा से थे । आपकी मंशा पूरी हुई । आप जितने की उम्मीद से आये थे, अब उससे कई गुणा ज्यादा की गारन्टी के साथ वापिस लौटेंगे ।” - इन्स्पेक्टर एक क्षण ठिठका और फिर बोला - “अगर लौटेंगे तो ।”
“क्यों नहीं लौटूंगा ? मैंने कत्ल नहीं किया । मैंने कोई गुनाह नहीं किया । इस रिजॉर्ट की एक चौथाई मिल्कियत पके फल की तरह अगर मेरी झोली में आकर टपकी तो क्या ये मेरा गुनाह है ? मिस्टर देवसरे एकाएक मर कर मेरे लिये सहूलियत कर गये तो क्ये ये मेरा गुनाह है...”
तभी फोन की घन्टी बजी ।
मुकेश ही फोन के करीब था इसलिये उसी ने रिसीवर उठाया ।उसने एक क्षण फोन सुना और फिर इन्स्पेक्टर से बोला - “ट्रंककॉल लग गयी है । मैं बात करूं या आप करेंगे ?”
“तुम्हारे वसीयत स्पैशलिस्ट एडवोकेट पसारी हैं लाइन पर ?”
“हां ।”
“मुझे दो रिसीवर ।”
दो मिनट खुसर पुसर के अन्दाज से इन्स्पेक्टर ने फोन पर बात की । आखिरकार ‘थैंक्यू’ बोल कर उसने रिसीवर वापिस क्रेडल पर रखा । और बड़े विचित्र भाव से मुकेश की तरफ देखा ।
“क्या हुआ ?” - मुकेश बोला - “क्या पता चला ?”
“चला तो सही कुछ ।”
“क्या ?”
इन्स्पेक्टर के फिर बोल पाने से पहले अनन्त महाडिक ने वहां कदम रखा । उसने प्रश्नसूचक नेत्रों से आगन्तुक की तरफ देखा ।
“मैं अनन्त महाडिक ।” - वो बोला ।
“ओह !” - इन्स्पेक्टर बोला - “आइये । आइये, जनाब । इतनी रात गये यहां आने की जहमत उठाई उसके लिये शुक्रिया । वारदात की खबर लगी ?”
“हां । घिमिरे ने फोन पर बताया था कि मिस्टर देवसरे का कत्ल हो गया था । दौड़ा आया ।”
“शुक्रिया । आप ब्लैक पर्ल क्लब मालिक हैं ?”
“हां ।”
“हमें मालूम हुआ है कि असल में मालिक मिस्टर देवसरे थे ?”
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