RE: Thriller Sex Kahani - सीक्रेट एजेंट
कोंसिका क्लब में गोपाल पुजारा की तवज्जो का मरकज उसकी खास बारबाला रोमिला सावंत थी ।
उसने आठ बजे वहां पहुंचना था और अब साढ़े आठ बज चुके थे, नहीं पहुंची थी ।mnयार घ्ुसासय आयी ”
कहां मर गयी साली ! ऐसी गैरजिम्मेदार थी तो नहीं !
पुजारा ने उसके बोर्डिंग हाउस में उसकी लैंडलेडी को फोन लगाया ।
पता लगा वो वहां नहीं थी, लैंडलेडी ने कोई आधा घंटा पहले उसे उधर से निकल कर जाते देखा था ।
निकल कर कहां गयी !
जहां पहुंचना था, वहां पहुंची नहीं !
पौने नौ बजे उसने फिर बोर्डिंग हाउस का फोन बजाया ।
पहले वाला ही जवाब फिर मिला ।
तभी उसकी निगाह प्रवेश द्वार की ओर उठी तो उसे हिचकिचाती हुई श्यामला मोकाशी क्लब में कदम रखती दिखाई दी ।
वो अकेली वहां पहुंची थी और खामोशी से जा कर प्रवेश द्वार के करीब के एक केबिन में बैठ गयी थी ।
पता नहीं किस फिराक में थी !
उसके ऐसा सोचने के पीछे वजह ये थी कि वो अकेली वहां बहुत कम आती थी ।
रोमिला के लिये फिक्रमंद होने की वजह से जल्दी ही उसकी तवज्जो श्यामला की तरफ से हट गयी ।
नीलेश सहज भाव से उसके केबिन के दरवाजे पर पहुंचा ।
श्यामला ने सिर उठा कर उसकी तरफ देखा और मुस्कराई ।
“हल्लो !” - वो बोली ।
जवाब में नीलेश स्टाफ वाले अदब से मुस्कराया और बोला - “मे आई हैव युअर आर्डर प्लीज !”
श्यामला हड़बड़ाई, उसने सकपकाये भाव से नीलेश की तरफ देखा ।
“यू मे हैव माई रिक्वेस्ट ।” - फिर बोली ।
“मैं समझा नहीं ।”
“समझाने ही आयी हूं ।”
“क्या ?”
“मैं सुबह वाले अपने बीच के व्यवहार से शर्मिंदा हूं ।”
“खामखाह ! शर्मिंदगी वाली तो कोई बात हुई ही नहीं थी !”
“मेरे तब के व्यवहार में शालीनता की कमी थी । मैं रुखाई से, बल्कि बद्तमीजी से पेश आयी थी ।”
“ऐसी कोई बात नहीं थी ।”
“आई एम सारी !”
“नैवर माइंड !”
“मैं तुम्हारी कलीग को भी सारी बोलना चाहती हूं । है वो यहां ?”
“नहीं । होना तो चाहिये था, आठ से पहले होना चाहिये था, पता नहीं क्या हुआ, अभी तक पहुंची नहीं ।”
“आई सी ।”
“तुम्हारी तो प्रीशिड्यूल्ड अप्वायंटमेंट थी ! जो कि अच्छा हुआ था तुम्हें वक्त पर याद आ गयी थी !”
“छोड़ो वो किस्सा ! तुम जानते हो क्यों मैंने उस अप्वायंटमेंट का जिक्र किया था । मैं खामखाह तुम्हारी कलीग से...क्या नाम था उसका ?”
“रोमिला ।”
“हां, रोमिला । मैं खामखाह उससे भाव खा गयी थी । तुम्हारी कलीग है, तुम्हारा उसका रोज का लम्बा वास्ता है, नतीजतन तुम्हारे उससे मधुर सम्बंध हैं तो मेरे को क्या प्राब्लम है ?”
नीलेश खामोश रहा ।
“मैंने अपने पापा से भी डिसकस किया…”
“क्या !” - नीलेश चौंका ।
“उनका भी यही खयाल है...आई एक्टिड रादर हरिड्ली । बारबाला होना कोई बुरी बात तो नहीं !”
“ये तुम्हारे पापा का खयाल है ?”
“हां ।”
“क्यों न हो ! उनसे बेहतर इन बातों को कौन जान समझ सकता है ! अंदर की जानकारी अंदर वालों को ही बेहतर होती है ।”
“खुद मेरा भी अब यही खयाल है ।”
“कोई बड़ी बात नहीं । ज्ञान की सरिता जब घर में ही बह रही हो तो...कोई बड़ी बात नहीं ।”
“उन्हीं ने मुझे समझाया” - नीलेश की बातों में निहित व्यंग्य को बिना समझे वो अपनी ही झोंक में कहती रही - “कि सुबह मुझे विशालहृदयता का परिचय देना चाहिये था । आई शुड हैव बिन ब्राडमाइंडिड ।”
“अपने पिता से बहुत मुतासिर हो !”
“है तो ऐसा ही ! जिसकी मां न हो, उसके पिता को मां की जगह भी लेकर दिखाना पड़ता है । मेरी मां मेरे बचपन में ही मर गयी थी, तब से मेरे पापा माता-पिता का डबल रोल निभाते चले आ रहे हैं । जिंदगी में दो ही चीजों में उनकी खास तवज्जो रही है-एक ये आइलैंड और दूसरी मैं-और तुम देख ही सकते हो दोनों को ही उन्होंने क्या खूब परवान चढ़ाया है !”
“ठीक !”
“अंदाजन कह रहे हो । मुझे उम्मीद नहीं कि सारा आइलैंड तुमने घूमा है ।”
“इतना तो टाइम लगा नहीं मेरे को ! बोले तो अभी बस कदम ही तो रखा है मैंने यहां !”
“मैं दिखाती हूं न !” - वो उत्साह से बोली - “तुम्हारी गाइड ।”
“बढ़िया । गाइड कब से ड्यूटी करेगा ?”
“आज ही से ।” - उसने अपनी घड़ी पर निगाह डाली - “अभी से ।”
“अभी से ?”
“भई, तुमने खुद बोला था आज नौ बजे इधर से फ्री हो जाओगे !”
“नौ बजने में अभी टाइम है ।”
“सात आठ मिनट बस ।” - वो उठ खड़ी हुई - “मैं बाहर इंतजार करूंगी तुम्हारा ?”
“बाहर नहीं ।”
श्यामला की भवें उठीं ।
“घर जाओ । नौ बजे मैं भी चेंज के लिये घर जाता हूं । फिर साढे़ नौ बजे तुम्हारे दौलतखाने पर पहुंचता हूं जहां मुमकिन है मुझे तुम्हारे पिता से मिलने का फख्र भी हासिल हो जाये ।”
“ठीक है । पता याद है ?”
“फाइव, नेलसन एवेन्यू ।”
“गुड । नाइन थर्टी एट माई प्लेस !”
“यस ।”
“नो हार्ड फीलिंग्स ?”
“नो हार्ड फीलिंग्स ।”
“वुई आर फ्रेंडस नाओ ?”
“इफ यू से सो ।”
“आइ से सो ।”
“दैन वुई आर ।”
“गुड । आई एम ग्लैड ।”
वो चली गयी ।
नौ बज कर पांच मिनट तक नीलेश वहां की वर्दी अपनी काली टाई और काले सूट को तिलांजलि दे चुका था और वहां से रवाना होने के लिये तैयार था ।
तभी पुजारा उसके करीब पहुंचा ।
“अरे !” - वो बोला - “तुम तो चल भी दिये !”
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