RE: Desi Porn Stories अलफांसे की शादी
“ये लो, बन्द कर दी।” कहने के साथ ही विजय ने हवा में इस तरह हाथ नचाने शुरू कर दिए जैसे किसी वस्तु को सेफ में रखकर उसका लॉक बन्द कर रहा हो, परन्तु लॉक बन्द करता-करता वह अचानक ही रुक गया और बोला—“ठहरो-ठहरो प्यारे तुना राशि, ये तो सब गड़बड़ हो गई—नाक एक होती है, कान दो होते हैं—फिर भला नाक कानों के स्थान पर कैसे लग सकती है?”
विजय की बकवास पर रघुनवाथ भुनभुनाता रहा, जबकि विजय अपना भरपूर मनोरंजन कर रहा था, उधर रैना किचन में परांठे बनाने की तैयारियां कर रही थी और उसका लाड़ला पिट्स में बैठा हवा में कलाबाजियां खा रहा था।
थोड़ी देर बाद पिट्स फ्लाइंग क्लब के एयरपोर्ट की तरफ चला गया—उस वक्त रघुनाथ का दिमाग बुरी तरह झन्ना रहा था, जब पहला परांठा टेबल पर आया, विजय परांठे पर इस तरह झपट पड़ा जैसे वर्षों से भूखा हो। रघुनाथ दांत पीस उठा था, जबकि रैना मुस्कराती हुई लौट गई।
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आलू के परांठों की वह दावत अभी चल ही रही थी कि किसी धनुष से छोड़े गए तीर की तरह सनसनाती हुई कार कोठी का मुख्य द्वार पार करके लॉन में आई और एक तीव्र झटके के साथ पोर्च में रुकी, उस वक्त रैना भी विजय और रघुनाथ के पास लॉन ही में थी।
कार की गति अत्यन्त तेज होने के कारण तीनों का ध्यान उस तरफ चला गया।
अभी उनमें से कोई कुछ बोल भी नहीं पाया था कि कार का दरवाजा एक झटके से खुला, पहले विकास और उसके पीछे धनुषटंकार बाहर निकला।
“हैलो अंकल!” विकास उसे देखते ही चहक उठा, “सुबह-सुबह परांठे उड़ाए जा रहे हैं!”
“तुम पिट्स उड़ा सकते हो प्यारे तो क्या हम परांठे भी नहीं उड़ा सकते?”
गुलाबी होंठों पर मोहक मुस्कान लिए लड़का आगे बढ़ा, सच्चाई ये है कि विजय एकटक उसे देखता ही रह गया, इस वक्त वह बेहद आकर्षक लग रहा था, कामदेव-सा सुन्दर। उसके साढ़े छह फीट लम्बे हृष्ट-पुष्ट सेब जैसे रंग के गठे हुए जिस्म पर काली बैल-बॉटम और हाफ बाजू वाला हौजरी का काला ही बनियान था, मजबूत बांहें स्पष्ट दृष्टिगोचर हो रही थीं।
उसका चेहरा गोल था, गुलाबी होंठ, बड़ी-बड़ी गहरी काली आंखें, अर्ध-घुंघराले बालों वाला वह लड़का लम्बे-लम्बे कदमों के साथ नजदीक आया।
फिर, पूरी श्रद्धा से विजय के पैरों में झुका।
चरण स्पर्श करके अभी वह सीधा खड़ा हुआ ही था कि विजय ने कहा—“कुतुबमीनार बनने से कुछ नहीं होता प्यारे, ताजमहल बनो—किसी की मुहब्बत का बल्ब बनकर टिमटिमाओ!”
“क्या मतलब गुरु?”
मतलब बताने के लिए विजय ने अभी मुंह खोला था कि सूटेड-बूटेड धनुषटंकार ने पहले उसके चरण स्पर्श किए, फिर एक ही जम्प में विजय के गले में बांहें डालकर उसके सीने पर न केवल झूल गया, बल्कि दनादन उसके चेहरे पर चुम्बनों की झड़ी-सी लगा दी।
“अ...अबे...अबे...छोड़ गाण्डीव प्यारे!” बौखलाया-सा विजय कहता ही रह गया, मगर धनुषटंकार अपना पूरा प्यार जताकर ही माना और विजय के सीने से कूदकर सीधा एक कुर्सी की पुश्त पर जा बैठा।
धनुषटंकार एक छोटा-सा सूट पहने था, गर्दन में टाई और पैरों में नन्हें-नन्हें चमकदार जूते—पुश्त पर बैठते ही उसने अपने कोट की जेव से ‘डिप्लोमैट’ का क्वार्टर निकाला, ढक्कन खोला और कई घूंट गटागट पीने के बाद ढक्कन बन्द करके पव्वा जेब में रख लिया।
रैना बलिहारी जाने वाली दृष्टि से विकास को देखे जा रही थी।
“तुम इस ऊंट को इस तरह क्या देख रही हो रैना बहन, परांठे लाओ!” विजय के कहने पर रैना की तन्द्रा भंग हुई और झेंपती-सी वह अन्दर चली गई!
“बैठो प्यारे!” कहने के साथ ही विजय ने प्लेट में मौजूद परांठा खाना शुरू कर दिया।
खाली कुर्सी पर बैठते हुए विकास ने कहा—“आप कुतुबमीनार और ताजमहल का फर्क समझा रहे थे गुरु।”
“पहले तुम हमें उन कलाबाजियों के अर्थ समझाओ जो कुछ ही देर पहले कर रहे थे!”
“उनका भला क्या अर्थ हो सकता है?”
“ये नई बीमारी तुमने कब से पाल ली?
“उसी दिन से, जिस दिन इस बीमारी ने देश के एक बेटे की जान ली है!”
विजय चौंक पड़ा, परांठे से टुकड़ा तोड़ते विजय के हाथ रुक गए, बहुत ही ध्यान ने उसने विकास को देखा, लड़के के गुलाबी होंठों पर बड़ी ही प्यारी मुस्कान थी, विजय बोला—“हम समझे नहीं प्यारे!”
“आप समझकर भी नासमझ बन रहे हैं अंकल!”
“क्या तुम्हारा इशारा संजय गांधी की तरफ है?”
“बेशक!” विकास ने कहा—“जीने का यह नायाब और रोमांचकारी तरीका मैंने उसी से सीखा है, बल्कि मुझे तो यह कहने में भी कोई हिचक नहीं है अंकल कि इस मुल्क के हर युवक को उसके कैरेक्टर से जीने की प्रेरणा लेनी चाहिए—हमें सीखना चाहिए कि उसके जीने का अन्दाज क्या था?”
“बड़ी वकालत कर रहे हो प्यारे, युवा कांग्रेस के मेम्बर बन गए हो क्या?”
“मुझे दुख है गुरु कि मेरी बातों को आपने बहुत ही संकीर्णता से लिया है।”
“क्या मतलब प्यारे?”
“मैंने संजय गाधी की किसी राजनैतिक विचारधारा का जिक्र नहीं किया है अंकल, यदि मैं ऐसा करता तो आप मुझ पर कांग्रेसी होने या न होने का आरोप लगा सकते थे। मैं संजय की राजनैतिक सूझ-बूझ, नीतियों या विचारधारा का नहीं, बल्कि उस कैरेक्टर का जिक्र कर रहा हूं, जिसका राजनीति से कोई सम्बन्ध नहीं था—वह देश के प्रधानमन्त्री का बेटा था अंकल, किसी बात की कमी नहीं थी उसे, हर सुख, हर सुविधा उसके कदमों में रहती थी—उसके एक इशारे पर मनचाही हर वस्तु उसे प्राप्त हो सकती थी, क्या आप दुनिया के किसी एक भी ऐसे सुख का नाम बता सकते हैं जो उसे प्राप्त नहीं था?”
“नहीं!”
“तो क्या आप बता सकते हैं कि हर सुबह छह बजते ही वह अपना गद्देदार बिस्तर क्यों छोड़ देता था, पिट्स लेकर हर सुबह आकाश की ऊंचाइयों में परवाज करने की क्या जरूरत थी उसे—क्यों वह आकाश में कलाबाजियां खाने जैसा खतरनाक खेल खेला करता था?”
“पागल हो गया था वह!” रघुनाथ कह उठा।
विकास व्यंग्य से मुस्कराया, कुछ इस तरह जैसे रघुनाथ ने बहुत बचकानी बात कह दी हो, बोला—“कायर लोग बहादुरों को पागल ही कहते हैं डैडी, सोचने की बात है कि आखिर यह पागलपन चन्द लोगों पर ही सवार क्यों होता है? जवाब साफ है—सभी लोग बहादुर नहीं हो सकते, दुःसाहसी होना बहुत बड़ा दुःसाहस है—रोमांच की खोज में वही निकलते हैं जिन्हें मौत अपनी दासी नजर आती है, उन्हीं में से एक संजय था—दुःसाहसी, बहादुर, दिलेर और तेज रफ्तार वाला संजय!”
“मगर उसका अंजाम क्या हुआ?”
“वही, जिससे कायर डरता है और दिलेर जूझता है।”
“मैं तो कहता हूं कि इस ढंग से अपने जीवन के खतरे में डालकर वो बहुत ही बड़ी बेवकूफी करता था।”
“मैं कह ही चुका हूं डैडी कि आप जैसे लोग उसे बेवकूफी ही कहते हैं।”
“हम समझ रहे हैं प्यारे दिलजले कि तुम कहां बोल रहे हो?” एकाएक ही विजय पुनः वार्ता के बीच में टपकता हुआ बोला— “तुम यही कहना चाहते हो न कि वह दिलेर था, खतरों से खेलना उसकी प्रवृत्ति थी और ऐसी प्रवृत्ति बहादुर और रोमांचप्रिय लोगों में ही पाई जाती है?”
“शुक्र है आप समझे तो सही।”
“तुम्हारी बात अपनी जगह बिल्कुल सही है प्यारे, लेकिन अपने तुलाराशि की बात को भी जरा समझने की कोशिश करो, इनकी बातों में भी एक-दो नहीं, बल्कि कई मन वजन है।”
“मतलब?”
“वह मौत से आंख-मिचोली खेलने जैसा शौक था, माना कि ऐसा शौक किसी दिलेर व्यक्ति को ही हो सकता है, किन्तु ऐसा खेल कम-से-कम उन्हें नहीं खेलना चाहिए जिनकी जान कीमती हो।”
विकास ने रहस्यमय ढंग से मुस्कराते हुए पूछा—“आप संजय की जान को किस आधार पर कीमती मान रहे हैं?
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