Thriller Sex Kahani - अचूक अपराध ( परफैक्ट जुर्म )
11-30-2020, 12:52 PM,
#90
RE: Thriller Sex Kahani - अचूक अपराध ( परफैक्ट जुर्म )
-“मेरा ख्याल है मीना को जब मैंने पहली बार देखा तभी उसकी ओर आकर्षित हो गया था। लेकिन यह बात मेरे दिमाग के किसी कोने में दबी रही। जब वह हमारे साथ रह रही थी तब और बाद में भी मुद्दत तक वो बात उसी तरह दबी रही। शायद इसीलिए कि मीना कमसिन थी और मैं उसके साथ वो सब नहीं दोहराना चाहता था जो उसका बाप कर चुका था। फिर वह जवान होती गई। और एक मस्त बेफिक्र और आजाद खयाल बेइंतेहा खूबसूरत युवती बन गई। पिछले साल उसके प्रति मेरा आकर्षण एकाएक जाग उठा। तब तक हमारी विवाहित जिंदगी पूरी तरह नीरस हो चुकी थी और मैं रंजना से निराश होकर फ्रस्टेशन का शिकार हो रहा था। हालांकि मीना अलग फ्लैट में रहने लगी थी मगर हमारे पास आती रहती थी। मैं उसे प्यार करने लगा। मीना मानो तैयार बैठी थी। उसके दिल में भी मेरे लिए यही जज्बा था। हमारे ताल्लुकात कायम हुए और दिनों दिन गहरे हो गए...।”
-“रंजना की जिस बीमारी का जिक्र तुमने किया है। उसके लिए वह कभी हॉस्पिटल में रही है?”
-“एक बार शादी के कुछेक महीने बाद उसने खुदकुशी करने की कोशिश की थी। तब करीब हफ्ता भर हास्पिटल में रही थी। और डाक्टरों का कहना था इसकी वजह उसकी वो प्रेगनेंसी थी। शादी से पहले जिस बच्चे को पैदा करने की जिद करती रही थी। शादी के दो-तीन महीने बाद कहने लगी उसे इस दुनिया में नहीं लाना चाहती। क्योंकि वह शादी से पहले ही उसके पेट में आ गया था इसलिए उसकी अपनी निगाहों में वह हरामी और उसकी अपनी बदकारी का सबूत था। फिर एक रोज पूरी बीस नींद की गोलियां निगल लीं। मैं सही वक्त पर उसे हास्पिटल ले गया और वह बच गई।”
-“और बच्चे का क्या हुआ?”
-“उस हादसे के महीने भर बाद रंजना एक रोज बाथरूम में फिसल कर बाथटब पर जा गिरी। तेज ब्लीडिंग शुरू हो गई। अस्पताल पहुंचे तो डाक्टरों ने उसे रोकने की कोशिश की मगर कामयाब नहीं हो सके। आखिरकार अबार्शन ही करना पड़ा। लेकिन उसके बाद उसकी दिमागी हालत काफी सुधर गई।”
-“क्या वह साइकिएट्रिक ट्रीटमेंट ले रही है?”
-“हां। लेकिन सही ढंग से नहीं। कई-कई रोज दवाई नहीं खाती।”
-“फिर भी उसे उसकी दिमागी हालत सही न होने के आधार पर इन तीनों हत्याओं के आरोप से बचाया जा सकता है।”
-“उस हालत में उसे मैंटल हास्पिटल में रहना होगा।”
-“क्या तुमने चौधरी को यह सब बता दिया?”
-“हां और नौकरी से इस्तीफा भी दे दिया।”
-“तुम्हारे ससुर बवेजा.....।”
-“बवेजा मर चुका है।”
राज बुरी तरह चौका।
-“कैसे?”
-“चौधरी के ऑफिस में जबरदस्त हार्ट अटैक हुआ और कुछेक मिनटों में दम तोड़ दिया।”
राज हंसा।
-“यानी एकदम लाइन क्लीयर। मानना पड़ेगा तुम किस्मत के धनी हो चौधरी।”
-“क्या मतलब?”
-“तुम्हारी पत्नी रंजना अपने बाप बवेजा की अब इकलौती वारिसा है। लेकिन उसे पागलखाने में रहना होगा। और उसके पति होने के नाते उसके बाप बवेजा के बिजनेस, जायदाद वगैरा तुम्हारे हाथ में रहेंगे। तुम्हारी तो लॉटरी खुल गई।”
-“क्या बक रहे हो, तुम?” चौधरी चिल्लाया।
-“चिल्लाओ मत। मैं असलियत बयान कर रहा हूं। बवेजा की दौलत के दम पर अब तुम अपनी पुरानी प्रेमिका और ताजा विधवा हुई रजनी के साथ बिना किसी रोक-टोक के ऐश कर सकते हो। वह आज भी तुम्हारा इंतजार कर रही है। तुम दोनों के रास्ते की तमाम रुकावटें दूर हो चुकी हैं।”
-“तुम पागल तो नहीं हो।”
-“बिल्कुल नहीं। तुमने अपनी जो कहानी सुनाई है। उसमें कितनी सच्चाई है, मैं नहीं जानता और न हीं जानना चाहता हूं। तुमसे जरा भी हमदर्दी मुझे नहीं है।” राज हिकारत भरे लहजे में कह रहा था- “तुम निहायत कमीने, मक्कार, खुदगर्ज और अय्याश आदमी हो। रंजना को अपनी हवस का शिकार बनाकर उसे पागल कर दिया। उससे दिल भर गया तो मीना की बाँहों में सरक गए। साथ ही अपनी जवानी के पहले प्यार को भी दोबारा और मुकम्मल तौर पर पाने की कोशिश करते रहे। तमाम बखेड़े की जड़ मीना के साथ ताल्लुकात कायम करने के पीछे तुम्हारा मकसद उसके साथ महज ऐश करना नहीं था। यह तुम्हारी लांग टर्म प्लानिंग का एक अहम हिस्सा था। इसलिए तुमने अपने ताल्लुकात को रंजना पर जाहिर होने दिया। रंजना के साथ इतने अर्से तक रहने की वजह से उसकी सोच और सोचने के ढंग से तुम बखूबी वाकिफ हो चुके थे। इसलिए तुमने औरत और मर्द के नाजायज ताल्लुकात के बारे में यह मान्यता, कि इस मामले में औरत ही कसूरवार और सजा की हकदार होती है, इस ढंग से और इतनी गहराई के साथ रंजना के दिमाग में बैठा दी कि उसने मीना की जान लेने का फैसला कर लिया। इसमें रंजना ने भी तुम्हारी मदद की। इत्तिफाक से ऐसे हालात पैदा हुए कि तुम्हें कुछ नहीं करना पड़ा। तुम जानते थे रंजना किस स्थिति में क्या करेगी। उसने मीना की हत्या कर दी। तुम्हारी योजना का पहला चरण पूरा हो गया। तुम रंजना से आजाद हो गए।” क्योंकि रंजना के लिए दो ही जगह रह गई- “जेल या पागलखाना। मनोहर की हत्या तो इस सिलसिले की सर्वथा अनपेक्षित घटना थी। लेकिन रजनी को आजाद कराने के लिए तुमने फिर रंजना के दिमाग में यह बात बैठा दी कि सैनी की वजह से तुम्हें जिल्लत और रुसवाई का सामना करना पड़ सकता था। उसका जिंदा रहना खतरनाक था। इसलिए तुम रंजना को यहां अकेली छोड़ गए थे। खुद को इससे अलग और अनजान जाहिर करने के लिए घर को ताला भी लगा गए। मगर तुम जानते थे रंजना के दिमाग में सैनी की जान लेने की जो बात बैठ गई थी। उसे वह पूरा करके ही दम लेगी। यही हुआ भी। रंजना खिड़की तोड़कर भाग गई। सैनी मारा गया और तुम्हारी रजनी भी आजाद हो गई। अपनी योजना के मुताबिक तुम दो रिमोट कंट्रोल मर्डर करने में कामयाब हो गए। तुम्हारी योजना पूरी तरह कामयाब हो गई। खुद को एक बार फिर शरीफ और ईमानदार साबित करने के लिए तुमने नौकरी से इस्तीफा दे दिया। ताकि इसे तुम्हारी नेकनियत मानकर तुम्हारा विभाग और अदालत में जज, अपनी कहानी के दम पर जिसकी हमदर्दी हासिल करने में तुम कामयाब हो जाओगे तुम्हें बेगुनाह करार दे दे।”
-“तुम मुझ पर बेबुनियाद इल्जाम लगा रहे हो। मेरे खिलाफ तुम्हारे पास सबूत क्या है?”
राज ने उसे घूरा।
-“कोई नहीं। तुम तो खून कर चुके हो मगर कानून तुम्हारा कुछ नहीं बिगाड़ सकता। तुम रजनी के साथ रंजना के बाप की दौलत पर ऐश करोगे और बेचारी रंजना जेल में या पागलखाने में बाकी जिंदगी गुजारेगी।”
-“बिल्कुल यही होगा।” चौधरी हंसा- “रंजना की जगह पागलखाने में है।”
-“और रजनी की जगह तुम्हारी बांहों में है?”
-“हां।”
-“तुम वाकई शैतान हो। तुम्हें जिंदा रहने का कोई हक नहीं है।”
-“तुम जो चाहो कर सकते हो। मुझे कोई परवाह नहीं है। मैं जो करना चाहता था कर दिया। अब मेरा कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता।”
राज विवशतापूर्वक उसे देख रहा था। उसका रोम-रोम नफरत से सुलग रहा था। अचानक उसकी निगाहें चौधरी के पीछे ड्राइंग रूम के अंदर की ओर खुलने वाले दरवाजे की ओर उठ गई।
वहां रंजना बुत बनी खड़ी थी। कागज की तरह सफेद चेहरा चमकती आंखें और सीधी तनी गरदन। स्पष्ट था वह काफी कुछ सुन चुकी थी।
-“जानते हो राज।” चौधरी ने पूछा- “इसे क्या कहते हैं?”
-“नहीं।”
-“इसे परफैक्ट क्राइम कहते हैं। कहीं कोई सबूत नहीं। लूजएंड नहीं। मैंने साबित कर दिया है परफैक्ट क्राइम महज किताबी चीज नहीं है।”
तभी टेलीफोन की घंटी बजने लगी।
चौधरी मुस्कराता हुआ उठा। टेलीफोन उपकरण दूर कोने में रखा था।
-“मैं जा रहा हूं चौधरी।” राज ने कहा।
-“जाओ।”
राज तेजी से बाहर निकला। चौधरी द्वारा दी गई रिवाल्वर निकालकर उससे तीन गोलियां निकाली और रिवाल्वर को रुमाल से पोंछकर कुछेक सेकंडो मे ही पुन: अंदर चला गया।
घंटी अभी बज रही थी।
-“तुम फिर वापस आ गए?” टेलीफोन उपकरण के पास जा पहुंचे चौधरी ने पलटकर पूछा।
राज ने रुमाल से पकड़ी रिवाल्वर उसे दिखाई।
-“यह वापस करने आया हूं।”
-“रख दो।” उसने लापरवाही से कहा और रिसीवर उठा लिया- “हेलो?”
राज देख चुका था रंजना अभी भी उसी तरह खड़ी थी।
उसने रिवाल्वर सोफे पर डाल दी।
रंजना फौरन अपने स्थान से हिली। नींद में चलती हुई सी नि:शब्द आगे आई। राज पुनः तेजी से बाहर निकल गया। वह कोई खतरा उठाना नहीं चाहता था।
-“हां.....सब ठीक हो गया.....।” चौधरी माउथपीस में कह रहा। सोफे की तरफ उसकी पीठ थी- “.....तुम जब चाहो आ सकती हो.....।”
रंजना सोफे पर पड़ी रिवाल्वर उठा चुकी थी।
-“कौशल.....।”
चौधरी फौरन पलटा। अपनी ओर रिवाल्वर तनी पाकर चेहरा फक पड़ गया।
-“तुम वाकई शैतान हो।” रंजना बोली- “तुम्हें जिंदा रहने का कोई हक नहीं है।”
-“क.....क्या कर रही हो?”
-“वही, जो बहुत पहले कर देना चाहिए था....।”
ट्रिगर पर कसी रंजना की उंगली खिंची और तब तक खिंचती गई जब तक कि तीनों गोलियां चौधरी की छाती में न जा घुसीं।
पास ही कहीं पुलिस सायरन की आवाज गूंजी।
राज अंदर आ गया।
चौधरी औंधे मुंह पड़ा था। उसके हाथ में अभी भी रिसीवर थमा था। छाती से बहता खून का कारपेट पर बनता दायरा धीरे-धीरे बढ़ता जा रहा था। रंजना रिवाल्वर हाथ में थामें सोफे पर बैठ गई। सोफे की पुश्त पर गरदन का पृष्ठ भाग टिकाकर आंखें बंद कर लीं।
वह पूर्णतया शांत नजर आ रही थी।
एक कुर्सी पर बैठकर पुलिस के पहुंचने का इंतजार करते राज ने यूं चौधरी की लाश की और देखा मानों पूछ रहा था- अगर वो परफैक्ट क्राइम था तो इसे क्या कहोगे।


समाप्त।
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RE: Thriller Sex Kahani - अचूक अपराध ( परफैक्ट जुर्म ) - by desiaks - 11-30-2020, 12:52 PM

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