RE: Thriller Sex Kahani - अचूक अपराध ( परफैक्ट जुर्म )
-“हां, रकम मैं ले आई थी। उस पर मेरा हक था। देवा मर चुका था। उसके किसी काम वो नहीं आनी थी। मैंने फर्श पर पड़ी रकम उठाई। वहीं खड़ी कार लेकर भाग आई और जौनी को ढूंढने लगी। मैं सिर्फ भागना चाहती थी।”
-“रकम साथ लेकर?”
-“हां।”
-“क्या तुमसे जौनी ने कहा था।” राज ने सावधानीपूर्वक मोड़ काटते हुए पूछा- “कि रकम लेकर उससे जा मिलना?”
-“नहीं, ऐसा कुछ नहीं था। मैं देवा के साथ भागने वाली थी। मुझे पता भी नहीं था जौनी कहां है।”
-“यह सच है।” बूढ़ा बोला- “मैंने भी तुम्हें यही बताया था।”
लीना ने राज की ओर गरदन घुमाई।
-“मुझे जाने क्यों नहीं देते? मैंने कोई गलत काम नहीं किया है। रकम वहां पड़ी थी मैं उठा लायी। तुम चाहो तो उस रकम को ले सकते हो। किसी को पता नहीं चलेगा। दादाजी किसी को नहीं बताएंगे।”
-“क्या तुम नहीं जानती, वो रकम किसी के काम नहीं आ सकती?”
-“क्या मतलब?”
-“वो रकम बैंक से लूटी गई थी। इसलिए जौनी उसे खर्च नहीं कर सका। उन नोटों के नंबरों की लिस्ट पुलिस के पास भी है। जो भी खर्च करेगा पकड़ा जाएगा।”
-“मैं नहीं मान सकती। जौनी ने ऐसा नहीं करना था।”
-“उसी ने किया था। वह सैनी को बेवकूफ बना रहा था।
-“तुम पागल हो।”
-“पागल मैं नहीं, तुम हो। इतनी सीधी सी बात तुम्हारी समझ में नहीं आ रही कि अगर बीस लाख की वो रकम सही होती तो क्या जौनी उसे खुद ही खर्च नहीं करता? पैसे के लिए विस्की के ट्रक के झमेले में पड़ने की क्या जरूरत थी?”
लीना कुछ नहीं बोली। उसके चेहरे पर व्याप्त भावों से जाहिर था, असलियत को समझकर पचाने की कोशिश कर रही थी।
-“अगर यह सही है तो मुझे खुशी है उन शैतानों ने जौनी की पिटाई की। उसके साथ यही होना चाहिए था। मुझे खुशी है उस दगाबाज के साथ उन शैतानों ने भी दगाबाजी की।”
सामने चढ़ाई थी। राज दूसरे गीयर में धीरे-धीरे कार को ऊपर ले जाने लगा।
-“लीना?”
-“मैं यहीं हूं। कहीं गई नहीं।”
-“कल रात तुमने कहा था, तुम्हें मनोहर का ट्रक रुकवाने के लिए चुना गया था फिर किसी वजह से योजना बदल गई। वो क्या वजह थी?”
-“देवा यह रिस्क मुझे लेने नहीं देना चाहता था। असली बात यही थी।”
-“दूसरी बातें क्या थीं?”
-“उसने अपने एक दोस्त की मदद की थी। फिर उस दोस्त ने उसकी मदद कर दी।”
-“सैनी की?”
-“हां।”
-“ट्रक रोककर और मनोहर को शूट करके?”
-“ट्रक को रोका ही जाना था। देवा की योजना में किसी को शूट करना शामिल नहीं था लेकिन उस दोस्त ने देवा के साथ दगा कर दी।”
-“मनोहर को शूट करके?”
-“हां।”
-“सैनी का वो दोस्त कौन था?”
-“देवा ने नाम नहीं बताया। उसका कहना था कम से कम जानना ही मेरे हक में बेहतर होगा। वह चाहता था, अगर योजना कामयाब न हो सके तो मुझ पर कोई बात ना आए।”
-“क्या वह कौशल चौधरी था? पुलिस इन्सपैक्टर?”
उसने जवाब नहीं दिया।
-“बवेजा था?”
अभी भी खामोश रही।
-“सैनी ने अपने उस दोस्त की क्या मदद की थी?”
-“यह सब जौनी से पूछना। वही इसमें शामिल था सोमवार रात में वह देवा के साथ पहाड़ियों में गया था।”
-“पहाड़ियों में वे क्या करने गए थे?”
-“लंबी कहानी है।”
-“बता दो बेटी।” बूढ़ा हस्तक्षेप करता हुआ बोला- “खुद को बचाने के लिए तुम्हें सब-कुछ बता देना चाहिए।”
-“खुद को बचाने के लिए। मैं तो साफ बची हुई हूं। मेरा कोई संबंध इससे नहीं था। मैं बस वही जानती हूं जो मुझे बताया था।”
-“किसने?” राज ने पूछा।
-“पहले मनोहर ने फिर देवा ने।”
-“मनोहर ने इतवार रात में क्या बताया था?”
-“देवा ने कहा था मुझे इस बारे में खामोश ही रहना चाहिए। लेकिन वह मर चुका है इसलिए मैं नहीं समझती अब इससे कोई फर्क पड़ेगा।” लीना ने कहा- “मनोहर ने शनिवार को मोती झील तक मीना बवेजा का पीछा किया था। वह देवा की पत्नी की लॉज में किसी आदमी के साथ थी। और मनोहर खिड़की से छुपकर देख रहा था। यह बात मेरी समझ में तो आई नहीं। मामूली बात थी। पता नहीं क्यों इसे अहमियत दी गई।”
-“मनोहर ने क्या देखा था ?”
-“वही, जो मीना बवेजा और वह आदमी वहां कर रहे थे। क्या कर रहे थे, यह भी खोल कर बताना होगा?”
-“नहीं! आदमी कौन था उसके साथ?”
-“यह मनोहर ने नहीं बताया। मेरा ख्याल है, मुझे बताने में वह डर रहा था। इस बात ने उसके छक्के छुड़ाकर रख दिए थे। वह खुद मीना बवेजा का दीवाना था और जब उसने मीना को फर्श पर मरी पड़ी देखा.....।
-“उसने मीना को मरी पड़ी देखा था?”
-“मुझे तो उसने यही बताया था।”
-“शनिवार रात में?”
-“इतवार को। वह इतवार को दोबारा वहां गया था। उसने खिड़की से देखा तो वह मरी पड़ी थी। कम से कम मुझसे तो उसने यही कहा था।”
-“उसे कैसे पता चला मीना मर चुकी थी?”
-“यह मैंने उससे नहीं पूछा। मुझे लगा खुद उसी ने मीना को मार डाला हो सकता था। आखिरकार मीना के पीछे पागल तो वह था ही।”
-“इस मामले में जरूर कोई झूठ बोल रहा है, लीना। मीना बवेजा सोमवार तक जिंदा थी। तुम्हारे दादा ने सोमवार को तीसरे पहर सैनी के साथ देखा था।”
-“मैंने ऐसा कोई दावा नहीं किया कि वह वही थी।” बूढ़ा बोला।
-“वही रही होनी चाहिए। वो हील उसी के सैंडल से उखड़ी थी। मनोहर को जरूर धोखा हुआ था। उसे किसी वजह से वहम हो गया था कि मीना मर चुकी थी। फिर शराब के नशे में उसका वहम यकीन में बदल गया। इतवार को वह काफी पिए हुए था न?”
-“बेशक मनोहर नशे में धुत था।” लीना ने कहा- “लेकिन यह उसका वहम नहीं था। सोमवार को मैंने देवा को इस बारे में बताया तो वह खुद अपनी कार से वहां गया और जैसा कि मनोहर ने बताया लाश वही पड़ी थी।”
-“लाश अब कहां है?”
-“पहाड़ियों में ही कहीं है। देवा मीना की कार में डालकर उसे ले गया था और वही छोड़ आया।”
-“क्या यही वो मदद थी जो सैनी ने अपने उस दोस्त की की थी?”
-“ऐसा ही लगता है। हालांकि उसने कहा था उसे यह करना पड़ा। लाश को अपनी लॉज में वह नहीं छोड़ सकता था। उसे डर था, पुलिस उसी पर हत्या का आरोप लगा देगी।”
-“लाश को पहाड़ियों में कहां छोड़ा था उसने?”
-“पता नहीं। मैं उसके साथ नहीं थी।”
-“जौनी था?”
-“हां। वह देवा की कार में उसके पीछे गया था फिर देवा को कार से वापस ले आया।”
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