RE: Thriller Sex Kahani - सीक्रेट एजेंट
“मैंने नहीं उठाया, सर ।”
“बात यहां हुई वारदात की हो रही थी ।”
“वो बात तो अब खत्म है, सर ।”
“क्या !”
“दि केस इज सोल्व्ड ।”
“क्या !”
“कातिल गिरफ्तार है ।”
“कौन कातिल ?”
“रोमिला सावंत का कातिल । जिसने उसको लूटने की नीयत से उसका कत्ल किया । लूट का सारा माल-मकतूला के जेवरात वगैरह-उसके पास से बरामद हुआ है । और सौ बातों की एक बात, वो अपने जुर्म का इकबाल कर भी चुका है ।”
“दैट्स फास्ट वर्क ।”
“जिसके लिये महाबोले की तारीफ करने वाला कोई नहीं । क्योंकि वो तो खुद मुजरिम है । आज नहीं तो कल एक डिफेंसलैस औरत से दो सौ डालर की झपटमारी करने के इलजाम में गिरफ्तार होगा । कोई पेशी नहीं, कोई गवाह नहीं, कोई सबूत नहीं, कोई सुनवाई नहीं, सजा-सिर्फ सजा । न जज, न ज्यूरी, न दाद, न फरियाद, सिर्फ सजा !”
“तुम बात को जरा ज्यादा ही ड्रामेटाइज करने की कोशिश कर रहे हो !”
“सर, अगर आप थाने पधारने वाले हों तो मैं वहां जा के बैठूं ! या आपको साथ ले के चलूं !”
“अभी हमारा ऐसा कोई इरादा नहीं, जब होगा तो तुम्हारे पास एडवांस में खबर पहुंच जायेगी ।”
“मैं उस शुभ घड़ी का इंतजार करूंगा । अब अगर आप इजाजत दें तो मैं केस समेटूं ?”
“यस, प्लीज । कम्पलीट युअर जॉब ।”
“थैंक्यू, सर ।” - उसने ठोक के सैल्यूट मारा, जाने के लिये मुड़ा, ठिठका, फिर उसने यूं नीलेश की ओर देखा जैसे पहली बार उसे उसकी वहां मौजूदगी का अहसास हुआ हो ।
“तुम यहां कैसे ?” - फिर माथे पर बल डालता बोला ।
“हमारे साथ है ।” - नीलेश के जवाब देने से पहले ही डीसीपी बोल पड़ा ।
“आपके साथ है ! आप जानते हैं इसे ?”
“हां ।”
“आपको मालूम था ये यहां आइलैंड पर था ?”
“हां । इसीलिये तलब किया ताकि यहां ये हमारा गाइड बन पाता ।”
“कमाल है !” - एक क्षण की खामोशी के बाद महाबोले नीलेश से सम्बोधित हुआ - “तुम रात को मकतूला को ढूंढ़ते फिर रहे थे ?”
“हां ।” - नीलेश सहज भाव से बोला ।
“उसके बोर्डिंग हाउस के कमरे में भी गये थे ?”
“हां ।”
“क्यों ?”
“क्या क्यों ?”
महाबोले फट पड़ने को हुआ, डीसीपी की मौजूदगी की वजह से बड़ी मुश्किल से वो खुद पर जब्त कर पाया ।
“क्यों ढूंढ़ते फिर रहे थे, भई ?”
“वजह वही है, जनाब, जो अब तक बहुत पापुलर हो चुकी है ।”
“मिलने आने वाली थी, आई नहीं, इसलिये उसकी तलाश में आइलैंड खंगालने निकल पडे़ ?”
“ऐसा ही था कुछ कुछ ।”
“बहुत बढ़ बढ़ के बोल रहे हो !”
“ऐसी कोई बात नहीं ।”
“क्योंकि डीसीपी साहब की शह है !”
“इंस्पेक्टर !” - डीसीपी डपट कर बोला ।
“सारी, सर । दैट काईंड आफ स्लिप्ड । आई एम सारी अगेन ।” - वो वापिस नीलेश की तरफ घूमा - “मैं मिलूंगा तुमसे ।”
फिर लम्बे डग भरता अपने मातहतों के साथ वो वहां से रूखसत हो गया ।
“धमकी सी लगी मुझे उसकी आवाज में ।” - पीछे डीसीपी बोला ।
“मुझे भी, सर ।” - नीलेश बोला ।
“तुम्हें हार्म कर सकता है ।”
“पहले से कोशिश में है ।”
“वजह ?”
“श्यामला मोकाशी से मेरी मेल मुलाकात से कुढ़ता है-मैंने पहले बोला था कि वो यहां की म्यूनीसिपैलिटी के प्रेसीडेंट बाबूराव मोकाशी की बेटी है-मेरा लड़की से मेल मुलाकात के पीछे मकसद क्या है, ये मैं पहले ही अर्ज कर चुका हूं ।”
“ठीक ! लेकिन क्यों कुढ़ता है ? उसका क्या वास्ता है ?”
“है न वास्ता, सर !”
“क्या ?”
“श्यामला पर दिल रखता है । शादी बनाना चाहता है । उसको अपनी प्रापर्टी समझता है । कोई उसकी तरफ आंख भी उठाये तो आंख निकालने पर आमादा हो जाता है ।”
“आई सी । इसलिये तुम्हारे खिलाफ है !”
“ये भी एक वजह है ।”
“और भी है ?”
“मेरे खयाल में तो हां ।”
“मसलन, क्या ? तुम्हारी अंडरकवर असाइनमेंट की तो कोई भनक नहीं उसे ?”
“कह नहीं सकता ।”
“अपनी कुढ़न में, अदावत में, तुम्हारे खिलाफ कोई कदम न उठाया ?”
“उठाया । अपने आदमियों से मुझे ठुकवा दिया ।”
“उसके आदमी कौन ? कहीं थाने के ही तो नहीं ?”
“एक तो बराबर था थाने का हवलदार । मैंने कनफर्म किया था ।”
“कमाल है ! ऐसी दीदादिलेरी !”
“खुद को आइलैंड का मालिक समझता है, सर, थाना भी तो आइलैंड पर ही है । थानेदार की सरपरस्ती का ही तो जहूरा है कि मातहत मटका कलैक्टर है, सट्टा एजेंट है । वो भी शरेआम !”
“अब और नहीं चलेगा । समझो पाप का घड़ा भर चुका ।”
नीलेश खामोश रहा ।
“मोकाशी के जिक्र पर याद आया । मैं उससे मिलना चाहता हूं ।”
“कहां मिलेंगे, सर ? मुझे उसका घर मालूम है....”
“अरे, भई, हम क्यों जायेंगे उसके घर ! तलब करेंगे उसे ।”
“कहां ?”
“थाने ।”
“जी !”
“थानेदार यहां है और साफ लग रहा है कि बहुत देर तक फारिग नहीं होने वाला । हम जाकर थाने पर कब्जा करते हैं और मोकाशी को वहां तलब करते हैं ।”
नीलेश के चेहरे पर संशय के भाव आये ।
“अब ये बात खुल चुकी है कि एक डीसीपी यहां पहुंचा हुआ है । खुद महाबोले ने मुझे पहचाना-पता नहीं कैसे पहचानता था लेकिन पहचाना बराबर-देख लेना, खबर हम से पहले थाने में पहुंची होगी ।”
“फिर तो ठीक है, सर ।”
|