RE: Thriller Sex Kahani - सीक्रेट एजेंट
तभी उसकी सैंडल की हील कहीं उलझीं और वो धड़ाम से मुंह के बल गिरी । उसका मुंह कचरे में धंस गया जिसेमें से उठती मुश्क साफ बना रही थी कि वो किचन का कचरा था । उसने उठने की कोशिश की तो उसका पांव फिर फिसल गया और फिर ढ़ेर हो गयी ।
तभी हैडलाइट्स की रोशनी उस पर पड़ी ।
आतांकित भाव से उसने कचरे में से मुंह निकाला और सिर घुमाकर पीछे देखा ।
जीप झाड़ियों के पार तिरछी खड़ी थी और कोई उसकी ड्रायविंग सीट से नीचे कदम रख रहा था ।
उसके मुंह से एक घुटी हुई चीख निकली और वो भरसक उठ कर अपने पैरों पर खड़ी होने की कोशिश करने लगी ।
तभी जीप का ड्राइवर उसके सिर पर आ खड़ा हुआ ।
महाबोले ।
वो नीचे झुका ।
“नहीं ! नहीं !”
“क्या नहीं नहीं ?” - वो सहज भाव से बोला - “कुछ हुआ तेरे को ?”
“मु-मुझे...मुझे...छोड़ दो ।”
“छोड़ दूं ?” - वो पूर्ववत् सहज भाव से बोला - “पकड़ा कब ?”
“मु-मुझे मेरे हाल पर छोड़ दो ।”
“बोले तो कचरा है, इस वास्ते कचरे में पड़ा रहना चाहती है ।”
“म-म-मैं...मैं...”
“उठ के खड़ी हो । जिस हाल में है उसमें तो ढण्ग से मिमिया भी नहीं पा रही है ।”
“म-मैं...”
“सुना नहीं !”
स्तब्ध वातावरण में महाबोले की कड़क की आवाज जोर से गूंजी ।
लेकिन वहां सुनने वाला कौन था !
गिरती पड़ती रोमिला उठ कर अपने पैरों पर खड़ी हुई ।
“कपड़े झाड़ ! मुंह पोंछ !”
रोबोट की तरह उसने आदेश का पालन किया ।
महाबोले ने उसकी बांह थामी और उसे मजबूती से साथ चलाता वापिस जीप की ओर बढ़ा ।
“क-कहां...जा...जा...”
“अरे, जहां भी जायेंगे” - महाबोले ने पुचकारा - “यहां से तो बेहतर ही जगह होगी !”
“म-म...मैं माफी...माफी चाहती हूं ।”
“किस बात की ? क्या किया तूने ?”
“तु...तुम जो कहोगे, म-मैं करूंगी ।”
“जरूर । मेरे को तेरे से ऐसी उम्मीद बराबर है । लेकिन यहीं तो नहीं करेगी ! किसी कायदे की जगह पहुंचेगी तो करेगी न !”
“म-मैं...”
“तू ही । और कौन ! जीप में बैठ ।”
“न-हीं !”
एकाएक वो जोर से चीखी ।
फिर चीखी ।
और उसकी पकड़ से आजाद होने के लिये तड़पने लगी ।
महाबोले ने एक जोर का झांपड़ मुंह पर रसीद किया ।
“साली कुतरी !” - महाबोले सांप की तरह फुंफकारा - “जीप में बैठ वर्ना यहीं ढ़ेर कर दूंगा ।”
आतंकित रोमिला जीप में पैसेंजर सीट पर सवार हो गयी ।
सामने से घेरा काट कर महाबोले परली तरफ पहुंचा और ड्राइविंग सीट पर स्टियरिंग के पीछे बैठ गया ।
“इ-इधर” - रोमिला बड़ी मुश्किल से बोल पायी - “कैसे पहुंच गये ?”
“पहले तू बोल ! यहां क्या कर रही थी ?”
“कुछ नहीं ।”
“कुछ नहीं ?”
“यूं ही इधर निकल आयी थी । बार देखा तो एक ड्रिंक के लिये भीतर चली गयी थी । फिर बार बंद हो गया और मेरे को लिफ्ट के लिये बाहर वेट करना पड़ा ।”
“कौन देता लिफ्ट तेरे को ?”
“कोई भी । जो कोई इधर से गुजरता दिखाई दे जाता ।”
“कौन दिखाई दे जाता ? किसका इंतजार कर रही थी ?”
“किसी का नहीं । खास किसी का नहीं । यकीन करो मेरा ।”
“कोई वजह यकीन करने की ?”
“मैं...मैं...तुम्हारी...”
“थी ! मेरे को हूल देने से पहले थी ।”
“मैंने कुछ नहीं किया । कुछ किया तो अनजाने में किया । मैं शर्मिंदा हूं, दिल से माफी मांगती हूं ।”
“लिहाजा अब मेरे खिलाफ नहीं है ?”
“बिल्कुल नहीं ।”
“मेरी तरफ है ?”
“हां । दिलोजान से तुम्हारी तरफ हूं ।”
“मैंने यकीन किया तेरी बात पर ।”
“रोमिला ने चैन को प्रत्यक्ष सांस ली ।
“अब बोल, किसका इंतजार कर रही थी ? कौन आने वाला था ?”
“कोई नहीं । मैंने बोला न...”
“मैंने सुना ! साली, जानती नहीं किससे जुबान लड़ा रही है ! मैं तेरे बताये बिना भी मालूम कर लूंगा ।”
“ब-बताये बिना भी मा-मालूम कर लोगे ?”
“बार के मालिक से । रामदास मनवार से । जो तू नहीं बक रही, वो वो बतायेगा मेरे को ।”
“उ-उसे कुछ नहीं मालूम ।”
“अपना मोबाइल दिखा मेरे को ।”
“मो-मो-बाइल !”
“हां मोबाइल ! इधर कर ।”
“वो...वो...”
“हुज्जत नहीं मांगता मेरे को । साली, नंगी करके बरामद करूंगा ।”
रोमिला ने कांपते हाथों से गिरहबान में से फोन बरामद किया और उसे सौंपा ।
“इधर से किसी को फोन लगाया होगा” - महाबोले बोला - “तो ‘डायल्ड नम्बर्स’ में दर्ज होगा...ये तो साला डैड है ।”
“बै-बैटरी खल्लास है ।” - रोमिला बोली - “चार्ज करना भूल गयी ।”
“हूं । तो लैंड लाइन से फोन लगाया !”
वो खामोश रही ।
महाबोले ने फोन उसकी गोद में डाल दिया ।
“ये बार मेरा देखा भाला है” - फिर बोला - “यहां का इकलौता पब्लिक फोन बार काउंटर के कोने में ही है । तूने उस पर से काल लगाई होगी तो मनवार ने कुछ जरूर सुना होगा ।”
“न-हीं ।”
“क्या नहीं ? नहीं सुना होगा ?”
“हं-हां ।”
“यानी मानती है, तसदीक करती है काल लगाई थी ?”
“टैक्सी बुलाने के लिये ।”
“बंडल ! साली अभी बोल के हटी कि लिफ्ट के लिये खड़ी थी । टैक्सी वाला वालंटियर है जो तेरे को लिफ्ट देगा !”
“वो...वो नहीं आ रहा था ।”
“क्या बोली ?”
“मेरे को बोला गया था कि कोई टैक्सी अवेलेबल नहीं थी । इस वास्ते लिफ्ट की उम्मीद में बाहर खड़ी थी ।”
“बहुत बक चुकी । बहुत बकवास कर चुकी । अब साफ बोल, सच बोल, किसका इंतजार था ? कौन आने वाला था ?”
“मैं सच बोलूंगी तो और नाराज हो जाओगे !”
“नहीं होऊंगा । बोल !”
“एक हैवी कस्टमर मिल गया था । वो आने वाला था ।”
“हैवी कस्टमर बोले तो ?”
“डबल-बल्कि उससे भी ज्यादा-फीस भरने वाला ।”
“क्या कहने !”
“मैं क्या करती ! आज कल मेरे को रोकड़े की शार्टेज ।”
“बाइयों को हमेशा ही होती है ।”
“जब बाई बोला तो बोलो क्या गलत किया !”
उसने जवाब न दिया । उसने जीप का इंजन स्टार्ट किया, दक्षता से उसे घुमाया और फिर वापिस सड़क पर उधर डाल दिया जिधर से कि वो आया था ।
“गलत किया ।” - एकाएक वो यूं बोला जैसे खुद से बात कर रहा हो ।
“लेकिन...”
“साली, जो मेरे को गलत लगे, वो गलत । जो मैं गलत बोले, वो गलत । मैं तेरे को पहले दिन बोल के रखा, तू मेरी इजाजत के बिना कुछ नहीं कर सकती । फिर भी कभी कुछ कर लिया तो इसलिये कि मैंने तेरा लिहाज किया । लेकिन लिहाज हमेशा नहीं होता । या होता है ?”
रोमिला ने जल्दी से इंकार में सिर हिलाया ।
“फिर भी साली भाग खड़ी हुई ! कौन इजाजत दिया तेरे को ?”
“मैंने कुछ गलत नहीं किया । इसलिये सोचा कि इजाजत की जरूरत नहीं थी ।”
“साली, ये फैसला भी मेरे को करने का कि तू कुछ गलत किया कि नहीं किया ।”
“ये जुल्म है ।”
“झेलना पड़ेगा । तू मेरे आइलैंड पर है । झेलना पड़ेगा ।”
“मैंने कभी तुम्हारी मर्जी के खिलाफ कुछ नहीं किया । कोई एक मिसाल दो कि...”
“बकवास बंद कर ! साली मेरे को होशियारी दिखाती थी ! उल्लू बनाती थी ! समझती थी कि बना लेगी । अच्छा होता साला पहले दिन ही पेंदे पर लात जमाता और आइलैंड से बाहर करता । पहले ही दिन मेरे को लगा था कि कोई ही श्यानी आइलैंड पर आ गयी थी जो श्यानपंती से बाज नहीं आने वाली थी...”
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