RE: Thriller Sex Kahani - हादसे की एक रात
राज भय से पीला पड़ गया ।
“स...सेठ ।” उसने विनती की- “म...मुझे एक मौका दो । हड़ताल खुलते ही मैं तुम्हारी पाई-पाई चुका दूंगा ।”
“यानि आज तू रुपये नहीं देगा ।”
“न...नहीं ।”
“बुन्दे, शेरा ।” रंगीला सेठ चिल्लाया- “पीटो साले को ! कर दो इसकी हड्डी-पसली बराबर ।”
“नहीं !” राज दहशत से चिल्लाता हुआ दरवाजे की तरफ भागा ।
तीनों मवाली चीते की तरह उसके पीछे झपटे ।
दो ने लपककर हॉकियां उठा लीं ।
एक ने झपटकर राज को जा दबोचा ।
“नहीं !” राज ने आर्तनाद किया- “मुझे मत मारो, मुझे मत मारो ।”
मगर उसकी फरियाद वहाँ किसने सुननी थी ।
दो हॉकियां एक साथ उस पर पड़ने के लिये हवा में उठीं । राज ने खौफ से आंखें बंद कर ली ।
“रुको ।” उसी क्षण एक तीखा नारी स्वर ठेके में गूंजा ।
हॉकिया हवा में ही रुक गयीं ।
☐☐☐
वह एकाएक करिश्मा-सा हुआ था ।
राज ने झटके से आंखें खोलीं, सामने डॉली खड़ी थी ।
डॉली लगभग पच्चीस-छब्बीस साल की एक बेहद सुंदर लड़की थी । वह सोनपुर में ही रहती थी । सात साल पहले उसके मां-बाप एक एक्सीडेंट में मारे गये थे । तबसे डॉली बिलकुल अकेली हो गयी थी । परन्तु उसने हिम्मत नहीं हारी । वह बी.ए. पास थी, उसने एक ऑफिस में टाइपिस्ट की नौकरी कर ली और खुद अपनी जिंदगी की गाड़ी ढोने लगी ।
राज जितना डरपोक था, डॉली उतनी ही दिलेर ।
पिछले एक महीने से सोनपुर में उन दोनों की मोहब्बत के चर्चे भी काफी गरम थे ।
राज जहाँ अपनी मोहब्बत को छिपाता, वहीं डॉली किसी भी काम को चोरी-छिपे करने में विश्वास ही नहीं रखती थी ।
“क्या हो रहा है यह ?” डॉली अंदर आते ही चिल्लायी- “क्यों मार रहे हो तुम इसे ?”
“डॉली !” रंगीला सेठ भी आंखें लाल-पीली करके गुर्राया- “तू चली जा यहाँ से- इस हरामी को इसके पाप की सज़ा दी जा रही है ।”
“लेकिन इसका कसूर क्या है ?”
“इसने उधारी नहीं चुकाई ।”
“बस !” तिलमिला उठी डॉली- “इतनी सी बात के लिये तुम इसे मार डालना चाहते हो ।”
“यह इतनी सी बात नहीं है बेवकूफ लड़की ।” रंगीला सेठ का कहर भरा स्वर- “आज इसने उधारी नहीं चुकाई...कल कोई और नहीं चुकायेगा । यह छूत की ऐसी बीमारी है, जिसे फौरन रोकना जरूरी होता है । और इस बढ़ती बीमारी को रोकने का एक ही तरीका है, इस हरामी की धुनाई की जाये । सबके सामने । इधर ही, ताकि सब देखें ।”
“लेकिन इसकी धुनाई करने से तुम्हें अपने रुपये मिल जायेंगे ?”
“जबान मत चला डॉली- अगर तुझे इस पर दया आती है, तो तू इसकी उधारी चुका दे और ले जा इसे ।”
“कितने रुपये हैं तुम्हारे ?”
“एक हज़ार अस्सी रुपये ।”
डॉली ने फौरन झटके से अपना पर्स खोला, रुपये गिने और फिर उन्हें रंगीला सेठ की हथेली पर पटक दिये ।
“ले पकड़ अपनी उधारी ।”
फिर वह राज के साथ तेजी से दरवाजे की तरफ बढ़ी ।
“वाह-वाह ।” पीछे से एक गुंडा व्यंग्यपूर्वक हँसा- “प्रेमिका हो तो ऐसी, जो दारू भी पिलाये और हिमायत भी ले ।”
राज ने एकदम पलटकर उस गुंडे को भस्म कर देने वाली नजरों से घूरा ।
“तेरी तो... ।” राज ने उसे ‘गाली’ देनी चाही ।
“गाली नहीं ।” गुण्डा शेर की तरह दहाड़ उठा- “गाली नहीं । अगर गाली तेरी जबान से निकली, तो मैं तेरा पेट अभी यहीं के यहीं चीर डालूंगा साले ।”
“चल ।” डॉली ने भी राज को झिड़का- “चुपचाप घर चल ।”
राज खून का घूँट पीकर रह गया ।
जबकि ठेके में मौजूद तमाम गुंडे उसकी बेबसी पर खिलखिलाकर हँस पड़े ।
☐☐☐
|