RE: Antervasna मुझे लगी लगन लंड की
मैंने उसके कान को हल्के से काटते हुए कहा- जानू, मेरी चूत की खुजली अभी शान्त नहीं हुई है।
तो वो मेरे बालों में हाथों को फेरते हुए बोला- जानू मेरा लंड तुम्हारी चूत के लिये ही बना है, जब चाहो तुम इसको अपनी चूत में ले सकती हो। पर इस समय ये भी थक कर मुरझा गया है।
मेरी चूत का रस उसके लंड पर और उसके लंड का रस मेरे चूत के अन्दर था। पर मैं इस सब को भुलाकर 69 की पोजिशन में आ गई और अपनी चूत को रितेश के मुँह में रख दिया और रितेश के लंड को चूसने लगी। मैं अपने ही माल को चाट रही थी और रितेश अपने माल को चाट रहा था। थोड़ी देर ऐसे करते ही रहने से रितेश का लंड खड़ा हो गया और फिर मैं उतर कर घोड़ी बन गई और रितेश को पीछे से चूत चोदने के लिये बोली। हम दोनों बिना आवाज किये चुदाई का खेल खेल रहे थे और हम लोग काफी मस्ती में आ गये थे। रितेश अपनी पूरी ताकत से मेरी ड्रिलिंग कर रहा था और मेरी चूची को कस कर दबा रहा था। मैं सिसिया रही थी लेकिन मेरी कोशिश भी यही थी कि आवाज बाहर न जाये। काफी देर तक धक्के मारने के बाद अन्त में रितेश ने अपना माल मेरे अन्दर छोड़ दिया। चुदाई खत्म होते ही रितेश ने मेरी सलवार से मेरी चूत और अपने लंड को साफ किया और फिर मेरी सलवार को सूंघने लगा और उसके बाद सलवार को मेरी तरफ हवा में उड़ा दिया। तब तक मैं कुर्ती पहन चुकी थी, मैंने अपनी उड़ती हुई सलवार को हवा में ही लपक लिया और सूंघने लगी। क्या मस्त खुशबू मेरी और रितेशके प्यार की थी। तभी बाहर से कुन्डी पीटने की आवाज आने लगी, मैंने जल्दी से सलवार पहनी, तब तक रितेश ने भी अपने कपड़े पहन लिये और हम दोनों ही बाहर आ गये।
सामने अमित ही खड़ा था। एक बार उसने फिर द्विअर्थी अंदाज में
बोला- अगर तुम दोनों ने कबड्डी का खेल खेल लिया हो तो चलो खाना खा लो।
मैं शर्मा के रसोई में आ गई, जबकि रितेश सफाई दे रहा था और बाकी लोग उसकी खींच रहे थे। अमित की इस हरकत से मुझे काफी गुस्सा आ रहा था पर बोल मैं कुछ सकती नहीं थी। एक तो मैं नई शादीशुदा थी तो मर्यादा भंग नहीं कर सकती थी दूसरा अमित इस घर का दमाद था और इधर तीन चार दिन से जो मैं देख रही थी, उसके रौब के आगे किसी की कुछ नहीं चलती थी। लेकिन मुझे अपने ऊपर विश्वास था कि एक दिन अमित को मैं सबक सिखा दूंगी। पर सवाल ये उठता था कि अमित को सबक सिखाऊँगी कब... क्योंकि मेरा घर संयुक्त है और हर समय घर में कोई न कोई बना ही रहता है। इसी सोच विचार में 10-12 दिन बीत गये। चूंकि अमित पुलिस में है तो उसने हमारी शादी के समय से ही अपना ट्रांसफर लखनऊ में करवा लिया था और तभी से अमित और उसकी बीवी नमिता यानि की मेरी ननद जिसका भी जिस्म काफी तराशा हुआ था और वो मेरी कद काठी की ही थी, हमारे घर में ही रह रहे थे और अमित और नमिता का कमरा भी ऊपर ही था। दोस्तो, दिल से कहूँ... मैं अमित की डील-डौल देखकर खुद ही चाहती थी कि मैं उसके नीचे लेट जाऊँ और अमित जैसा चाहे मुझे रौंदे और मैं उफ भी नहीं करती। पर उस रात वाली हरकत जिसके कारण मुझे और रितेश को एक-दूसरे का मूत पीना पड़ा, रह रह कर मैं वही सोचती और फिर मेरा गुस्सा अमित पर और बढ़ता जाता। पता ही नहीं चला कि कैसे सब छुट्टियाँ हँसी मजाक और छींटाकशी में बीत गई। मैं और रितेश अपने कमरे में नंगे ही रहते थे और अगर किसी काम से हममे से किसी को अगर बाहर जाना भी होता तो रितेश लोअर और टी-शर्ट डाल लेता था और मैं जल्दी से साड़ी, पेटीकोट और ब्लाउज पहन लेती थी। सोमवार का दिन आया जब हम दोनों को ऑफिस जाना हुआ तो घर के सभी सदस्यों ने मुझे और रितेश को तैयार होने का पहला अवसर दिया ताकि हम दोनों समय से ऑफिस पहुँच सकें। पहले रितेश नहाने के लिये गया जबकि मैं, मेरी सास और ननद तीनों लोग जल्दी-जल्दी नाश्ते की तैयारी करने लगे। रितेश नहाने के बाद नीचे तौलिया लपेट कर अपने कमरे में चला गया, जैसे ही वो निकला, मैं भी नहाने चली गई और नहा धोकर मैं भी जल्दी से अपने कमरे में आ गई। रितेश तौलिये में ही बैठा हुआ था। जैसे ही मैं अपने कमरे का दरवाजा बंद करके मुड़ी रितेश ने मुझे पीछे से कसकर पकड़ लिया और गाल को चूमते हुए बोला- आज शादी के बाद पहला दिन है ऑफिस जाने का... कुछ हो जाये?
मैं उससे झिड़कते हुई बोली- यार, आज काफी दिनों के बाद ऑफिस जा रहे हैं, कुछ तो शर्म करो।
रितेश मेरी बात काटते हुए बोला- जान, पहली बात तो यह कि मैं तो बहुत बेशर्म हो चुका हूँ और दूसरी तुम्हारी खुमारी अभी तक मेरे दिमाग से उतरी नहीं है और ऑफिस में मैं सारा दिन तुम्हें और तुम्हारी चूत गांड के बारे में सोचता रहूँगा। मेरा लंड खड़ा रहेगा और फिर मेरा काम में मन भी नहीं लगेगा और शायद तुम्हें भी ऐसा ही कुछ लग रहा होगा तो मेरा लंड तुम्हारी चूत की गर्मी को शांत करने को तैयार है और तुम मेरे लंड की अकड़ निकाल दो।
इतना कहने के साथ ही रितेश ने अपना तौलिया को उतार कर फेंक दिया और कुर्सी के ऊपर बैठ गया। उसका लंड पहले से ही तना हुआ था, तने लंड को देखकर मैंने भी झटपट अपने घर वाले कपड़े उतारे और रितेश के लंड की सवारी करने लगी। करीब चार-पाँच मिनट तक उछल कूद मचाने के बाद दोनों फ्री हुए, रितेश जल्दी जल्दी तैयार होकर नीचे चला गया और मैं आराम से तैयार होने लगी। फिर नाश्ता वगैरह करने के बाद जिसको जिसको ऑफिस जाना था, वे सभी ऑफिसके लिये रवाना हो गये। इसी तरह तीन चार दिन बीत गये थे। दिन में ऑफिस निकलने से पहले चुदाई का एक राउन्ड चलता था और फिर रात को।
चूँकि नई-नई शादी का माहौल था तो खूब मजा भी आ रहा था। लेकिन ऑफिस के चौथे दिन ही रितेश को ऑफिस से फरमान आ गया कि उसे देहरादून के ऑफिस में जाना है और एक नये प्रोजेक्ट पर काम करना है और इस कारण उसे हफ्ते भर वहां रहना पड़ सकता है। घर के सभी लोग मुझे भी रितेश के साथ जाने के लिये कहने लगे लेकिन मेरी सभी छुट्टियाँ खत्म हो चुकी थी और छुट्टी नहीं मिल रही थी तो रितेश को अकेले ही देहरादून जाना था। मैं उसके जाने के तैयारी करने लगी। तभी रितेश मेरे पास आकर बैठ गया और
बोला- सॉरी यार... मुझे तुम्हें अकेले छोड़कर जाना पड़ रहा है।
'कोई बात नहीं यार... अगर मुझे खुजली होगी तो केले से काम चला लूंगी।'
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