RE: Thriller Sex Kahani - सीक्रेट एजेंट
उसने उत्तर न दिया । उसके चेहरे पर चिंता के भाव बदस्तूर बने रहे ।
“तो उस बेवड़े को....क्या नाम था ?”
“हेमराज पाण्डेय ।”
“उसको थामा गया ?”
“हां । थामा गया तो बोले तो वहींच साला केस ही हल हो गया । लड़की को खल्लास करने के बाद उसका जो माल उसने लूटा, वो साला अक्खा उसके पास से बरामद हुआ । साब इधर लाकर जरा डंडा परेड किया तो गा गा कर अपना गुनाह कुबूल किया । राजी से अपना बयान दर्ज कराया । दस्तखतशुदा गवाहीशुदा, इकबालिया बयान !”
“राजी से ?”
“बरोबर ।”
“उसे सब याद था ?”
“किधर याद था ! जब पकड़ के इधर लाया गया था, साला तब भी टुन्न था । महाबोले साब को याद दिलाना पड़ा कि नशे में उसने क्या किया था, कैसे किया था, क्यों किया था !”
“लिहाजा बयान एसएचओ साहब ने दिया, पाण्डेय ने न दिया !”
“क्या बात करते हो ! उसी ने दिया जो गुनहगार था । बोले तो उसकी याददाश्त पर से नशे की परत खुरच कर हटानी पड़ी ।”
“जब उसका इकबालिया बयान दर्ज किया गया था, तब तुम भी मौजूद थे ?”
“हां । मैंने अपनी गवाही भी डाली उसके बयाने पर ।”
“उसका थोबड़ा सेंक दिया, थूंथ सुजा दी, मुंडी पकड़ के पानी में गोते लगवाये, इकबालिया बयान ऐसे होता है !”
“अरे, वो टुन्न था । उसका नशा भी उतारने का था या नहीं !”
“जो काम चंद घंटों में अपने आप ही हो जाता, उसे जबरन करने की क्या जरूरत थी ?”
“बोले तो ?”
“ला के लॉकअप में बंद करते, दिन चढे़ पर नशा खुद हवा हो गया होता । नहीं ?”
“अभी क्या बोलेगा मैं ! साब का मिजाज भी तो गर्म है !”
“बहरहाल मुजरिम ने, हेमराज पाण्डेय ने, अपने जुर्म का इकबाल किया ?”
“बरोबर ।”
“अपनी मर्जी से ?”
“बरोबर ।”
“तुमने कहा पार्क के बैंच पर नशे में बेसुध पड़ा पहले तुमने भी उसे देखा था !”
“बरोबर ! बोर्डिंग हाउस पर ड्यूटी के लिये जब मैं उधर से गुजरा था तो वो पड़ा था साला उधर ।”
“टुन्न ! दीन दुनिया से बेखबर !”
“बरोबर ।”
“रात को किसी घड़ी अपने नशे के आलम से वो उबरा, छ: किलोमीटर चल कर रूट फिफ्टीन पर पहुंचा, जहां कि उसे रोमिला मिली, अपने नशे को फाइनांस करने की खातिर उसे लूट कर उसने उसका कत्ल किया, छ: किलोमीटर वापिस चला और आकर उसी बैंच पर पड़ गया जिस पर से उठ कर वो अपने लूट के अभियान पर निकला था । ठीक ?”
“भई, साब बोलेगा न !”
“अभी तो तुम बोलो ।”
“अभी मेरे को एकीच बात बोलने का ।”
“क्या ?”
“मेरे को इधर डूब के नहीं मरने का । पानी साला ऐसीच थाने में आता रहा, लैवल साला हाई होता गया तो मैं इधर नहीं रुकने का ।”
“ड्यूटी पर हो, भई !”
“डैथ ड्यूटी पर नहीं हूं ।”
“अरे, कैसे पुलिस वाले हो !”
“घटिया पुलिस वाला हूं । भड़वा पुलिस वाला हूं । अभी क्या बोलता है !”
“नीलेश खामोश रहा ।
“अभी का अभी नौकरी से इस्तीफा देता है मैं । और पहला मौका लगते ही लौट के मुम्बई जाता है ।”
“नौकरी बिना क्या करोगे ?”
“साला भेलपूरी बेचेगा चौपाटी पर । डिब्बा उठायेगा । इधर से हर हाल में फ्री होना मांगता है मेरे को । मेरे को साला बहुत टेंशन इधर...”
“तभी बाहर से एक कार के इंजन की आवाज आयी ।
“बोले तो” - भाटे बदले स्वर में बोला - “सब लोग आ गया ।”
दोनों की निगाह बाहर की ओर उठी ।
बाहर पुलिस जीप की जगह एक वैगन-आर आ कर खड़ी हुई थी ।
साहब लोग नहीं आये थे, श्यामला मोकाशी आयी थी ।
श्यामला मोकाशी डकबिल की अपने साइज से बड़ी बरसाती ओढे़ थी जिस वजह से वो उसके घुटनों से नीचे टखनों से जरा ऊपर तक पहुंच रही थी और उसके गले से लेकर आखिरी तक तमाम बटन बंद थे । सिर पर वो डकबिल की ही पीककैप पहने थी, वो भी उसके साइज से बड़ी थी इसलिये बार बार आंखों पर ढुलक रही थी ।
उसने एक उड़ती निगाह नीलेश पर डाली, फिर तत्काल भाटे की तरफ देखा ।
“पापा यहीं हैं ?” - वो बोली ।
भाटे ने इंकार में सिर हिलाया ।
“एसएचओ साहब ?”
“वो भी नहीं हैं ।” - भाटे बोला - “दोनों इकट्ठे इधर से निकल कर किधर गये हैं ।”
“किधर ?”
“मालूम नहीं ।”
“कब लौटेंगे ?”
“मालूम नहीं ।”
“देवा ! ये मौसम क्या भटकते फिरने का है !”
“तुम भी तो” - नीलेश बोला - “ऐसे ही फिर रही हो !”
श्यामला की सूरत से न लगा उसने नीलेश की बात की ओर कोई ध्यान दिया था ।
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