RE: Antervasna मुझे लगी लगन लंड की
खैर सुहाना चीख कर ही रूक गई, बोली कुछ नहीं। मैंने एक बार फिर लंड को बाहर निकाल कर थोड़ा तेज झटके से अन्दर डाला। 'आउच...' फिर वही आवाज... लेकिन 'मुझे दर्द हो रहा, अपना लंड निकालो। मैं मर जाऊँगी!' ऐसा सुहाना ने कुछ भी नहीं कहा और शायद अपने होंठों के दाँतों के बीच दबा कर दर्द को बर्दाश्त करने की कोशिश कर रही थी। मैं अब धीरे-धीरे अपने लंड को अन्दर बाहर कर के उसकी गांड में जगह बना रहा था और इसी तरह धीरे-धीरे लंड को अन्दर बाहर करते करते अब सुहाना की गांड में मेरा पूरा लंड जा चुका था, हालाँकि मेरा चमड़ा घिसने की वजह से मेरे लंड में जलन बहुत हो रही थी। अब सुहाना की टाईट गांड काफी ढीली पड़ चुकी थी और अब दर्द की आवाजके स्थान पर उन्माद की आवाजें आने लगी थी। थोड़ी देर में मैं उसके गांड के अन्दर ही खलास हो गया और उसकी गांड मेरे पानी से भर गई। मैंने सुहाना को सीधा किया और अपने सीने से उसकी पीठ चिपका ली। जैसे ही सुहाना मेरे से चिपकी मेरा लंड फच की आवाज के साथ बाहर आ चुका था। सुहाना की उंगली उसके गांड के छेद तथा आस-पास उस सभी जगह चल रही थी जहां-जहां मेरा पानी बहकर जा रहा था। सुहाना ने मेरे पानी को अपनी उंगली में लेकर उसके स्वाद को टेस्ट करने की कोशिश करने लगी। मैंने सुहाना को इस तरह करते देखा तो अपने मुरझाये लंड की तरफ दिखाते हुए,
बोला- अगर तुम्हें इसका टेस्ट लेना है तो इसको अपने मुंह में लेकर टेस्ट करो।
सुहाना घुटने के बल बैठ गई और मेरे लंड पर अपनी जीभ को इस प्रकार चलाने लगी मानो वो हर जगह को टेस्ट कर रही हो। फिर गप से उसने मेरे लंड को अपने मुंह में पूरा भर लिया और उसे लॉली पॉप की तरह चूसने लगी। जब उसने मेरे माल से सने लंड को पूरा साफ कर लिया तो खड़ी हो गई
और बोली- मुझे तुमसे कुछ पूछना है।
हम दोनों बिस्तर पर आकर बैठ गये,
मैंने कहा- हाँ बोलो, क्या पूछना चाहती हो?
तो उसने मुझसे पूछा- क्या तुम्हारी बीवी भी तुमसे गांड मरवाती है?
मैंने हँसते हुए उसकी पीठ पर हाथ फेरा
और बोला- मेरी बीवी मुझे बहुत खुश रखती है और मेरी खुशी के लिये ही उसने मुझसे अपनी गांड मेरे सुहागरात में मरवाई थी।
मेरी तरफ आश्चर्य से देखती हुई बोली- ऐसा क्यों?
तो मैंने भी बेबाक उत्तर दिया- क्योंकि सुहागरात के समय उसकी चूत चुदी हुई थी। मतलब पहले से ही चुदी चुदाई थी।
सुहाना - 'क्या तुमने ही?'
लेकिन मैंने उसका जवाब नहीं दिया और मैं उसके निप्पल को अपने मुंह में भर कर चूसने लला जबकि वो मेरे बालों को सहलाते हुए अपने प्रश्न पूछ रही थी और मैं जवाब दे रहा था।
तभी वो बोली- इसका मतलब कि मेरा पति भी मुझसे चाहता होगा कि मैं बेडरूम में उसके सामने एक रंडी की तरह रहूँ?
मैंने कहा- 'बिल्कुल वो चाहता होगा!' लेकिन तुम दोनों की झिझक के वजह से तुम दोनों न तो खुल के अपनी बात एक दूसरे से शेयर कर सकते हो और न ही खुलकर सेक्स का मजा ले सकते हो।
मैं उससे बाते करते हुए उसकी चूची को चूस रहा था और उसकी गीली चूत के अन्दर उंगली किये जा रहा था कि अचानक उसने मुझे एक किनारे किया और उठ कर खड़ी हो गई, मुझे चूमते हुए बोली- सॉरी रितेश, शायद तुम्हें इस समय मैं तुम्हारा ईनाम पूरा न दे पाऊँ। फिर कभी मैं कोशिश करूँगी कि तुम्हें तुम्हारा ईनाम पूरा मिल जाये।
कहते हुए वो अपने कपड़े पहनने लगी और वो मुझसे बोली- थैंक्यू रितेश, आज मैं जाकर अपने हबी के लिये रंडी बन जाऊँगी।
इतना कहने के साथ वो दरवाजा खोलने लगी कि तभी मैंने सुहाना को दो मिनट तक रूकने के लिये कहा।
सुहाना फिर मुझे देखने लगी।
मैंने कहा- मैम, जाकर नहा लेना और कोई जल्दबाजी न करना लेकिन उसे संकेत देती रहना ताकि वो भी आपके साथ खुल सके।
वो फिर मेरे पास आई और मेरे होंठो को चूमते हुए बोली- रितेश, मैं चाहती तो हूँ कि तुम्हारे खड़े लंड को अपनी चूत की सैर कराऊँ लेकिन मैं रूक नहीं सकती।
मैं - 'मत रूको लेकिन मुझे कल बताना!' उसकी चूत को दबाते हुए कहा कि इस चूत ने क्या कमाल किया?'
रितेश ने जब अपनी बातें खत्म की तो
मैं आकांक्षा बोली- जानू मायूस न हो, तुम्हारी यह रंडी तुम्हारा इंतजार कर रही है। मेरी भी चूत में आग लगी है पर बुझी नहीं है।
कह कर मैंने भी रितेश को सारी बातें बताई जो मेरे बॉस ने मेरे साथ किया। फिर हम दोनों ही खूब हंस रहे थे, मैंने रितेश से पूछा यार बॉस कह रहा था कि मैं तुम्हें भी अपने साथ कलकत्ता ले जाऊँ। काम का काम भी और हनीमून भी कर लो।
रितेश बोला- कह तो ठीक रहा है तुम्हारा बॉस! चलो कल मैं आ रहा हूँ, देखते हैं अगर ऑफिस से छुट्टी मिल जाये।
फिर हम दोनों ने मोबाईल पर एक दूसरे को खूब किस किया और फिर दूसरी तरफ से फोन कट गया।
मैं उठी और घर के काम निपटाने के साथ-साथ मैं सूरज और रोहन (सबसे छोटा देवर) दोनों पर ही नजर रखे हुए थे, क्योंकि मैं समझ गई थी रोहन भी मेरे लिये आहें भरता ही होगा। मेरे घर पर ही मेरे लिये काफी लंड थे जो मेरी चूत में जाना चाह रहे थे। लेकिन रोहन तो दिखा नहीं, सूरज बार-बार उत्सुकता से मेरी तरफ देख रहा था। उसके हाव भाव से ऐसा लग रहा था कि मैं तुरन्त ही नहाने चली जाऊँ, जिससे वो मुझे देख सके। क्योंकि घर के बाकी सदस्य अभी भी सो रहे थे और शायद रोहन भी सो रहा होगा। मुझे भी मौका सही लगा तो मैंने बाकी का काम छोड़ दिया और अपने कपड़े लेकर गुसलखाने में चली गई और अन्दर उसी छेद से मैं सूरज की गतिविधि पर नजर रखने लगी। देखा तो सूरज भी दबे कदमों से गुसलखाने के पास आ रहा था। लेकिन यह क्या!?! वो सीधा लैट्रिन में घुस गया। मेरा माथा ठनका... मैं समझने की कोशिश कर रही थी कि सूरज लैट्रिन क्यों गया होगा? मैं अब गुसलखाने के अन्दर चेक करने लगी तो देखा तो लैट्रिन से लगी हुई दीवार के किनारे एक छेद है।
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