RE: Thriller Sex Kahani - सीक्रेट एजेंट
ग्लास डोर को उसने मजबूती से बंद पाया । तूफान के पानी की बौछारें उससे टकरा टकरा कर लौट रही थीं । दरवाजे के नीचे से पानी भीतर भी दाखिल हो रहा था और भीतर हाल का फर्श पानी में डूबा दिखाई दे रहा था ।
जाहिर था कि होटल बंद था, वहां ठहरे मेहमान कब के वहां से कूच कर चुके थे । जो हाल वहां दिखाई दे रहा था, उसमें होटल चलाये रखा जा ही नहीं सकता था । वहां से मेहमान ही नहीं, सारा स्टाफ भी कूच कर चुका था इसलिये लॉबी भां भां कर रही थी ।
वो दरवाजे पर से हटा और फिर इमारत की दीवार के साथ सट कर चलता उसके सिरे पर पहुंचा जहां कि पिछवाड़े को जाती गली थी । गली में घुटने घुटने पानी में चलता वो पिछवाड़े में पहुंचा जहां कि आगे मेन रोड से पार समुद्र था जिसमें उस वक्त कई कई फुट ऊंची लहरें उठ रही थीं । पीछे ‘इम्पीरियल रिट्रीट’ का उसके विशाल ओपन बैकयार्ड से आगे अपना प्राइवेट पायर था जो कि उफनते पानी में कहीं गुम था । पानी का बहाव इतना तेज था कि नीलेश को दीवार का सहारा न होता तो लहरें साथ बहा के ले गयी होतीं ।
गली को छोड़ कर वो इमारत के पिछवाड़े में पहुंचा तो उसे अहसास हुआ कि पिछवाड़े का एक दरवाजा खुला था और उसमें रोशनी थी । उसके देखते देखते महाबोले और जगन खत्री दायें बायें से एक ट्रंक उठाये बाहर निकले और पानी में डोलती एक मोटर बोट की ओर बढ़े । मोटर बोट पायर से कहीं बंधी हुई थी इसलिये उसकी वजह से ही अंदाजा किया जा सकता था कि पायर कहां था ।
“स्टाप !” - वो चिल्लाया ।
तूफान के शोर में उसकी आवाज किसी ने न सुनी ।
नीलेश ने गन निकाल कर हाथ में ले ली और पहले से ज्यादा जोर से चिल्लाया - “थाम्बा !”
इस बार बावाज उन दोनों के कानों में पड़ी । दोनों चिहुंक कर घूमे और उन्होंने आवाज की दिशा में देखा । नीमअंधेरे में भी शायद उन्होंने नीलेश को पहचाना क्योंकि ट्रंक उनके हाथों से छूटते छूटते बचा ।
नीलेश उनके करीब पहुंचा ।
“वापिस !” - वो चिल्लाया - “वापिस भीतर चलो ! ट्रंक समेत !”
ट्रंक थामे दोनों सकते की सी हालत में खड़े रहे, किसी ने हिलने की कोशिश न की ।
नीलेश ने अपना गन वाला हाथ अपने सामने यूं लहराया कि उन्हें वो जरूर दिखाई दे जाती । वैसे ये बात भी उसके फायदे की थी कि जब तक वो भारी ट्रंक उठाये था, अपने हथियार वो नहीं निकाल सकते थे ।
फिर उसे लगा जैसे दोनों आपस में कोई तकरार कर रहे हों । साफ लगता था कि एसएचओ कुछ कह रहा था जिस मातहत को-जिसकी गर्दन निरंतर इंकार में हिल रही थी-इत्तफाक नहीं था ।
नीलेश ने हवा में एक फायर किया ।
फायर की आवाज तूफान में भी न दबी ।
तत्काल वो घूमे और वापिस खुले, रोशन, दरवाजे की ओर बढे़ ।
वे वापिस भीतर पहुंच गये तो नीलेश भी उनके पीछे भीतर दाखिल हुआ ।
“गोखले !” - महाबोले तड़पता सा बोला - “तेरी ये मजाल !”
“ट्रंक होटल का तो हो नहीं सकता ।” - नीलेश शांति से बोला - “क्योंकि होटल का सामान आइलैंड का थानेदार तो उठाने से रहा ! लिहाजा जाहिर है कि ये कैसीनो का सामान है, मैग्नारो का माल है । ले के चलो सैकंड फ्लोर पर वापिस ।”
“पागल हुआ है ! ये यहां से निकलने का टाइम है या वापिस घुसने का टाइम है !”
“ये रावण की लंका है । बहुत मजबूत है । इसको कुछ नहीं होने वाला । चलो ।”
“हम सब मारे जायेंगे ।” - हवलदार खत्री दयनीय स्वर में बोला ।
“तो क्या बुरा होगा ! पाप का अंत, पापी का अंत जिस हाल में हो, वही अच्छा ।”
“ईडियट !” - महाबोले गुर्राया - “साथ में तू भी ।”
“तो क्या हुआ ! गेहुं के साथ घुन पिसता ही है । नाओ, कम आन ! मूव इट !”
धमकी के तौर पर नीलेश ने मजबूती से गन उनकी तरफ तानी ।
“थानेदार पर गन तानने की, उस पर हुक्म दनदनाने की मजाल किसी ऐरे गैरे की नहीं हो सकती । क्या बला है तू ?”
“इस वक्त तो बला ही हूं...तुम्हारे लिये ।”
“सीक्रेट एजेंट !”
“अब काहे का सीक्रेट ! अब तो तमाम राज खुल चुके हैं । जो नहीं खुले वो अब खुल जायेंगे ।”
“ऐसा है तो बकता क्यों नहीं, असल में तू कौन है ?”
“हिलो दोनों जने । दोबारा न कहना पड़े ।”
मजबूरन वो अपने स्थान से हिले और पूर्ववत् आजू बाजू से ट्रंक उठाये संगमरमर की विशाल, भव्य, आबनूस की लकड़ी से सुसज्जित रेलिंग वाली अर्धवृत्ताकार सीढ़ियों की ओर बढ़े ।
पहली सूखी सीढ़ी पर उनके कदम पड़े तो नीलेश भी उनके पीछे आगे बढ़ा ।
भारी कदमों से भारी ट्रंक उठाये दोनों पुलिसिये, अफसर और मातहत, सीढ़ियां चढ़ते गये ।
आखिर वो दूसरी मंजिल पर और आगे एक विशाल दरवाजे पर पहुंचे जिसके आगे एक बड़ा हाल था ।
हाल की उस घड़ी की पोजीशन ने उसे बहुत हैरान किया । वो हाल खाली मिलने की उम्मीद कर रहा था - बड़ी हद बिलियर्ड की टेबल्स वहां तब भी हो सकती थीं लेकिन बमय रॉलेट व्हील, स्लॉट मैशींस, ब्लैकजैक टेबल्स वहां मिनी कैसीनो का तमाम साजोसामान यथास्थान, यथापूर्व मौजूद था ।
क्या माजरा था !
दोनों भीतर दाखिल हुए और वहीं दरवाजे पर ही उन्होंने ट्रंक हाथों से निकल जाने दिया । फर्श पर गिरने पर जैसी ट्रंक ने आवाज की, उससे साफ पता लगता था कि वो बहुत भारी था ।
गन से उनको कवर किये नीलेश उनके पीछे हाल में दाखिल हुआ ।
तभी हाल के परले सिरे पर का एक दरवाजा खुला और मुंह में एक लम्बा, फैंसी सिगार दबाये फ्रांसिस मैग्नारो ने उससे बाहर कदम रखा ।
उसकी निगाह दोनों पुलिसियों के बीच फर्श पर पड़े ट्रंक पर पड़ी तो उसके चेहरे पर सख्त हैरानी के भाव आये ।
“सांता मारिया !” - उसके मुंह से निकला - “ये मैं क्या देख रहा है ! अभी तुम दोनों साला इधरीच है ट्रंक के साथ !”
“जा के लौटे ।” - महाबोले पस्त लहजे से बोला ।
“वजह ?”
“ये है ।” - महाबोले ने नीलेश की तरफ इशारा किया ।
“ये कौन है ?”
“नीलेश गोखले ! जिससे आप मिलना चाहते थे ।”
“ओह !” - मैग्नारो ने बदले मिजाज के साथ नीलेश का मुआयना किया - “ओह !”
“हम इमारत से बाहर थे, पायर की ओर बढ़ रहे थे, बोट पर सवार होने वाले थे...ये आ गया । गन दिखा कर हमें धमकी से इधर वापिस ले कर आया । मरे जा रहे थे न इससे मिलने को ! मिलो अब ! गले लग के मिलो ।”
मैग्नारो के चेहरे पर उलझन और अनिश्चय के भाव आये ।
“रोनी !” - एकाएक वो उच्च स्वर में बोला ।
उसके पीछे से निकल कर एक और आदमी प्रकट हुआ ।
रोनी डिसूजा ! गोवानी रैकेटियर का बॉडीगार्ड !
डिसूजा का हाथ शोल्डर होल्स्टर में मौजूद गन की तरफ लपका ।
“फ्रीज !” - नीलेश तीखे स्वर में बोला - “ऑर आई शूट युअर बॉस !”
डिसूजा हड़बड़ाया ।
“तुम्हारा हाथ गन पर अभी पहुंचेगा, मेरे हाथ में पहले ही गन है । जब तक तुम्हारा हाथ गन पर पड़ेगा, गन निकालोगे, हाथ सीधा करोगे, तब तक बॉस गॉड को सलाम बोल रहा होगा । क्या !”
डिसूजा का हाथ रास्ते में ही फ्रीज हो गया, व्याकुल भाव से उसने मैग्नारो की तरफ देखा लेकिन मैग्नारो का चेहरा सपाट था, उस पर अपने बॉडीगार्ड के लिये कोई हिदायत दर्ज नहीं थी, कोई प्रोत्साहन दर्ज नहीं था ।
“ड्रॉप युअर हैण्ड्स बाई युअर साइड्स ।” - नीलेश ने आदेश दिया ।
चेहरे पर तीव्र अनिच्छा और पराजय के भाव लिये डिसूजा ने आदेश का पालन किया ।
“बॉस से परे हट के खड़ा हो ।”
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