RE: Desi Sex Kahani वारिस (थ्रिलर)
मिसेज वाडिया कोई साठ साल की पारसी महिला थी जो कि पिछले दो हफ्ते से उस रिजॉर्ट में थी । उसका तकरीबन टाइम बीच पर आराम फरमाते, नावल पढते या आसपास तांकझांक करते गुजरता था । ऐसा कभी नहीं हुआ था कि कोई खिड़की खुली हो तो वो भीतर न झांके, कोई गुफ्तगू हो रही हो तो वो सुनने की कोशिश न करे, किसी से कोई मिलने आया हो तो उसकी बाबत जानने की कोशिश न करे ।
“यस, मैडम ।” - वो बोला ।
“फार वन मिनट इधर आना सकता ?”
“आता है, मैडम ।”
वो उसके कॉटेज की तरफ बढा । वो करीब पहुंचा तो मिसेज वाडिया घूम कर भीतर कॉटेज में दाखिल हो गयी । मजबूरन उसे भी कॉटेज के भीतर जाना पड़ा ।
“प्लीज सिट डाउन ।” - वो बोली ।
“थैंक्यू, मैडम ।”
मिसेज वाडिया ने बाईफोकल्स में से उसका मुआयना किया और फिर बोली - “ढीकरा, तुम मरने वाले के बहुत क्लोज था इसलिये मेरे को फीलिंग आया कि मेरे को तुमसे बात करना मांगता था ।”
“किस बारे में ?”
“पहले मेरे को मालूम नहीं था कि मिस्टर देवसरे मालिक था इस रिजॉर्ट का - मालूम होता तो मैं उससे डिस्काउन्ट के लिये बात करता - ये तो बिल्कुल ही नहीं मालूम था कि वो ब्लैक पर्ल क्लब का भी मालिक था ।”
“अब कैसे मालूम हुआ ?”
“सुनने को मिला । बहुत लोग बात करता था इधर । जब से मर्डर हुआ है, हर कोई उसी का बात ही तो करता है ।”
“आई सी ।”
“वैरी रोमांटिक, वैरी कलरफुल पर्सन, दिस मिस्टर देवसरे । नो ?”
“आई डोंट अन्डरस्टैंड, मैडम ।”
“कल रात को एक ढीकरी के साथ आया । स्मार्ट लिटल गर्ल । हाफ हिज एज । कोई बोला उधर ब्लैक पर्ल में सिंगर होना सकता । कैसे आजकल को छोकरी लोग अपना फादर का एज का पर्सन का साथ....”
“मैडम” - मुकेश तीखे स्वर में बोला - “आप बिल्कुल गलत समझ रही हैं । मिस्टर देवसरे ऐसे आदमी नहीं थे । अब जबकि वो इस दुनिया में नहीं हैं, उनके बारे में ऐसी बातें करना जुल्म है ।”
“मैं जो देखा वो बोला ।”
“नहीं, वो नहीं बोला । आपने देखे का जो मतलब निकाला वो बोला । इसलिये जो बोला वो गलत बोला, नाजायत बोला । वो लड़की - मीनू सावन्त - उन्हें सिर्फ क्लब से यहां पहुंचाने आयी थी । मिस्टर देवसरे बहुत कैरेक्टर वाले आदमी थे और आजकल भारी फिजीकल और मेंटल टेंशन के दौर से गुजर रहे थे । आप उनकी पर्सनल ट्रेजेडी से वाकिफ होती तो ऐसा हरगिज न कहतीं ।”
“हिज ओनली डाटर । एक्सीडेंट में गया । मेरे को मालूम ।”
“आपने यही बताने के लिये मुझे बुलाया ?”
“नहीं, ढीकरा । वो डिफ्रेंट बात है ।”
“वो क्या बात है ?”
“दिस मिस्टर घिमिरे । इधर का मैनेजर । नाइस मैन । मेरे को पसन्द । वैरी पोलाइट, वैरी हैल्पफुल, वैरी डीसेंट पर्सन । मैं इमेजिन नहीं कर सकता कि वो मर्डरर होगा पण क्या पता चलता है आज का सिनफुल वर्ल्ड में ?”
“मिस्टर घिमिरे की क्या खास बात है ?”
“बात तो है, ढीकरा, अब पता नहीं खास है या नहीं ।”
“कैसी भी क्या बात है ? कुछ कहिये तो सही ।”
“मैं कल रात उसको मिस्टर देवसरे के कॉटेज में जाता देखा । दैट इज विद माई ओन आइज ।”
मुकेश ने अवाक वृद्धा की तरफ देखा ।
“कब - देखा ?” - फिर उसने सस्पेंसभरे स्वर में पूछा - “क्या टाइम था उस वक्त ?”
“इलैवन ओ क्लाक से कोई फिफ्टीन मिनट्स पहले का टेम था ।”
“आपने मिस्टर घिमिरे को कॉटेज के दायें, मिस्टर देवसरे वाले विंग में दाखिल होते देखा था ?”
“नो । मैं इतना टांग झांग नहीं करना मांगता ।”
“तांक झांक ।”
“स्नूपिंग नहीं करना मांगता । स्नूपिंग इज ए बैड हैबिट, यू नो !”
मुझे तो मालूम है, अम्मा, लेकिन तुझे नहीं मालूम ।
“तो क्या देखा था ?”
“डोर की ओर बढते देखा था ।”
“लेकिन भीतर दाखिल होते नहीं देखा था ?”
“नो ।”
“आखिरकार दरवाजे के कितने करीब देखा था ।”
“ही वाज क्लोजर बाई थ्री स्टैप्स । आर फोर । मे बी फाईव । इससे ज्यास्ती नक्को ।”
“लेकिन भीतर जाते नहीं देखा था ?” - मुकेश ने फिर जिद की ।
“ढीकरा, इतनी नाइट में जब वो इधर जा रहा था तो और किस वास्ते जा रहा था ? और क्या था उधर ?”
“कहां से किया था आपने ये नजारा ?”
मिसेज वाडिया ने एक खिड़की की तरफ इशारा किया ।
मुकेश उस खिड़की पर पहुंचा । उसने नोट किया कि वो खिड़की ऐसी पोजीशन में थी कि उसमें से देवसरे के कॉटेज की राहदारी तो दिखाई देती थी लेकिन कॉटेज का प्रवेशद्वार नहीं दिखाई देता था । इसका मतलब था कि उस औरत ने तांक झांक में अपने तरफ से कोई कसर नहीं छोड़ी थी, घिमिरे को ऐन दरवाजे पर पहुंचते उसने नहीं देखा था तो इसलिये कि वो देख सकती ही नहीं थी ।
लेकिन एक बात उसकी सच थी ।
अगर घिमिरे कॉटेज में जाने का तमन्नाई नहीं था तो कॉटेज की राहदारी में भी क्यों था ?
“कोई मेरे को बोला” - मिसेज वाडिया कह रही थी - “कि तुम मिस्टर देवसरे का फ्रेंड ही नहीं एडवोकेट भी है । अब मैं तुमसे ये एडवाइस मांगता है कि मेरे को ये बात पुलिस को बोलना सकता या नहीं बोलना सकता ?”
“मैडम, इस बाबत मैं आपको कोई सलाह देने की पोजीशन में नहीं हूं क्योंकि मैं खुद मर्डर सस्पैक्ट हूं ।”
“इज दैट सो ?” - वो नेत्र फैलाती बोली ।
“सो यू लैट युअर कांशस बी युअर गाइड ।”
“इज दैट युअर कनसिडर्ड, एडवोकेट लाइक, ओपीनियन ?”
“यस, मैडम । मेरी राय में आप बिना कोई जल्दबाजी किये शान्ति से इस बात पर विचार कीजिये और फिर अपने विवेक से काम लीजिये ।”
“हूं ।”
“जब आप मिस्टर घिमिरे को नाइस मैन बोलती हैं तो....”
“ही श्योर इज ए नाइस मैन । उच्च दराज का....”
“जी !”
“आफ हाई इन्टैग्रिटी ।”
“ओह ! ऊंचे दर्जे का । जब ये मानती हैं तो, मैडम क्यों सोचती हैं कि मिस्टर घिमिरे कातिल होंगे ?”
“पण ढीकरा...”
“सोचिये । विचारिये । और फिर कोई फैसला कीजिये । ताकि बाद में आपको कोई गिला न हो कि आपने जो किया जल्दबाजी में किया । और अब मुझे इजाजत दीजिये ।”
मिसेज वाडिया का सिर मशीन की तरह सहमति में हिला ।
***
मुकेश थाने पहुंचा ।
इन्स्पेक्टर सदा अठवले वहां अपने ऑफिस में मौजूद था ।
“आओ, भई ।” - वो बोला - “सब लोग थाने में हाजिरी भर गये, एक तुम्हारी ही कसर रह गयी थी ।”
“मुझे ऐसा कोई हुक्म नहीं हुआ था ।” - मुकेश बोला ।
“हुक्म तो उन्हें भी नहीं हुआ था लेकिन पढे लिखें लोग हैं न, इसलिये हर कोई खुद ही अपने आपको पाक साफ साबित करना चाहता था ।”
“लिहाजा मैं इत्तफाक से यहां न आ गया होता तो ये मरे पर इलजाम होता कि एक मैंने ही ऐसी कोई कोशिश नहीं की थी ?”
“बैठो ।”
“शुक्रिया ।”
“चाय पियोगे ?”
“नहीं, शुक्रिया । मैं अभी हैवी ब्रेकफास्ट करके आया हूं ।”
“एक्सपेंस एकाउन्ट में ?”
मुकेश हंसा
“सारी रात मैं तुम्हारी बाबत सोचता रहा कि क्यों मकतूल ने तुम्हें अपना बैनीफिशियेरी बनाया ?”
“कुछ सूझा ?”
“नहीं सूझा । सिवाय उस बात के जिसे कि वो लड़का विनोद पाटिल भी हवा दे रहा था ।”
“कि मैंने मकतूल को ठग लिया ?”
“मैंने तुम्हारी फर्म की बाबत दरयाफ्त किया है । बहुत रुतबे और इखलाक वाली फर्म बतायी जाती है वो । इसलिये यकीन नहीं आता कि उसका कोई पार्टनर ऐसी हरकत कर सकता है ।”
“नहीं कर सकता । नहीं की ।”
“भई, शक करना मेरा काम है, मैं शक किये बिना नहीं रह सकता ।”
“शक से काम चलता है पुलिस का ?”
“मुकम्मल काम तो नहीं चलता लेकिन पहला कदम रखने की जगह तो मिलती है ।”
“ये भी ठीक है । तो अब आप मेरे पीछे पड़ेंगे ।”
“वो तो पहले ही पड़ा हुआ हूं लेकिन सिर्फ तुम्हारे नहीं । सबके ।”
“अभी तक कुछ हाथ लगा ?”
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