RE: Desi Sex Kahani वारिस (थ्रिलर)
अगली सुबह मुकेश ने ब्रेकफास्ट कॉटेज में न मंगाया, वो ‘सत्कार’ में पहुंचा ।
तब दस बजे का टाइम था और वहां कुछ नये चेहरे दिखाई दे रहे थे । उनमें से दो परिवार वाले थे जो कि लगता था कि एक रात के लिये ही वहां ठहरे थे । ब्रेकफास्ट के बाद वो अपनी अपनी कारों पर सवार हुए और वहां से रुख्सत हो गये । तब पीछे एक ही नया चेहरा रह गया, जो कि तीसेक साल की एक औरत थी जो ब्रेकफास्ट की उस घड़ी में भी खूब सजी धजी थी । उसके कटे बाल बड़े फैशनेबल ढंग से संवरे हुए थे, चेहरे पर फुल मेकअप था और वो वहां के माहौल में न खपने वाली काफी भारी साड़ी पहने थी ।
शायद आइन्दा सफर के लिये तैयार थी - मुकेश ने मन ही मन सोचा ।
वो एक कोने की टेबल पर बैठ गया तो रिंकी मुस्कराती हुई उसके करीब पहुंची ।
“गुड मार्निंग ।” - वो बोली ।
“गुड मार्निंग । कल इन्स्पेक्टर अठवले को फोन कर दिया था ?”
“हां ।”
“कुछ कहता था ?”
“उसे वो मेरे कत्ल की कोशिश नहीं लगी थी । कहता था इत्तफाकिया हुआ एक्सीडेंट था ।”
“झांकी कौन है ?”
“रिजॉर्ट की नयी मेहमान है । कल रात ही आयी । दो नम्बर कॉटेज में ।”
“आई सी । अब थोड़ा सा ब्रेकफास्ट मिल जाये ।”
“अभी हाजिर होता है ।”
दो मिनट में ब्रेकफास्ट हाजिर हुआ ।
ब्रेकफास्ट के आखिर में जब वो कॉफी का आनन्द ले रहा था तो करनानी वहां पहुंचा । पहले मुकेश को लगा कि वो उसकी ओर का रुख कर रहा था लेकिन ऐसा न हुआ, उसने मुकेश की तरफ केवल हाथ हिलाया और फिर दो नम्बर कॉटेज वाले नये मेहमान की टेबल पर पहुंचा ।
महिला ने सिर उठाकर उसकी तरफ देखा ।
करनानी मुस्कराया, फिर दायें हाथ से पेशानी छू कर उसने महिला का अभिवादन किया । महिला ने पूर्ववत मुस्कराते हुए अभिवादन का जवाब दिया और सामने पड़ी कुर्सी की ओर इशारा किया । करनानी बैठ गया, उसने चुटकी बजा कर वेटर का ध्यान अपनी तरफ आकर्षित किया ।
वेटर दोनों को कॉफी सर्व कर गया ।
महिला पहले से कॉफी पी रही थी, उसने पहला कप छोड़ कर नया कप सम्भाल लिया ।
दस मिनट हौले हौले दोनों में वार्तालाप चला ।
फिर महिला एकाएक उठी और कूल्हे झुलाती वहां से रुख्सत हो गयी ।
करनानी कुछ क्षण अपलक उसे जाती देखता रहा और फिर उठकर मुकेश की टेबल पर आ गया ।
“कोई पुरानी वाकिफकार थी ?” - मुकेश बोला ।
“तुम देख रहे थे ?”
“मर्जी तो नहीं थी लेकिन पास ही तो बैठे हुए थे तुम लोग । जब सिर उठाता था, निगाह पड़ जाती थी ।”
“आई सी ।”
“कौन थी ?”
“सुलक्षणा । सुलक्षणा घटके । कल शाम को इत्तफाक से मिल गयी । अब कुछ दिन यहीं ठहरेगी ।”
“शादीशुदा, बालबच्चेदार औरत जान पड़ती थी !”
“बालबच्चेदार नहीं, शादीशुदा बराबर लेकिन भूतकाल में ।”
“क्या मतलब ?”
“विधवा है ।”
“ओह ! आई एम सो सॉरी ।”
“अब मेरी तरफ से रिंकी को तुम फारिग समझो ।”
“क्या मतलब ?”
“उस पर लाइन मारने की मंशा हो तो मुझे अड़ंगा न समझना ।”
“मजाक कर रहे हो ?”
वो हंसा ।
“तो आइन्दा दिनों में तुम्हारी तवज्जो का मरकज ये सुलक्षणा मैडम रहेंगी !”
“है तो ऐसा ही कुछ कुछ ।”
“बधाई ।”
“और क्या खबर है ?”
मुकेश का जी चाहा कि वो उसे रिंकी के पिछली रात के एक्सीडेंट की बाबत बताये लेकिन उसने चुप रहना ही मुनासिब समझा । वो रिंकी से खूब हिला मिला हुआ था, देर सबेर वो ही उसे बता देती ।
या शायद बता ही चुकी थी ।
“कोई खबर नहीं ।” - वो उठता हुआ बोला ।
“किधर का इरादा है ?”
“शहर जाऊंगा ।”
“सैर करने ?”
“कहां, भई ! थाने से बुलावा है ।”
“ओह !”
वो वापिस रिजॉर्ट के परिसर में पहुंचा ।
उसे मालूम था कि घिमिरे अपनी कार कॉटेज के पिछवाड़े में एक सायबान के नीचे खड़ी करता था ।
कार वहां नहीं थी ।
कार अहाते में जनरल पार्किंग में भी नहीं थी ।
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