Thriller Sex Kahani - सीक्रेट एजेंट
10-27-2020, 01:05 PM,
#27
RE: Thriller Sex Kahani - सीक्रेट एजेंट
रात के बारह अभी बजे ही थे जबकि नीलेश ने आल्टो फाइव, नेलसन एचैन्‍यू के सामने ले जा कर, झाड़ियों की दीवार से सटा कर खड़ी की ।
नीलेश ने हैडलाइट्स बंद कीं, इंजन बंद किया और उसकी ओर घूमा ।
“सो” - डाइनर में पी विस्‍की का सुरूर तभी भी महसूस करता वो बोला - “हेयर वुई आर ।”

“कैसी लगी नाइट पिकनिक !” - मादक भाव से मुस्‍कराती वो बोली । शैब्लिस नाम की जो रैड वाइन उसने वहां पी थी, उसके असर से वो भी बरी नहीं थी और उसके स्‍वर की उस घड़ी की मादकता शायद उसी का नतीजा थी ।
“बढि़या !” - नीलेश बोला ।
“मैं !”
नीलेश हड़बड़ाया, उसने घूमकर उसकी तरफ देखा ।
परे कहीं स्‍ट्रीट लाइट का एक बीमार सा बल्‍ब टिमटिमा रहा था जिसकी वैसी ही रोशनी उन तक महज इतनी पहुंच रही थी कि वो वहां घुप्‍प अंधेरे में बैठे न जान पड़ते । उसने देखा, वो अपलक उसकी तरफ देख रही थी ।

“मुश्किल सवाल पूछ लिया मैंने ?” - वो बोली ।
“नहीं, नहीं । वो बात नहीं...”
“है भी तो क्‍या है ! मैं मदद करती हूं जवाब देने में ।”
एकाएक वो उसके साथ लिपट गयी ।
नीलेश की बांहें स्वयंमेव ही फैलीं और उसने उसे अपने अंक में भर लिया । स्‍वयंमेव ही नीलेश के होंठ उसके आतुर होंठो से जा मिले ।
आइंदा कुछ क्षणो के लिये जैसे वक्‍त की रफ्तार थम गयी ।
“नीलेश !” - वो फुसफुसाई ।
“यस !”
“से यू लव मी ।”
“आई लव यू, माई डियर ।”
“दिल से कहा न ! वक्‍त की जरूरत जान के तो नहीं कहा न ! कहलवाया गया इसलिये तो नहीं कहा न !”

“दिल से कहा । आई लव यू फ्राम दि कोर आफ माई हार्ट ।”
“थैंक्‍यू !”
“लेकिन...”
“क्‍या लेकिन ?”
“मैं बेरोजगार हूं, उम्र में तुम से पंद्रह साल बड़ा हूं, विधुर हूं । तुम बड़े बाप की बेटी हो । मुझे ऐसा कहने का कोई अख्तियार नहीं ।”
“अब कह चुके हो तो क्‍या करोंगे ? जो घंटी बज चुकी, उसको अनबजी कैसी करोगे ?”
“कैसे करूंगा ?”
“तुम बोलो ।”
“पता नहीं, लेकिन...”
तभी भीतर पोर्च की लाइट जली ।
श्‍यामला तत्‍काल छिटक कर उससे अलग हुई ।
“मेड को मेरे लौटने की खबर लग गयी है” - अपनी ओर का दरवाजा खोलती वो फुसफुसाई - “मैं कितना भी लेट लौटूं, उसके बाद ही वो सोती है इसलिये उसका ध्‍यान बाहर की तरफ ही लगा रहता है । जाती हूं ।”

“एक बात बता के जाओ ।”
“पूछो । जल्‍दी ।”
“कल महाबोले तुम्‍हें थाने क्‍यों ले के गया था ? क्‍या चाहता था ?”
“वही जो हर मर्द चाहता है ।”
“लाइक दैट !”
“है न कमाल की बात ! हौसले की बात !”
“वहां हवलदार जगन खत्री मौजूद था । अपनी चाहत उसके सामने पूरी करता ?”
“नशे में था । मत्त मारी हुई थी । हवलदार को खासतौर से दरवाजे पर ठहरा के रखा था ताकि मैं भाग न निकलूं । उसको बोल के रखा था कि जब तक मैं उसके साथ तरीके से पेश न आऊं, तब तक मैं वहां से जाने न पाऊं ।”

“तौबा !”
“वो तो अच्‍छा हुआ तुम आ गये वर्ना...”
“वर्ना क्‍या करता ? थाने में रेप करता ? अपने हवलदार के सामने ?”
“इतनी मजाल तो उसकी नशे में भी नहीं हो सकती थी लेकिन कोई छोटी मोटी जोर जबरदस्‍ती जरूर करता ताकि मेरी बाबत उसका इरादा मोहरबंद हो पाता ।”
“ये न सोचा कि जो कुछ वो करता, तुम उसकी बाबत अपने पापा को जरूर बोलती ?”
“तब अक्‍ल पर नशे का पर्दा पड़ा था इसलिये जाहिर है कि न सोचा लेकिन मेरे जाने के बाद जब होश ठिकाने आये तो बराबर सोचा । तब मुझे फोन लगाया और रिक्‍वेस्‍ट करने लगा कि उस बाबत मैं अपने पापा से कोई बात न करूं ।”

“तुमने की थी ?”
“नहीं ।”
“तो ?”
“कुछ हुआ तो था नहीं ! तुम्‍हारी एकाएक वहां आमद ने एक बुरी घड़ी को टाल दिया था । पापा से बात करती तो पंगा पड़ता । रंजिश बढ़ती । क्‍या फायदा होता ? किसे फायदा होता ? मैंने खामोश रहना ही ठीक समझा ।”
“मोकाशी साहब चाहें तो महाबोले का कुछ बिगाड़ सकते हैं ? उसे कोई सबक सिखा सकते हैं ?”
श्‍यामला ने कुछ क्षण उस बात पर विचार किया ।
“नहीं ।” - फिर बोली - “जब से महाबोले का उस गोवानी रैकेटियर फ्रांसिस मैग्‍नारो से गंठजोड़ हुआ है, वो पापा पर भारी पड़ने लगा है ।”

“फिर भी...”
“अब बस करो । कल मार्निंग में फोन लगाना । दस-साढे़ दस बजे । काल न लगे तो बीच पर तलाश करना ।”
उसने हौले से अपनी ओर का दरवाजा खोला और ये जा वो जा ।
वापिसी में नीलेश उस सड़क पर से गुजरा जिस पर कोंसिका क्‍लब थी ।
क्‍लब के सामने उसने कार को रोका और उसकी विशाल प्‍लेट ग्‍लास विंडो से भीतर निगाह दौड़ाई तो उसे यासमीन तो उस घड़ी वहां मौजूद मेहमानों के बीच विचरती दिखाई दी, डिम्पल की झलक भी उसे मिली, रोमिला न दिखाई दी ।
उसने कार आगे बढ़ाई ।

उसका अगला पड़ाव रोमिला का बोर्डिंग हाउस था ।
इमारत के सामने सड़क के पार एक मार्केट थी जिसके सामने एक लम्‍बा बरामदा था । मार्केट कब की बंद हो चुकी थी इसलिये वो बरामदा सुनसान था ।
लेकिन वीरान नहीं था ।
वहां एक स्‍टूल पर एक खम्‍बे से पीठ सटाये ऊंघता सोता जागता एक सिपाही मौजूद था जिसे फासले से भी, नीमअंधेरे में भी, उसने फौरन पहचाना ।
सिपाही दयाराम भाटे !
एसएचओ का खास !
वो कोई और पुलिसिया होता तो उसकी वहां मौजूदगी को नीलेश कोई अहमियत नहीं देता लेकिन खास वो वहां था इसलिये उसकी अक्‍ल ने यही फैसला किया कि रोमिला की फिराक में था । अगर ऐसा था तो उसकी तब भी वहां मौजूदगी ही ये साबित करने के लिये काफी थी कि रोमिला बोर्डिंग हाउस में अपने कमरे में सोई नहीं पड़ी थी, वो वहां लौटी ही नहीं थी ।

वो अपने कॉटेज पर वापिस लौटा ।
वो सीढियां चढ़ रहा था जबकि उसे भीतर बजती फोन की घंटी की आवाज सुनाई दी । वो झपट कर मेन गेट पर पहुंचा, ताले में चाबी फिराई, भीतर दाखिल हुआ और लपकता हुआ फोन पर पहुंचा ।
उसके रिसीवर की तरफ हाथ बढ़ाते ही फोन बजना बंद हो गया ।
उसने असहाय भाव से गर्दन हिलाई और बैडरूम का रुख किया । वहां उसने कपड़े तब्‍दील किये और बिस्‍तर के हवाले होने की जगह एक सिग्रेट सुलगा लिया और वहां से बाहर निकल कर टेलीफोन के करीब एक कुर्सी पर बैठ गया ।

उसको टेलीफोन के फिर बजने की उम्‍मीद थी ।
जो कि पूरी हुई ।
सिग्रेट अभी आधा खत्‍म हुआा था कि वो बजा ।
उसने सिग्रेट को तिलांजलि दी और झपट कर फोन उठाया ।
“हल्‍लो !” - वो व्‍यग्र भाव से बोला ।
“नीलेश !”
“हां । कौन ?”
“रोमिला । कब से तुम से कांटैक्‍ट करने की कोशिश कर रही हूं ! क्‍लब में फोन किया, तुम वहां नहीं थे, यहा कई बार फोन किया, अब जाके जवाब मिला ।”
“तुम कहां हो ?”
“मुझे तुम्‍हारी जरूरत है ।”
“मैं हाजिर हूं लेकिन तुम हो कहां ?”
“जहां हूं ,मुसीबत में हूं और मेरी मुसीबत के लिये तुम जिम्‍मेदार हो…”

“मैं ! मैं कैसे ?
“तुम ! तुम्‍हारे सवाल ! जो तुम खोद खोद कर पूछते थे ।”
“क्-क्‍या कह रही हो ?”
“अभी भी पूछ रहे हो ।”
“लेकिन…”
“मुझे तुम्‍हारी मदद की जरूरत है ।”
“वो तो ठीक है लेकिन तुम हो कहां ?”
“मेरा इधर से निकल लेना जरुरी है....”
“क्‍यों ?”
“वो लोग मेरे पीछे पडे़ हैं....”
“कौन लोग ?”
“तुम्‍हें मालूम कौन लोग ! मेरा इधर से निकल लेना किसी की मदद के बिना मुमकिन नहीं हो सकता । मेरी जेब खाली है, मेरा सब सामान बोर्डिंग हाउस के मेरे कमरे में है । मुझे अंदेशा है कि वहां की निगरानी हो रही होगी इसलिये मैं वहां वापिस नहीं जा सकती...”
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RE: Thriller Sex Kahani - सीक्रेट एजेंट - by desiaks - 10-27-2020, 01:05 PM

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