Desi Sex Kahani कामिनी की कामुक गाथा
11-28-2020, 02:34 PM,
RE: Desi Sex Kahani कामिनी की कामुक गाथा
“तू भी मादरचोद? तुझे भी मेरी गांड़ ही मिली है? आ्आ्आ्आ्आ्आ्आ्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह, नननननहींईंईंईंईं, उफ्फ्फ्फ्फ्फ, फट्ट्ट्ट्ट्ट जाएगी मां के लौड़े।”

“फटने दे साली रंडी। आज तेरी गांड़ का गूदा निकाले बिना हम छोड़ने वाले नहीं हैं।” दबाव बढ़ाने लगा अपने लंड का मेरी गांड़ पर। उफ्फ्फ्फ्फ्फ, दो दो लंड, मेरी गांड़ में? सिहर उठी मैं। छूटने की कोई गुंजाइश नहीं थी। छूटना चाहता भी कौन था। बस भयभीत थी उस पीड़ा की जो अब मुझे झेलना था। चूत में दो लंड एक साथ सफलता पूर्वक ले ही चुकी थी तो अब गांड़ की बारी थी। चलो असंभव तो नहीं ही था, ले ही लेती हूं। इस सोच नें मेरे अंदर हिम्मत का संचार किया और लो, तभी कचकचा कर करीम नें मेरी गुदा की संकरी गुफा को चीरते हुए अपना लंड उतार ही दिया। उफ्फ्फ्फ्फ्फ, आ्आ्आ्आ्आ्आ्आ्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह, अकथनीय पीड़ा। उफ्फ्फ्फ्फ्फ, पल भर को मेरे जैसी रांड की भी सांसे रुक गयीं थीं। मेरी गुदा की हालत अब फटी तब फटी वाली थी। आखिर एक छिद्र, वह भी गुदामार्ग के संकरे छिद्र में, एक नहीं, दो दो मोटे मोटे लिंग को एक साथ ग्रहण करना किसी महिला के लिए कोई आसान बात तो थी नहीं, चाहे वह मुझ जैसी रांड की गुदा ही क्यों न हो। कितनी बार गुदा मैथुन से गुजर चुकी थी, किंतु इस तरह? बाप रे बाप। खैर, येन केन प्रकारेण, मैं दांत भींच कर सफलतापूर्वक इस आक्रमण को झेलने में सक्षम हो ही गयी। अब आरंभ हुई मेरी गुदा की कुटाई। दोनों बूढ़ों में मानो होड़ लग गयी मेरी तंग गुफा को कूटने की। उफ्फ्फ्फ्फ्फ भगवान, जालिमों ने मेरे जिस्म को निचोड़ते हुए मेरी गुदा पर कहर ही ढा दिया। भकाभक, भचाभच लगे चोदने मेरी गुदा को। प्रारंभिक पीड़ा का दौर गुजरने के पश्चात, ओह्ह्ह्ह्ह मां्आं्आं्आं, उफ्फ्फ्फ्फ्फ, आनंद, सुखद आनंद में मुदित, चुदने लगी।

“ओह्ह्ह्ह्ह ओह्ह्ह्ह्ह ओह्ह्ह्ह्ह ओह्ह्ह्ह्ह, चोद बेटीचोओ्ओ्ओ्ओ्ओदों, चोद बेटी की गां्आं्आं्आं्आं्आं्ड़, उफ्फ्फ्फ्फ्फ मजा आ रहा है साले कुत्तों, उफ्फ्फ्फ्फ्फ।” मैं जहाँ अनाप शनाप बड़बड़ाती कुतिया की तरह चुदने में मशगूल थी वहीं दोनो बूढ़े भी मुझे गंदी गंदी गालियों से नवाजते हुए चोदे जा रहे थे।

“हरामजादी कुतिया, रंडी की चूत, मां की लौड़ी, ले ले ले ले और ले आह्ह, ओह्ह्ह्ह्ह, लंडखोर बुरचोदी……” और न जाने क्या क्या। रामलाल की उत्तेजक कहानी का असर था यह। हम सभी कामुकता के सागर में डूब उतरा रहे थे। सभी अपने अपने ढंग से अपनी वासना की तृप्ति हेतु जी जान से प्रयासरत थे। एक दूसरे के तन से ऐसे लिपट चिपट रहे थे, बदहवासी, बेकरारी के आलम में डूबे ऐसे धकमपेल कर रहे थे मानो सारी कसर आज ही पूरी करने पर आमादा हों। करीब पच्चीस तीस मिनट के वासना की उस आंधी में हम सभी बेलगाम, पूरी बेशरमी से बहे जा रहे थे बहे जा रहे थे। उस आंधी के थमते ही मैं और मेरी गांड़ का कचूमर बनाने वाले दरिंदे बूढ़े इधर उधर लुढ़के अपनी सांसों पर नियंत्रण करने की कोशिश करने लगे। मुझे अहसास हो रहा था कि मेरा मलद्वार फैल कर गुफा में तब्दील हो चुका था जिसमें से इन बूढ़ों का वीर्य रिस कर बाहर आ रहा था। मैं बड़ी मुश्किल से उठी और बाथरूम की ओर चली, धुलाई करने, रोक पाने में अक्षम, अपनी गुदा से निकलते मल मिश्रित वीर्य की धुलाई करने। मेरे वापस आते आते रामलाल भी रश्मि की गांड़ का भुर्ता बना कर एक ओर लुढ़का भैंसे की तरह डकार रहा था। रश्मि की हालत तो देखने लायक थी। पेट के बल निढाल पड़ी, अपने गांड़ की बरबादी का दर्शन करा रही थी। थक कर चूर, पीले पीले मल लिथड़े नितंबों से बेखबर, आंखें बंद किए पता नहीं किस दुनिया की सैर कर रही थी।

“अरी रश्मि, उठ, जा कर अपनी गांड़ धो कर आ।” मैं बोली।

“ऊं्ऊं्ऊं्ऊं्ऊं्ह्ह्ह्ह्ह्ह,”

“उठ”

“क्यों ््ओओंं््ओओंं््ओओंं?”

“तेरी गांड़ गू से सनी है।”

“ओह्ह्ह्ह्ह भगवान, क्या हाल हो गया।” अपने हाथ के स्पर्श से यह महसूस करके कि मैं सच कह रही हूँ, बड़ी मुश्किल से अलसाई सी लड़खड़ाते हुए उठी और बाथरुम की ओर चली। उसका गुदाद्वार फैल कर संकुचन की क्रिया द्वारा पेट के अंदर मल के दबाव को रोक पाने में असफल सिद्ध हो रहा था, नतीजतन, बाथरूम जाते जाते उसकी गांड़ से टप टप मल और वीर्य का मिश्रित द्रव्य फर्श पर चूता चला गया, जिसे मुझे ही साफ करना पड़ा। रश्मि जब वापस कमरे में आई, तबतक हम सब सामान्य है चुके थे। शरीर लेकिन हम सबके अब भी नग्न ही थे।

“आया मजा?” मैं रश्मि से पूछी।

“आया, बड़ा मजा आया, लेकिन शुरु में रुला ही दिया था हरामी नें तो मुझे।” पूर्ण संतुष्टि का भाव था उसके चेहरे पर। लेकिन उसकी चाल बदली बदली सी थी। होगी भी क्यों नहीं, इतने मोटे और लंबे लंड से जो गांड़ मरवा बैठी थी।

“हां, सच बोल रही हो, इन खड़ूस बूढ़ों को देखो, इनके लंड कैसे अभी चूहे की तरह दुबके हुए हैं, कुछ देर पहले मेरी गांड़ के अंदर गरज बरस कर मेरी गांड़ का फालूदा बना रहे थे साले चुदक्कड़।” मैं बोली, और वे दोनों बूढ़े हमें देख कर खींसे निपोर रहे थे।

“तो अब?” मैं पूछी।

“अब क्या?” रश्मि बोली।

“अरी, शहला वाली कहानी।”

“ओह हां। तो मेरे प्यारे चुदक्कड़ जी, चलिए, शुरू हो जाईए।” रामलाल की ओर देखते हुए नंग धड़ंग सोफे पर बेशर्मी के साथ बैठती हुई बोली।

रामलाल अलसाई मुद्रा में उठते हुए बोला, “बताता हूं, बताता हूं।” फिर रश्मि को अपनी बांहों में दबोच कर बोलने लगा:… …..

शहला वाली कहानी अगले भाग में। तबतक के लिए मुझे आज्ञा दीजिए।
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