Thriller Sex Kahani - सीक्रेट एजेंट
10-27-2020, 01:04 PM,
#20
RE: Thriller Sex Kahani - सीक्रेट एजेंट
“बॉस” - नीलेश विनयशील स्‍वर में बोला - “तुम्‍हें मालूम, तुमने खुद सैटल किया, आज मेरी शार्ट ड्‍यूटी । आज मैं नौ बजे ऑफ !”
“ठीक ! ठी‍क ! पण कोई स्‍टाम्‍प पेपर पर लिख के तो नहीं दिया ! नोटरी से ठप्‍पा लगवाकर तो नहीं दिया !”
“क्‍या कहना चाहते हो ?”
“अनएक्‍सपैक्टिड रश हो गया है । रोमिला की वजह से भी शार्टहैंडिड हूं, एक दो घंटे लिये रुक जाते !”
“मैं क्‍लोजिंग टाइम तक बाखुशी रुक जाता, बॉस, लेकिन आज नहीं ।”
“आज क्‍या है ?”
“है कुछ ।”
“डेट ?”
“हो सकता है ।”
“बोलता है हो सकता है । मेरे को अंधा समझता है ।”

“जब जानते हो तो पूछते क्‍यों हो ?”
“’श्‍यामला !”
नीलेश हंसा ।
“लगता है दिन में मैं जो कुछ तेरे को बोला वो सब तेरे सिर के ऊपर से गुजर गया !”
“सब याद है । लेकिन जो बोला था, रोमिला को लेकर बोला था । मेरी डेट रोमिला नहीं है ।”
“जो बात एक जगह लागू हो, वो दो जगह भी लागू हो सकती है, चार जगह भी लागू हो सकती है, दस जगह भी लागू हो सकती है ।”
“बॉस” - नीलेश तनिक चिड़कर बोला - “ये कोनाकोना आइलैंड है या फॉरबिडन प्‍लेनेट है ?”
“बात का मतलब समझ । बाल की खाल न निकाल ।”

“क्‍या समझूं ?”
“अपनी औकात में रह । अपने लैवल पर एक्‍ट कर । टॉप शैल्‍फ पर हाथ डालने कोशिश न कर ।”
“बॉस, तुम्‍हारी बातें मेरी समझ से परे हैं...”
“तू सब समझता है ।”
“अगर तुम्‍हें कोई ऐतराज है...”
“मुझे नहीं है । उसके बाप को हो सकता है । उसको न हुआ तो महाबोले को हो सकता है । होगा । यकीनन । क्‍या फायदा नाहक पंगा लेने का ! ऐसा पंगा लेने का जो झेला न जाये ! क्‍या फायदा किसी के फटे में टांग देने का !”
“पहले भी बोला ऐसा । टांग मेरी है न !”

पुजारा हड़बड़ाया ।
“मैं नहीं समझता किसी को मेरी पर्सनल लाइफ को डिक्‍टेट करने का कोई हक पहुंचता है ।”
“ठीक । ठीक ।”
“नमस्‍ते । कल हाजिर होता हूं ।”
“हां । दोपहर से पहले आ जाना ।”
“दोपहर से पहले ! काहे को ?”
“भई, वो खाली वक्‍त होता है । तेरा फाइनल हिसाब किताब करने में मेरे को सहूलियत होगी ।”
“फाइनल हिसाब किताब ! क्‍या बात है ? डिसमिस कर रहे हो ?”
“अभी क्‍या बोले मैं !”
“हैरानी की बात है कि इतनी सी बात को डिसमिसल की वजह बना रहे हो कि मैं रुक नहीं सकता ।”

“अरे, ये बात नहीं है ।” - पुजारा खोखली हंसी हंसा - “ये बात तो इत्तफाक से उट खड़ी हुई । असल में मैं वैसे भी तेरे को जवाब देने ही वाला था । तू रुकता तो मैं क्‍लोजिंग टाइम पर तेरे को बोलता कि कल आकर हिसाब कर लेना । अभी बिजनेस है न ! सोचा था तीन चार घंटे की ड्‍यूटी तेरे से निचोड़ लूं । पण, वांदा नहीं । कल आ के फाइनल हिसाब करना ।”
“मेरे काम से कोई शिकायत हुई ?”
“अरे, नहीं रे ! काम तो तेरा ऐन फर्स्‍ट क्‍लास ।”
“तो फिर ?”

“एक भांजा है न मेरा ! साला मेरे को पता ही न चला कि जवान हो गया ! उसको जॉब मांगता है न ! बहन को कैसे ‘नो’ बोलेगा !”
“ओह !”
“फिर उसकी टांग भी तेरी जितनी लम्‍बी नहीं है ।”
“बॉस, आई कैन टेक ए हिंट । आई हैव टेकन दि हिंट । नाओ डोंट रब इट इन ।”
“ओके ! ओके ! डोंट गैट ऑफ दि हैंडल । हैव ए नाइस टाइम टुनाइट आई विश यू आल दि बैस्‍ट ।”
“थैंक्‍यू ।”
“गैट अलांग ।”
कोंसिका क्‍लब से बाहर निकल कर सिग्रेट के विचारपूर्ण कश लगाता नीलेश कई क्षण फुटपाथ पर ठिठका खड़ा रहा ।

उसकी निगाह स्‍वयंमेव ही सामने ‘इम्‍पीरियल रिट्रीट’ की ओर उठ गयी । वो वक्‍त दूसरी मंजिल पर स्थित कैसीनो में गेम्‍बलर्स का जमावड़ा बढ़ता जाने का था । वहां हाउसफुल हो जाने पर-जो कि वीकएण्‍ड्स पर तो जरूर ही होता था-ऐन्‍ट्री रिस्ट्रिक्‍ट कर दी जाती थी और दूसरी मंजिल की तमाम फालतू बत्तियां-खास तौर से बाहर सड़क पर से दिखाई देने वाली-बंद कर दी जाती थीं ।
उसने सड़क‍ पार की और ‘इम्‍पीरियल रिट्रीट’ के बाजू की गली में दाखिल हुआ ।
वहां पिछवाड़े में ‘इम्‍पीरियल’ रिट्रीट’ का अपना प्राइवेट पायर था जहां कि फ्रांसिस मैग्‍नारो की अत्‍याधुनिक स्‍पीड बोट खड़ी होती थी । उस ने सुना था कि उससे ज्‍यादा रफ्तार पकड़ने वाली स्‍पीड बोट कस्‍टम वालों के पास भी नहीं थी, कोस्‍ट गार्ड्‍स के पास भी नहीं थी ।

वो पिछवाड़े की सड़क पर पहुंचा और दायें बाजू आगे बढ़ा ।
सड़क कदरन संकरी थी और उस पर सैलानियों की भरपूर आवाजाही थी । नौजवान लड़के लड़कियां बांहों में बांहें पिरोये वहां विचार रहे थे । कई सैलनियों के हाथ में बियर का कैन था या बकार्डी ब्रीजर की बोतल थी जिसका वो गाहेबगाहे घूंट लगाते चलते थे ।
उस सड़क पर कितने ही छोटे बड़े बार और कैफे थे, आगे बढ़ते नीलेश ने जिन में से हर एक में झांका लेकिन रोमिला उसे कहीं दिखाई न दी ।
कहां चली गयी !
वो सिग्रेट के कश लगाता आगे बढ़ता रहा ।

उस सड़क पर सबसे ज्‍यादा रौनक और शोरशराबे वाली जगह मनोरंजन पार्क ही थी । वहां भीतर और बाहर दोनों जगह बराबर भीड़ थी । वहां चालक समेत या चालक के बिना बोट किराये पर मिलती थी जिस पर विशाल झील की सैर करना सैलनियों का-खासतौर से नौजवान जोड़ों का-पसंदीदा शगल था ।
मनोरंजन क्‍लब के लोहे के पुल के करीब वो ठिठका । वहां एक पब्लिक फोन था जहां सं उसने रोमिला के बोर्डिंग हाउस में फोन लगाया ।
उसके पास मोबाइल था लेकिन उस रोज इत्तफाकन वो उसे अपने काटेज पर भूल आया था ।
तभी दूसरी ओर से फोन उठाया गया, उसे लैंडलेडी की रूखी ‘हल्‍लो’ सुनाई दी तो उसने रोमिला की बाबत सवाल किया ।

“नहीं है ।” - लैंडलेडी चिड़े स्‍वर में बोली - “कितने लोग पूछोगे ? कितनी बार पूछोगे ? बोला न, आठ बजे इधर से गई । मेरे को बोल के नहीं गयी किधर जाती थी या कब लौट के आने का था । बोले तो अभी कल मार्निंग में फोन करना ।”
भड़ाक !
उसने फोन वापिस हुक पर टांग दिया और वापिस सड़क पर पांव डाला । आगे सड़क झील के साथ साथ बायें घूम‍ती थी और मोड़ काटते ही दायें बाजू उसका किराये का कॉटेज था । उसका कॉटेज मेन रोड पर होने की जगह पिछवाड़े की एक गली में था जिस तक कॉटेजों के बीच से गुजरती, ऊपर को उठती एक संकरी सड़क जाती थी ।

वो अपनी मंजिल पर पहुंचा ।
गली से कॉटेज के मेन डोर तक पहुंचने के लिये पांच सीढि़यां चढ़नी पड़ती थीं जो कि उसने चढ़ीं । उसने जेब चाबी निकालकर की-होल में डाली और उसे घुमाने की कोशिश की तो पाया कि ताला पहले से खुला था ।
वजह ?
क्‍या वहां से अपनी रवानगी के वक्‍त वो ही दरवाजे को पीछे अनलॉक्‍ड छोड़ गया था ?
वो कोई फैसला न कर सका ।
ऐसी लापरवाही उससे पहले कभी नहीं हुई थी लेकिन आखिर कभी तो पहल होनी ही होती थी !
हिचकिचाते हुए उसने नॉब को घुमाया और हौले से दरवाजे को भीतर की तरफ धक्‍का दिया । दरवाजा धीरे धीरे भीतर को सरका । दरवाजा कोई फुट भर चौखट से अलग हो गया तो उसने भीतर के अंधेरे में निगाह दौड़ाई और कान खड़े करके कोई आहट लेने की कोशिश करने लगा ।

खामोशी !
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RE: Thriller Sex Kahani - सीक्रेट एजेंट - by desiaks - 10-27-2020, 01:04 PM

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