RE: Mastaram Kahani कत्ल की पहेली
सफेद टयोटा उन्हें गैरेज में खड़ी मिली ।
“ये तो राइट हैण्ड ड्राइव है ।” - राज बोला - “स्टियरिंग दाईं तरफ है । हमारे यहां की कारों की तरह ही ।”
डॉली ने सहमति में सिर हिलाया और बोली - “अब इसका क्या मतलब हुआ ?”
“इसका मतलब यह हुआ कि इस कार को चलाते हुए इसके मालिक कौशल निगम की बाई बांह धूप में नहीं झुलस सकती । इसका आगे मतलब ये हुआ कि कार को निगम नहीं चला रहा था, वो ड्राइवर के साथ बायें, पैसंजर सीट पर था । इसी वजह से तीखी धूप ने उसकी बायीं बांह पर असर किया था, उसकी बायीं बांह सनबर्न का शिकार हुई थी ।”
“यानी कि अपनी कार पर निगम यहां आइलैंड पर अकेला नहीं पहुंचा था ।”
“ये तो पक्की बात है कि सफर में कोई उसके साथ था । लेकिन जरूरी नहीं कि वो पूरे सफर में ही उसके साथ रहा हो । मुमकिन है आगरा से रवाना होने के बाद उसने किसी को पिक किया हो और पणजी या उससे पहले कहीं उसे उतार दिया हो ।”
“किसी को लिफ्ट दी होगी उसने ?”
“हो सकता है ।”
“कैसे हो सकता है ? कोई किसी को लिफ्ट देता है तो क्या गाड़ी उसे चलाने को कहता है ?”
“ये भी ठीक है ।”
“ऊपर से तुम एक बात भूल रहे हो । निगम जब अपनी कार पर यहां पहुंचा था तो उसने इस बात पर विशेष जोर दिया था कि आगरे से लेकर यहां तक का उन्नीस घण्टे का लम्बा और बोर सफर उसे अकेले - आई रिपीट, अकेले - काटना पड़ा था । अब जरा सोचो कि अगर उसने रास्ते में किसी को लिफ्ट दी होती तो क्या वो ऐसा कहता ?”
“नहीं, तब तो वो कहता कि उसने किसी को लिफ्ट दी ही इसी वजह से थी कि उसे अकेले बोर न होना पड़ता ।”
“सो, देअर यू आर ।”
“लेकिन कोई उसके साथ था जरूर । उसकी झुलसी हुई बायीं बांह इस बात की साफ चुगली कर रही है कि उसके साथ कोई था जो उसकी जगह गाड़ी चला रहा था, जो लिफ्ट नहीं था, जिसकी अपने साथ मौजूदगी को वो छुपाकर रखना चाहता था और जो, कोई बड़ी बात नहीं कि, आइलैंड तक उसके साथ आया था ।”
“यहां तक ?”
“हां । पुलिस ने भी इस बात पर शक जाहिर किया था । तभी तो वो इंस्पेक्टर सोलंकी बार-बार उससे पूछ रहा था कि क्या पिछली रात उसके साथ कार में कोई था ।”
“ये कोई कौन होगा ?”
“तुम बताओ ।”
“मैं क्या बताऊं ?”
“शर्तिया कोई लड़की थी ।”
वो एक नयी आवाज थी जिसने दोनों को चौंकाया । दोनों ने एक साथ घूमकर पीछे देखा तो गैरेज के फाटक की ओट से उन्हें शशिबाला निकलती दिखाई दी ।
“हल्लो !” - वो करीब आकर बोली ।
“छुप-छुपके किसी की बातें सुनना” - डॉली भुनभुनाई - “तहजीब के खिलाफ होता है ।”
“ये तहजीब वालों के सोचने की बातें हैं, मेरी जान, हमने ऐसी बातों से क्या लेना-देना है !”
डॉली ने बुरा-सा मुंह बनाया ।
“और फिर ऊचा-ऊंचा तो तुम लोग बोल रहे थे ।”
“ऊंचा तो नहीं बोल रहे थे हम ।” - राज बोला ।
“जरूर इस गैरेज में आवाज गूंजती होगी ।”
“ये गैरेज है” - डॉली बोली - “मकबरा नहीं है ।”
शशिबाला हंसी ।
“तो” - राज बोला - “आपका ख्याल है कि कौशल निगम के साथ कोई लड़की थी ?”
“हां ।” - शशिबाला बोली ।
“कैसे कह सकती हैं, आप ?”
“भई तुम विकी को नहीं जानते, मैं जानती हूं । उन्नीस घण्टे बोर होते गुजारने वाली किस्म का आदमी नहीं है वो ।”
“लेकिन लड़की...”
“ही इज ए लेडीज मैन । मर्दों में दिल नहीं लगता उसका ।”
“हनी” - एकाएक डॉली बोली - “अगर तुम चाहती हो कि राज तुम्हारी बात ठीक से सुन समझ सके तो बाइस्कोप बन्द कर लो ।”
“बाईस्कोप !” - शशिबाला सकपकाई ।
“हां ।”
तब उसकी तवज्जो अपने साड़ी के ढलके हुए पल्लू की तरफ गयी । उसने पल्लू को अपने उन्नत वक्ष पर व्यवस्थित किया और मुस्कराती हुई राज से बोली - “अब ठीक सुनाई दे रहा है ?”
“हां ।” - राज बोला - “बात विकी की हो रही थी ।”
“हां । डॉली, तुम तो विकी को मेरे से बेहतर जानती हो, तुम्हीं ने इसे अपने विकी की खूबियां बतायी होतीं । इसे समझाया होता कि कोई हसीना ही हो सकती थी गाड़ी में विकी के साथ । ज्योति उसे विलायती कार ले के देती है जो कि विकी का खिलौना है, जिसके साथ कि वो ‘टयोटा टयोटा’ खेलता है । अपने खिलौने को वो अपने जैसे किसी के हवाले भला कैसे कर सकता है ? लेकिन किसी नन्ही मुन्नी गुड़िया को वो अपने खिलौने से खेलने दे सकता है । किसी नौजवान, हसीन, दिलफरेब, तौबाशिकन लड़की को अपनी कार चलाने दे सकता है वो ।”
“मैं तुम्हारे जितना नहीं जानती विकी को लेकिन तुम्हारी बात ठीक है । कोई लड़की ही होगी उसके साथ । लेकिन होगी कौन वो ?”
“होगी कोई हमनशीं, हमसफर, दिलनवाज ।”
“पायल ।” - राज धीरे से बोला ।
“क्या !”
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