RE: Desi Sex Kahani वारिस (थ्रिलर)
ब्लैक पर्ल क्लब के पिछवाड़े में एक प्रीफैब्रिकेटिड, दोमंजिली इमारत थी जिसकी निचली मंजिल पर एक गोदाम, एक गैरज और जनरेटर हाउस और ऊपरली मंजिल पर छ: रिहायशी कमरे थे । इमारत के एक पहलू से पहली मंजिल तक पहुंचती खुली सीढियां थीं जो कि रिहायशी कमरों के सामने के लम्बे गलियारे में जाकर खत्म होती थीं ।
उस गलियारे के सिरे पर क्लब की पॉप सिंगर मीनू सावन्त का कमरा था ।
मुकेश ने कमरे के दरवाजे पर दस्तक दी तो कोई जवाब न मिला । उसने उसका हैंडल घुमा कर भीतर को धक्का दिया तो पाया कि दरवाजा खुला था ।
“मीनू !” - उसने आवाज लगायी ।
कोई जवाब न मिला ।
हिचकिचाता हुआ वो भीतर दाखिल हुआ । उसने अपने पीछे दरवाजा भिड़काया और एक सरसरी निगाह कमरे में दौड़ाई ।
कमरे में बेतरतीबी का बोलबाला था जो कि पता नहीं वहां रहने वाली की लापरवाही जताता था या उसकी हद से ज्यादा मसरूफियत की तरफ इशारा था । दरवाजा खुला होने का मतलब था कि वो आसपास ही कहीं थी । कमरे की पिछली दीवार में दो बन्द दरवाजे थे । उसने आगे बढ कर एक को खोला तो पाया कि वो बाथरूम था । दूसरा दरवाजा एक छोटी सी किचन का था लेकिन वहां किचन में इस्तेमाल होने वाला कतई कोई साजोसमान नहीं था । वहां गोदरेज की एक अलमारी की मौजूदगी खासतौर से ये जाहिर कर रही थी कि किचन उन दिनों स्टोर की तरह इस्तेमाल होती थी । उसने अलमारी का हैंडल घुमाया तो उसमें ताला लगा पाया । किचन के ग्रेनाइट के प्लेटफार्म के नीचे दराजों वाली कैबिनेट लगी हुई थी जो कि तकरीबन खाली थीं । केवल एक दराज में कुछ दवाईयां और कुछ श्रृंगार प्रसाधन पड़े थे । उसने दवाईयों का मुआयना किया और फिर दोरंगे कैप्सूलों से आधी भरी एक शीशी वहां से उठाई । शीशी पर लगे लेबल पर लिखा था: स्लीपिंग कैप्सूल्स, टु बी यूज्ड अंडर मेडिकल एडवाइस ।
उसने शीशी खोल कर कुछ कैप्सूल अपनी हथेली पर पलटे । कैप्सूल लाल और सफेद रंग के थे औ ऐन उसी साइज के थे जैसे के खोल उस क्लब के बूथ में पड़े मिले थे ।
“ये क्या हो रहा है ?”
उसने चौंक कर गर्दन उठाई ।
चौखट पर मीनू खड़ी थी ।
उसके चेहरे पर गहन अप्रसन्नता के भाव थे और वो अपलक मुकेश को देख रही थी ।
मुकेश हैरान था कि कैसे वो प्रेत की तरह उसके सिर पर आन खड़ी हुई थी, पता नहीं कब उसने बाहर का दरवाजा खोला था और कब वहां पहुंची थी । उसे तो न दरवाजा खुलने की आवाज आयी थी और न उसके कदमों की आहट मिली थी ।
मुकेश उस शाक से उबरा और फिर बोला - “ये नींद के कैप्सूल तुम खाती हो ?”
“ये मेरे सवाल का जवाब नहीं ।”
उसने कैप्सूल वापिस शीशी में डाले, उसका ढक्कन बन्द किया ।
“रास्ते से हटो ।” - वो बोला - “जवाब भी मिलता है ।”
“यूं चोरों की तरह यहां...”
“चोरी की इतना अन्देशा हो तो दरवाजा लाक्ड रखना चाहिये ।”
“मैं थोड़ी देर के लिये नीचे गयी थी...”
“थोड़ी देर में भी कुछ का कुछ हो जाता है ।”
“मिस्टर माथुर, दायें बायें की बातें करके तुम मेरे सवाल को टाल नहीं सकते ।”
“कौन टालना चाहता है ! जवाब देने के लिये ही दरख्वास्त की है कि मुझे इस चूहेदान के दमघोटू माहौल से बाहर निकलने दो ।”
वो एक तरफ हटी ।
मुकेश ने बाहर में कदम रखा । बहार बैड के सामने एक कुर्सी पड़ी थी जिस पर जाकर वो बैठ गया ।
“बैठो ।” - वो बोला ।
“लेकिन...”
“बैठो, तुम्हें कुछ दिखाना है....”
“क्या ?”
“....उसी में तुम्हारे सवाल का भी जवाब है इसलिये बैठो ।”
बड़े अनिश्चित भाव से वो आगे बढी और उसके सामने पलंग पर बैठ गयी ।
मुकेश ने बड़े नाटकीय अन्दाज से बैड को गुलाबी चादर पर उसके करीब कैप्सूलों के तीन खोल रखे और उनकी बगल में कैप्सूलों की शीशी रखी ।
“जवाब मिला ?” - वो बोला ।
मीनू खामोश रही, एकाएक वो बेचैन दिखाई देने लगी ।
“ये खोल मुझे क्लब के उस बूथ में टेबल के नीचे पड़े मिले थे जिसमें कल रात मैं, मिस्टर देवसरे और तुम बैठे थे ऐसे ही कैप्सूल इस शीशी में मौजूद हैं जो कि तुम इस्तेमाल करती हो । जो जवाब तुम्हें चाहिये वो यही है जो कि दो में दो जोड़ने जैसा आसान है ।”
वो फिर भी खामोश रही ।
मुकेश अपलक उसे घूरता रहा ।
“ये कोई दुर्लभ कैप्सूल नहीं हैं ।” - आखिरकार वो हिम्मत करके बोली ।
“कुबूल । लेकिन इनके भीतर की दवा मेरे ड्रिंक में मिलाने का मौका हर किसी को हासिल नहीं था । वेटर ने ये काम किया होता तो वो पहले ही मेरे ड्रिंक में ये दवा मिला कर लाया होता । उस सूरत में कैप्सूलों के खोल बूथ की मेज के नीचे न पड़े होते । मिस्टर देवसरे नींद के ऐसे जो कैप्सूल इस्तेमाल करते हैं वो साइज में इनसे बड़े हैं । जमा उन्हें ऐसी कोई हरकत करने की कोई जरूरत नहीं थी । बाकी या तुम बचती हो या तुम्हारा बॉस महाडिक ।”
“महाडिक !”
“जो ड्रिंक मेरे बूथ में लौटने से पहले मौजूद था उसकी बाबत तुमने कहा था कि वो कर्टसी महाडिक आन दि हाउस था । इसलिये महाडिक । लेकिन मेरा एतबार तुम्हीं पर है ।”
“खामाखाह !”
“ये शीशी तुम्हारी है ।”
“कौन कहता है ?”
“ये तुम्हारे कमरे में से बरामद हुई है ।”
“इसलिये मेरी हो गयी !”
“क्यों नहीं ?”
“तुम्हारी जानकारी के लिये क्लब की मेरे से पहले वाली पॉप सिंगर भी यहीं रहती थी और यहां कई चीजें ऐसी हैं जो कि वो पीछे छोड़ गयी है । मैंने कभी तवज्जो नहीं दी कि वो क्या क्या पीछे छोड़ गयी हुई है ।”
“तुम कहना चाहती हो कि ये शीशी उसकी है ।”
“जब मेरी नहीं है तो उसकी होगी ।”
“बात अच्छी गढ ली तुमने हाथ के हाथ ।”
“तुम पागल हो । मुझे ऐसी कोई बात गढने की क्या जरूरत है ?”
“जरूरत तो बराबर है । जिस किसी ने भी मेरे ड्रिंक में बेहोशी की दवा मिलाई वो या खुद कातिल था या कातिल का सहयोगी था । मैं हर वक्त साये की तरह मिस्टर देवसरे के साथ रहता था इसलिये कातिल जानता था कि मुझे मिस्टर देवसरे से जुदा किये बिना वो मिस्टर देवसरे के कत्ल के अपने नापाक इरादे में कामयाब नहीं हो सकता था । मौजूदा हालात में पुलिस या तुम्हें कातिल समझेगी या तुम्हें मजबूर करेगी बताने के लिये कि तुमने किसके कहने पर मेरे ड्रिंक में बेहोशी की दवा मिलाई ।”
“मिस्टर, ये कहानी तुमने इसलिये गढी है क्योंकि तुम अपराधबोध से ग्रस्त हो ।”
“क्या ?”
“यू आर सफरिंग फ्रॉम गिल्टी कांशस । तुम इस बात से शर्मिन्दा हो कि कल रात तुम्हें बूथ में नींद आ गयी जिसकी वजह से मिस्टर देवसरे का कत्ल हो गया । अब तुम अपने आपको पाक साफ साबित करने के लिये ये कहानी गढ रहे हो कि तुम्हें नींद नहीं आयी थी, तुम्हें इरादतन बेहोश किया गया था ।”
मुकेश भौचक्का सा उसका मुंह देखने लगा ।
“तुम साबित कर सकते हो कि कैप्सूलों के खोल तुमने बूथ में से उठाये थे ।”
“और कहां से आये थे मेरे पास ?” - मुकेश के मुंह से निकला ।
“अभी दो मिनट पहले जब यह शीशी तुम्हारे कब्जे में थी तो कितने ही कैप्सूल तुम्हारी हथेली पर थे । तुमने दो को खोला, उनकी दवा हवा में उड़ाई और खाली खोल मुझे दिखाने के लिये, मुझ पर तोहमत लगाने के लिये, पास रख लिये ।”
“खाली खोल तीन हैं, मैंने ऐसा किया होता तो ये चार होते ।”
“एक गिर गया होगा कहीं इधर उधर, शीशी में वापिस चला गया होगा बन्द कैप्सूलों के साथ ।”
“खाली खोल मैंने बूथ में से उठाये थे ।” - मुकेश जिदभरे स्वर में बोला ।
“क्यों उठाये थे ? जब तुम्हें उनका रिश्ता कत्ल से जुड़ता लग रहा था तो क्यों उठाये थे ?”
“यही तो गलती हुई ।”
“मुझे तो लगता है कि न तुम्हें नींद आयी थी और न तुम्हारे ड्रिंक में नींद की दवा थी । तुमने जानबूझ कर सोया होने का बहाना किया था ताकि तुम्हारे किसी जोड़ीदार को मिस्टर देवसरे का कत्ल करने का मौका हासिल हो पाता ।”
मुकेश का निचला जबड़ा लटक गया, वो अवाक उसे देखने लगा ।
“भई वाह !” - फिर वो बड़ी कठिनाई से बोल पाया - “इसे कहते हैं उलटा चोर कोतवाल को डांटे ।”
उसने लापरवाही से कन्धे उचकाये ।
“यही इकलौता सबूत नहीं है, मैडम जी, जो कातिल को पकड़वा सकता है । देर सबेर कानून के लम्बे हाथ कातिल की और कातिल के जोड़ीदार की गर्दन तक पहुंच के रहेंगे ।”
“कानून की जिस्मानी बनावट ही गलत है । हाथ लम्बे होने से क्या होता है ! बांहें लम्बी होती तो कोई बात भी थी ।”
“तुम मजाक कर रही हो ।”
वो जबरन हंसी ।
“ये खोल बूथ में से उठाना मेरी गलती थी लेकिन ये गलती मैंने इसलिये करना कुबूल किया था क्योंकि उस वक्त भी मेरे जेहन में तुम्हारा ही अक्स था । अब अगर तुमने साबित करके दिखाया होता कि मेरे होश खोने में तुम्हारा कोई हाथ नहीं था तो मुझे अपनी गलती का कोई अफसोस न होता लेकिन तुम तो उल्टे मुझे गुनहगार ठहरा रही हो । अब मुझे अपनी गलती दुरुस्त करनी होगी ।”
“क्या करोगे ?”
“इन्स्पेक्टर अठवले को सब कुछ सच कह सुनाऊंगा ।”
“वो जरूर ही तुम्हारी बात पर यकीन करेगा ।”
“देखेंगे ।”
उसने मेज पर से खोल उठा लिये लेकिन जब कैप्सूलों की शीशी उठाने लगा तो मीनू ने उसे पहले अपने काबू में कर लिया ।
“ये तुम्हारी नहीं है ।” - वो बोली ।
“तुम्हारी भी तो नहीं है । तुमने अभी खुद कहा था ।”
“मेरी नहीं तो तुम्हारी हो गयी ?”
“अजीब लड़की हो ।”
“तुम क्या कम अजीब हो जो बेवजह बात का बतंगड़ बना रहे हो ।”
“बेवजह ?”
“और क्या ! एक बात पर टिक के नहीं रह सकते ! जब कहते हो ये खोल बूथ में से उठा कर तुमने मेरे पर मेहरबानी की तो अब मेहरबानी जारी नहीं रख सकते हो ?”
“अब तुम नया ही पैंतरा बदल रही हो ।”
“जिस पर मेहरबान होते हैं उस पर एतबार लाते हैं या शक करते हैं ? गिरफ्तार करा देने की धमकी देते हैं ?”
“मैंने कब दी धमकी ?”
“अभी बोला नहीं इंस्पेक्टर अठवले के पास जाने की ? फिर वो क्या मुझे यूं ही छोड़ देगा ?”
“तुम मुझे यकीन दिलाओ कि मेरे ड्रिंक में बेहोशी की दवा तुमने नहीं मिलाई थी तो मैं इस बाबत इन्स्पेक्टर से कोई जिक्र नहीं करूंगा ।”
“कैसे यकीन दिलाऊं ? मैं कसमिया कह सकती हूं कि मैंने ऐसा कुछ नहीं किया । आगे यकीन करना या न करना तुम्हारी मर्जी पर मुनहसर है ।”
मुकेश खामोश रहा । अब उसके चेहरे पर अनिश्चय के भाव थे ।
“तुमने इतनी बातें कहीं” - इस बार वो नम्र स्वर में बोली - “एक मेरी भी सुनो ।”
“क्या ?”
“बूथ से इन कैप्सूलों के खोलों की बरामदी ही ये साबित नहीं करती कि किसी ने तुम्हें इरादतन बेहोश किया था ।”
“क्यों नहीं करती ? ऐसा था तो खोल क्यों थे वहां ?”
“उन पर कोई तारीख दर्ज है ? टाइम दर्ज है ?”
“क्या मतलब ?”
“क्या पता वो कब से वहां पड़े थे !”
“कब से कैसे पड़े होंगे ? वहां रोज सफाई नहीं होती ?”
“होती है लेकिन सफाई कर्मचारियों का अलगर्ज और लापरवाह होना क्या बहुत बड़ी बात है ?”
“हूं ।”
“तुम्हारी जानकारी के लिये कल रात तुम्हें जिसने भी देखा था तुम उसे नींद में लगे थे - खुद मिस्टर देवसरे को भी - बेहोश किसी को नहीं लगे थे ।”
“मिस्टर देवसरे ने मेरी तब की हालत खुद देखी थी या उस बाबत किसी से सुना था ।”
“सुना ही होगा क्योंकि वो तो कैसीनों में थे ।”
“किससे ?”
“शायद करनानी से या शायद महाडिक से । मैं अपना सांग नम्बर खत्म करके जब एक मिनट के लिये कैसीनो में गयी थी तो तब वो दोनों वहां थे और मिस्टर देवसरे के करीब थे । लेकिन जब वो मेरे साथ लौट रहे थे तब तो उन्होंने देखा ही था तुम्हें । तभी तो उन्होंने हुक्म दिया था कि तुम्हें जगाया न जाये ।”
“आई सी ।”
|