RE: Thriller Sex Kahani - सीक्रेट एजेंट
“इंस्पेक्टर !” - डीसीपी बोला तो उसके स्वर में कोड़े जैसी फटकार ली - “कंट्रोल युअरसैल्फ !”
दांत पीसते महाबोले ने अपना स्प्रिंग की तरह तना हुआ शरीर कुर्सी पर ढ़ीला छोड़ा ।
“पहले कभी” - डीसीपी फिर पाण्डेय से सम्बोधित हुआ - “किसी सैक्स ऑफेंस में पकड़े गये ?”
“कभी नहीं, साहेब ।”
“अब अपनी हालिया पोजीशन के बारे में क्या कहते हो ?”
“क्या कहूं, साहेब ?”
“सोचो !”
“थानेदार साहब कहते हैं कि मैं बेतहाशा नशे में था इसलिये मुझे याद ही नहीं कि मेरे हाथों रोमिला सावंत का खून हुआ था । मैं झूठ नहीं बोलूंगा, साहेब, कल रात ऐसे नशे में तो मैं बराबर था । और नशे के दौर की किसी बात याद न रह पाना भी कोई बड़ी बात नहीं । अगर मेरे हाथों खून हुआ है तो मुझे इसका सख्त अफसोस है । मैंने आज तक कभी मक्खी नहीं मारी लेकिन लानत है मेरी नशे की लत पर कि...खून कर बैठा ।”
“लेकिन तुमने क्या किया, कैसे किया, कहां किया, ये सब तुम्हें याद नहीं ?”
“हां, साहेब ।”
“नशे में तुम रूट फिफ्टीन पर भटक गये, सेलर्स बार के करीब तक पहुंच गये, ये सब तुम्हें याद नहीं ?”
“हां, साहेब ।”
“ये भी नहीं कि तुमने मकतूला पर हमला किया और फिर उसे रेलिंग के पार नीचे फेंक दिया ?”
“मुझे याद नहीं लेकिन थानेदार साहब कहते हैं मैंने ऐसा किया तो ठीक ही कहते होंगे !”
“थानेदार साहब नहीं कहते” - महाबोले बोले बिना न रह सका - “तुमने खुद कुबूल किया । कुबूल किया कि तुमने रोकड़े की खातिर, अपनी नशे की लत को फाइनांस करने की खातिर, लड़की का कत्ल किया । और ये बात तुम्हें भूली भी नहीं थी, बावजूद अपनी बेतहाशा नशे की हालत में नहीं भूली थी ।”
“मैंने ऐसा कहा था, साहेब, लेकिन मजबूरन कहा था ।”
“क्यों ?”
“क्योंकि आप भूत भगा रहे थे ।”
“क्या !”
“आपने कहा था मार के आगे भूत भी भागते हैं ।”
“साले, जो बात मैंने मुहावरे के तौर पर कही, उसे अब मेरे मुंह पर मार रहा है !”
“मुझे एक सवाल पूछने की इजाजत मिल सकती है, साहेब ?”
“क्या कहना चाहता है ?”
“आप कहते हैं मैं बेतहाशा टुन्न था, अपनी उसी हालत में मैंने खून किया, इसलिये मुझे अपनी करतूत याद न रही !”
“हां ।”
“जब मैं बेतहाशा टुन्न था-इतना कि अपनी याददाश्त से, अपने विवेक से, अपने बैटर जजमेंट से मेरा नाता टूट चुका था - तो ऐसे हाल में वारदात कर चुकने के बाद मेरे फिर बोतल चढ़ाने का क्या मतलब था ? जिस मुकाम पर पहुंचने के लिये नशा किया जाता है, बकौल आपके उस पर तो मैं पहले ही पहुंचा हुआ था, तब मेरी नयी खरीद, नयी बाटली - जो कि आप कहते है मैंने लूट की रकम से खरीदी - मेरे किस काम आने वाली थी ! और अभी आपका ये भी दावा है कि नयी बोतल भी मैं पूरी चढ़ा गया !”
महाबोले मुंह बाये उसे देखने लगा ।
“बहुत श्याना हो गया है !” - फिर बोला - “साले, नशा उतरते ही दिमाग की सारी बत्तियां जल उठीं !”
“सवाल दिलचस्पी से खाली नहीं” - डीसीपी बोला - “जवाब है तुम्हारे पास, इंस्पेक्टर साहब ?”
“सर, मेरा जवाब इसके इकबालेजुर्म की सूरत में आपके सामने पड़ा है ।”
“आर यू ए ड्रिंकिंग मैन ?”
महाबोले हड़बड़ाया, उसने महसूस किया कि उस घड़ी इस बाबत झूठ बोलना मुनासिब नहीं था ।
“आई एम ए माडरेट ड्रिंकर, सर ।” - वो बोला - “वन ऑर टू पैग्स ओकेजनली । हैवी ड्रिंकिंग का मुझे कोई तजुर्बा नहीं ।”
“आई सी ।”
“इसलिये मैं नहीं जानता ड्रींकर किस हद तक जा सकता है ! वो बोतल पी सकता है या नहीं; एक बोतल पी चुकने के बाद दूसरी बोतल पी सकता है या नहीं, इस बाबत मेरी कोई जानकारी नहीं ।”
“हूं । पाण्डेय !”
“जी, साहेब ।”
“मकतूला के जेवरात, उसकी कलाई घड़ी, उसका कायन पर्स, ये सब सामान तुम्हारी जेबों से बरामद हुआ । इस बाबत तुम क्या कहते हो ?”
“बरामद तो बराबर हुआ, साहेब । लेकिन मुझे नहीं मालूम वो सामान मेरी जेबों में कैसे पहुंचा !”
“उड़ कर पहुंचा और कैसे पहुंचा !” - महाबोले व्यंगपूर्ण स्वर में बोला - “या जादू के जोर से पहुंचा । तुमने तो नहीं रखा न !”
“मैंने ऐसा कब कहा ?”
“तो और क्या कहा ?”
“मैंने कहा उस सामान का मेरी जेबों में होने का कोई मतलब नहीं था ।”
“तुमने न रखा ?” - डीसीपी ने पूछा।
“मुझे याद नहीं कि मैंने ऐसा कुछ किया था ।”
“कहीं पड़ा मिला हो ?”
“नहीं, साहेब ।”
“रोमिला तुम्हें कहीं मिली, उसने अपनी राजी से अपना सामान तुम्हें सौंप दिया ?”
“ऐसा भला क्यों करेगी वो ?”
“नहीं करेगी ?”
पाण्डेय ने जोर से इंकार में सिर हिलाया ।
“फिर तो एक ही सम्भावना बचती है । सामान तुमने छीना ! झपटा ! लूटा !”
“मैं ऐसा नहीं कर सकता ।”
“लेकिन किया ।”
“किया तो मुझे कुछ याद नहीं ।”
“ये भी नहीं कि तुमने उस पर हमला किया ? या रेलिंग से पार ढ़लान से नीचे धक्का दिया?”
“साहेब, ये भी नहीं । मै ताजिंदगी कभी किसी से ऐसे पेश नहीं आया । मेरे में एक ही खामी है कि मै घूंट का रसिया हूं....”
“साले !” - महाबोले बोला - “ये एक ही खामी दस खामियों पर भारी है । नशे में टुन्न आदमी जो न कर गुजरे, थोड़ा है । अल्कोहल की तलब उससे कुछ भी करा सकती है । तू रोमिला से वाकिफ था, तेरी तलब ने तुझे मजबूर किया कि तू उससे अपना मतलब हल होने की कोई जुगत करता....”
“आपकी बात ठीक है, साहेब, लेकिन...”
“…जो कि तूने की । जान ले ली बेचारी की । उसको अकेली पाया तो उस पर झपट पड़ा, उसका हैण्डबैग झटक लेने की कोशिश की । उसने विरोध किया तो...अब आगे खुद बक क्या किया ! जो पहले मेरे सामने बक चुका है, उसे अब डीसीपी साहब के सामने भी बक ।”
“साहेब, थानेदार साहेब अगर कहते हैं कि ये सब मैंने किया तो मैं भी कहता हूं कि मैंने किया । लेकिन साथ में पुरजोर ये भी कहता हूं कि उस बाबत मुझे कुछ याद नहीं । जो कहा जा रहा है मैंने किया, वो किया होने का मेरे कोई इमकान नहीं ।”
“पाण्डेय” - डीसीपी बोला - “ये मेरे सामने तुम्हारा इकबालिया बयान है और तुम तसलीम करते हो कि इस पर तुम्हारे दस्तखत हैं । तुम्हारा ये बयान कहता है कि मकतूला रोमिला सावंत तुम्हें रूट फिफ्टीन पर राह चलती मिली, अपने नशे की तलब में तुमने उससे कोई रकम खड़ी करने की कोशिश की जिसको देने से उसने इंकार कर दिया । तब तुमने उसका हैण्डबैग झपटने की कोशिश की तो उसने तुम्हारा पुरजोर मुकाबला किया और तुम्हारी कोशिश को नाकाम किया । उसी छीनाझपटी में तुमने उसको धक्का दिया और वो वेग से रेलिंग पर से उलट गयी और ढ़लान पर कलाबाजियां खाती गिरती चली गयीं । अब सोच समझ कर जवाब दो, मोटे तौर पर ये सब सच है या नहीं ?”
“मुझे नहीं मालूम । यकीनी तौर पर मुझे कुछ नहीं मालूम । हो सकता है सब ऐसे ही हुआ हो ।”
“हो सकता है नहीं । दो टूक बोलो । एक जवाब दो । ऐसा हुआ या नहीं हुआ ?”
“शायद हुआ ।”
“फिर ?”
“मुझे कुछ याद नहीं । मैं थका हुआ हूं । मेरी सोच, मेरी समझ, मेरा मगज मेरा साथ नहीं दे रहा । मुझे रैस्ट की जरूरत है । करने दीजिये । अहसान होगा ।”
“ठीक है । इंस्पेक्टर !”
“सर !” - महाबोले तत्पर स्वर में बोला ।
“सी दैट ही गैट्स सम रैस्ट ।”
“यस, सर ।”
महाबोले ने हवलदार खत्री को बुलाया और आवश्यक निर्देश के साथ मुजरिम को उसके हवाले किया ।
“अब मैं तुम्हें कुछ कहना चाहता हूं ।” - डीसीपी बोला - “गौर से सुनो ।”
“यस, सर ।” - महाबोले बोला ।
“मैं नहीं जानता ये आदमी-हेमराज पाण्डेय-गुनहगार है या बेगुनाह....”
“मै जानता हूं । गुनहगार है । सजा पायेगा । उसका इकबालिया बयान...”
“इंस्पेक्टर !”
“सर !”
“डोंट इंटररप्ट । पे अटेंशन टु वाट आई एम सेईंग । स्पीक ओनली वैन आई एम फिनिश्ड ऑर वैन आई आस्क यू टु स्पीक । अंडरस्टैण्ड !”
“यस, सर ।” - मन ही मन अंगारों पर लोटता महाबोले बड़े जब्त से बोला ।
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