RE: Mastaram Kahani कत्ल की पहेली
अधिकारी ने इनकार में सिर हिलाया ।
“परसों रात तुम यहां थे । तुम रोमानो की कार पर एस्टेट से बाहर की सड़क पर मौजूद थे । हाउसकीपर ने तुम्हें एस्टेट में तांक-झांक करता देखा हो सकता है ।”
“नो सच थिंग । और ताक-झांक कौन कर रहा था ? मैं तो ताक-झांक नहीं कर रहा था ।”
“तो और क्या कर रहे थे यहां ?”
“किसी का कत्ल नहीं कर रहा था । कब हुआ था हाउसकीपर का कत्ल ?”
“परसों रात को । साढे तीन बजे के बाद किसी वक्त ।”
“उस वक्त से तो कहीं पहले मैं वापिस ईस्टएण्ड लौट चुका था ।”
“तुम जाके फिर आ गये होगे ।”
“नो, बॉस । नैवर ।”
“या फिर गये ही नहीं होंगे । आधी रात तक तो तुम यकीनन यहीं थे जबकि मिस्टर माथुर से तुम्हारी मुलाकात हुई थी । क्यों, मिस्टर माथुर !”
“हल्लो, मिस्टर माथुर ।” - अधिकारी राज की तरफ हाथ हिलाता हुआ बोला - “सो वुई मीट अगेन ।”
“तुम” - सोलंकी सख्ती से बोला - “इधर मेरी तरफ तवज्जो दो ।”
“यस, बॉस ।”
“तुमने मिस्टर माथुर को ये कयों कहा था कि तुम कुक के इन्तजार में बाहर सड़क पर मौजूद थे ?”
“ये सवाल पूछ रहे थे । कोई तो जवाब मैंने देना ही था । कोई ऐसा जवाब देना था जिससे इनकी उत्सुकता शान्त होती । मैंने कह दिया मैं कुक का इन्तजार कर रहा था । वो जवाब इन्हें फौरन हज्म हो गया था । मैं इन्हें कहता कि मैं बाम्बे फिल्म इन्डस्ट्रीज में कई स्टार्स का सैक्रेट्री था, एजेन्ट था, टेलेन्ट स्काउट था तो क्या इन्हें मेरी बात पर यकीन आता ?”
“झाड़ियों में छुपे क्यों बैठे थे । तुम मिस शशिबाला के सैक्रेट्री थे, यहां मौजूद तमाम लड़कियों के पुराने वाकिफ थे तो भीतर जाकर उनसे क्यों न मिले ?”
अधिकारी ने बेचैनी से पहलू बदला ।
“तुमने” - फिगुएरा ने जोड़ा - “आइलैंड से चुपचाप खिसकने की कोशिश की । तुम्हारी ये भी कोशिश थी कि किसी को खबर ही न लगे कि तुम यहां मौजूद थे । तुम्हारी हर हरकत शक के काबिल है ।”
“जरूर” - सोलंकी बोला - “तुम ही कातिल हो ।”
“ओह नो ।” - वो भुनभुनाता-सा बोला ।
“तो सच बोलो, क्या किस्सा है ?”
“मैं अपनी स्टार के सामने नहीं बोल सकता ।”
“अब मैं तुम्हारी स्टार नहीं हूं ।” - शशिबाला बोली - “अब तुम मेरे सैक्रेट्री नहीं हो । हमारा रिश्ता टूटे पूरे पांच मिनट हो चुके हैं ।”
“बेबी” - अधिकारी आहत भाव से बोला - “यू कैंट बी सीरियस !”
“बट आई एम ।”
“ओह, नो ।”
“ओह, यस ।”
“अब हमारे बीच में कुछ नहीं ?”
“कतई कुछ नहीं ।”
“ठीक है, फिर बोलता हूं । बॉस” - वो सोंलकी की तरफ घूमा - “मैं सिर्फ पायल की फिराक में यहां आया था । मैं नहीं चाहता था किसी को, खासतौर से मेरी क्लायन्ट को - शशिबाला को - मेरी यहां मौजूदगी की खबर लगती ।”
“क्यों ? बात को साफ करके कहो ?”
“उसके लिये मुझे सात-आठ साल पीछे जाना होगा जबकि मिस्टर सतीश की बुलबुलों के फैशन शोज ने सारे हिन्दोस्तान में धूम मचाई हुई थी । बाम्बे की सारी फिल्म इन्डस्ट्री की इन लड़कियों पर निगाह थी और इनमें से भी एक पायल पाटिल का बुरी तरह से रोब गालिब था । मशहूर फाइनांसर प्रोड्यूसर डायरेक्टर दिलीप देसाई तो कहता था कि मधुबाला के बाद अगर उसने सही मायनों में कोई खूबसूरत औरत देखी थी तो वो पायल थी । वो ही मेरे पीछे पड़ा हुआ था कि मैं किसी भी तरह पायल से उसका कान्ट्रेक्ट कराऊं और उसे उसकी फिल्म में हिरोइन का रोल करने के लिए पटाऊं । लेकिन पायल थी कि फिल्मों में कोई दिलचस्पी ही नहीं दिखा रही थी । सच पूछो तो बाकी लड़कियों का भी यही रवैया था । उन दिनों बतौर फैशन माडल उनको इतना यश मिला था इतना मीडिया का एक्पोजर मिला था, इतना पैसा मिला था कि मूवी कान्ट्रैक्ट को ये किसी खातिर में नही नहीं लाती थीं । तब एक शशिबाला ही थी जो किसी तरह से फिल्मों में आने को राजी हो गयी थी ।”
“तुम पायल की बात करो ।”
“उसी की बात कर रहा हूं । ये भी पायल की ही बात का एक हिस्सा है । मैं यह कह रहा था कि पायल को तब मूवी कान्ट्रैक्ट मंजूर नहीं हुआ था । एक्ट्रेस बनने के मुकाबले में मिसेज श्याम नाडकर्णी बनना उसे कहीं ज्यादा चोखा सौदा लगा था । लेकिन दिलीप देसाई था कि उसपर तो जैसे पायल पाटिल का भूत सवार था । वो तो किसी भी सूरत में पायल को अपनी हीरोइन बनाना चाहता था । बॉस, मुझे पांच लाख रुपये के बोनस की आफर थी अगरचे कि मैं पायल को देसाई फिल्म्स कम्बाइन के लिए साइन करने में कामयाब हो जाता । अब आप ही सोचिये कि इस काम के लिये मैं क्यों न पायल के पीछे दिन-रात मारा-मारा फिरता ?”
“लेकिन तुम कामयाब न हुए ?”
“नहीं हुआ, बॉस । अलबत्ता शशिबाला को मैंने मना किया था जोकि पायल से किसी कदर खूबसूरत नहीं थी लेकिन देसाई का ‘पायल-पायल’ भजना फिर भी बन्द नहीं हुआ था । उसकी निगाह में हुस्न और जवानी के मुकाबले में पायल के आगे दुनिया खत्म थी । उसने शशिबाला को इस स्टाइल से साइन किया था जैसे प्लेन फ्लाइट मिस हो जाने पर कोई ट्रेन से सफर करना कबूल कर लेता है ।”
शशिबाला के चेहरे पर क्रोध के तीखे भाव आये ।
“बेबी” - अधिकारी खेदपूर्ण स्वर में बोला - “तभी तो मैंने इन पुलिस वालों को कहा था कि मैं अपनी स्टार के सामने नहीं बोल सकता था ।”
“मैं ट्रेन हूं ?” - वो आंखे निकालती हुई बोली ।
“तुम तो जैट प्लेन हो । राकेट हो । स्पेस क्राफ्ट हो । लेकिन अब देसाई को कोई कैसे समझाये जो पिछले सात साल में भी अपनी ‘पायल को लाओ । पायल को साइन करो’ की रट नहीं छोड़ पाया है ।”
“वो आज भी पायल को साइन करना चाहता है ?”
“हां । उसकी मुंह मांगी कीमत पर । और मेरे लिये वो पांच लाख का बोनस भी आज भ स्टैण्ड करता है ।”
“जबकि उसने पिछले सात साल से पायल की सूरत नहीं देखी, तुमने भी पिछले सात साल से पायल की सूरत नहीं देखी । तुम लोगों को इस बात की क्या गारन्टी है कि पायल आज भी उतनी ही हसीन होगी जितनी की वो सात साल पहले थी ।”
“मैंने देखा था उसे ।” - ज्योति बोली - “वो वैसी ही थी जैसी कि सात साल पहले थी ।”
“होगी । लेकिन कोई गारन्टी तो नहीं थी इस बात की !”
“बॉस” - अधिकारी बोला - “मेरा काम अपने प्रोड्यूसर को जिद पूरी करना था । और पांच लाख का बोनस कमाना था । आज की तारीख में देसाई को पायल से कोई नाउम्मीद होती थी तो मुझे उससे क्या लेना-देना था ? पांच लाख के बोनस की जो हड्डी देसाई ने मेरे सामने डाली हुई थी, उसके साथ ऐसी कोई शर्त नत्थी नहीं थी कि पायल के अक्षत यौवन की इंश्योरेंस भी मेरे ही जिम्मे थी ।”
“बालपाण्डे कहता है” - शशिबाला जलकर बोली - “कि तीन साल पहले वो खंडहर लगती थी ।”
“ऐसा ?” - अधिकारी सकपकाया-सा बोला ।
“लेकिन ज्योति ऐसा नहीं कहती ।” - बालपाण्डे जल्दी से बोला - “मेरे ख्याल से वो बीच में कभी कुछ बीमार-वीमार रही होगी लेकिन बाद में ठीक हो गयी होगी ।”
“ऐसी लड़की से” - सतीश धीरे-से बोला - “ईर्ष्या करने का क्या फायदा जो अब इस दुनिया में नहीं ।”
शशिबाला सकपकाई, फिर अपने आप ही उसका सिर झुक गया ।
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