RE: Thriller Sex Kahani - सीक्रेट एजेंट
“यू आर टाकिंग नानसेंस । आई डिड नथिंग आफ दि काइंड ।”
“श्योर ?”
“ऐज गॉड इज माई जज, आई डिड नो सच थिंग ।”
“चर्च जाती हैं ?”
“हां । ऐवरी संडे ।”
“गले में क्रॉस पहनती हैं, गॉड को जज बना कर जो अभी बोला, वो क्रॉस को छू के बोलिये ।”
झिझकते हुए उसने क्रॉस को छुआ और कांपती आवाज में बोला ।
“आल राइट !” - नीलेश बोला - “मैने यकीन किया आपकी बात पर ।”
वो खामोश रही । एकाएक उसके चेहरे पर टेंशन के ऐसे भाव पैदा हुए थे कि चेहरा विकृत हो उठा था । बड़ी मुश्किल से उसने खुद पर काबू पाया ।
नीलेश ने तभी उसका पीछा न छोड़ दिया । उसने खोद खोद कर और भी कई सवाल महाबोले और रोमिला के बारे में उससे पूछे लेकिन कुछ हाथ न आया । उसका दिल गवाही देता था, उसका बैटर जजमेंट गवाही देता था कि रोमिला के कत्ल में महाबोले का बराबर कोई दखल था लेकिन उस पर किधर से भी कोई मजबूत उंगली नहीं उठ रही थी ।
असंतुष्ट वो वालसंज बोर्डिंग हाउस से रुखसत हुआ ।
पीछे पश्चाताप से विचलित, अवसाद की प्रतिमूर्ति बनी मिसेज वालसन बुत की तरह कुर्सी पर ढे़र हुई बैठी थी । उसका रोम रोम इंस्पेक्टर महाबोले के लिये नफरत से जल रहा था जिसकी वजह से उसे क्रॉस को छू कर झूठ बोलना पड़ा था ।
“मैरी, मदर आफ गॉड !” - कांपती आवाज में वो बार बार कहने लगी - “फारगिव माई सिंज ।”
***
नीलेश वापिस रूट फिफ्टीन पर और आगे मौकायवारदात पर पहुंच ।
पुलिस ने मौकायवारदात को ऊपर रेलिंग के साथ और नीचे पेड़ों के साथ रस्सियां बांध बांध कर घेरा हुआ था । उस घेरे के बाहर कई तमाशबीन मौजूद थे । वो जानते थे लाश कब की वहां से हटाई जा चुकी थी, फिर भी वो उस जगह को देखने के इच्छुक थे जहां कि लाश पायी गयी थी । वहां एक इकलौता पुलिसिया मौजूद था जो रेलिंग पर टांगें लटकाये बैठा बड़ी निर्लिप्तता से सिग्रेट के कश लगा रहा था । उसे न तमाशाईयों से मतलब था, न मौकायवारदात से, वो महज वहां अपनी ड्यूटी की रसमअदायगी कर रहा था, खानापूरी कर रहा था
नीलेश कुछ क्षण कार में बैठा सिग्रेट के कश लगाता रहा फिर कुछ सोच कर उसने सिग्रेट को तिलांजली दी और कार से बाहर निकाला ।
नीचे ढ़लान पर जिस जगह से लाश बरामद हुई थी, वो रेलिंग पर से नहीं दिखाई देती थी लेकिन, सब-इंस्पेक्टर जोशी का दावा था, उस ट्रक ड्राइवर को दिखाई दी थी, जिसने थाने फोन लगा कर हादसे की खबर की थी, क्योंकि ट्रक की सीट ऊंची होती थी ।
कितनी ऊंची होती थी !
जेहन में ट्रक का तसव्वुर करके उसने उस बात पर गौर किया ।
फिर वो कार की छत पर चढ़ गया और उस पर खड़ा हो गया ।
क्या इतनी ऊंची !
ठीक !
उसने रेलिंग के पार ढ़लान से नीचे की तरफ निगाह दौड़ाई ।
वो चट्टान उसे फिर भी न दिखाई दी जिसके करीब लाश पड़ी पायी गयी थी ।
जो उसे दिन की रोशनी में नहीं दिखाई दिया था, वो किसी ट्रक ड्राइवर को रात के अंधेरे में दिखाई दिया था । अंधेरी का ये जवाब बनता था कि किसी तरीके से ट्रक का ऐंगल ऐसा बन गया था कि हैडालाईट्स की रोशनी से ढ़लान नीचे दूर तक चमक गयी थी लेकिन वो जगह तो फिर भी नहीं देखी जा सकती थी जहां कि लाश पड़ी पायी गयी थी !
तो क्या काल की कहानी फर्जी थी ?
क्या बड़ी बात थी ! बाकी सब कुछ भी तो फर्जी ही जान पड़ता था !
हैट में से खरगोश निकालने जैसी जादूगरी से हाथ के हाथ कातिल मुहैया हो गया - ऐसा ईडियट कातिल मुहैया हो गया जिसने रोकड़ा निकाल कर हैण्डबैग तो फेंक दिया लेकिन कायन पर्स, जिसमें चंद सिक्कों के सिवाय कुछ भी नहीं था, पास रखे रहा । अब इस बात की भी तसदीक हो चुकी थी कि पिछली रात को किसी बार ने लेट लेट नाइट आवर्स में बार रेट्स पर किसी को विक्की की बोतल नहीं बेची थी । इस लिहाज से हैण्डबैग से निकाला रोकड़ा पाण्डेय के पास होना चाहिये था लेकिन नहीं बरामद हुआ था । न वो रकम कोई मुद्दा बनी थी क्योंकि महाबोले की एक ही जिद थी कि वो उसने बाटली की खरीद में सर्फ कर दी थी । कैसे खरीद पाया वो बाटली, कैसे सर्फ कर दी थी, इस बाबत उससे सवाल करने वाला कोई नहीं था ।
न ये बात किसी के लिये मुद्दा थी कि अपनी मौत से पहले रोमिला निहायत खौफजदा थी, इतनी कि छुपती फिर रही थी, घर लौटने की हिम्मत नहीं कर पा रही थी ।
फिर लाख रुपये का सवाल था कि उसका हैण्डबैग कहां गया ? कैसे वो उसके कमरे से गायब हुआ ? महाबोले ने किया - या करवाया - तो क्योंकर ये करतब वो कर पाया !
बाजरिया मिसेज वालसन !
तो क्या वो औरत झूठ बोले रही थी ! क्रास को छू कर भी झूठ बोले रही थी !
क्या पता लगता था ?
खुदा के नाम पर झूठ बोलने वाले पर बिजली तो गिर नहीं पड़ती थी !
तभी उसकी निगाह एक अपनी ही उम्र के व्यक्ति पर पड़ी जो कार के करीब खड़ा मुंह बाये उसे देख रहा था ।
खिसियाया सा नीलेश कार की छत से नीचे उतरा ।
“हल्लो !” - वो बोला ।
“हल्लो !” - वो व्यक्ति मथुर स्वर में बोला - “हाइट से सीनरी एनजाय कर रहे थे !”
नीलेश फिर खिसियाया सा हंसा ।
“या क्राइम सीन का अक्स जेहन में उतार रहे थे !”
“आपकी तारीफ ?”
“मैं मंजुनाथ मेहता । आइलैंड के इकलौते टेबलायड ‘आइलैंड न्यूज’ का एडीटर, पब्लिशर, रिपोर्टर, आफिस असिस्टेंट वगैरह ।”
“तो आप निकालते हैं वो पर्चा ?”
“हां । देखा कभी ?”
“देखा तो सही !”
“कैसा लगा ?”
“पर्चा था ।”
मेहता हंसा ।
“नाइस मीटिंग यू । मेरे को नीलेश गोखले कहते हैं ।”
“नाम से वाकिफ हूं । सूरत से भी वाकिफ हूं ।”
“अच्छा !”
“पत्रकार घूंट न लगाये तो उसकी कलम नहीं चलती न, इसलिये शाम ढ़ले कभी कभार कोंसिका क्लब का फेरा लगता है ।”
“ओह !”
“कल सुबह भी मैं यहां था, तब तुम एक बड़ी रोबदार शख्सियत के साथ थे । बाद में सब-इंस्पेक्टर जोशी से, कांसटेबल भाटे से बात की तो उसकी बाबत पहले एक जवाब मिला, फिर दूसरा जवाब मिला । पहला जवाब मिला कि वो मुम्बई से आये कोई पत्रकार थे और तुम उनके लोकल फ्रेंड और गाइड थे । दूसरा जवाब मिला कि डिप्टी कमिश्नर आफ पुलिस थे ।”
“हूं ।”
“अब आइडेंटिटी चेंज हो जाने से ताल्लुकात तो चेंज नहीं हो जाते न !”
“मतलब ?”
“डीसीपी साहब के लोकल फ्रेंड तो तुम फिर भी रहे न !”
नीलेश खामोश रहा ।
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